China ने दिखाई नरमी! व्यापार समझौते की शर्तों से अमेरिका को मिल सकती है राहत I 2025

कुछ फैसले केवल व्यापार नहीं बदलते, वो इतिहास की दिशा मोड़ते हैं। और जब दुनिया की दो सबसे बड़ी महाशक्तियाँ आमने-सामने खड़ी हों—तो हर शब्द, हर शर्त, और हर जवाबी कार्रवाई युद्ध के मैदान से कम नहीं होती। ऐसे ही एक तनावपूर्ण क्षण में, जब टैरिफ की तलवारें खिंच चुकी थीं, और व्यापार युद्ध अपने चरम पर था, चीन ने एक अप्रत्याशित यूटर्न लेते हुए अमेरिका से बातचीत के लिए हामी भर दी।

लेकिन ये हामी किसी झुकाव की नहीं, बल्कि शर्तों की चट्टानों से बनी थी। ट्रंप की सरकार से बातचीत तभी होगी, जब China की चार शर्तें मानी जाएंगी। और इन्हीं शर्तों ने इस युद्ध को नया मोड़ दे दिया है—एक ऐसा मोड़, जो न केवल Global बाजार को हिला सकता है, बल्कि दोनों देशों की साख, नीति और ताकत की असल परीक्षा बन सकता है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन अब अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार को लेकर बातचीत के लिए तैयार है। लेकिन तैयार होने का ये मतलब बिल्कुल नहीं कि चीन झुका है। बल्कि चीन ने ये बातचीत अपने नियमों पर करने की बात कही है। पहली और सबसे अहम शर्त—अमेरिका को चीन के प्रति सम्मानजनक रवैया अपनाना होगा। यानी अब वो दौर गया जब अमेरिका सार्वजनिक मंचों से चीन की आलोचना करता था और उसकी नीतियों पर तीखा हमला बोलता था। अब चीन सीधे कह रहा है—बात करनी है, तो सम्मान से करो।

दूसरी शर्त और भी गंभीर है—अमेरिका को अपनी व्यापारिक नीतियों में स्थिरता बनाए रखनी होगी। चीन को यह शिकायत है कि ट्रंप प्रशासन बार-बार नियम बदलता है, कभी टैरिफ बढ़ाता है, तो कभी धमकियां देता है। China अब ऐसे ‘रूल्स ऑन द रन’ वाले व्यापार को स्वीकार नहीं करेगा। तीसरी शर्त—अमेरिकी प्रतिबंधों और ताइवान से जुड़ी चिंताओं को लेकर चीन को स्पष्ट आश्वासन चाहिए। खासकर ताइवान को लेकर China का रुख बेहद संवेदनशील रहा है, और वह इसे अपने संप्रभुता से जुड़ा मुद्दा मानता है। अगर अमेरिका उस पर सैन्य या कूटनीतिक दबाव बनाएगा, तो बातचीत की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी।

चौथी और सबसे अहम शर्त—China चाहता है कि अमेरिका की ओर से एक ऐसा प्रमुख वार्ताकार नियुक्त किया जाए, जिसे ट्रंप का स्पष्ट समर्थन प्राप्त हो। कोई ऐसा व्यक्ति जो किसी स्थायी समझौते का प्रारूप तैयार कर सके, जिस पर खुद डोनाल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग के हस्ताक्षर हो सकें। यानी Chinaन अब सिर्फ “प्रेस कॉन्फ्रेंस डिप्लोमेसी” नहीं चाहता, वो किसी गंभीर और परिणाम देने वाले समझौते की बात कर रहा है।

लेकिन चीन के इस रुख की एक बड़ी वजह भी है—और वो है अमेरिका द्वारा लगाया गया 245 प्रतिशत टैरिफ। जी हां, जब चीन ने अमेरिकी सामानों पर 125 प्रतिशत का टैरिफ लगाया और चीनी एयरलाइंस को बोइंग के विमान खरीदने से रोक दिया, तो ट्रंप सरकार आगबबूला हो गई। जवाबी कार्रवाई करते हुए अमेरिका ने चीन पर टैरिफ की दरों को लगभग दोगुना कर दिया। ये व्यापारिक हमला इतना जबरदस्त था कि इसका असर वॉल स्ट्रीट से लेकर शंघाई स्टॉक एक्सचेंज तक महसूस किया गया।

लेकिन यहीं से कहानी में आया एक और ट्विस्ट। इस प्रतिक्रिया के बावजूद, China ने एक बयान में कहा—”हम लड़ने से डरते नहीं हैं। लेकिन अगर अमेरिका बातचीत करना चाहता है, तो उसे धमकियों की भाषा छोड़नी होगी।” चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने सख्त लहजे में कहा कि अमेरिका को समानता, सम्मान और पारस्परिक लाभ के आधार पर बातचीत करनी चाहिए। ये भाषा कूटनीतिक हो सकती है, लेकिन इसके पीछे रणनीति की गहराई छिपी है।

