नमस्कार दोस्तों, क्या आपने कभी सोचा है कि जो देश दूसरे देशों को आर्थिक मदद देकर अपने जाल में फंसाता है, वह खुद उसी मदद की वजह से फंस सकता है? क्या आपने कभी कल्पना की थी कि जिस चीन ने दशकों से एशिया के छोटे-छोटे देशों को, अपने प्रभाव में लेने के लिए अरबों डॉलर का Investment किया था, वही आज अपने ही बिछाए जाल में उलझ चुका है? चीन की कूटनीति का एक ही तरीका रहा है – पैसा दो, प्रभाव हासिल करो और फिर जब देश आर्थिक रूप से कमजोर हो जाए तो उसे अपनी शर्तों पर चलाओ।
लेकिन इस बार चीन का ये खेल उल्टा पड़ गया है। भारत के एक दांव ने चीन की रणनीति को पूरी तरह से फेल कर दिया है। Sri Lanka, जो कभी चीन के पैसों के दम पर अपने आर्थिक संकट से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था, अब भारत की मदद से चीन को करारा झटका दे चुका है। नतीजा ये हुआ कि चीन को करीब 60,000 करोड़ रुपये का भारी नुकसान झेलना पड़ा है। अब ड्रैगन का पूरा खेल बिगड़ चुका है और चीन को यह समझ नहीं आ रहा कि आखिर उसकी इस हार के पीछे कौन सी गलती रही। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
चीन पिछले दो दशकों से दक्षिण एशिया के देशों में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा था। पाकिस्तान और नेपाल के बाद चीन ने श्रीलंका को अपने जाल में फंसाने की योजना बनाई। चीन ने Sri Lanka को कर्ज के जाल में फंसाकर उसे आर्थिक रूप से अपने नियंत्रण में लेना चाहा। चीन की ये रणनीति काम भी कर रही थी। श्रीलंका ने चीन से भारी मात्रा में कर्ज ले रखा था।
चीन ने श्रीलंका को बंदरगाह, इंफ्रास्ट्रक्चर, रेलवे और कई अन्य प्रोजेक्ट्स के लिए अरबों डॉलर की मदद दी थी। लेकिन इस मदद के पीछे चीन की मंशा श्रीलंका पर दबदबा कायम करने की थी। चीन चाहता था कि Sri Lanka उसके प्रभाव में रहे और भारत की जगह चीन को प्राथमिकता दे। चीन ने श्रीलंका को लुभाने के लिए अपनी कंपनियों को Sri Lanka में Investment करने के लिए प्रोत्साहित किया।
हंबनटोटा पोर्ट के अलावा चीन ने Sri Lanka में हाईवे, रेलवे, एयरपोर्ट और कई बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए फंडिंग की थी। चीन की इस फंडिंग का मकसद Sri Lanka को कर्ज के जाल में फंसाकर उसे अपनी आर्थिक गुलामी में लाना था।
चीन ने साल 2007 से ही Sri Lanka में भारी Investment करना शुरू कर दिया था। सबसे बड़ा प्रोजेक्ट था – हंबनटोटा पोर्ट। चीन ने श्रीलंका को इस पोर्ट के निर्माण के लिए अरबों डॉलर का कर्ज दिया। चीन की रणनीति थी कि जब Sri Lanka कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाए, तो उसे इस पोर्ट पर कब्जा करने का मौका मिल जाए।
हुआ भी ऐसा ही। Sri Lanka ने इस प्रोजेक्ट के लिए चीन से जो कर्ज लिया था, उसे चुकाने में पूरी तरह असमर्थ हो गया। नतीजा ये हुआ कि श्रीलंका को हंबनटोटा पोर्ट को 99 साल की लीज पर चीन को सौंपना पड़ा। यह चीन के लिए एक बड़ी जीत थी। चीन को लगा कि उसने श्रीलंका को हमेशा के लिए अपने जाल में फंसा लिया है।
लेकिन चीन की इस जीत के बाद भारत ने खेल में एंट्री की। भारत ने Sri Lanka की मदद के लिए हाथ बढ़ाया। भारत ने श्रीलंका को मेडिकल सप्लाई, ईंधन और खाद्य सामग्री की आपूर्ति की। इसके अलावा, भारत ने श्रीलंका को 32,000 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद दी।
