Genius Act बना गेमचेंजर! ट्रंप के फैसले से क्रिप्टो वर्ल्ड में मची हलचल, भारत के लिए भी नए मौके! 2025

रात के अंधेरे में व्हाइट हाउस के गलियारे जैसे कुछ बड़ा फैसला लेने वाले हों। दरवाज़े के उस पार अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बैठें हैं, और उनके सामने एक दस्तावेज़ रखा है—जिसके साइन से पूरी दुनिया की डिजिटल अर्थव्यवस्था की दिशा बदल सकती है। कुछ सेकंड की खामोशी… और फिर ट्रंप ने पेन उठाया। ‘Genius Act’ पर उनके साइन के साथ, न केवल एक नया कानून बना, बल्कि अमेरिका ने क्रिप्टोकरेंसी की दुनिया को पहली बार सीधा और साफ़ संकेत दे दिया—अब गेम बदलेगा। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

आपको बता दें कि ये वही ट्रंप हैं जिन्हें अक्सर बयानबाज़ियों और व्यापार युद्धों के लिए जाना जाता है। लेकिन इस बार मामला कुछ और था। इस बार वो केवल अपनी छवि नहीं, बल्कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था की नींव को एक नई दिशा दे रहे थे। ‘Genius Act’—नाम जितना दिलचस्प, असर उतना ही दूरगामी। इस कानून ने स्टेबलकॉइन यानी डॉलर आधारित क्रिप्टोकरेंसी के लिए पहली बार एक स्पष्ट नियामक ढांचा तय किया है।

क्रिप्टो की दुनिया में ‘स्टेबलकॉइन’ को एक ऐसा जरिया माना जाता है जो अस्थिरता से जूझते इस बाजार में स्थिरता लाता है। ये एक ऐसा डिजिटल टोकन है जिसकी कीमत आमतौर पर 1 अमेरिकी डॉलर के बराबर होती है। और यही कारण है कि इसका इस्तेमाल दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है—खासतौर पर ट्रेडिंग के लिए। लेकिन सवाल ये है कि जब तक इन सिक्कों पर भरोसा करने के लिए कोई कानूनी गारंटी नहीं होती, तब तक आम आदमी इन्हें अपनाएगा क्यों?

यही भरोसे की कमी दूर करने के लिए ‘Genius Act’ लाया गया है। इस एक्ट को 308 बनाम 122 मतों से पास किया गया—यानी ट्रंप के इस प्रस्ताव को सिर्फ रिपब्लिकन ही नहीं, कई डेमोक्रेट्स का भी समर्थन मिला। और ट्रंप ने इसका क्रेडिट क्रिप्टो समर्थकों को दिया—कहा, “ये आपकी मेहनत और समर्पण का परिणाम है।”

लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती। ट्रंप ने संकेत दिया कि जल्द ही वे एक ऐसा दस्तावेज़ जारी करेंगे जिसमें 35 से 40 प्रतिशत का Import duty तय किया गया है। उन्होंने इसे “व्यापारिक समझौते” का हिस्सा कहा, और कहा कि वो यह देखना चाहते हैं कि क्या किसी अन्य विकल्प पर भी बातचीत हो सकती है—जैसे कि अपने देश की अर्थव्यवस्था को और अधिक व्यापार के लिए खोलना।

अब ज़रा सोचिए—एक तरफ अमेरिका डिजिटल संपत्तियों को गले लगा रहा है, और दूसरी तरफ import duties से बाहरी उत्पादों पर नियंत्रण की बात कर रहा है। ये एक डुअल गेम है। ट्रंप की रणनीति का अंदाज़ा लगाइए—एक तरफ वो अमेरिकी Investors को भरोसा दे रहे हैं कि डिजिटल संपत्तियां सुरक्षित हैं, वहीं दूसरी ओर बाहरी दुनिया को टैरिफ की तलवार दिखा रहे हैं।

‘Genius Act’ को लेकर क्रिप्टो कम्युनिटी में जश्न का माहौल है। ये पहली बार है जब अमेरिकी सरकार ने स्टेबलकॉइन के लिए नियामक पारदर्शिता का रास्ता खोला है। अब कंपनियों को साफ तौर पर ये बताया गया है कि यदि कोई स्टेबलकॉइन जारी करने वाली संस्था दिवालिया हो जाती है, तो सबसे पहले सिक्का धारकों का भुगतान किया जाएगा। ये उस वर्ग के लिए बहुत बड़ी राहत है, जिसने वर्षों तक इस इंडस्ट्री को ‘रिस्की’ समझ कर नजरअंदाज किया।

कानून में एक और अहम प्रावधान जोड़ा गया है—Money laundering और आतंकवाद से जुड़े लेन-देन को रोकने के लिए सख्त नियमों का पालन। यानी अब कोई भी स्टेबलकॉइन जारीकर्ता बिना उचित KYC और नियमों के दायरे में रहे बिना काम नहीं कर सकेगा। इससे भरोसे की एक नई दीवार खड़ी होती है—एक ऐसी दीवार, जो धोखाधड़ी से सुरक्षा देगी।

क्रिप्टो समर्थकों को इस एक्ट से उम्मीद है कि अब मुख्यधारा की वित्तीय कंपनियां भी इस डिजिटल क्षेत्र में उतरेंगी। बैंकों के लिए ये एक ‘ग्रीन सिग्नल’ है कि अब वे भी डिजिटल संपत्तियों को गले लगाकर नई तकनीक को अपनाएं। यही वजह है कि इसे “क्रिप्टो का न्यू युग” कहा जा रहा है।

