Kohinoor: एक तवायफ, एक पगड़ी और 3,500 करोड़ का हीरा! भारत से लूटे जाने की कहानी जो आज भी गर्व और जागरूकता जगाती है I

सोचिए… भारत की राजगद्दी पर एक हीरा चमक रहा था, जिसकी एक झलक पाने को दुनिया के सबसे ताकतवर सम्राट भी तरसते थे। एक ऐसा हीरा, जिसकी चमक आंखों को चौंका दे, जिसके बारे में कहा जाता था कि इसे पहनने वाला कभी पराजित नहीं हो सकता। लेकिन क्या आप जानते हैं — आज वही हीरा, जो भारत की शान था, एक तवायफ की एक चाल के चलते हमेशा के लिए इस देश के हाथों से निकल गया?

वो हीरा जो आज ब्रिटेन की महारानी के ताज की शान बना बैठा है, कभी भारत के एक बादशाह की पगड़ी में छुपा हुआ था। यह कहानी Kohinoor की है — सिर्फ एक बेशकीमती रत्न की नहीं, बल्कि छल, मोहब्बत, सत्ता, और विश्वासघात की ऐसी कहानी, जिसने भारत के इतिहास का रुख ही मोड़ दिया। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

हीरों की खोज का इतिहास जब हम पलटते हैं, तो सबसे पहले नाम आता है भारत का। चौथी शताब्दी में ही भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश था जहां से हीरों का व्यापार होता था। तब यूरोप, अफ्रीका या अमेरिका में हीरे मिलना लगभग नामुमकिन था। भारत के जंगलों, नदियों और खानों से ऐसे रत्न निकले, जिनकी चमक ने पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया।

उन्हीं में से एक था — Kohinoor। यह हीरा कोई साधारण पत्थर नहीं था, इसकी पहचान एक राजसी प्रतीक के रूप में थी। जो राजा इसे अपने पास रखता, उसे परम प्रतापी और अजेय माना जाता था। लेकिन इस हीरे की किस्मत कुछ और ही तय थी — और इसकी शुरुआत होती है एक स्त्री से, जिसे इतिहास ने एक तवायफ कहा, लेकिन उसने जो किया, वो पूरी सल्तनत के लिए एक बड़ा मोड़ बन गया।

Kohinoor की खोज 13वीं सदी में भारत में हुई, लेकिन तब इसे एक आम हीरे की तरह देखा गया। इसकी असली अहमियत तब सामने आई जब इसकी चमक ने सम्राटों के मन को मोह लिया। यह हीरा इतना खास था कि जब इसे पहली बार मुगलों के दरबार में पेश किया गया, तो कहा गया — “ये खुदा की रोशनी का टुकड़ा है।”

मुगलों ने इसे अपने खजाने का सबसे कीमती गहना बना लिया। इसे सीधे ताज या मुकुट में नहीं, बल्कि एक खास जगह रखा जाता था — बादशाह की पगड़ी में। जी हां, मुगलों का मानना था कि Kohinoor को सिर पर पहनना ही उसकी असली गरिमा है। और बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला ने इसे अपनी पगड़ी में छुपाकर रखा। लेकिन उन्हें नहीं पता था कि ये रहस्य एक महिला जानती है, और वही एक दिन इस हीरे की किस्मत बदल देगी।

इस महिला का नाम था — नूर बाई। वह कोई साधारण तवायफ नहीं थी। सुंदरता के साथ-साथ चतुराई भी उसमें कूट-कूटकर भरी थी। नूर बाई की मोहक अदाओं से मुगल दरबार के कई अधिकारी प्रभावित थे।

लेकिन उसकी नजरें सिर्फ मोहब्बत नहीं, ताकत और सियासत पर भी थीं। जब 1739 में ईरान के आक्रमणकारी नादिर शाह ने भारत पर हमला किया और दिल्ली पर कब्जा कर लिया, तो नूर बाई उसकी नजरों में आ गई। उसने नादिर शाह को अपने इश्क में इस कदर फंसा लिया कि वह उसके कहने पर किसी भी हद तक जाने को तैयार था। यही वो वक्त था जब नूर बाई ने भारत के सबसे बड़े रत्न का भेद खोलने का फैसला लिया।

नूर बाई ने नादिर शाह को बताया कि Kohinoor हीरा मुगल बादशाह मुहम्मद शाह की पगड़ी में छिपा होता है। यह जानकारी मामूली नहीं थी। नादिर शाह जानता था कि कोहिनूर सिर्फ हीरा नहीं, भारत की अस्मिता है। नूर बाई के इस खुलासे के बदले उसे 4,000 मुद्राएं इनाम में मिलीं। नादिर शाह ने बिना खून-खराबा किए, एक चतुर चाल चली।

