एक ऐसी खूबसूरत घाटी, जहां हर साल लाखों सैलानी आते हैं शांति, सुकून और प्रकृति की गोद में कुछ पल बिताने। लेकिन सोचिए, उसी घाटी की वादियों में अचानक गोलियों की आवाज गूंजे, चीखें उठें, और खून से लाल हो जाएं वे रास्ते जो कभी मोहब्बत की मिसाल थे। जम्मू-Kashmir के पहलगाम में ऐसा ही दिल दहला देने वाला मंजर सामने आया, जब 26 बेगुनाह भारतीय पर्यटक आतंक का शिकार बन गए।
यह हमला सिर्फ जानलेवा नहीं था, बल्कि एक ऐसी साजिश का हिस्सा था, जो लंबे समय से पलती रही है — हमारे दुश्मनों की जमीन पर, हमारे खिलाफ, हमारे ही अपनों को छलनी करने के लिए। लेकिन सवाल उठता है — आखिर ये ‘सपोले आतंकी’ पलते कैसे हैं? कहां से आता है इनके लिए पैसा? कौन सी है इनकी ‘नाग इकोनॉमी’ जो हर बार भारत के सपनों पर जहर घोल देती है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
सबसे पहले ये समझना जरूरी है कि Kashmir की अर्थव्यवस्था का दिल धड़कता है पर्यटकों से। जो लोग पहलगाम, गुलमर्ग, सोनमर्ग जैसी जगहों पर आते हैं, वे सिर्फ अपने कैमरों में खूबसूरत नज़ारे नहीं कैद करते, बल्कि स्थानीय लोगों की रोज़ी-रोटी भी जिंदा रखते हैं। होटल, टैक्सी, हैंडीक्राफ्ट, गाइड, रेस्तरां — हर सेक्टर का सीधा संबंध टूरिज्म से है। और जब आतंकी इस शृंखला पर हमला करते हैं, तो दरअसल वे Kashmir के दिल पर हमला करते हैं। वे जानबूझकर टूरिज्म को टारगेट कर के Kashmir की आर्थिक रीढ़ को तोड़ना चाहते हैं। लेकिन इस बार हमला सिर्फ एक हमला नहीं था, यह एक बड़े नेटवर्क की उपज थी — उस नेटवर्क की, जिसे सालों से जहर से सींचा गया है।
Kashmir में सक्रिय आतंकी संगठनों की बात करें, तो नाम अलग-अलग हैं — लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, टीआरएस — लेकिन मकसद एक ही है: भारत को अस्थिर करना। इन संगठनों को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का खुला समर्थन प्राप्त है। लेकिन सिर्फ समर्थन ही नहीं, इनकी खुद की भी एक खतरनाक अर्थव्यवस्था है — एक ‘नाग इकोनॉमी’ जो ड्रग्स तस्करी, नकली करेंसी, अवैध वसूली और हवाला के जरिये फल-फूल रही है। अफीम, हेरोइन, चरस — ये नशीले जहर Kashmir के रास्ते भारत में घुसाए जाते हैं, और इनसे कमाए गए करोड़ों रुपये वापस आतंक को पालने में लगाए जाते हैं।
ड्रग्स का धंधा इन आतंकियों के लिए सिर्फ पैसा कमाने का जरिया नहीं, बल्कि एक रणनीतिक हथियार भी है। नशे के जाल में फंसाकर Kashmir के युवाओं को कमजोर करना, उनकी सोच को कुंद करना, और फिर उन्हीं में से कुछ को आतंकी बना देना — ये इनका सबसे घातक खेल है। अफसोस की बात ये है कि ड्रग्स के पैसे से खरीदे गए हथियारों से ही भारत के निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाया जाता है। यानी एक बार जहर बेचकर पैसा कमाया जाता है और फिर उसी पैसे से जहर बोया जाता है।
नकली करेंसी भी इस इकोनॉमी का अहम हिस्सा है। पाकिस्तानी फैक्ट्रियों में छपने वाली फर्जी भारतीय नोटों की गड्डियां Kashmir में भेजी जाती हैं। इन नोटों का इस्तेमाल न केवल आतंकी गतिविधियों को फंड करने में होता है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी कमजोर करने के लिए किया जाता है। सोचिए, जब बाजार में नकली नोट चलते हैं तो असली पैसा कैसे खत्म होता है — और ये आतंकियों की सबसे बड़ी जीत होती है, बिना गोली चलाए नुकसान पहुंचाना।
