Bond Market, वो जगह जहां बड़े-बड़े Investor अपने पैसे को सबसे सुरक्षित समझते थे, अब डर और बेचैनी का केंद्र बन चुकी है। अमेरिका, जिसे दुनियाभर में सबसे भरोसेमंद अर्थव्यवस्था माना जाता था, अब उस पर से ही लोगों का भरोसा उठने लगा है। क्या टैरिफ वॉर की मार इतनी गहरी है कि अब अमेरिका खुद Investors के लिए खतरा बन गया है? क्या राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों ने दुनिया के सबसे मजबूत Bond Market को हिलाकर रख दिया है?
और अगर यही हालात रहे, तो क्या ट्रंप का राजनैतिक भविष्य भी इस बवंडर में डूब सकता है? आज की इस कहानी में हम आपको बताएंगे कि आखिर अमेरिका के Bond Market में ऐसा क्या हुआ कि पूरी दुनिया की नजरें वहां टिकी हैं, और ये सब ट्रंप के लिए क्यों बनता जा रहा है एक बुरा सपना।
अमेरिका और चीन के बीच चल रही टैरिफ वॉर अब केवल एक व्यापारिक लड़ाई नहीं रह गई है। इसका असर अमेरिका की सबसे गहरी आर्थिक जड़—Bond Market—तक पहुंच चुका है। जब किसी देश की अर्थव्यवस्था डांवाडोल होती है, तो सबसे पहले Investor सुरक्षित Investment की ओर भागते हैं। लेकिन इस बार उल्टा हो रहा है। अमेरिकी सरकारी बॉन्ड, जिन्हें दशकों से ‘सेफ हेवन’ माना जाता रहा है, अब तेजी से बिकने लगे हैं। बड़े Investor, फंड मैनेजर्स और International financial institutions, उन बॉन्ड्स को बेच रही हैं जिन्हें कभी सबसे स्थिर और भरोसेमंद माना जाता था।
ये ट्रेंड सामान्य नहीं है। जब बाजार में गिरावट होती है, तो आमतौर पर Investor बॉन्ड्स की ओर रुख करते हैं। क्योंकि बॉन्ड्स में रिस्क कम होता है और रिटर्न तय। लेकिन अब, अमेरिका के Bond Market में Investor पैसा लगाने की बजाय भागने लगे हैं। उन्हें लग रहा है कि अमेरिका की Financial Policy अब स्थिर नहीं रही। और ये सिर्फ डर की बात नहीं है, आंकड़े भी इस बात की पुष्टि कर रहे हैं।
पिछले सप्ताह 10 साल की अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड 4% पर थी, लेकिन अचानक यह 4.58% तक पहुंच गई और फिर 4.5% पर आ गई। इतनी तेजी से यील्ड में उछाल और गिरावट इस बात का संकेत है कि बॉन्ड की कीमतों में बड़ा उतार-चढ़ाव चल रहा है। और जब यील्ड ऊपर जाती है, तो इसका मतलब है कि Investor बॉन्ड्स को बेच रहे हैं। यह अस्थिरता financial markets के लिए खतरे की घंटी है। खासकर तब जब ये अमेरिका जैसे देश के साथ हो।
यह सिर्फ आंकड़ों की कहानी नहीं है, इसके पीछे डर की एक गहरी परछाई है। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि यह सिर्फ एक आर्थिक संकेत नहीं बल्कि एक राजनीतिक चेतावनी भी है। जॉर्ज सिपोलोनी जैसे बड़े फंड मैनेजरों ने कहा है कि अब अमेरिका पर ‘सेफ इन्वेस्टमेंट’ के तौर पर भरोसा डगमगाने लगा है। उन्होंने साफ कहा कि अगर अमेरिका का सबसे बड़ा और स्थिर Bond Market हिल गया, तो यह Global Financial System के लिए बेहद चिंताजनक संकेत होगा।
इस परिस्थिति में सबसे बड़ा झटका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लग सकता है। Bond Market की अस्थिरता ने उन्हें भी मजबूर कर दिया है अपने फैसले बदलने के लिए। ट्रंप ने खुद स्वीकार किया कि उन्होंने हाल ही में टैरिफ पर 90 दिनों की रोक इसलिए लगाई क्योंकि Bond Market से नकारात्मक संकेत मिल रहे थे। Investors की बेचैनी ने उन्हें यह अहसास दिलाया कि टैरिफ वॉर को आगे बढ़ाना फिलहाल ठीक नहीं।
Bond Market का इस तरह का व्यवहार Global राजनीति में भी कई बार उथल-पुथल ला चुका है। उदाहरण के तौर पर ब्रिटेन को ही देख लीजिए। जब लिज ट्रस ने टैक्स में कटौती का ऐलान किया और Bond Market में उथल-पुथल मची, तो उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। अब अमेरिका भी कुछ ऐसे ही मोड़ पर खड़ा है। अगर ट्रंप की नीतियों से बॉन्ड मार्केट में अस्थिरता बढ़ती रही, तो यह उनके लिए राजनीतिक भविष्य में बड़ा संकट बन सकता है।