उसने मुहम्मद शाह को मित्रता के नाम पर ‘पगड़ी बदलने’ की रस्म का प्रस्ताव दिया। एक परंपरा के अनुसार, जब दो सम्राट पगड़ी बदलते हैं, तो वह भाईचारे का प्रतीक माना जाता है। मुहम्मद शाह ने बिना शंका किए यह रस्म निभाई, और जैसे ही उसने अपनी पगड़ी नादिर शाह को दी — Kohinoor भी चला गया।

इस तरह Kohinoor एक रात में भारत से निकलकर नादिर शाह के साथ ईरान पहुंच गया। नादिर शाह ने उसे देखते ही कहा था — “कोह-ए-नूर” — यानी रौशनी का पहाड़। तभी से इसका नाम Kohinoor पड़ गया। लेकिन इस कहानी में एक और ट्विस्ट था — नूर बाई।

उसने नादिर शाह को भी धोखा दे दिया। जब नादिर भारत से लौट रहा था, नूर बाई चुपचाप लाल कुआं में अपने पुराने प्रेमी के पास जाकर छुप गई। नादिर उसे ढूंढता रह गया। कुछ लोगों का कहना है कि नूर बाई उसके साथ काबुल जाना चाहती थी, लेकिन नादिर को डर था कि अगर उसने मुगलों से विश्वासघात किया, तो मुझसे क्यों नहीं करेगी? यही वजह थी कि नादिर ने नूर बाई को वहीं छोड़ दिया।

नूर बाई का अंत भी रहस्यमय रहा। 1729 में चांदनी चौक में हुए एक दंगे के दौरान वह एक जूते के वार से घायल हो गई थी। वह धीरे-धीरे गुमनामी में चली गई। लेकिन उसने इतिहास में जो जगह बनाई, वह अमिट है। अगर नूर बाई Kohinoor का रहस्य न बताती, तो शायद आज भी वह हीरा भारत के किसी संग्रहालय में होता, या फिर किसी राजा के मुकुट में। लेकिन किस्मत कुछ और तय कर चुकी थी। Kohinoor अब विदेशी धरती की अमानत बन चुका था।

Kohinoor की यह यात्रा यहीं नहीं रुकी। नादिर शाह की हत्या के बाद यह हीरा अफगानिस्तान पहुंचा और फिर वहां के बादशाह शाह शुजा के पास आया। लेकिन वहां भी यह ज्यादा दिन न टिक सका। शाह शुजा भारत आए और सिख साम्राज्य के संस्थापक महाराजा रणजीत सिंह को यह हीरा भेंट कर दिया। रणजीत सिंह ने इसे पंजाब की शान बना दिया। लेकिन जब अंग्रेजों ने पंजाब को हड़प लिया, तब रणजीत सिंह के पुत्र दलीप सिंह को मजबूर किया गया कि वह कोहिनूर को इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को सौंप दें।

इस तरह Kohinoor एक बार फिर बिना युद्ध के, सिर्फ सत्ता और दबाव के माध्यम से लंदन पहुंच गया। साल 1852 में महारानी विक्टोरिया को Kohinoor पसंद नहीं आया। उन्हें लगा कि यह हीरा जितना बेशकीमती है, उतनी इसकी चमक नहीं। इसलिए इसे फिर से तराशने का आदेश दिया गया। एम्स्टर्डम की प्रसिद्ध डायमंड कंपनी कोस्टर डायमंड्स ने इसका नया रूप दिया। पहले यह हीरा 186 कैरेट का था, अब मात्र 109 कैरेट का रह गया।

आज यह Kohinoor ब्रिटेन के टॉवर ऑफ लंदन में, शाही ताज का हिस्सा है। इसे सुरक्षा के इतने परतों में रखा गया है कि सामान्य दर्शक सिर्फ शीशे के बाहर से ही देख सकता है। इसकी कीमत का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। बेल्जियम की हीरा कंपनी बौनट के अनुसार, इसकी कीमत 1200 करोड़ से 3500 करोड़ रुपये के बीच मानी जाती है। लेकिन सच कहें, तो Kohinoor की कीमत पैसों से नहीं, बल्कि उस इतिहास से तय होती है जिसे उसने जिया है।

आज भी भारत सरकार समय-समय पर Kohinoor को वापस लाने की मांग करती रही है। लेकिन ब्रिटिश सरकार का तर्क होता है — “यह उपहार में मिला था।” क्या वाकई ये उपहार था? या सत्ता और चालबाज़ी का वो खेल था, जिसमें एक देश की धरोहर को उसकी आंखों के सामने लूट लिया गया?

Kohinoor आज एक हीरा नहीं, एक प्रतीक है — भारत की खोई हुई शान, उसके राजवंशों का गौरव, और एक ऐसी कहानी जिसे बार-बार दोहराया जाना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ जान सकें कि, इतिहास के कितने मूल्यवान पन्ने एक तवायफ की चाल और एक बादशाह की नादानी से पलट गए।

Conclusion

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