Cash Restrictions: Code of Conduct चुनाव और कैश की सख्ती, दिल्ली में व्यापारियों और आम आदमी की बढ़ी मुश्किलें I 2025

नमस्कार दोस्तों, क्या आप जानते हैं कि दिल्ली में चुनावी माहौल के बीच नकदी लेकर चलना अब आपको जेल तक पहुंचा सकता है? चुनावी Code of conduct लागू होते ही राजधानी में सख्ती का ऐसा माहौल बन गया है कि बाजारों से लेकर सड़क तक हर कोई निगरानी में है। 50 हजार रुपये से अधिक नकदी लेकर चलना अब बेहद जोखिमभरा हो गया है, क्योंकि जांच एजेंसियां हर कदम पर सतर्क हैं।

अब तक दिल्ली में 10 करोड़ रुपये से अधिक नकदी जब्त की जा चुकी है। क्या यह सख्ती सिर्फ चुनावी पारदर्शिता के लिए है, या इसका असर उन व्यापारियों और आम नागरिकों पर भी पड़ रहा है, जो अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए नकदी का इस्तेमाल करते हैं? आइए, इस सख्ती और इसके पीछे की वजहों को गहराई से समझते हैं।

Electoral Code of Conduct लागू होने पर, 50 हजार रुपये से अधिक नकदी और कीमती सामान पर सख्त नियम क्यों लगाए गए हैं?

Electoral Code of Conduct लागू होते ही दिल्ली में नकदी और कीमती सामानों पर सख्त पाबंदियां लगा दी गई हैं। चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार, 50 हजार रुपये से ज्यादा नकदी लेकर चलने वालों को अब अपने पास पहचान पत्र, नकदी का स्रोत और उसका उपयोग बताने वाले दस्तावेज रखना अनिवार्य है।

सिर्फ नकदी ही नहीं, बल्कि सोने और अन्य आभूषणों पर भी पाबंदी लगाई गई है। अगर कोई व्यक्ति 10 ग्राम से अधिक सोना लेकर चलता है, जिसकी कीमत 50 हजार रुपये से ज्यादा है, तो उसे यह साबित करना होगा कि वह सोना कहां से आया और इसका इस्तेमाल कहां होगा। यह सख्ती न केवल व्यापारियों के लिए एक चुनौती बन गई है, बल्कि आम आदमी के लिए भी परेशानी खड़ी कर रही है। खासतौर पर उन लोगों के लिए, जो शादी या अन्य आयोजनों के लिए नकदी और आभूषण लेकर चलते हैं।

दिल्ली के बाजारों में चुनावी नियमों के कारण मंदी और व्यापार पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?

दिल्ली के प्रमुख बाजार, जैसे चांदनी चौक, सदर बाजार, चावड़ी बाजार, करोल बाग और लाजपत नगर, चुनावी सख्ती से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। व्यापारियों का कहना है कि इस सख्ती के चलते उनके ग्राहकों की संख्या में भारी गिरावट आई है।

सदर बाजार के व्यापारियों के अनुसार, सामान्य दिनों में यहां रोजाना हजारों ग्राहक खरीदारी के लिए आते थे। लेकिन अब ग्राहक फोन पर यह पूछने लगे हैं कि वे कितनी नकदी लेकर आ सकते हैं। इस असमंजस के कारण ग्राहकों की संख्या लगभग आधी रह गई है। होलसेल बाजार, जहां नकदी का लेन-देन आम बात थी, अब Digital Payments पर निर्भर हो गए हैं। लेकिन कई छोटे व्यापारी और ग्राहक, जो तकनीकी रूप से Skilled नहीं हैं, इस बदलाव के कारण परेशान हो रहे हैं।

चुनाव के दौरान जांच एजेंसियों की सख्ती से व्यापारियों में नाराजगी क्यों है?

दिल्ली में जांच एजेंसियों की सख्ती हर गली, हर बाजार में देखी जा सकती है। सदर बाजार, चांदनी चौक और करोल बाग जैसे बाजारों में गाड़ियों और दुकानों की गहन चेकिंग की जा रही है। अधिकारी न केवल गाड़ियों की तलाशी ले रहे हैं, बल्कि दुकानदारों और ग्राहकों से भी नकदी के स्रोत और दस्तावेज मांग रहे हैं।

व्यापारियों का कहना है कि इस सख्ती से उनका व्यापार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। चैंबर ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री (CTI) के अध्यक्ष का कहना है कि जांच एजेंसियां केवल बाजारों में व्यापारियों को निशाना बना रही हैं, जबकि असली गड़बड़ी राजनीतिक पार्टियों और उनके नेताओं के ठिकानों पर हो रही है। उन्होंने सवाल किया, “क्या बाजारों में सख्ती करना ही चुनावी पारदर्शिता का एकमात्र तरीका है?”