भारत ने ये मदद बिना किसी शर्त के दी थी। इससे श्रीलंका के नेताओं का रुख बदलने लगा। Sri Lanka ने चीन के साथ अपने कर्ज के पुनर्गठन के लिए नई शर्तें रखीं। श्रीलंका ने साफ कर दिया कि अब वह चीन की शर्तों पर चलने के लिए तैयार नहीं है।
इसके अलावा, Sri Lanka ने चीन से कहा कि वह तभी कर्ज चुकाएगा जब चीन उसे लोन री-स्ट्रक्चरिंग की सहूलियत देगा। मजबूरी में चीन को श्रीलंका के इस प्रस्ताव को मानना पड़ा। चीन ने श्रीलंका का करीब 60,000 करोड़ रुपये का कर्ज माफ कर दिया। चीन को इस नुकसान से गहरा झटका लगा। चीन ने जो पैसा श्रीलंका के इंफ्रास्ट्रक्चर में Investment किया था, उसका अब कोई फायदा नहीं हो रहा था। हंबनटोटा पोर्ट पर चीन का अधिकार तो बना रहा, लेकिन श्रीलंका ने भारत की मदद से बाकी सभी प्रोजेक्ट्स को अपने नियंत्रण में ले लिया। भारत ने श्रीलंका के कई अहम इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में Investment किया, जिससे श्रीलंका के नेताओं का भरोसा भारत पर बढ़ने लगा।
श्रीलंका के सरकारी समाचार पत्र ‘डेली न्यूज’ ने चीन के राजदूत क्यूई झेनहोंग के हवाले से कहा कि चीन को इस नुकसान की उम्मीद नहीं थी। झेनहोंग ने कहा कि श्रीलंका ने चीन के भरोसे को तोड़ा है। लेकिन चीन अब भी Sri Lanka को साथ बनाए रखना चाहता है। चीन के राजदूत ने यहां तक कहा कि वह भारत के साथ मिलकर Sri Lanka के विकास के लिए संयुक्त रूप से काम करने के लिए तैयार हैं।
हालांकि, चीन के इस प्रस्ताव के पीछे उसकी मजबूरी साफ नजर आ रही थी। चीन जानता था कि अब अगर उसने श्रीलंका का समर्थन नहीं किया, तो भारत श्रीलंका पर पूरी तरह प्रभाव जमा लेगा। चीन को अपने कर्ज का पैसा वापस मिलने की संभावना भी अब नहीं थी। चीन ने हंबनटोटा पोर्ट के जरिए जो रणनीति तैयार की थी, वह भारत के एक दांव से पूरी तरह फेल हो गई। भारत ने इस खेल में चीन को ऐसी मात दी है, जिससे उबरने में चीन को अब वर्षों लग सकते हैं।
इसके अलावा, भारत ने चीन के खिलाफ एक रणनीतिक चाल चली। भारत ने श्रीलंका के साथ रुपये में व्यापार शुरू किया। इससे श्रीलंका को डॉलर की कमी से राहत मिली। भारत ने Sri Lanka के साथ फूड सप्लाई और पेट्रोलियम सप्लाई के लिए नए समझौते किए। भारत ने श्रीलंका के नेताओं को भरोसा दिलाया कि वह बिना किसी शर्त के उसकी मदद करता रहेगा। इससे श्रीलंका ने भारत के साथ अपने व्यापारिक रिश्ते मजबूत किए।
चीन के लिए ये सबसे बड़ा झटका था। चीन ने श्रीलंका पर जो आर्थिक दबाव बनाया था, वह भारत की रणनीति के सामने पूरी तरह कमजोर पड़ गया। चीन को अपने Investment से भारी नुकसान उठाना पड़ा। श्रीलंका ने चीन के सामने कड़ा रुख अपनाया और कहा कि वह अपनी आर्थिक नीति को भारत के सहयोग से आगे बढ़ाएगा।
चीन अब इस नुकसान से उबरने की कोशिश कर रहा है। चीन जानता है कि अगर श्रीलंका पूरी तरह से भारत के प्रभाव में आ गया, तो उसे दक्षिण एशिया में अपने प्रभाव को बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा। चीन के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह श्रीलंका को भारत से दूर कैसे रखे।
भारत के इस दांव ने चीन को न सिर्फ आर्थिक नुकसान पहुंचाया है, बल्कि उसकी रणनीतिक स्थिति को भी कमजोर कर दिया है। चीन का जो सपना था कि वह श्रीलंका को भारत से दूर करके अपने नियंत्रण में लेगा, वह अब पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है। भारत ने इस खेल में चीन को ऐसी मात दी है, जिससे चीन को उबरने में अब वर्षों लगेंगे।
Conclusion
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