नमस्कार दोस्तों, कल्पना कीजिए कि आपका बच्चा अपना पहला सोशल मीडिया अकाउंट बनाना चाहता है। वह उत्साहित है, लेकिन अब उसे सिर्फ नाम और ईमेल डालने से अकाउंट नहीं मिलेगा। DPDP Act के तहत अब उसे आपके दस्तावेज़ और आपकी लिखित सहमति की जरूरत पड़ेगी। सोचिए, अगर हर बार सोशल मीडिया अकाउंट बनाने के लिए माता-पिता को अपनी पहचान Verify करनी पड़े, तो यह कितना जटिल हो सकता है? क्या ये नियम बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सही कदम है या फिर डिजिटल स्वतंत्रता पर एक अनावश्यक रोक? हाल ही में भारत सरकार ने बच्चों की डिजिटल सुरक्षा के लिए एक बड़ा कदम उठाया है, जिसके तहत बच्चों को सोशल मीडिया इस्तेमाल करने के लिए माता-पिता की अनुमति अनिवार्य कर दी गई है। Digital Personal Data Protection Act, (DPDP Act) के तहत बनाए गए इन नए नियमों का उद्देश्य बच्चों के डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, लेकिन इस फैसले ने टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री में नई बहस छेड़ दी है। क्या यह कदम वाकई बच्चों की सुरक्षा करेगा, या टेक्नोलॉजी इनोवेशन के रास्ते में बाधा बन जाएगा? आइए, इसे विस्तार से समझते हैं।
बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग के लिए माता-पिता की सहमति क्यों आवश्यक है, और DPDP Act के तहत यह नियम कैसे लागू किया गया है?
Digital Personal Data Protection Act (DPDP Act) को अगस्त 2023 में भारत की संसद ने पारित किया था, लेकिन अब इसके Draft Rules जारी किए गए हैं, जिसमें बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग के लिए माता-पिता की सहमति को अनिवार्य बनाया गया है। इस कानून का उद्देश्य बच्चों को साइबर खतरों और डेटा के दुरुपयोग से बचाना है। अब यदि कोई बच्चा सोशल मीडिया अकाउंट बनाना चाहता है, तो प्लेटफॉर्म को माता-पिता की सहमति को Verified करना होगा। इस Verification के लिए माता-पिता को अपनी सरकारी आईडी, जैसे आधार कार्ड या डिजिटल लॉकर सर्विस का उपयोग करना होगा। DPDP Act का मुख्य उद्देश्य बच्चों को Cybercrime, Cyberbullying, Inappropriate content और उनकी निजी जानकारी के दुरुपयोग जैसे खतरों से बचाना है। माता-पिता की सहमति लेना यह सुनिश्चित करेगा कि प्लेटफॉर्म्स बच्चों के डेटा का गलत उपयोग न करें, और केवल आवश्यक उद्देश्यों के लिए ही उनकी जानकारी का उपयोग करें। हालांकि, यह प्रक्रिया सुनने में सरल लगती है, लेकिन क्या इसे व्यावहारिक रूप से लागू करना उतना ही आसान होगा?
DPDP Act के तहत Data Fiduciary की भूमिका और जिम्मेदारियां क्या हैं?
Data Fiduciary एक तकनीकी शब्द है, जो उन Institutions और कंपनियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो किसी व्यक्ति का डेटा इकट्ठा करते हैं, उसे प्रोसेस करते हैं और उसका उपयोग करते हैं। फेसबुक, इंस्टाग्राम, गूगल, स्नैपचैट जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स Data Fiduciary के अंतर्गत आते हैं। DPDP Act के नए नियमों के तहत, Data Fiduciary की जिम्मेदारी है कि वे यह सुनिश्चित करें कि बच्चों के डेटा का उपयोग केवल उन्हीं उद्देश्यों के लिए हो, जिनकी सहमति ली गई हो। इसमें मुख्य जिम्मेदारी यह भी होगी कि माता-पिता की सहमति को Verified किया जाए और उसका रिकॉर्ड रखा जाए। Data Fiduciary को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि डेटा सुरक्षित तरीके से store किया जाए, और किसी भी Unauthorized Access को रोका जाए। अगर माता-पिता की सहमति के बिना किसी बच्चे का डेटा प्रोसेस किया गया या गलत तरीके से उपयोग किया गया, तो Data Fiduciary पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। यह नियम न सिर्फ बच्चों के डेटा की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर एक बड़ी जिम्मेदारी भी डालता है।
DPDP Act के तहत टेक्नोलॉजी सेक्टर में किन विवादों और चिंताओं को उठाया जा रहा है?