शादी-ब्याह में नकदी की जरूरत और नए नियमों से क्या समस्याएं हो रही हैं?

शादी-ब्याह का सीजन चल रहा है और इस समय नकदी की जरूरत सबसे ज्यादा होती है। माता-पिता, जो अपने बच्चों की शादी के लिए नकदी लेकर खरीदारी करते हैं, उन्हें अब हर कदम पर दस्तावेज साथ रखने पड़ रहे हैं।

शादी के आयोजनों से जुड़े छोटे विक्रेता, जैसे कैटरर्स, डेकोरेटर्स और बैंड वाले, नकदी में ही Payment लेना पसंद करते हैं। लेकिन चुनावी सख्ती के चलते यह प्रक्रिया जटिल हो गई है। कई बार माता-पिता को शादी के खर्चों को लेकर समझौता करना पड़ रहा है, क्योंकि नकदी ले जाने के लिए दस्तावेज पूरे करना हर किसी के लिए आसान नहीं है।

दुकानदारों का कहना है कि ग्राहक पहले यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके पास नकदी को लेकर सभी कागजात पूरे हों, फिर खरीदारी करते हैं। अब जान लेते हैं कि जब्त नकदी और संपत्तियों से जुड़े आंकड़े क्या बताते हैं?

Code of conduct लागू होने के बाद से अब तक दिल्ली में 21 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति जब्त की जा चुकी है। इसमें 10 करोड़ रुपये नकद, 6 करोड़ रुपये कीमती धातुएं, 5 करोड़ रुपये के narcotic substances और 45 लाख रुपये की शराब शामिल हैं।

यह आंकड़े दिखाते हैं कि जांच एजेंसियां काले धन और अवैध लेन-देन को रोकने के लिए कितनी सख्ती से काम कर रही हैं। हालांकि, व्यापारियों का कहना है कि इस सख्ती का असर उनके रोजमर्रा के कामकाज पर भी पड़ रहा है। व्यापारिक संगठनों का कहना है कि यह कदम केवल चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि व्यापारिक जरूरतों को भी ध्यान में रखना चाहिए।

व्यापारियों की मांग और उनका विरोध क्या है?

दिल्ली के व्यापारी संगठनों ने चुनाव आयोग और सरकार से अपील की है कि बाजारों में इस तरह की सख्ती को नियंत्रित किया जाए। उनका कहना है कि होलसेल बाजारों में नकदी का लेन-देन एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसे चुनावी सख्ती के नाम पर बाधित किया जा रहा है।

कमला मार्केट ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष का कहना है, “जांच एजेंसियां सिर्फ व्यापारियों को टारगेट कर रही हैं, जबकि असली गड़बड़ी राजनीतिक पार्टियों और उनके प्रचार अभियानों में होती है। व्यापारियों को निशाना बनाना आसान है, लेकिन इससे बाजार की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है।” व्यापारियों ने यह भी कहा कि अगर यह सख्ती जारी रही, तो उनका व्यापार पूरी तरह ठप हो जाएगा।

Conclusion

तो दोस्तों, दिल्ली में चुनावी सख्ती का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना और काले धन पर रोक लगाना है। हालांकि, इसका असर व्यापारियों, ग्राहकों और आम जनता पर भी पड़ रहा है। बाजारों में नकदी की आवाजाही ठप होने से व्यापारिक गतिविधियां धीमी हो गई हैं।

यह देखना दिलचस्प होगा कि यह सख्ती वाकई चुनावी सुधार लाने में कितनी सफल होती है। “चुनावी पारदर्शिता लाने के प्रयास के साथ-साथ यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि, व्यापार और आम आदमी की जरूरतें बाधित न हों। संतुलन बनाना समय की मांग है, ताकि चुनावी प्रक्रिया और व्यापारिक गतिविधियां दोनों समान रूप से जारी रह सकें।”

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