एक ऐसा देश जो कभी खुद को इस्लामी दुनिया की नेतृत्वकारी शक्ति मानता था, जिसकी फौज को अजेय और सरकार को कूटनीतिक चतुराई का प्रतीक माना जाता था। अब वही देश आज ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां उसके खेत सूख रहे हैं, उसके गोदाम खाली हैं और उसकी जनता भूखी है। Pakistan में भुखमरी की आहट अब दरवाजे पर नहीं, बल्कि उसके भीतर दस्तक दे रही है।
और ये कोई अफवाह नहीं, बल्कि वर्ल्ड बैंक जैसी global organization की चेतावनी है कि, आने वाले समय में 1 करोड़ पाकिस्तानी नागरिक गंभीर खाद्य संकट का सामना कर सकते हैं। यह चेतावनी सिर्फ एक रिपोर्ट नहीं, बल्कि आने वाली मानवीय त्रासदी का सटीक पूर्वानुमान है, जो किसी भी क्षण एक सामाजिक विस्फोट में बदल सकता है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव अपने चरम पर है। भारत ने न सिर्फ पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक मोर्चा खोला, बल्कि सिंधु जल समझौते को स्थगित कर दिया, वीजा प्रक्रिया रोकी और अटारी बॉर्डर को बंद कर दिया। पाकिस्तान ने जवाब में एयरस्पेस बंद कर दिया। लेकिन इन कागजी कार्रवाइयों के बीच, पाकिस्तान की धरातल पर जो सच्चाई उभर रही है, वह कहीं ज़्यादा खतरनाक और मानवीय त्रासदी से भरी हुई है।
देश में आर्थिक संकट अब महज़ IMF की शर्तों या बजट घाटे तक सीमित नहीं रहा—यह अब भूख और बेरोजगारी का दंश बन चुका है। यह तनाव केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि लोगों के पेट से जुड़ा हुआ संकट बन गया है।
विश्व बैंक ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में पाकिस्तान को लेकर जो अनुमान जताया है, वह सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक अस्थिरता का अलार्म है। रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में इस साल लगभग 10 मिलियन यानी 1 करोड़ लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा की स्थिति में पहुंच सकते हैं।
खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां कृषि ही जीवन का आधार है, वहां चावल, मक्का जैसी फसलें जलवायु संकट के चलते बर्बादी के कगार पर हैं। सूखा, बाढ़ और असमय बारिश जैसे कारकों ने पहले ही किसानों को तोड़ दिया है, और अब जब बीज भी महंगे और सिंचाई भी अनिश्चित है, तब फसल का उत्पादन भी लगातार गिरता जा रहा है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था टूट रही है, और जो लोग पहले खुद को आत्मनिर्भर समझते थे, वे अब राहत शिविरों में रोटी मांगते दिखाई दे सकते हैं।
इतना ही नहीं, पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति भी इन हालातों को और विकराल बना रही है। विश्व बैंक ने पाकिस्तान के आर्थिक विकास दर के अनुमान को घटाकर मात्र 2.7% कर दिया है। यह एक ऐसे देश के लिए चेतावनी है जिसकी आबादी हर साल लगभग 2% की दर से बढ़ रही है।
इसका सीधा मतलब यह है कि देश की अर्थव्यवस्था लोगों की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में भी असमर्थ होती जा रही है। और सबसे गंभीर बात यह है कि देश की शहबाज़ शरीफ सरकार अपने बजट घाटे के लक्ष्य को भी पूरा नहीं कर पा रही, और कर्ज़ का बोझ जीडीपी के अनुपात में और बढ़ने का अनुमान है। इसका सीधा असर अंतरराष्ट्रीय Investors के भरोसे पर पड़ेगा, जिससे पाकिस्तान की मुद्रा और अधिक दबाव में आ सकती है।
रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में सिर्फ भुखमरी नहीं बढ़ रही, बल्कि गरीबी की रेखा के नीचे जीने वालों की संख्या में भी तेज़ बढ़ोतरी हो रही है। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट का अनुमान है कि इस साल लगभग 19 लाख लोग और गरीबी में चले जाएंगे। यानी हर दिन हजारों लोग एक ऐसा जीवन जीने को मजबूर होंगे जहां दो वक्त की रोटी मिलना भी सपना हो जाएगा।
बेरोज़गारी की दर बढ़ रही है और सबसे चिंताजनक आंकड़ा यह है कि, पाकिस्तान का रोजगार-से-जनसंख्या अनुपात केवल 49.7% है। इसका मतलब है कि देश की आधी आबादी काम नहीं कर रही—और जो काम कर रही है, उसकी आमदनी इतनी कम है कि वह खुद को गरीबी से नहीं उबार सकती। इससे न केवल व्यक्तिगत संकट उत्पन्न हो रहा है, बल्कि सामूहिक सामाजिक असंतुलन की स्थिति भी बन रही है।
