नमस्कार दोस्तों,क्या गौतम अडानी का कारोबार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुश्किलों में फंसने लगा है? क्या श्रीलंका सरकार ने adani group को जानबूझकर इस बड़े प्रोजेक्ट से बाहर किया, या फिर यह कंपनी का खुद का फैसला था? क्या इस पूरे मामले में कोई राजनीतिक साजिश या विदेशी दबाव शामिल है?
हाल ही में एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है कि अडानी ग्रीन एनर्जी ने श्रीलंका में अपने दो महत्वपूर्ण विंड एनर्जी प्रोजेक्ट्स से हाथ खींच लिया है। यह वही प्रोजेक्ट हैं जिनकी कुल लागत 1 अरब डॉलर से अधिक थी और जिन पर श्रीलंका सरकार पहले बातचीत कर रही थी। लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि अडानी समूह को इस प्रोजेक्ट से हटने का फैसला लेना पड़ा?
यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि adani group भारत की सबसे बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों में से एक है, और गौतम अडानी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर और ऊर्जा परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। लेकिन श्रीलंका में जिस तरह से यह घटनाक्रम हुआ है, वह कई सवाल खड़े करता है। क्या यह मामला सिर्फ आर्थिक वजहों से जुड़ा है, या इसके पीछे कोई राजनीतिक रणनीति काम कर रही है? इस वीडियो में हम इस पूरे मामले को विस्तार से समझेंगे और यह जानने की कोशिश करेंगे कि, अडानी ग्रुप को आखिरकार श्रीलंका से पीछे क्यों हटना पड़ा?
श्रीलंका में adani group की योजना क्या थी?
अडानी ग्रीन एनर्जी ने श्रीलंका में दो विंड एनर्जी प्रोजेक्ट शुरू करने की योजना बनाई थी। ये प्रोजेक्ट मन्नार और पूनरिन क्षेत्रों में स्थापित किए जाने थे और इनकी कुल क्षमता 484 मेगावाट थी। इन प्रोजेक्ट्स का मकसद श्रीलंका को रिन्यूएबल एनर्जी प्रदान करना था, जिससे देश अपनी power generation cost को कम कर सके और पर्यावरण को भी बचा सके।
श्रीलंका की पिछली सरकार ने adani group के साथ इस प्रोजेक्ट को लेकर 20 साल का Power Purchase Agreement – PPA किया था। इस समझौते के तहत अडानी ग्रीन एनर्जी प्रति यूनिट 8.2 सेंट की दर से बिजली सप्लाई करने वाली थी। लेकिन जब श्रीलंका में सरकार बदली, तो नए प्रशासन ने इस प्रोजेक्ट को लेकर कई सवाल उठाने शुरू कर दिए।
इसके अलावा, बीते साल अमेरिकी अधिकारियों ने गौतम अडानी और अन्य अधिकारियों पर, Indian electricity supply contracts को सुरक्षित करने के लिए रिश्वत देने की योजना का हिस्सा होने का आरोप लगाया था। इस आरोप के बाद से ही श्रीलंका सरकार ने adani group की परियोजनाओं की समीक्षा शुरू कर दी।
इस मामले में श्रीलंका सरकार के प्रवक्ता नलिंदा जयतिसा ने कहा कि, सरकार इस परियोजना की लागत को 0.06 अमेरिकी डॉलर प्रति यूनिट से कम करने के बारे में, अडानी ग्रुप के साथ दोबारा बातचीत करना चाहती थी। श्रीलंका में स्थानीय कंपनियों ने इस प्रोजेक्ट के लिए इससे भी कम कीमतों की बोली लगाई थी, लेकिन अडानी को महंगे टैरिफ पर ठेका दिया गया था। इसी वजह से यह मुद्दा चुनाव प्रचार के दौरान बड़ा राजनीतिक विवाद बन गया।
नई सरकार ने चुनाव प्रचार के दौरान यह वादा किया था कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो, वे अडानी ग्रीन एनर्जी के साथ किए गए पुराने समझौते पर फिर से बातचीत करेंगे। जब दिसंबर 2023 में नई सरकार बनी, तो उन्होंने पिछली सरकार द्वारा तय किए गए बिजली दरों पर समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। हालांकि, सरकार ने यह भी साफ किया कि वे इस प्रोजेक्ट को पूरी तरह से रद्द नहीं कर रहे हैं, बल्कि इसकी समीक्षा के लिए एक नई समिति बनाई जाएगी।
Adani group ने श्रीलंका से बाहर होने का फैसला क्यों किया?
