नमस्कार दोस्तों, एक समय था जब भारत का शेयर बाजार foreign investors का पसंदीदा Destination था। हर कोई भारतीय अर्थव्यवस्था को उभरता हुआ सितारा मान रहा था। global बाजार में मंदी की आशंका के बावजूद, Investors भारत को सुरक्षित और ऊँचे रिटर्न देने वाली जगह समझते थे। लेकिन फिर अचानक सब कुछ बदल गया। जनवरी 2025 में foreign investors (FIIs) ने 87,000 करोड़ रुपये से अधिक की Withdrawal कर ली। पिछले तीन महीनों में उन्होंने 1.77 लाख करोड़ रुपये की बिकवाली की थी। यह सिर्फ एक संयोग नहीं था, बल्कि एक गहरी समस्या का संकेत था।
सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि कल तक भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर, बुलिश रहने वाले foreign investors आज लगातार अपने पैसे निकाल रहे हैं? वे वापस क्यों नहीं आ रहे? क्या भारत की चमक फीकी पड़ गई है, या फिर Investors की प्राथमिकताएं बदल गई हैं? इस रहस्य को सुलझाने के लिए हमने इस विषय पर विस्तार से research किया, और जाना कि क्या सच में foreign investors हमेशा के लिए भारत से दूर हो चुके हैं, या यह सिर्फ एक अस्थायी स्थिति है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
भारत से Investors का मोहभंग क्यों हो रहा है, और इसके पीछे क्या मुख्य कारण हैं?
जब भी कोई Investors किसी देश में पैसा लगाता है, तो वह तीन प्रमुख चीजें देखता है – स्थिरता, लिक्विडिटी और टैक्स सिस्टम। भारत, जो कभी इन तीनों मोर्चों पर foreign investors के लिए आकर्षक था, अब इनकी नजरों में कमजोर होता जा रहा है।
एडलवाइज़ के प्रेसिडेंट अजय शर्मा के मुताबिक, FIIs भारत छोड़कर अमेरिका और अन्य विकसित बाजारों की ओर भाग रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण भारत में बढ़ती अस्थिरता, रुपये की कमजोरी, टैक्स की ऊँची दरें और लिक्विडिटी की समस्या है। कुछ साल पहले तक भारत में Investment करने वाले Foreign Institutional Investors (FIIs) अच्छी कमाई कर रहे थे, लेकिन अब उन्हें अमेरिका के शेयर बाजार, विशेष रूप से S&P 500 में अधिक लाभ दिख रहा है।
भारत से उनकी दूरी सिर्फ एक भावनात्मक फैसला नहीं है, बल्कि एक आर्थिक गणना का नतीजा है। वे मुनाफे के आधार पर फैसले लेते हैं, और जब तक भारत में Investment करने से ज्यादा फायदा अमेरिका जैसे बाजारों में मिलेगा, तब तक वे वापस नहीं लौटेंगे।
रुपये की कमजोरी foreign investors के लिए सबसे बड़ा झटका क्यों साबित हो रही है?
भारत में Investment करने वाले FIIs के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द रुपये की घटती कीमत है। पिछले 20 वर्षों में, निफ्टी ने औसतन 14.5% सालाना रिटर्न दिया है, जो पहली नजर में बहुत आकर्षक लगता है। लेकिन जब इसे डॉलर में देखा जाए, तो यह उतना प्रभावी नहीं दिखता।
20 साल पहले 1 डॉलर 40 रुपये का था, लेकिन आज यह 87 रुपये तक पहुंच गया है। इसका मतलब यह हुआ कि रुपये की कीमत आधी से भी कम हो गई। चूंकि FIIs डॉलर में Investment करते हैं और डॉलर में ही पैसा निकालते हैं, तो रुपये की इस गिरावट ने उनके असली रिटर्न को प्रभावित किया है।
उदाहरण के लिए, अगर किसी foreign investors ने 100 डॉलर भारत में लगाए थे और 20 साल बाद यह 400 डॉलर हुआ, तो रुपये की कमजोरी के कारण इसकी असली वैल्यू बहुत कम हो जाएगी। इतनी कम कि 200 डॉलर भी नहीं रह जाएगी। यही कारण है कि FIIs को भारत के बजाय डॉलर-स्टेबल बाजारों में ज्यादा फायदा दिखता है।
भारत के मुकाबले अमेरिका Investors की प्राथमिकता क्यों बनता जा रहा है?