जब से यह कानून सामने आया है, तब से टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री में काफी विवाद देखने को मिला है। मेटा (फेसबुक और इंस्टाग्राम की मूल कंपनी) और गूगल जैसी प्रमुख टेक कंपनियों ने इन नियमों पर सवाल उठाए हैं। उनका तर्क है कि 18 वर्ष से कम उम्र के सभी उपयोगकर्ताओं के लिए माता-पिता की सहमति की अनिवार्यता व्यावहारिक नहीं है। उनका सुझाव है कि बच्चों की परिभाषा को 18 वर्ष से घटाकर 14 वर्ष कर देना चाहिए, क्योंकि किशोरावस्था में बच्चे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल Education, Networking और Creativity के लिए करते हैं। टेक कंपनियों का मानना है कि इतने सख्त नियम डिजिटल इनोवेशन को बाधित कर सकते हैं, और नए स्टार्टअप्स के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। इसके अलावा, माता-पिता की सहमति की जांच करने की प्रक्रिया तकनीकी रूप से जटिल और महंगी साबित हो सकती है। छोटे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और स्टार्टअप्स के लिए इन नियमों को लागू करना संभवतः आर्थिक रूप से कठिन होगा।
DPDP Act के तहत किन Institutions या व्यक्तियों को छूट प्रदान की गई है?
आपको बता दें कि सरकार ने कुछ विशेष Institutions को इन नियमों से छूट दी है। Mental health institutions, health care professionals, educational institutions और बच्चों के लिए डे-केयर सेंटर जैसे Institutions को, बच्चों के डेटा प्रोसेसिंग के लिए इन सख्त नियमों से मुक्त रखा गया है। इस छूट का कारण यह है कि इन Institutions का उद्देश्य बच्चों के कल्याण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है। उदाहरण के लिए, किसी Mental Health Institute को काउंसलिंग के लिए बच्चे का डेटा आवश्यक हो सकता है। इसी तरह, educational establishments में बच्चों की Educational Progress के लिए डेटा प्रोसेसिंग आवश्यक हो सकती है। हालांकि, अब सवाल उठता है कि क्या केवल इन Institutions को ही यह छूट मिलनी चाहिए? क्या शिक्षा संबंधी अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म्स, जैसे ऑनलाइन कोचिंग प्लेटफॉर्म्स या ई-लर्निंग ऐप्स को भी इस छूट में शामिल किया जाना चाहिए?
DPDP Act, बच्चों की सुरक्षा है या डिजिटल स्वतंत्रता के लिए खतरा है ?
DPDP Act का मूल उद्देश्य बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। Cyber bullying, inappropriate content, data theft और Digital Exploitation जैसे खतरों से बच्चों को बचाना आवश्यक है। लेकिन क्या माता-पिता की सहमति लेने का यह तरीका बच्चों की डिजिटल स्वतंत्रता को सीमित कर देगा? आज के दौर में सोशल मीडिया केवल मनोरंजन का साधन नहीं रह गया है। बच्चे और teenager इसका उपयोग शिक्षा, स्किल डेवलपमेंट और नेटवर्किंग के लिए कर रहे हैं। यूट्यूब पर हजारों बच्चे एजुकेशनल कंटेंट बना रहे हैं और सोशल मीडिया पर अपने टैलेंट को दुनिया के सामने ला रहे हैं। ऐसे में, माता-पिता की सहमति की अनिवार्यता कहीं बच्चों की Creativity और डिजिटल एक्सप्लोरेशन को बाधित तो नहीं कर देगी?
DPDP Act के कानूनी और सामाजिक पहलू क्या हैं?
कानूनी Experts और सिविल सोसाइटी के विचार इस मुद्दे पर विभाजित हैं। कुछ का मानना है कि बच्चों की डिजिटल सुरक्षा और डेटा की गोपनीयता सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है, लेकिन इसके व्यावहारिक पहलुओं पर ध्यान देना भी उतना ही आवश्यक है। ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में डिजिटल साक्षरता की कमी के कारण, माता-पिता द्वारा सहमति प्रक्रिया को समझना और उसे लागू करना एक बड़ी चुनौती हो सकता है। इसके अलावा, माता-पिता की सहमति की प्रमाणिकता की जांच का तरीका अभी तक पूरी तरह स्पष्ट नहीं है।
Conclusion
तो दोस्तों, इस नियम का उद्देश्य बच्चों की सुरक्षा करना है, लेकिन इसे लागू करने की प्रक्रिया को सरल और व्यावहारिक बनाने की जरूरत है। माता-पिता की सहमति एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसे अधिक सुलभ और कम जटिल बनाना होगा। बच्चों की सुरक्षा और डिजिटल स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। आप इस नियम के बारे में क्या सोचते हैं? क्या माता-पिता की सहमति डिजिटल सुरक्षा के लिए सही कदम है, या इसे और बेहतर किया जा सकता है? कमेंट में अपनी राय जरूर दीजिए। अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।
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