Crypto बनाम सुपरपावर: चीन की मशीन से डरा अमेरिका, भारत के लिए खुला बड़ा मौका! 2025

सोचिए एक मशीन… जो ना गोली चलाती है, ना बम बनाती है, फिर भी अमेरिका जैसे देश को डराने लगी है। एक ऐसी मशीन जो सिर्फ कंप्यूटर में लगती है, लेकिन उसका असर वॉल स्ट्रीट से लेकर व्हाइट हाउस तक महसूस किया जा रहा है। ये कोई साइंस फिक्शन नहीं, बल्कि आज की सबसे हाई-टेक सच्चाई है — बिटकॉइन माइनिंग मशीन। और ये मशीनें बना कौन रहा है? चीन। और अब, ये कंपनियां धीरे-धीरे अमेरिका की सरजमीं पर अपने प्लांट लगा रही हैं। यह एक साधारण बिजनेस मूव नहीं, बल्कि उस Crypto युद्ध का हिस्सा है जिसमें टैक्स, टेक्नोलॉजी और ताकत की तिकड़ी आमने-सामने है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

दुनिया की तीन सबसे बड़ी बिटकॉइन माइनिंग मशीन निर्माता कंपनियां — Bitmain, Canaan और MicroBT — तीनों चीन की हैं। ये कंपनियां अकेले मिलकर दुनियाभर की 90% से ज्यादा माइनिंग मशीनें बनाती हैं, जिनका इस्तेमाल बिटकॉइन जैसी Crypto करेंसी को बनाने में होता है। बिटकॉइन, जिसे कभी केवल डिजिटल गेम समझा जाता था, अब एक वैकल्पिक संपत्ति बन चुका है और इसकी माइनिंग में उपयोग होने वाली मशीनें भी अब रणनीतिक संपत्ति की श्रेणी में आ गई हैं।

लेकिन जैसे ही अमेरिका ने चीन पर ट्रेड वॉर के तहत 30% तक टैरिफ लगाने का फैसला किया, खेल बदल गया। ये टैरिफ सिर्फ टैक्स नहीं था, बल्कि एक बड़ा संकेत था कि अमेरिका अब टेक्नोलॉजी वॉर के मैदान में है। और चीन भी इस संकेत को भांप गया। नतीजा? इन तीनों कंपनियों ने अमेरिका में अपने प्रोडक्शन प्लांट्स लगाने का फैसला किया। Bitmain ने दिसंबर 2024 में प्रोडक्शन शुरू कर दिया, ठीक उसी वक्त जब डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव जीता। Canaan ने ट्रायल प्रोडक्शन शुरू किया और MicroBT भी उसी दिशा में योजना बना रहा है।

यह कदम केवल आर्थिक बचत के लिए नहीं, बल्कि रणनीतिक लाभ के लिए है। अमेरिका में यूनिट लगाने से टैरिफ से बचा जा सकता है, लेकिन इस कदम ने अमेरिका के भीतर नई चिंता को जन्म दे दिया है — राष्ट्रीय सुरक्षा। अमेरिकी कंपनियां जैसे Auradine, जिनका समर्थन MARA Holdings जैसे दिग्गज कर रहे हैं, अब मांग कर रही हैं कि चीन की इन मशीनों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जाए। उनका कहना है कि अमेरिका में लगभग 30% बिटकॉइन माइनिंग होती है, लेकिन 90% मशीनें चीन से आती हैं। यह असंतुलन न केवल बाजार पर दबाव डालता है, बल्कि तकनीकी निर्भरता को भी खतरनाक बना देता है।

Auradine के अधिकारी संजय गुप्ता का कहना है कि जब लाखों चीनी माइनिंग मशीनें अमेरिकी बिजली ग्रिड से जुड़ती हैं, तो यह केवल बिजनेस नहीं, बल्कि एक संभावित साइबर सुरक्षा खतरा भी बन जाता है। हालाँकि Canaan के अधिकारी लियो वांग का तर्क है कि इन मशीनों का उपयोग केवल माइनिंग के लिए होता है, और वे किसी भी नेटवर्क के लिए खतरा नहीं बनतीं। लेकिन जिस दौर में अमेरिका Huawei जैसे टेलीकॉम ब्रांड्स को बैन कर रहा हो, Sophgo जैसी AI कंपनियों को ब्लैकलिस्ट कर रहा हो, वहां ये तर्क कितने कारगर होंगे — यह कहना मुश्किल है।

Bitmain की AI इकाई Sophgo को अमेरिका पहले ही बैन कर चुका है। हालांकि Bitmain ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन यह चुप्पी भी एक रणनीति मानी जा रही है। ट्रंप सरकार का मानना है कि चीन केवल व्यापार नहीं, बल्कि तकनीकी वर्चस्व के माध्यम से अमेरिका को चुनौती देना चाहता है। ऐसे में Crypto हार्डवेयर अमेरिका के लिए केवल मशीनें नहीं, बल्कि उस युद्ध का हिस्सा बन गई हैं, जो बिना किसी पारंपरिक युद्ध के लड़ी जा रही है।