अमेरिकी Bond Market की ताकत यह थी कि दुनिया के किसी भी कोने में जब संकट आता, तो Investor अमेरिका की ओर रुख करते थे। चाहे 2008 की मंदी हो या कोविड काल—हर बार अमेरिका का Bond Market Global investors के लिए ‘शरण स्थल’ साबित हुआ। लेकिन अब खुद अमेरिका की नीतियों ने उस भरोसे को कमजोर कर दिया है।
इस स्थिति का सीधा असर अमेरिका की उधारी लागत पर भी पड़ेगा। जब बॉन्ड की मांग गिरती है, तो यील्ड यानी ब्याज दरें बढ़ती हैं। इसका मतलब यह कि सरकार को अब कर्ज लेने के लिए ज्यादा ब्याज देना पड़ेगा। इससे अमेरिका का बजट और घाटा बढ़ेगा, जिससे ट्रंप प्रशासन की आर्थिक योजनाएं गड़बड़ा सकती हैं।
Financial जानकार मानते हैं कि अगर अमेरिकी Bond Market में यह अस्थिरता जारी रही, तो इसका असर न केवल अमेरिका पर, बल्कि पूरी Global अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। क्योंकि डॉलर अभी भी global currency है और अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड्स को दुनियाभर के केंद्रीय बैंक अपने रिजर्व में रखते हैं। अगर इन पर भरोसा डगमगाता है, तो इससे पूरा फाइनेंशियल सिस्टम हिल सकता है।
टैरिफ वॉर ने पहले ही अमेरिका और चीन के रिश्तों को नाजुक बना दिया है। और अब इसका असर सीधे बाजारों में दिख रहा है। खासकर तब, जब अमेरिका की अपनी अर्थव्यवस्था भी महंगाई, बेरोजगारी और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रही है। Investor यह देख रहे हैं कि क्या अमेरिका अब भी उतना ही स्थिर है, जितना पहले था?
Bond Market की भाषा में यह एक ‘कंफिडेंस क्रैश’ है। यानी बाजार का विश्वास टूट रहा है। और यह टूटन सबसे ज्यादा खतरे में डाल रही है अमेरिका की Global छवि को। अगर यह ट्रेंड बना रहा, तो आने वाले समय में अमेरिकी बॉन्ड्स की वैल्यू घट सकती है, डॉलर पर दबाव बढ़ सकता है और ग्लोबल फाइनेंस की धुरी खिसक सकती है।
इस अस्थिरता का दूसरा पहलू यह भी है कि अब Investor दूसरे विकल्पों की ओर देख रहे हैं। जैसे कि यूरोपीय बॉन्ड्स, जापानी गवर्नमेंट बॉन्ड्स या फिर गोल्ड और क्रिप्टोकरेंसी जैसी संपत्तियाँ। यानी अमेरिका के भरोसे को अब खुली चुनौती दी जा रही है। जो कभी आर्थिक रूप से सबसे ताकतवर और भरोसेमंद था, अब उसे भी Investor शक की निगाहों से देखने लगे हैं।
ऐसे समय में ट्रंप प्रशासन के लिए यह स्थिति काफी चुनौतीपूर्ण हो गई है। एक ओर वे चीन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना चाहते हैं, तो दूसरी ओर उन्हें घरेलू आर्थिक स्थिरता बनाए रखने की भी चिंता है। लेकिन अगर उनके हर फैसले से बाजार डरने लगे, तो वे खुद को आर्थिक संकट के बीच घिरा पाएंगे।
Bond Market की अस्थिरता को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह एक संकेत है कि बड़े Investor अब अमेरिका को उतना भरोसेमंद नहीं मानते, जितना पहले मानते थे। और यह भरोसे का संकट किसी भी देश के लिए सबसे खतरनाक होता है, खासकर तब, जब वह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो।
इस पूरे घटनाक्रम में एक और चिंता की बात यह है कि अब Foreign investors भी अमेरिकी बॉन्ड्स से दूर हो रहे हैं। जापान और चीन जैसे देश, जो अमेरिकी बॉन्ड्स के सबसे बड़े खरीदार हैं, अब अपने Investment को घटा रहे हैं। इसका मतलब यह है कि अमेरिका को अपनी नीतियों में तुरंत सुधार करना होगा, वरना वह एक गहरे financial crisis में फंस सकता है।
Conclusion
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