Shocking: Canada का बड़ा फैसला! ट्रंप से नाराज होकर तोड़े अमेरिका से रिश्ते, जानिए किसे होगा फायदा? 2025

कल्पना कीजिए, दो पड़ोसी देश जो दशकों से एक-दूसरे के सबसे करीबी सहयोगी रहे हों – रक्षा, व्यापार और रणनीतिक साझेदारी में एक-दूसरे पर निर्भर – एक दिन अचानक पूरी तरह से अलग हो जाएं। सोचिए, जब एक ही धरती पर सांस लेने वाले दो देशों के बीच इतनी गहरी खाई बन जाए कि पुराने समझौते, गठबंधन और भरोसे की हर नींव टूट जाए। और ये सब तब हो जब दोनों देश Global politics के सबसे अहम केंद्र माने जाते हों। जी हां, ये कोई राजनीतिक थ्रिलर नहीं, बल्कि आज की सबसे बड़ी हकीकत है।

अमेरिका और कनाडा – दो ऐसे देश जो एक दूसरे के व्यापारिक और सैन्य साझेदार रहे हैं – अब एक बड़े बिखराव की ओर बढ़ रहे हैं। इस रिश्ते में दरार की वजह है डोनाल्ड ट्रंप का एक फैसला, जिसने Canada को अमेरिका से सारे रिश्ते तोड़ने पर मजबूर कर दिया है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

Canada के प्रधानमंत्री माइक कार्नी ने इस ऐलान के साथ पूरी दुनिया को चौंका दिया कि अब अमेरिका के साथ कनाडा के वो पुराने संबंध, जो कभी अटूट माने जाते थे, अब खत्म हो चुके हैं। यह सिर्फ एक राजनीतिक बयान नहीं था, बल्कि एक सख्त चेतावनी थी – कि कनाडा अब अमेरिका पर भरोसा नहीं कर सकता। कार्नी ने साफ शब्दों में कहा कि उन्हें अब ऐसे बोल्ड फैसले लेने होंगे, जो Canada की अर्थव्यवस्था, सुरक्षा और स्वतंत्रता को फिर से परिभाषित करेंगे। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है – हम अब अमेरिका के साथ अपने भविष्य की योजना नहीं बना सकते।

प्रधानमंत्री कार्नी की यह प्रतिक्रिया अचानक नहीं आई। इसका आधार बना अमेरिका का नया टैरिफ फैसला – खासकर Automobile सेक्टर को लेकर। ट्रंप प्रशासन ने अमेरिका में Import की जाने वाली कारों और Auto पार्ट्स पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान किया। यह फैसला सीधे तौर पर कनाडा को प्रभावित करता है क्योंकि वह अमेरिका को Auto पार्ट्स और कारों की बड़ी मात्रा में सप्लाई करता रहा है। ये टैरिफ 2 अप्रैल से लागू होंगे और ट्रंप का मानना है कि इससे अमेरिकी कंपनियों को फायदा होगा। लेकिन इसके पीछे की हकीकत कहीं ज्यादा जटिल और गंभीर है।

Canada ने इसे सिर्फ एक आर्थिक फैसला नहीं, बल्कि अपनी संप्रभुता और उद्योग पर हमला माना है। प्रधानमंत्री कार्नी ने इसे “सीधा हमला” कहा और यह भी जोड़ा कि वे अपने नागरिकों, उद्योगों और कामगारों की हर कीमत पर रक्षा करेंगे। यह बयान एक नए युग की शुरुआत थी – एक ऐसा युग जहां कनाडा अब खुद को अमेरिका की परछाई से अलग करता हुआ दिख रहा है। और इस विभाजन का असर सिर्फ दोनों देशों पर ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था और कूटनीति पर पड़ेगा।

Canada और अमेरिका की अर्थव्यवस्थाएं अब तक गहराई से जुड़ी रही हैं। दोनों देश नाफ्टा जैसे समझौतों के जरिए एक-दूसरे के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार बने रहे। 2023 के आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका ने Canada से लगभग 421 अरब डॉलर का सामान Import किया, जिसमें कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस और Automobile प्रमुख हैं। कनाडा, अमेरिका को 60 फीसदी से अधिक कच्चा तेल और 85 फीसदी से अधिक प्राकृतिक गैस की सप्लाई करता है। इस सप्लाई चेन में आई दरार का मतलब है – अमेरिका में Energy crisis और दामों में तेज़ उछाल।

अगर ये सप्लाई बंद होती है, तो अमेरिका की इंडस्ट्रीज – खासकर ट्रांसपोर्ट और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर – सीधे प्रभावित होंगी। पेट्रोल-डीजल की कीमतें आम नागरिक की जेब पर चोट करेंगी, और महंगाई की दर बढ़ सकती है। वहीं, Canada को भी इससे झटका लगेगा। क्योंकि वह अपने कुल Export का लगभग 75% हिस्सा अमेरिका को भेजता है। इस व्यापार पर ब्रेक लगने का मतलब है – कनाडा की जीडीपी में सीधी गिरावट, बेरोजगारी और Investment में मंदी। लेकिन कार्नी का कहना है कि यह कीमत वे चुकाने को तैयार हैं, अगर इसका मतलब यह है कि कनाडा स्वतंत्र रूप से अपने भविष्य को गढ़ सकता है।

