Fasal Bima किसानों को मिले सहारा! 2 लाख एकड़ डूबी फसल पर भी उम्मीद की किरण I

ज़रा सोचिए… आप सुबह खेत की ओर निकलते हैं। हाथ में दरांती है, आँखों में उम्मीद है और दिल में यह भरोसा कि इस बार मेहनत रंग लाएगी। बारिश ने धान की पौधों को ताज़गी दी है, मक्के की बालियाँ हवा में लहरा रही हैं और कपास सफेद फूलों से ढकी हुई है। लेकिन अचानक आसमान का रंग बदल जाता है, बादल गरजने लगते हैं और कुछ ही घंटों में खेत, खलिहान, गांव और घर सब पानी में डूब जाते हैं।

सपनों की फसल कीचड़ में बदल जाती है। महीनों की मेहनत, उधार पर लिए गए बीज और खाद, मजदूरी पर खर्च किया गया खून-पसीना—सब कुछ पानी में बह जाता है। और जब किसान राहत की उम्मीद में सरकार की ओर देखता है, तो उसे जवाब मिलता है—“तुम्हें बीमा का मुआवज़ा भी नहीं मिलेगा।” यह कहानी है पंजाब की, जहाँ बाढ़ ने 2 लाख एकड़ से ज्यादा फसल बर्बाद कर दी है और किसानों के पास अपने नुकसान की भरपाई का कोई साधन नहीं है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

आपको बता दें कि पंजाब इस समय भीषण संकट में है। नदियाँ उफान पर हैं—सतलज, ब्यास, रावी और घग्गर का पानी खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है। खेत, गांव और शहर जलमग्न हैं। रिपोर्ट्स कहती हैं कि लगभग 3 लाख एकड़ जमीन प्रभावित हुई है और करीब 1.25 लाख लोग सीधे-सीधे बाढ़ की चपेट में आए हैं। किसानों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। करोड़ों रुपए की फसलें बर्बाद हो गईं, लेकिन उन्हें न तो Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana (PMFBY) का लाभ मिलेगा और न ही किसी राज्यीय बीमा योजना का। यह स्थिति सवाल खड़ा करती है कि आखिर किसानों की इस तबाही की भरपाई कौन करेगा?

Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana, जिसे 2016 में केंद्र सरकार ने शुरू किया था, का मकसद ही था कि प्राकृतिक आपदाओं, कीटों और बीमारियों से फसल बर्बाद होने पर किसान को सुरक्षा दी जाए। इस योजना में किसानों को केवल मामूली प्रीमियम भरना होता है—खरीफ फसलों के लिए 2%, रबी फसलों के लिए 1.5% और व्यावसायिक या बागवानी फसलों के लिए 5%। बाकी खर्चा राज्य और केंद्र मिलकर उठाते हैं। लेकिन पंजाब सरकार ने इस योजना को कभी लागू ही नहीं किया।

यहां से एक विडंबना पैदा होती है। पंजाब, जिसे देश का अन्नदाता कहा जाता है, जिसने हरित क्रांति में सबसे बड़ी भूमिका निभाई, जहाँ किसान पूरे भारत का पेट भरते हैं—वहीं किसानों को सबसे जरूरी समय में सुरक्षा कवच नहीं दिया गया। पंजाब सरकार का कहना है कि इस योजना को लागू करने से राज्य के खजाने पर भारी बोझ पड़ता और Claim settlement में पारदर्शिता नहीं होती। लेकिन क्या इस तर्क से किसानों की पीड़ा कम हो जाती है?

किसान संगठनों का कहना है कि सरकारें चाहे किसी भी पार्टी की हों, उन्होंने केवल घोषणाएँ कीं लेकिन ठोस कदम नहीं उठाए। 2016 में जब यह योजना शुरू हुई थी, तब पंजाब में शिरोमणि अकाली दल और भाजपा का गठबंधन सत्ता में था। उस समय भी मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने इस योजना को लागू नहीं किया। उसके बाद कांग्रेस की सरकार आई, और अब आम आदमी पार्टी की। हर सरकार ने कहा कि वह किसानों के लिए अपनी राज्यीय Fasal Bima योजना लाएगी, लेकिन वर्षों बाद भी पंजाब में कोई ऐसी योजना नहीं बनी।

कीर्ति किसान संघ और अन्य संगठनों ने सरकार से मांग की है कि नुकसान के बराबर मुआवज़ा देने वाली एक बीमा योजना तुरंत लागू की जाए। किसानों का कहना है कि अगर उनकी फसल हर साल बाढ़ या अन्य प्राकृतिक आपदा से नष्ट होती रहेगी और उन्हें सुरक्षा नहीं मिलेगी, तो वे खेती छोड़ने को मजबूर हो जाएंगे। और जब पंजाब का किसान खेती छोड़ देगा, तो इसका असर पूरे देश की खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि किसानों में भारी निराशा है। कई किसानों ने कहा कि उन्होंने जीवनभर कड़ी मेहनत की है, लेकिन जब फसल डूब जाती है तो उनके पास न तो मुआवज़ा होता है और न ही बीमा से मिलने वाली राहत। किसान साहूकारों और बैंकों से कर्ज लेकर खेती करते हैं। फसल डूबने पर कर्ज़ चुकाना असंभव हो जाता है। यही वजह है कि पंजाब में कर्ज़ और आत्महत्या की समस्या बार-बार सामने आती है।