यहां यह समझना जरूरी है कि क्यों अमेरिका इस मामले को इतनी गंभीरता से ले रहा है। 2019 तक चीन Crypto इंडस्ट्री पर लगभग एकाधिकार रखता था — माइनिंग से लेकर ट्रेडिंग तक। लेकिन 2021 में चीन सरकार ने Crypto करेंसी पर पूरी तरह से बैन लगा दिया। इसके बाद कई माइनर्स और एक्सचेंज कंपनियां बाहर चली गईं, लेकिन हार्डवेयर कंपनियां आज भी मार्केट पर हावी हैं। Canaan ने अब अपना हेडक्वार्टर सिंगापुर में शिफ्ट कर लिया है और अमेरिका में प्रोडक्शन लाइन भी शुरू की है, क्योंकि अमेरिका उसका 40% से अधिक रेवेन्यू देता है।

अमेरिका में टैक्स बढ़ते ही कंपनियों को दो विकल्प मिले — या तो टैक्स चुकाएं और महंगी मशीनें बेचें, या फिर स्थानीय प्रोडक्शन शुरू करें और मार्केट को बचाए रखें। तीनों कंपनियों ने दूसरा विकल्प चुना। लेकिन इस फैसले ने अमेरिकी Crypto इंडस्ट्री में खलबली मचा दी है। क्या ये कंपनियां केवल टैक्स बचाने आ रही हैं, या कुछ और भी है जो सतह के नीचे छिपा है?

Crypto लॉ Expert जॉन डीटन का कहना है कि यदि चीन ने कभी माइनिंग मशीनों की सप्लाई में छेड़छाड़ की, तो इससे न केवल बिटकॉइन नेटवर्क की स्थिरता खतरे में पड़ सकती है, बल्कि अमेरिकी Investors को भी भारी नुकसान हो सकता है। बिटकॉइन नेटवर्क की सुरक्षा इसकी डिसेंट्रलाइज्ड प्रकृति में है, लेकिन यदि 90% हार्डवेयर एक ही देश से आता है, तो यह डिसेंट्रलाइजेशन का सिद्धांत भी कमजोर पड़ सकता है। यही कारण है कि अब अमेरिका, क्रिप्टो माइनिंग की Technical supply chain को ‘पॉलिटिकली सेफ’ बनाने की दिशा में सोच रहा है।

Crypto टेक्नोलॉजिस्ट कडन स्टैडलमैन कहते हैं कि यह सब कुछ Crypto इंडस्ट्री को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं, बल्कि एक आवश्यक बदलाव लाने के लिए किया जा रहा है। वे मानते हैं कि बिटकॉइन और ब्लॉकचेन की स्वतंत्रता तभी तक बनी रहेगी जब तक इसके हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर पर किसी एक देश का नियंत्रण न हो। अमेरिका की चिंता वाजिब है, लेकिन इस पर काबू पाने का रास्ता केवल व्यापारिक रणनीति नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजिकल स्वराज्य में है।

ट्रंप प्रशासन ने अब बिटकॉइन को राष्ट्रीय रणनीति का हिस्सा बनाना शुरू कर दिया है। खुद को क्रिप्टो-फ्रेंडली बताते हुए ट्रंप ने अमेरिकी बिटकॉइन रिजर्व बनाने की बात कही है, जिससे यह संकेत मिला है कि आने वाले समय में Crypto केवल एक तकनीकी अवधारणा नहीं, बल्कि अमेरिका की वित्तीय और राजनीतिक नीति का हिस्सा बन सकता है। लेकिन यह तभी संभव है जब अमेरिका तकनीकी आत्मनिर्भरता की ओर बढ़े।

2028 तक इन तीन चीनी कंपनियों का मार्केट वैल्यू 12 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। अगर यह अनुमान सही होता है, तो ये कंपनियां न सिर्फ Crypto इंडस्ट्री में राज करेंगी, बल्कि अमेरिका जैसे देश में अपनी मौजूदगी से एक नई भू-राजनीतिक चुनौती भी खड़ी कर सकती हैं। चीन भले ही Crypto पर बैन लगा चुका हो, लेकिन उसकी कंपनियां अब भी इस उद्योग की धुरी बनी हुई हैं। और अमेरिका अब इस धुरी को अपने नियंत्रण में लाने की जद्दोजहद कर रहा है।

यह कहानी केवल मशीनों की नहीं है, यह कहानी है उस लड़ाई की जो 21वीं सदी में बिना हथियारों के, डेटा और चिप्स के जरिए लड़ी जा रही है। यह जंग व्यापार की है, तकनीक की है, और सबसे बढ़कर रणनीतिक वर्चस्व की है। कौन जीतेगा यह जंग, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन फिलहाल इतना तय है — चीन की मशीनों से अमेरिका डरा हुआ है, और इसी डर ने Crypto वर्ल्ड की चाल बदल दी है।

Conclusion

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