Breakthrough: Tariff नीति में बदलाव से भारत को मिलेगा नया अवसर, व्यापारिक विकास के लिए तैयार देश! 2025

नमस्कार दोस्तों, क्या भारत अब अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर के मुहाने पर खड़ा है? क्या ट्रंप की नई ट्रेड पॉलिसी भारत के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है? ये सवाल आज हर उस भारतीय के मन में उठ रहे हैं, जो भारत और अमेरिका के बीच के आर्थिक संबंधों पर नजर बनाए हुए है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले कार्यकाल में ही ट्रेड पॉलिसी को लेकर कई कड़े फैसले लिए थे, जिनमें Tariff बढ़ाना, इमिग्रेशन पर रोक लगाना और चीन सहित अन्य देशों के साथ ट्रेड डील्स को तोड़ना शामिल था। अब जब ट्रंप दोबारा सत्ता में लौट गए हैं, तो सवाल यह है कि क्या इस बार भी भारत पर Tariff का बोझ बढ़ने वाला है?

क्या भारत और अमेरिका के बीच जो व्यापारिक संबंध पिछले कुछ वर्षों में मजबूत हुए थे, वे अब कमजोर हो जाएंगे? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रंप के बीच बनी केमिस्ट्री भारत को इस बार बचा पाएगी? या फिर भारत को भी रेसिप्रोकल Tariff लगाकर अमेरिका के फैसलों का जवाब देना होगा? इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए हमें भारत और अमेरिका के बीच के व्यापारिक संबंधों की गहराई में जाना होगा, और समझना होगा कि ट्रंप की नीतियों के पीछे असल मकसद क्या है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक संबंध पिछले दो दशकों में तेजी से बढ़े हैं। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन चुका है। साल 2022 से 23 में भारत और अमेरिका के बीच लगभग 200 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था, जिसे 2030 तक 500 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। भारत के लिए अमेरिका एक बड़ा Export बाजार है। भारत अमेरिका को आईटी सर्विसेज, फार्मास्युटिकल्स, जेम्स एंड ज्वेलरी, टेक्सटाइल्स और ऑटोमोबाइल्स जैसे क्षेत्रों में भारी मात्रा में Export करता है।

इसके बदले में भारत अमेरिका से कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, डिफेंस टेक्नोलॉजी और High tech product Import करता है। ऐसे में अगर ट्रंप ने भारत पर Tariff बढ़ाने का फैसला किया, तो इसका असर भारत के Export उद्योग पर गहरा पड़ेगा। भारतीय कंपनियों की लागत बढ़ेगी और उनका मुनाफा घटेगा। इससे भारत का व्यापार संतुलन भी बिगड़ सकता है।

Former Secretary of Commerce अनूप वधावन ने कहा कि भारत ने पहले भी ट्रंप के Tariff के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की थी। ट्रंप के पहले कार्यकाल में जब अमेरिका ने भारत के स्टील और एल्युमिनियम पर टैरिफ बढ़ाया था, तब भारत ने भी अमेरिका के कुछ Products पर जवाबी Tariff लगाए थे। अनूप वधावन का मानना है कि इस बार ट्रंप पहले से ज्यादा तैयारी के साथ आएंगे।

उन्होंने कहा कि अमेरिका पहले मैक्सिको और कनाडा के साथ Tariff को लेकर समझौते कर चुका है, लेकिन भारत के साथ अब तक कोई स्पष्ट नीति सामने नहीं आई है। अगर भारत को अमेरिका के साथ अपने व्यापारिक संबंध बनाए रखने हैं, तो उसे रेसिप्रोकल Tariff के साथ-साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर भी काम करना होगा। भारत के पास पहले से कई द्विपक्षीय व्यापार समझौते हैं, लेकिन अमेरिका के साथ ऐसा कोई मजबूत समझौता नहीं है।

द एशिया ग्रुप के पार्टनर अशोक मलिक का मानना है कि ट्रंप भारत को समस्या के रूप में नहीं देखते हैं। चीन के साथ चल रही व्यापारिक Competition के कारण अमेरिका अब भारत के साथ एक रणनीतिक साझेदारी बनाने के मूड में है। अशोक मलिक ने कहा कि अमेरिका की कंपनियों को अब भारत की Technical और manufacturing capabilities की जरूरत है।

चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए अमेरिका को एक मजबूत एशियाई सहयोगी की जरूरत है और भारत इसके लिए सबसे उपयुक्त देश है। इसलिए ट्रंप भारत के साथ व्यापार को बढ़ावा देने के पक्ष में हो सकते हैं। हालांकि, Tariff को लेकर अमेरिका का रवैया इस बार सख्त रहेगा। अगर भारत ने अमेरिका के Tariff का विरोध किया, तो यह स्थिति व्यापार युद्ध तक भी जा सकती है।

Former ambassador अरुण सिंह का कहना है कि भारत इस बार किसी भी स्थिति के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी नेतृत्व के बीच अच्छे संबंध हैं। मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कई व्यापारिक समझौतों पर सहमति बनी थी। अगर ट्रंप ने Tariff बढ़ाने का फैसला किया, तो भारत को भी अपनी रणनीति तैयार करनी होगी।

अरुण सिंह ने कहा कि भारत को इस बार कुछ ऐसे रणनीतिक फैसले लेने होंगे, जिससे अमेरिका पर दबाव बनाया जा सके। अमेरिका के साथ भारत के रक्षा, तकनीकी और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में मजबूत संबंध हैं। भारत इन क्षेत्रों का इस्तेमाल करके अमेरिका के टैरिफ के खिलाफ एक मजबूत रणनीति बना सकता है।

इसके अलावा, एक अन्य पहलू भारत के आईटी उद्योग से जुड़ा हुआ है। अमेरिका भारत की आईटी कंपनियों के लिए सबसे बड़ा बाजार है। भारत की कंपनियां अमेरिका को करोड़ों डॉलर की सेवाएं देती हैं। अगर ट्रंप ने वीजा पॉलिसी में सख्ती की या आईटी सेवाओं पर टैरिफ बढ़ाया, तो इससे भारत की कंपनियों पर बुरा असर पड़ेगा। भारतीय इंजीनियरों को अमेरिका में नौकरी मिलना मुश्किल हो जाएगा और इससे भारत के Service sector को बड़ा झटका लग सकता है।

अरुण सिंह ने कहा कि अमेरिका और चीन के बीच चल रही business competition का भी भारत पर असर पड़ेगा। अगर अमेरिका ने चीन पर और कड़े टैरिफ लगाए, तो चीन अमेरिकी बाजार में अपनी पकड़ कमजोर होते देखेगा। ऐसे में चीन भारत सहित अन्य देशों के बाजारों की तरफ रुख करेगा। इससे भारत को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। एक तरफ उसे अमेरिका के टैरिफ से बचना होगा, तो दूसरी तरफ चीन से बढ़ती Competition से भी निपटना होगा।

इसके अलावा, अशोक मलिक का कहना है कि भारत को इस बार सावधानी से कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत को सप्लाई चेन को मजबूत करना होगा और अन्य देशों के साथ भी व्यापार समझौते करने होंगे। अमेरिका और चीन के बीच की Competition का फायदा भारत तभी उठा सकता है, जब वह अपने Industrial और Technical framework को मजबूत करे। भारत को अपने Export उद्योग को बढ़ावा देना होगा और अमेरिका के टैरिफ के असर को कम करने के लिए नए बाजारों की तलाश करनी होगी।

ट्रंप की नीतियां भारत के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकती हैं, लेकिन भारत के पास इसका समाधान भी है। भारत को अपने रणनीतिक साझेदारों के साथ मजबूत संबंध बनाने होंगे। अमेरिका के साथ Defence, technology और Service sector में भारत को नए समझौते करने होंगे। अगर भारत अमेरिका के टैरिफ का सही जवाब देता है, तो इससे न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी, बल्कि भारत एक मजबूत global power के रूप में उभरेगा।

इसके अलावा, Former ambassador अरुण सिंह और अनूप वधावन का मानना है कि भारत इस बार पूरी तैयारी के साथ है। भारत ने पहले भी टैरिफ के खिलाफ रेसिप्रोकल नीति अपनाई थी और इस बार भी भारत अपने व्यापारिक हितों की रक्षा करेगा।

भारत को इस बार संतुलित और मजबूत रणनीति अपनानी होगी ताकि अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों को बनाए रखा जा सके, और भारतीय उद्योग को किसी भी संभावित झटके से बचाया जा सके। भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संतुलन बनाए रखने के लिए दोनों देशों को एक-दूसरे की चिंताओं को समझना होगा और मिलकर इस समस्या का समाधान निकालना होगा।

Conclusion      

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