Bangladesh को भारत से पंगा पड़ गया महंगा — 9,367 करोड़ का नुकसान, चीन से दोस्ती बनी भारी I

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत जिस तरह से एक्शन मोड में आया है, उसने न केवल पाकिस्तान बल्कि उन देशों को भी झटका देना शुरू कर दिया है, जो आतंकवाद के funding में direct या indirect रूप से शामिल रहे हैं या उसके समर्थकों के साथ खड़े नजर आए हैं।

जहां पाकिस्तान को पहले ही उसके दुस्साहस की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है, अब भारत ने अपनी रणनीति का अगला अध्याय Bangladesh के खिलाफ खोल दिया है। और यह केवल कूटनीतिक कार्रवाई नहीं, बल्कि एक गहरी आर्थिक चोट है, जो सीधे 9367 करोड़ बांग्लादेशी टका यानी करीब 770 मिलियन डॉलर की चोट के रूप में सामने आई है। ड्रैगन के इस दोस्त को अब भारत की नाराजगी की असली कीमत चुकानी पड़ रही है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

बात शुरू होती है भारत द्वारा Bangladesh के खिलाफ की गई उस आर्थिक स्ट्राइक से, जिसने ढाका की नींद उड़ा दी है। भारत ने अब बांग्लादेश से Imported कई सामानों पर लैंड पोर्ट्स के माध्यम से प्रतिबंध लगा दिया है। ये वही सुविधा थी जो भारत ने 2020 में Bangladesh को ट्रांसशिपमेंट के तहत दी थी, जिससे वह भारतीय बंदरगाहों और हवाई अड्डों के माध्यम से मध्य पूर्व और यूरोप तक अपने उत्पाद भेज सकता था।

लेकिन अब वह सुविधा भी वापस ले ली गई है और 17 मई को जारी नए आदेशों के अनुसार, Bangladesh से आने वाले रेडीमेड गारमेंट्स, प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स और अन्य सामान अब केवल कोलकाता और न्हावा शेवा के समुद्री बंदरगाहों से ही भारत में प्रवेश कर सकेंगे। यह फैसला न सिर्फ आर्थिक स्तर पर Bangladesh को चुनौती देता है, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी भारत के आत्मविश्वास को दर्शाता है।

Directorate General of Foreign Trade (DGFT) की तरफ से जो आदेश जारी किया गया है, उसके मुताबिक अब बांग्लादेश के उत्पाद भारत में केवल सीमित रूट से ही आ सकेंगे। यानी भारत ने Bangladesh के लिए अपने लैंड पोर्ट्स बंद कर दिए हैं, जिससे Bangladesh को मजबूरी में लंबा और महंगा समुद्री मार्ग अपनाना पड़ेगा।

इससे न केवल उसका लॉजिस्टिक खर्च बढ़ेगा, बल्कि उसकी पूरी supply chain भी प्रभावित होगी। इसका सीधा असर उस देश की export competition पर पड़ेगा, जहां रेडीमेड गारमेंट्स जैसे उत्पाद उसके प्रमुख एक्सपोर्ट में आते हैं। ऐसे फैसले Bangladesh की सप्लाई चेन पर गहरी चोट की तरह काम करते हैं, और इसके नतीजे अगले कई महीनों तक महसूस किए जाएंगे।

अब सवाल है कि भारत के इस कदम से Bangladesh को कितना नुकसान होगा? इसका उत्तर दिया है ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने। GTRI की रिपोर्ट के अनुसार भारत के इस एक फैसले से Bangladesh के लगभग 9367 करोड़ बांग्लादेशी टका के सामानों की Supply प्रभावित होगी।

यह आंकड़ा Bangladesh के कुल Bilateral imports का लगभग 42% है। अकेले रेडीमेड गारमेंट्स की ही बात करें तो इनका Annual imports भारत में 618 मिलियन डॉलर का है। अब ये सारे उत्पाद केवल समुद्री मार्ग से ही भारत पहुंच सकेंगे, जिससे समय और लागत दोनों बढ़ेंगे। यह लागत वृद्धि छोटे व्यवसायों के लिए अस्तित्व का संकट भी बन सकती है।

भारत का यह कदम इसलिए भी असरदार है क्योंकि बांग्लादेश और भारत के बीच लगभग 93% व्यापार अब तक लैंड पोर्ट्स के जरिए होता था। लैंड पोर्ट्स से सीधे ट्रकों और ट्रेनों के माध्यम से सामान भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में पहुंचता था।