अडानी ग्रीन एनर्जी ने श्रीलंका के Board of Investment के चेयरमैन को, एक आधिकारिक पत्र भेजकर बताया कि वे इस प्रोजेक्ट से हट रहे हैं। इस पत्र में उन्होंने लिखा कि “यह पता चला है कि प्रोजेक्ट प्रस्ताव पर फिर से बातचीत करने के लिए, एक और कैबिनेट द्वारा नियुक्त वार्ता समिति और परियोजना समिति का गठन किया जाएगा। इस पहलू पर हमारी कंपनी के बोर्ड में विचार-विमर्श किया गया।
इसके बाद यह निर्णय लिया गया कि कंपनी श्रीलंका के संप्रभु अधिकारों और उसकी पसंद का पूरा सम्मान करती है, लेकिन वह सम्मानपूर्वक इस प्रोजेक्ट से हट जाएगी इसका सीधा मतलब यह है कि adani group को यह महसूस हो गया कि, नई श्रीलंकाई सरकार इस प्रोजेक्ट के लिए नई शर्तें रखने जा रही है, और उन्हें इसे सस्ते टैरिफ पर देने के लिए मजबूर किया जा सकता है। इससे उनकी लागत बढ़ जाती और प्रॉफिट कम हो जाता। इसके अलावा, अमेरिकी जांच और श्रीलंका में हो रही समीक्षा को देखते हुए अडानी ग्रुप ने इस प्रोजेक्ट से खुद को अलग करना ही बेहतर समझा।
श्रीलंका सरकार ने adani group को जानबूझकर बाहर किया?
यह सवाल इसलिए उठता है क्योंकि श्रीलंका में चुनाव प्रचार के दौरान अडानी ग्रुप का मुद्दा एक राजनीतिक बहस बन गया था। विपक्षी पार्टियों ने इस प्रोजेक्ट को लेकर सरकार पर कई आरोप लगाए थे। वे कह रहे थे कि सरकार ने बिना किसी उचित बोली प्रक्रिया के अडानी को यह प्रोजेक्ट दे दिया था, जबकि स्थानीय कंपनियां इससे कम कीमत पर बिजली देने को तैयार थीं।
श्रीलंका की नई सरकार को लगता है कि अगर वे अडानी ग्रुप के साथ इस महंगे समझौते को जारी रखते हैं, तो जनता में उनकी छवि खराब हो सकती है। इसी वजह से उन्होंने इस डील को दोबारा नेगोशिएट करने की कोशिश की, और जब adani group ने शर्तें बदलने से इनकार किया, तो उन्होंने प्रोजेक्ट छोड़ने का फैसला किया।
इसके अलावा, भारत और श्रीलंका के बीच व्यापारिक और रणनीतिक संबंध काफी महत्वपूर्ण हैं। भारत ने हमेशा श्रीलंका को आर्थिक सहयोग दिया है, खासकर जब वह आर्थिक संकट में था। श्रीलंका में चीन का भी बड़ा प्रभाव है, और चीन वहां कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है।
अगर adani group के बाहर होने से श्रीलंका चीन की कंपनियों के साथ मिलकर यह प्रोजेक्ट पूरा करता है, तो यह भारत के लिए एक स्ट्रेटेजिक लॉस हो सकता है। भारत की सरकार ने श्रीलंका में अपनी उपस्थिति मजबूत करने के लिए कई प्रयास किए हैं, और इस प्रोजेक्ट से अडानी का बाहर होना भारत की आर्थिक कूटनीति के लिए झटका साबित हो सकता है।
Conclusion
तो दोस्तों, adani group के श्रीलंका से हटने का फैसला एक बड़ा घटनाक्रम है, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार और राजनीति से जुड़ा हुआ है। यह दिखाता है कि किसी भी देश में काम करना सिर्फ बिजनेस का मामला नहीं, बल्कि राजनीतिक और कूटनीतिक संबंधों पर भी निर्भर करता है।
अब देखना यह होगा कि क्या अडानी ग्रुप श्रीलंका के अलावा किसी और देश में ऐसे प्रोजेक्ट्स लेकर आता है, या फिर श्रीलंका सरकार इस फैसले के बाद भारत के अन्य व्यापारिक प्रस्तावों के साथ कैसा व्यवहार करती है। आपको क्या लगता है? क्या adani group को श्रीलंका सरकार ने जानबूझकर बाहर किया, या यह एक सामान्य व्यावसायिक निर्णय था? अपनी राय कमेंट में बताएं!
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