बाढ़ केवल खेतों को ही नहीं, बल्कि इंसानी जिंदगी को भी तहस-नहस कर देती है। लाखों लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हैं। राहत शिविरों में भीड़ है, जहाँ साफ पानी और पर्याप्त भोजन तक की कमी है। बच्चों की पढ़ाई रुक गई है, बुजुर्ग बीमार हो रहे हैं और महिलाओं को बुनियादी सुविधाओं के बिना जीना पड़ रहा है। जिन किसानों ने अपनी पूरी जमा-पूँजी घर बनाने या जमीन खरीदने में लगाई थी, उनका सब कुछ बह गया है। उनके सामने अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि वे अपने परिवार का भविष्य कैसे बचाएँगे।

दिल्ली में यमुना नदी का उफान भी इसी समस्या की याद दिलाता है। यमुना का पानी कई इलाकों में घरों में घुस गया, लोग बेघर हो गए। लेकिन पंजाब की त्रासदी कहीं ज्यादा गहरी है, क्योंकि यहाँ सीधे तौर पर कृषि, किसानों और देश की खाद्य सुरक्षा पर चोट हो रही है।

अब बड़ा सवाल यही है कि इस नुकसान की भरपाई कौन करेगा? केंद्र कहेगा कि योजना हमने दी थी, राज्य ने लागू नहीं की। राज्य कहेगा कि हमारे पास पैसा नहीं था। लेकिन बीच में फंसा किसान किससे अपना दर्द कहे? वह जिसने अपनी जान की बाज़ी लगाकर खेतों को हरा-भरा रखा, जिसे “अन्नदाता” कहा गया—आज वही सबसे बड़ा असुरक्षित है।

कृषि विशेषज्ञ कहते हैं कि यह स्थिति केवल नीति की विफलता नहीं है, बल्कि यह हमारे पूरे सिस्टम की कमजोरी को दिखाती है। हर साल बाढ़, सूखा, ओलावृष्टि और प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं। लेकिन हमारी सरकारें केवल राहत पैकेज और घोषणाओं में उलझी रहती हैं। किसान को कोई स्थायी सुरक्षा नहीं मिलती। अगर पंजाब जैसा बड़ा राज्य Fasal Bima योजना से बाहर रहेगा, तो यह पूरे देश के लिए खतरे की घंटी है।

समाधान के लिए आवश्यक है कि पंजाब तुरंत एक पारदर्शी और न्यायसंगत बीमा योजना लागू करे। यह योजना किसानों को हर आपदा से सुरक्षा दे और मुआवज़ा समय पर मिले। केंद्र और राज्य को मिलकर इस समस्या का हल निकालना चाहिए। केवल घोषणाएँ और राजनीति से किसानों की जिंदगी नहीं बदल सकती।

किसानों का दर्द यही कहता है—“हम मेहनत करते हैं, अन्न उगाते हैं, देश को खिलाते हैं। लेकिन जब हमारी मेहनत बर्बाद होती है, तो हमें ही अकेला छोड़ दिया जाता है।” यह सवाल केवल पंजाब के किसानों का नहीं है, बल्कि पूरे भारत का है। अगर अन्नदाता असुरक्षित होगा, तो पूरा देश असुरक्षित होगा।

पंजाब की यह त्रासदी हमें एक बड़ी सीख देती है। यह दिखाती है कि केवल विकास और राजनीति काफी नहीं है। अगर इंसान के पसीने और उसकी मेहनत का सम्मान नहीं होगा, तो कोई भी योजना, कोई भी वादा और कोई भी सरकार उसे बचा नहीं पाएगी। जब तक किसान को बीमा, सुरक्षा और स्थायी समाधान नहीं मिलेगा, तब तक हर साल उसकी फसलें बाढ़ और लापरवाही की भेंट चढ़ती रहेंगी।

यह कहानी सिर्फ बाढ़ की नहीं है। यह कहानी उस दर्द की है जो एक किसान तब महसूस करता है जब उसकी मेहनत मिट्टी हो जाती है और उसके पास न कोई सहारा होता है, न कोई उम्मीद। यह कहानी हमें झकझोरती है और पूछती है—किसानों का नुकसान कौन भरेगा? क्या कभी वह दिन आएगा जब “अन्नदाता” को सच में सुरक्षा और सम्मान मिलेगा?

Conclusion:-

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