लेकिन अब जब ये रास्ते बंद कर दिए गए हैं, तो Bangladesh को मजबूरी में समुद्री मार्ग से कोलकाता या महाराष्ट्र के न्हावा शेवा बंदरगाहों का रुख करना पड़ेगा, जिससे उसकी Export costs में 25% तक की वृद्धि हो सकती है। यही नहीं, छोटे और मंझोले Producers के लिए यह बदलाव नुकसानदेह साबित हो सकता है जो सीमित बजट में काम करते हैं। भारत के इस कदम से बांग्लादेश की लॉजिस्टिक्स अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ना तय है।

लेकिन आखिर भारत को इतना बड़ा और कठोर फैसला लेने की जरूरत क्यों पड़ी? वजह है Bangladesh की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस द्वारा चीन में दी गई विवादास्पद टिप्पणियां। यूनुस ने अपने चीन दौरे के दौरान कहा था कि भारत के पूर्वोत्तर राज्य ‘लैंड लॉक्ड’ हैं और उनकी समुद्री पहुंच के लिए Bangladesh पर निर्भरता है।

उन्होंने Bangladesh को इस क्षेत्र में Indian Ocean का एकमात्र संरक्षक बताते हुए, चीन को अपने व्यापार मार्गों का उपयोग करने का खुला निमंत्रण दिया। यह बयान सिर्फ भारत की संप्रभुता को चुनौती नहीं था, बल्कि उसके रणनीतिक हितों पर भी आघात था। यह वो बयान था जो केवल शब्द नहीं बल्कि एक देश की नीतिगत आत्मनिर्भरता पर सीधा प्रहार था।

भारत ने इस बयान को हल्के में नहीं लिया और जवाब में न केवल Bangladesh से Imported सामानों पर प्रतिबंध लगाया, बल्कि उन सभी लैंड पोर्ट्स को भी बंद कर दिया जिनके जरिए बांग्लादेश अपनी सबसे ज्यादा कमाई करता था।

और यह पहली बार नहीं है जब ढाका की ओर से भारत विरोधी रुख देखने को मिला हो। पिछले कुछ महीनों में Bangladesh ने एकतरफा रूप से भारतीय धागे के Import पर भी प्रतिबंध लगाया, ट्रांजिट फीस में वृद्धि की और कई लैंड पोर्ट्स पर भारतीय कार्गो को धीमा किया। यह सब भारत की आत्मनिर्भरता नीति और पूर्वोत्तर राज्यों के विकास को प्रभावित करने की कोशिश मानी गई।

अब भारत ने जो एक्शन लिया है, वो केवल जवाबी कार्रवाई नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संदेश भी है। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब वह केवल प्रतिक्रिया नहीं देगा, बल्कि अपनी रणनीति को लेकर proactive रहेगा। अब यह केवल व्यापार नहीं, बल्कि रणनीतिक हितों का मामला है।

Bangladesh के लिए भारत अब कोई लचीला पड़ोसी नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर और global level पर उभरती ताकत है, जो अपने फैसलों से न केवल संदेश देता है, बल्कि असर भी दिखाता है। भारत ने चीन के साथ गलबहियां करने की कीमत Bangladesh को महसूस करा दी है, और शायद ये शुरुआत भर है।

Bangladesh के लिए अब समय है अपने नीति निर्धारकों को जागरूक करने का, क्योंकि भारत की यह कार्रवाई उसके लंबे समय के आर्थिक हितों पर भी असर डाल सकती है। जो देश कल तक भारत के सहयोग से ग्लोबल मार्केट में अपनी पकड़ बना रहा था, वह अब भारत की नाराजगी के कारण अपने ही बनाए मार्ग में अटक गया है।

अब अगर Bangladesh चीन की गोद में बैठना चाहता है, तो उसे यह भी समझना होगा कि चीन दोस्ती में भी अपना मुनाफा पहले देखता है, और भारत अगर साथ न हो, तो अंतरराष्ट्रीय व्यापार की वैधता और स्थिरता दोनों खतरे में पड़ जाती हैं। भारत का एक छोटा सा आर्थिक कदम किसी देश की संप्रभुता की नींव तक को हिला सकता है—और बांग्लादेश के लिए यह केवल चेतावनी है, अभी युद्ध तो बाकी है।

Conclusion

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