MIT की क्रिप्टोइकॉनॉमिक्स लैब के संस्थापक क्रिश्चियन कैटालिनी कहते हैं—“इससे नए द्वार खुलेंगे। अब कई नए जारीकर्ता सामने आएंगे और उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प मिलेंगे।” जब विकल्प बढ़ेंगे, तो Competition बढ़ेगी। और जब Competition बढ़ेगी, तो Innovation को नया जन्म मिलेगा। यही तो किसी भी इंडस्ट्री की असली ताकत होती है।

लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। इस विधेयक के आलोचक भी कम नहीं हैं। उनका कहना है कि ये नियम अभी भी बहुत ज़्यादा उद्योग-हितैषी हैं और उपभोक्ता सुरक्षा के मानकों पर खरे नहीं उतरते। वे मानते हैं कि स्टेबलकॉइन के अवैध उपयोग, मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी फंडिंग पर सख्त नियंत्रण अब भी एक अधूरा सपना है।

कुछ विशेषज्ञ तो यहां तक कह रहे हैं कि ट्रंप सरकार इस कानून को एक बड़े व्यापारिक सौदे की तरह देख रही है—जैसे कोई ट्रम्प कार्ड। ट्रंप को व्यापार में समझौता करने की आदत है, और यहां भी उन्होंने उसी सोच के साथ क्रिप्टो के मैदान में कदम रखा है। उन्होंने कहा कि अगर जरूरी हुआ तो वो फोन कॉल पर भी बातचीत करेंगे, ताकि देखा जा सके कि क्या अमेरिका की अर्थव्यवस्था को व्यापार के लिए और खोला जा सकता है।

इस कानून के दूरगामी असर की बात करें तो, इससे भविष्य में कैशलेस अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा। कल्पना कीजिए कि जब आपके फोन में पड़ा डिजिटल डॉलर हर छोटे-बड़े लेन-देन के लिए मान्य होगा, तो कितना आसान हो जाएगा जीवन। और ये सिर्फ अमेरिका की बात नहीं है—अगर अमेरिका ने यह रास्ता अपनाया, तो दूसरे देश भी इसके नक्शे-कदम पर चलेंगे।

फिलहाल भारत समेत कई देश अभी भी क्रिप्टो को लेकर स्पष्ट नीति नहीं बना पाए हैं। लेकिन ‘Genius Act’ एक दबाव की तरह उभर सकता है—एक तरह की दौड़ शुरू हो सकती है। जिसकी शुरुआत अमेरिका ने कर दी है, बाकी देश पीछे न रह जाएं, इसके लिए उन्हें भी ठोस कदम उठाने पड़ेंगे।

इस एक्ट से क्रिप्टो ट्रेडिंग में पारदर्शिता आएगी। उपभोक्ता जब जानेंगे कि उनके डिजिटल डॉलर को कानूनी सुरक्षा मिली है, तब ही तो वो Investment करेंगे। और यही Investment डिजिटल मार्केट को मजबूत करेगा। जब स्टेबलकॉइन को भुगतान के साधन के रूप में आम लोग अपनाएंगे, तभी तो यह तकनीक सफल होगी।

ट्रंप की यह पहल उनके कार्यकाल का एक बड़ा फैसला माना जा रहा है। उन्होंने एक बार फिर दिखा दिया कि चाहे आलोचक कुछ भी कहें, वह हमेशा कुछ अलग करने की हिम्मत रखते हैं। और जब उन्होंने कहा कि “यह कानून आपके समर्पण का नतीजा है,” तो यह केवल एक राजनीतिक लाइन नहीं थी—यह उनके उस इकोसिस्टम को दिया गया समर्थन था, जो वर्षों से इस बदलाव का इंतज़ार कर रहा था।

जीनियस एक्ट का नाम सुनते ही एक बात साफ हो जाती है—यह केवल क्रिप्टो के लिए नहीं है, यह आने वाले समय के लिए है। यह उस भविष्य की तैयारी है, जहां फिजिकल करेंसी शायद इतिहास बन जाए और डिजिटल वॉलेट हर जेब में मौजूद हो। जहाँ एक क्लिक में लाखों का लेन-देन हो और हर लेन-देन कानूनी सुरक्षा से लैस हो।

अगर हम अमेरिका के आर्थिक इतिहास पर नज़र डालें, तो ये एक्ट वैसा ही है जैसा फेडरल रिजर्व एक्ट 1913 में था। उस समय फिजिकल करेंसी को रेगुलेट करने का सिस्टम बना था, अब डिजिटल करेंसी के लिए हो रहा है। फर्क बस इतना है—इस बार मंच डिजिटल है, लेकिन महत्व उतना ही गहरा।

ट्रंप के विरोधी चाहे जितनी भी आलोचना करें, लेकिन ये तय है कि ‘Genius Act’ एक बहस की शुरुआत है। बहस उस सिस्टम को लेकर, जहां आर्थिक लेन-देन पारदर्शी, तेज़ और कानूनी सुरक्षा से भरे हों। ये बहस दुनिया के हर उस देश तक जाएगी, जो अब भी डिजिटल करेंसी को ‘अनियंत्रित खतरा’ मानता है।

जैसे-जैसे यह कानून लागू होगा, क्रिप्टो इंडस्ट्री में एक नई हलचल देखने को मिलेगी। नए स्टार्टअप्स सामने आएंगे, पारंपरिक बैंक अपने सिस्टम को अपडेट करेंगे, और शायद एक दिन ऐसा भी आएगा जब डिजिटल डॉलर आपके दूधवाले को भी सीधे भुगतान में मिलेगा। और अगर ऐसा होता है, तो इसका पहला क्रेडिट ट्रंप को ही जाएगा—क्योंकि उन्होंने न सिर्फ कानून पर साइन किया, बल्कि क्रिप्टो की दुनिया को एक नई पहचान दी।

Conclusion

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