इस संकट का सबसे बुरा असर महिलाओं और युवाओं पर पड़ रहा है। पाकिस्तान में महिला श्रम भागीदारी दुनिया में सबसे कम में से एक है। और यही हाल युवाओं का भी है, जिन्हें या तो काम नहीं मिल रहा या वो काम जिस लायक हों वो काम मौजूद नहीं। यह स्थिति न सिर्फ सामाजिक असंतुलन को जन्म देती है, बल्कि कट्टरपंथ और अपराध को भी बढ़ावा देती है। भूख से पीड़ित समाज क्रांति नहीं, अव्यवस्था पैदा करता है।
और यह अव्यवस्था अब पाकिस्तान की गली-गली में महसूस की जा रही है। स्कूल छोड़ने की दर बढ़ रही है, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं, और लोग पलायन के लिए मजबूर हो रहे हैं—चाहे वो विदेश हो या किसी शहरी झुग्गी में छिपा हुआ जीवन।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि पाकिस्तान की मौजूदा नीतियां इस संकट को सुलझाने के बजाय और उलझा रही हैं। खेती, निर्माण और लो-वैल्यू सेवाएं—जो गरीब वर्ग की रीढ़ होती हैं—इन क्षेत्रों में निगेटिव ग्रोथ देखने को मिल रही है। जब इन क्षेत्रों में गिरावट आती है, तो गरीबों की आमदनी भी घट जाती है और उनकी क्रय शक्ति समाप्त हो जाती है।
इसके अलावा, वास्तविक मजदूरी दर पिछले कुछ वर्षों से स्थिर बनी हुई है। यानी महंगाई तो बढ़ रही है, लेकिन आमदनी वहीं की वहीं रुकी है। नतीजा यह है कि गरीब पहले से ज़्यादा गरीब हो रहा है और मध्य वर्ग भी अब निचले तबके में खिसकने लगा है। इस स्थिति में सरकार अगर केवल टैक्स बढ़ाकर या अंतरराष्ट्रीय कर्ज़ लेकर चलती है, तो वह आग बुझाने की जगह पेट्रोल छिड़कने जैसा हो सकता है।
विश्व बैंक की रिपोर्ट में जो बात सबसे चौंकाने वाली है, वो ये कि इन सभी मुद्दों पर पाकिस्तान में कभी खुलकर चर्चा नहीं होती। चाहे संसद हो या मीडिया—भूख, बेरोजगारी, महिला श्रम भागीदारी, घटती मजदूरी—इन मुद्दों को या तो दबा दिया जाता है या पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। यह एक ऐसे समाज की तस्वीर पेश करता है जो खुद अपनी बर्बादी को देखने से इनकार कर रहा है।
और यही इनकार अब देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है। क्योंकि अगर कोई समाज अपनी असल बीमारी को पहचानने को तैयार ही नहीं, तो इलाज कैसे मुमकिन होगा? और अगर ये हाल रहा, तो पाकिस्तान का संकट सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि अस्तित्व का संकट बन जाएगा।
अब जब भारत से रिश्तों में तल्खी और पहलगाम जैसे आतंकी हमले के बाद राजनीतिक तनाव चरम पर है, तो पाकिस्तान के लिए बाहरी सपोर्ट भी लगातार कम होता जा रहा है। IMF पहले ही सख्त शर्तों पर मदद दे रहा है, चीन ने अपने Investment धीमे कर दिए हैं और अमेरिका अब दूरी बना चुका है। ऐसे में पाकिस्तान को अब कोई और नहीं, सिर्फ खुद ही बचा सकता है।
लेकिन सवाल यह है—क्या पाकिस्तान की सरकार और समाज इस सच्चाई को स्वीकार करने को तैयार हैं? क्या वह अपनी प्राथमिकताएं बदलने को तैयार है? क्या वह बमों से ज्यादा ब्रेड को ज़रूरी समझेगा? ये सवाल जितने सीधे हैं, उनके जवाब उतने ही जटिल और राजनीतिक इच्छाशक्ति से जुड़े हुए हैं।
भविष्य की तस्वीर और भी भयावह हो सकती है। अगर जलवायु संकट गहराया, खाद्य उत्पादन और गिरा, और आर्थिक नीति में सुधार नहीं हुआ, तो आने वाले वर्षों में पाकिस्तान केवल कर्ज़ में नहीं, बल्कि मानवीय आपदा में भी डूब सकता है। और सबसे बड़ा खतरा यह है कि जब जनता भूखी होती है, तो वह नीतियों पर भरोसा नहीं करती, बल्कि उग्रता को अपनाती है। फिर चाहे वह राजनीतिक हो या धार्मिक। और एक अस्थिर देश केवल अपने लिए नहीं, पूरे क्षेत्र के लिए खतरा बन सकता है। उसकी सीमाओं से नफरत, हथियार और विस्थापन रिस सकते हैं, जिससे पूरे उपमहाद्वीप की शांति को चुनौती मिल सकती है।
आज जब दुनिया ग्लोबल साउथ के आर्थिक भविष्य पर चर्चा कर रही है, तब पाकिस्तान की स्थिति एक चेतावनी है—कि अगर भूख, बेरोज़गारी और असमानता को अनदेखा किया जाए, तो आर्थिक सुधार और Investment कोई मायने नहीं रखते। पाकिस्तान को अब अपनी प्राथमिकताओं को बदलना होगा—बमों से नहीं, ब्रेड से। सिर्फ सैन्य बजट नहीं, कृषि और रोजगार पर खर्च बढ़ाना होगा। और सबसे पहले, उसे स्वीकार करना होगा कि उसकी सबसे बड़ी जंग अब सीमा पर नहीं, बल्कि उसके गांवों, खेतों और रसोईघरों में लड़ी जा रही है। यह लड़ाई एक ऐसी आग है, जिसे अगर अभी नहीं बुझाया गया, तो ये पूरे देश को जला सकती है।
Conclusion
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