China की तरफ से वाणिज्य मंत्रालय के प्रवक्ता ही योंगकियान ने भी अमेरिका को आड़े हाथों लिया। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि अमेरिका को चीन के साथ बराबरी की बातचीत करनी होगी, वरना मतभेद कभी खत्म नहीं होंगे। ये बयान उस वक्त आया जब व्हाइट हाउस ने ये ऐलान किया कि चीन को 245 प्रतिशत तक के टैरिफ का सामना करना पड़ सकता है। इससे पहले China ने अमेरिका की धमकियों को खारिज करते हुए कहा था कि बार-बार टैरिफ बढ़ाने की नीति केवल ‘नंबर का गेम’ है—जिसका कोई असली आर्थिक मूल्य नहीं है।

लेकिन सबसे दिलचस्प बात ये रही कि ट्रंप प्रशासन पहले से इस स्थिति के लिए तैयार था। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने कुछ समय पहले ही कहा था कि ट्रंप व्यापार समझौते के लिए तैयार हैं, लेकिन उनकी शर्त ये है कि पहल China को करनी होगी। उनका कहना था कि China को अमेरिका के साथ समझौता करने की ज़रूरत है, जबकि अमेरिका को उनकी ज़रूरत नहीं। ट्रंप का रुख एकदम स्पष्ट था—”चीन बहुत बड़ा हो सकता है, लेकिन उसे वही चाहिए जो हमारे पास है—हमारा बाज़ार, हमारे उपभोक्ता।”

ये बयान न सिर्फ China को स्पष्ट संदेश था, बल्कि दुनिया को ये बताने का भी तरीका था कि अमेरिका अब कोई ‘क्लासिकल डिप्लोमेसी’ नहीं करेगा। यह व्यापारिक दबाव की एक नई रणनीति थी—जहां टैरिफ, बयानबाज़ी और मीडिया वार ही असली हथियार थे।

लेकिन क्या China की ये चार शर्तें मानी जाएंगी? और अगर मानी जाती हैं, तो क्या यह ट्रंप प्रशासन के झुकने की निशानी होगी? या फिर यह केवल एक रणनीतिक ‘पॉज’ है, जिससे अमेरिका को अपने अगले कदम की तैयारी का वक्त मिल सके?

इस सवाल का जवाब आसान नहीं है, क्योंकि दोनों देश अब सिर्फ व्यापार के लिए नहीं, बल्कि अपनी Global ताकत को साबित करने के लिए लड़ रहे हैं। ट्रंप, जो खुद को ‘डील मेकर’ मानते हैं, शायद ही ऐसी कोई डील करेंगे जिसमें अमेरिका कमजोर दिखे। वहीं शी जिनपिंग के लिए भी यह सिर्फ व्यापार नहीं—बल्कि राष्ट्रीय सम्मान और साख का विषय है। China हमेशा से यही चाहता रहा है कि उसे एक बराबर की ताकत के रूप में देखा जाए, न कि किसी विकासशील या दबाव झेलने वाले देश के रूप में।

China

ट्रंप के लिए ये स्थिति भी आसान नहीं है। हर विदेश नीति अब घरेलू राजनीति का हिस्सा बन गई है। अगर ट्रंप चीन से बिना किसी बड़ी ‘जीत’ के समझौता करते हैं, तो उनके विरोधी इसे उनकी कमजोरी के तौर पर प्रचारित करेंगे। वहीं अगर बातचीत नहीं होती, तो बाजार में गिरावट, एक्सपोर्टर्स का विरोध और Global investors का भरोसा डगमगा सकता है।

यही कारण है कि दोनों ही पक्ष अब बहुत संभलकर चल रहे हैं। चीन एक ओर बातचीत की टेबल पर आना चाहता है, लेकिन शर्तों के साथ। वहीं अमेरिका एक ऐसा मंच तैयार करना चाहता है, जहां वह भी ‘विजेता’ नजर आए। इसी संतुलन की तलाश में दोनों देश एक बार फिर आमने-सामने खड़े हैं—लेकिन इस बार हथियारों से नहीं, शर्तों, प्रस्तावों और कूटनीतिक संकेतों से।

दुनिया की नजरें अब ट्रंप और शी जिनपिंग पर टिकी हैं। क्या दोनों नेता अपने-अपने देशों के हितों को सुरक्षित रखते हुए, एक ऐसा समझौता कर पाएंगे जो न सिर्फ व्यापार युद्ध को खत्म करे, बल्कि Global स्थिरता की दिशा में भी एक मजबूत कदम हो? या फिर यह सारी बातचीत केवल समय खरीदने की एक चाल है, जिसके बाद एक और बड़ी व्यापारिक टकराव की लहर आएगी? इस कहानी का अंत अभी बाकी है, लेकिन इतना तय है कि आने वाले हफ्ते न केवल अमेरिका और चीन के लिए, बल्कि पूरे Global trading system के लिए निर्णायक साबित होंगे।

Conclusion

अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।

अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business Youtube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”

Spread the love

Leave a Comment