FIIs का एक अहम सवाल यह भी है कि अगर उन्हें भारत और अमेरिका के शेयर बाजारों से समान रिटर्न मिल रहा है, तो वे भारत में Investment क्यों करें? अगर पिछले 20 वर्षों का डेटा देखा जाए, तो निफ्टी और S&P 500 ने लगभग समान रिटर्न दिया है। जब दोनों बाजारों से बराबर रिटर्न मिल रहा है, तो FIIs को भारत में Investment करने का कोई अतिरिक्त फायदा नहीं दिखता।
खासकर तब, जब अमेरिका का बाजार अधिक लिक्विड है और वहां खरीद-बिक्री आसानी से हो सकती है। भारत में, जब FIIs बड़ी मात्रा में शेयर खरीदते या बेचते हैं, तो बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ जाता है और उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है। अगर उन्हें बिना किसी परेशानी के Investment और Withdrawal करनी है, तो अमेरिका उनके लिए एक बेहतर विकल्प बन जाता है।
इसके अलावा, भारत में Investment करने पर foreign investors को 12.5% का लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स देना पड़ता है। जबकि अमेरिका में ऐसा कोई टैक्स नहीं लगता। इसका मतलब यह हुआ कि अगर FIIs को अमेरिका में 10% रिटर्न मिल रहा है, तो भारत में उन्हें कम से कम 12 से 13% रिटर्न कमाना होगा, ताकि टैक्स चुकाने के बाद बराबर मुनाफा रह सके।
लेकिन जब रुपये की कमजोरी को भी इसमें जोड़ लें, तो उन्हें कम से कम 16% से ज्यादा का रिटर्न चाहिए, जो हमेशा संभव नहीं होता। यही वजह है कि कई foreign investors भारत के बजाय अमेरिका के शेयर बाजारों में Investment कर रहे हैं, जहां उन्हें ज्यादा स्थिरता और कम टैक्स का फायदा मिल रहा है।
इसके अलावा, FIIs के लिए भारत में Investment करना लिक्विडिटी की समस्या की वजह से भी मुश्किल हो जाता है। अमेरिका में S&P 500 जैसे विकसित बाजारों में FIIs जितनी चाहें, उतनी बड़ी रकम डाल सकते हैं और बिना किसी दिक्कत के निकाल सकते हैं। लेकिन भारत में ऐसा करना कठिन होता है। अगर वे निफ्टी 50 में बहुत बड़े पैमाने पर Investment करना चाहें, तो उन्हें लिक्विडिटी की समस्या का सामना करना पड़ता है।
कई बार जब वे भारतीय बाजार से पैसा निकालते हैं, तो शेयरों की कीमतों में तेज गिरावट आ जाती है, जिससे उन्हें नुकसान होता है। यही वजह है कि FIIs ऐसे बाजारों को चुनते हैं, जहां वे बिना किसी झंझट के Investment और Withdrawal कर सकें।
FIIs भारत से हमेशा के लिए दूर हो गए हैं?
अजय शर्मा का कहना है कि FIIs हमेशा मौके की तलाश में रहते हैं। वे कोई भावनात्मक Investors नहीं होते, बल्कि मुनाफे के आधार पर फैसले लेते हैं। अगर भारतीय बाजार में अच्छे शेयर सस्ते होते हैं, तो वे वापस आएंगे। FIIs की प्राथमिकता अभी उन बाजारों में जाना है, जहां उन्हें ज्यादा स्थिरता, बेहतर लिक्विडिटी और टैक्स में राहत मिलती है।
अगर भारत में शेयरों की वैल्यूएशन सही होती है, रुपये की गिरावट थमती है और टैक्स की बंदिशों से कुछ राहत मिलती है, तो foreign investors दोबारा भारत का रुख करेंगे।
Conclusion:-
तो दोस्तों, FIIs का भारत से मोहभंग होना एक अस्थायी स्थिति हो सकती है। रुपये की कमजोरी, समान रिटर्न, लिक्विडिटी की समस्या और टैक्स की बाधाओं ने उन्हें अभी दूर किया है, लेकिन भारतीय बाजार की संभावनाएं अब भी मजबूत हैं।
अगर भारत सरकार और सेबी कुछ सुधार लाते हैं, टैक्स में छूट दी जाती है और रुपये की स्थिरता सुनिश्चित की जाती है, तो FIIs वापस आएंगे। आपका इस बारे में क्या विचार है? क्या foreign investors भारत को हमेशा के लिए छोड़ चुके हैं, या वे जल्द ही लौटेंगे? अपनी राय हमें कमेंट में बताएं!
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