Resilient: Tariff वार में जीत की ओर चीन? जिनपिंग की नई चाल से अमेरिका पर दबाव, यूरोप को भी बना रहे साथी! 2025

आप कल्पना कीजिए… एक ऐसा वक्त जब दो महाशक्तियां आमने-सामने हों, और दोनों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार न हो। एक तरफ अमेरिका है, जो 145% तक Tariff लगा रहा है, तो दूसरी ओर चीन है, जो 125% का जवाबी वार कर चुका है। लेकिन असली कहानी यहीं खत्म नहीं होती। चीन अब कूटनीति का वो पत्ता खेलने जा रहा है, जिसने पूरी दुनिया की नजरें यूरोप पर टिका दी हैं।

सवाल ये है—जिनपिंग अब यूरोपीय संघ से क्या चाह रहे हैं? क्या यह अमेरिका को अलग-थलग करने की साजिश है? या फिर चीन का एक और मास्टरस्ट्रोक? और सबसे बड़ा सवाल—क्या दुनिया एक नई आर्थिक लड़ाई की ओर बढ़ रही है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

अमेरिका और चीन के बीच ये Tariff युद्ध अप्रैल की शुरुआत से ही आग पकड़ चुका है। ट्रंप प्रशासन ने चीन के Products पर 145% तक का Import duty लगा दिया। यह कदम आर्थिक युद्ध के मैदान में सीधे चुनौती जैसा था। चीन ने भी इस बार झुकने की बजाय, पलटवार किया और अमेरिका पर 125% का भारी Tariff लगा दिया। इसका सीधा संदेश था—चीन अब सिर्फ व्यापार नहीं, रणनीति से भी जवाब देगा। यह केवल एक आर्थिक जवाब नहीं था, बल्कि global platform पर अमेरिका को यह दिखाने की कोशिश थी कि अब एकतरफा नियम नहीं चलेंगे।

चीन किसी भी हालत में अमेरिका के सामने झुकने को तैयार नहीं है। बल्कि अब वह हर मोर्चे पर अमेरिका को घेरने की तैयारी में है। इसी रणनीति के तहत राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अब यूरोप का रुख किया है। उन्होंने यूरोपीय संघ से खुलकर अपील की है कि अमेरिका की इस ‘एकतरफा धौंस’ का विरोध करना चाहिए।

यही नहीं, चीन के वित्त मंत्रालय ने बयान दिया है कि अगर अमेरिका चीन के हितों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है, तो चीन अंत तक लड़ने को तैयार है। यह बयान चीन की रणनीतिक स्थिरता का संकेत भी है कि वह आर्थिक और कूटनीतिक दोनों स्तर पर मुकाबले को तैयार है।

यानी अब ये Tariff वॉर केवल चीन और अमेरिका के बीच नहीं रहा—अब ये एक Global diplomacy समीकरण में बदल गया है। चीन ने इस लड़ाई को नई दिशा दे दी है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग की स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़ से हुई बातचीत में यही बात सामने आई। जिनपिंग ने कहा कि यूरोप और चीन को मिलकर अमेरिका के दबाव का मुकाबला करना चाहिए, और ऐसी धमकाने वाली प्रथाओं का विरोध करना चाहिए जो Global व्यापार के संतुलन को बिगाड़ती हैं। उनके अनुसार, अब समय आ गया है जब विकसित राष्ट्रों को मिलकर बहुपक्षीयता को मजबूत करना होगा।

हालांकि, स्पेन के प्रधानमंत्री ने जिनपिंग की इस अपील को सीधे-सीधे नहीं स्वीकारा। उन्होंने माना कि यूरोप को चीन के साथ व्यापार घाटा है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि इससे आगे के रिश्ते नहीं रुकने चाहिए। उनका स्पष्ट संकेत था कि व्यापार घाटा जरूर है, परंतु चीन से सहयोग खत्म नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों को मिलकर इस घाटे को सुधारने के प्रयास करने चाहिए। ऐसे में जिनपिंग की अपील को पूरी तरह खारिज तो नहीं किया गया, लेकिन उसकी स्वीकृति भी खुलकर नहीं मिली। यूरोप अभी भी संतुलन साधने की कोशिश में है।

इस कूटनीतिक कोशिश के बावजूद, अमेरिका की तरफ से प्रतिक्रिया भी सख्त रही। राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने Tariff फैसलों का बचाव करते हुए कहा कि अमेरिका दुनिया से सिर्फ ‘उचित व्यवहार’ चाहता है। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका अब अपने हितों से कोई समझौता नहीं करेगा। वहीं अमेरिकी ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट ने भी दो टूक चेतावनी दी—अगर चीन जवाबी कार्रवाई करेगा, तो उसे परिणाम भुगतने होंगे। लेकिन चीन की ओर से यह साफ कर दिया गया कि वह झुकेगा नहीं, बल्कि हर स्तर पर लड़ाई के लिए तैयार है। यह जवाब उस नए चीन का है जो अमेरिका की नीति को आंखों में आंख डालकर देख रहा है।