इन सबके अलावा, चैरिटेबल संगठनों के नाम पर भी एक गंदा खेल खेला जाता है। पाकिस्तान में कई संगठन हैं जो ‘मानवता’ के नाम पर पैसा इकट्ठा करते हैं, लेकिन असल में वो पैसा आतंकियों को भेजा जाता है। ये संगठन न सिर्फ फंडिंग करते हैं, बल्कि भारत के खिलाफ नफरत भी फैलाते हैं। Kashmir के भोले-भाले युवाओं को भड़काया जाता है, उनके दिलों में नफरत का बीज बोया जाता है। और जब इनका ब्रेनवॉश पूरा हो जाता है, तब इन्हें सीमा पार ले जाकर आतंकी ट्रेनिंग दी जाती है — और फिर ये बन जाते हैं ‘फिदायीन’ — जो अपनी जान देकर भी भारत को चोट पहुंचाने के लिए तैयार रहते हैं।
हवाला नेटवर्क भी सपोले आतंकियों की फाइनेंशियल लाइफलाइन है। बैंकों और डिजिटल ट्रांसफर के रास्ते न पकड़ में आने वाली धनराशि Kashmir में आतंकी ठिकानों तक पहुंचाई जाती है। यह पैसा कभी दुबई से आता है, कभी सऊदी अरब से, कभी किसी और खाड़ी देश से। हवाला चैनल के जरिये पैसा भेजना बेहद गुप्त और खतरनाक तरीका है, जिसे पकड़ना आसान नहीं होता। भारत सरकार इस पर लगातार नकेल कसने की कोशिश कर रही है, लेकिन जितनी तेजी से हम एक नेटवर्क तोड़ते हैं, उतनी ही तेजी से दुश्मन नया रास्ता निकाल लेते हैं।
और बात केवल विदेशी फंडिंग की नहीं है। वसूली भी इन आतंकी संगठनों की एक बड़ी इनकम का जरिया है। स्थानीय व्यापारियों, कारोबारियों और यहां तक कि आम लोगों से भी धमकी देकर पैसे ऐंठे जाते हैं। ‘जकात’ के नाम पर, ‘चंदा’ के नाम पर — लेकिन हकीकत में यह एक सुनियोजित वसूली तंत्र है। जो पैसा Kashmir की समृद्धि में लगना चाहिए, वही पैसा आतंक की आग में झोंक दिया जाता है।
अब सवाल ये उठता है कि भारत सरकार इस इकोनॉमी को तोड़ने के लिए क्या कर रही है? सच्चाई ये है कि पिछले कुछ सालों में भारत ने आतंकियों की फाइनेंशियल लाइफलाइन काटने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं। एनआईए ने हवाला नेटवर्क पर ताबड़तोड़ रेड की है, फर्जी चैरिटेबल ट्रस्ट्स पर शिकंजा कसा गया है, और नकली करेंसी का जखीरा भी कई बार पकड़ा गया है। लेकिन खतरा अभी पूरी तरह से टला नहीं है। जैसे सपोला बार-बार अपनी केंचुली बदलता है, वैसे ही ये आतंकी नेटवर्क भी नए-नए तरीकों से खुद को जिंदा रखते हैं।
एक बात तो साफ है — अगर हमें पहलगाम जैसी घटनाओं को रोकना है, तो सिर्फ सैनिक ताकत से काम नहीं चलेगा। हमें सपोलों की इस इकोनॉमी पर निर्णायक प्रहार करना होगा। जब तक इनकी फंडिंग पर रोक नहीं लगेगी, जब तक इनके जहर उगलने वाले नेटवर्क का सिर नहीं कुचला जाएगा, तब तक यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है। इसलिए अब समय आ गया है कि भारत इन सपोलों की आर्थिक रीढ़ को पूरी तरह से तोड़ने के लिए एक ठोस, व्यापक और दीर्घकालिक रणनीति अपनाए।
युद्ध केवल बंदूक से नहीं जीता जाता। असली लड़ाई उस खुफिया नेटवर्क के खिलाफ है जो दूर बैठकर फंडिंग करता है, रणनीति बनाता है, और निर्दोषों का खून बहाता है। हमें हर उस पैसे के स्रोत को पहचानना होगा, उसे खत्म करना होगा, जो किसी भी रूप में आतंक को ताकत दे रहा है। तभी हम Kashmir को फिर से उसी अमन की धरती बना पाएंगे, जिसकी खूबसूरती को आज भी दुनिया सलाम करती है।
यह लड़ाई लंबी होगी, मुश्किल भी होगी। लेकिन अगर एक संकल्प हो — कि हम हर सपोले के फन को कुचलकर रहेंगे — तो जीत हमारी होगी, और एक दिन Kashmir फिर से अपने असली चेहरे — शांति, प्रेम और भाईचारे — के साथ खड़ा होगा।
Conclusion
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