अब सवाल ये उठता है कि विकल्प क्या हैं? क्या Canada यूरोप या एशिया की ओर रुख कर सकता है? हां, लेकिन यह आसान नहीं होगा। दूरी, लॉजिस्टिक्स, परिवहन लागत और नई ट्रेड डील्स की जटिल प्रक्रिया – यह सब तुरंत नहीं बदलेगा। इससे पहले कि नए समझौते बनें, कनाडा को आर्थिक रूप से कई झटकों का सामना करना पड़ सकता है। और यही वह दौर होगा जहां उसके नेतृत्व की दूरदृष्टि और नीतिगत साहस की असली परीक्षा होगी।

इस फैसले के राजनीतिक और सैन्य आयाम भी हैं। Canada और अमेरिका केवल व्यापारिक साझेदार नहीं रहे, बल्कि नाटो और NORAD जैसे संगठनों के ज़रिए सैन्य सहयोगी भी रहे हैं। NORAD यानी North American Aerospace Defense Command, एक ऐसा साझा प्लेटफॉर्म जो दोनों देशों की हवाई सुरक्षा को जोड़ता है। अब जब कनाडा ने रिश्ते तोड़ने की बात कही है, तो यह सवाल उठने लगा है – क्या सैन्य सहयोग भी खतरे में पड़ जाएगा? क्या दोनों देश अब Global forums पर भी एक-दूसरे के प्रतिद्वंदी बन जाएंगे?

इन सवालों का जवाब फिलहाल अस्पष्ट है, लेकिन संकेत स्पष्ट हैं – आने वाला समय दोनों देशों के लिए न केवल कूटनीतिक चुनौती से भरा होगा, बल्कि यह Global समीकरणों को भी बदल कर रख देगा। एशिया, यूरोप और अफ्रीका जैसे महाद्वीप इस बिखराव को अपने फायदे के तौर पर देख सकते हैं। नई ट्रेड डील्स, रणनीतिक गठजोड़ और सैन्य समझौतों के ज़रिए वे अमेरिका और Canada दोनों से अलग-अलग तरीके से जुड़ने की कोशिश कर सकते हैं।

दूसरी ओर, ट्रंप का यह फैसला भी राजनीतिक है। उन्हें उम्मीद है कि अमेरिकी Auto कंपनियों को इससे सीधा फायदा मिलेगा। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा होगा? एक्सपर्ट्स का मानना है कि टैरिफ लगाने से Auto इंडस्ट्री की लागत बढ़ेगी और आखिरकार इसका बोझ ग्राहकों पर पड़ेगा। यानी एक तरफ अमेरिकी कंपनियों का Revenue शायद बढ़े, लेकिन साथ ही महंगाई का नया दौर भी शुरू हो सकता है। और इस तरह के फैसलों से अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अमेरिका की छवि को भी नुकसान पहुंच सकता है।

Canada को लेकर ट्रंप की आक्रामक नीति ने यह साबित कर दिया है कि अमेरिका अब अपने पारंपरिक सहयोगियों पर भरोसा नहीं कर रहा। “अमेरिका फर्स्ट” की नीति अब “अमेरिका ओनली” बनती जा रही है, जो बाकी दुनिया के लिए खतरे की घंटी है। क्योंकि यदि एक सहयोगी देश के साथ ऐसा व्यवहार हो सकता है, तो बाकी देशों के साथ क्या होगा – यह सवाल हर Global नेता के मन में घूम रहा है। भारत, यूरोपीय यूनियन, जापान – सभी को अब अमेरिकी नीति की पुनर्समीक्षा करनी होगी।

भारत का भी इस घटनाक्रम से संबंध है। क्योंकि ट्रंप ने भारत सहित कई देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। यानी जो देश अमेरिका पर अधिक टैरिफ लगाते हैं, अब अमेरिका भी उन पर वैसा ही टैरिफ लगाएगा। इसका सीधा मतलब है – एक नया ट्रेड वॉर शुरू हो सकता है, जिसमें सिर्फ कनाडा नहीं, बल्कि दुनिया के कई देश अमेरिका के निशाने पर आ सकते हैं। और इसका असर भारत की अर्थव्यवस्था, Export और विदेशी संबंधों पर भी पड़ सकता है।

इस पूरे घटनाक्रम ने एक बात तो साफ कर दी है – Global politics और व्यापार में स्थायित्व अब अतीत की बात होती जा रही है। हर देश को अब अपने हितों की सुरक्षा के लिए एक नई रणनीति, नया दृष्टिकोण और साहसिक फैसलों की जरूरत है। Canada ने पहला कदम बढ़ा दिया है – अब देखना है कि बाकी देश कैसे प्रतिक्रिया देते हैं। और सबसे बड़ा सवाल – क्या अमेरिका अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगा या एक अलग थलग पड़ते देश के तौर पर उभरेगा?

यह सिर्फ दो देशों की कहानी नहीं है। यह दुनिया को बता रही है कि एक मजबूत दोस्ती भी पल में टूट सकती है, और आज के दौर में व्यापार, सुरक्षा और भरोसे की नई परिभाषाएं बन रही हैं। अब आगे जो होगा, वह केवल दो देशों की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की दिशा तय करेगा।

Conclusion:-

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