अभी तक जो लड़ाई एक व्यापारिक मुद्दा लग रही थी, अब वह Global Alliance की लड़ाई बन गई है। चीन अब केवल अमेरिका से नहीं, बल्कि दुनिया के अन्य बड़े ब्लॉक्स जैसे यूरोपीय संघ, ASEAN देशों, और व्यापारिक संगठनों से हाथ मिलाने की कोशिश कर रहा है। प्रधानमंत्री ली कियांग और चीनी विदेश मंत्री वांग यी इस रणनीति को मूर्त रूप देने में लगे हुए हैं। यह एक बहुस्तरीय योजना है जिसमें आर्थिक, कूटनीतिक और राजनीतिक मोर्चों पर अमेरिका को घेरने की पूरी रणनीति है।

ली कियांग ने हाल ही में यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन से भी मुलाकात की। इस मुलाकात को चीन की तरफ से “बाहरी दुनिया को सकारात्मक संदेश” बताया गया। चीन का कहना है कि वह यूरोपीय संघ के साथ व्यापार, निवेश और औद्योगिक सहयोग को और गहरा करना चाहता है। चीन चाहता है कि अमेरिका की दबाव नीति का मुकाबला करने के लिए वह और यूरोप मिलकर नई दिशा तय करें। इसके पीछे स्पष्ट मंशा है—चीन को Global व्यापार में विकल्प के रूप में प्रस्तुत करना।

लेकिन चीन की यह रणनीति केवल यूरोप तक ही सीमित नहीं है। चीन अब दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों यानी ASEAN देशों के साथ भी तेजी से संपर्क बना रहा है। वांग यी ने इन देशों से गठबंधन को मजबूत करने के लिए सीधे संपर्क साधे हैं। चीन का यह कदम केवल अमेरिका को जवाब देना नहीं, बल्कि एक वैकल्पिक Global व्यापार नेटवर्क तैयार करना है, जिससे वह अमेरिका की आर्थिक दादागिरी को काट सके। यह रणनीति केवल प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि Global नेतृत्व की दौड़ में चीन की मजबूत दावेदारी है।

इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चीन ने व्यापारिक नेताओं को भी भरोसा दिया है। ली कियांग ने स्पष्ट किया है कि चीन “सभी प्रकार की अनिश्चितताओं” के लिए तैयार है और जरूरत पड़ने पर वह नई नीतियां भी पेश करेगा। यानी चीन अब न केवल अमेरिका से टक्कर ले रहा है, बल्कि यह भी बता रहा है कि वह Global अस्थिरता से डरने वाला नहीं है। इसके साथ ही चीन यह संदेश देना चाहता है कि वह व्यापार के लिए स्थिर और भरोसेमंद साझेदार है।

दुनिया की नजर अब इस बात पर है कि यूरोप इस पूरे मसले में क्या रुख अपनाता है। क्या वह अमेरिका का साथ देगा, जिससे उसका पुराना नाटो सहयोग भी जुड़ा है? या फिर वह चीन के साथ संतुलन बनाते हुए अपने आर्थिक हितों को प्राथमिकता देगा? फिलहाल स्पेन जैसे देश इस सवाल का जवाब साफ तौर पर नहीं दे रहे, लेकिन ये भी तय है कि यूरोप के अंदर इस पर चर्चा जोरों पर है। फ्रांस, जर्मनी और इटली जैसे देशों के अंदर यह बहस तेज़ हो चुकी है कि क्या अमेरिका की ओर झुकना सही होगा या चीन के साथ संतुलन बनाना ज़रूरी है।

इस पूरे घटनाक्रम से अमेरिका की परेशानी बढ़ती दिख रही है। एक ओर चीन की आक्रामक रणनीति, दूसरी ओर यूरोप की झिझक—ट्रंप प्रशासन के लिए यह एक डिप्लोमैटिक चुनौती बनती जा रही है। खासकर तब, जब अमेरिका खुद को एक निष्पक्ष Global नेतृत्वकर्ता बताता है, लेकिन उसके फैसले किसी बड़े व्यापारिक दबाव की तरह दिख रहे हैं। चीन की रणनीति अब अमेरिका के लिए ऐसी शतरंज बन चुकी है, जिसमें हर चाल के पीछे एक बड़ी योजना छिपी है।

अब इस सवाल का जवाब आने वाला वक्त ही देगा कि जिनपिंग की यह रणनीति कामयाब होती है या नहीं। लेकिन इतना तो साफ है कि चीन अब खुलकर अमेरिका को कूटनीति और व्यापार दोनों में चुनौती दे रहा है। और यह टक्कर केवल Tariff की नहीं, बल्कि Global नेतृत्व की हो चुकी है। यह एक ऐसी लड़ाई है जिसमें नियमों के साथ-साथ रिश्ते भी दांव पर लगे हैं। और इसी वजह से आने वाला समय न सिर्फ अमेरिका और चीन के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए निर्णायक साबित हो सकता है।

Conclusion

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