Inspiring: Satyanarayan Nuwal संघर्ष से सफलता तक, 10वीं में पढ़ाई छोड़कर बनाई 86,000 करोड़ की कंपनी!

नमस्कार दोस्तों, क्या आपने कभी ऐसा सपना देखा है जो असंभव सा लगे? क्या आपने कभी किसी ऐसे शख्स के बारे में सुना है जिसने अपनी जिंदगी के कई साल गरीबी और संघर्ष के बीच गुजारे हों, जिसने भूख, नींद और असफलता को नजदीक से देखा हो और फिर भी उसने हार न मानी हो? क्या कोई ऐसा भी व्यक्ति हो सकता है जिसने दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी हो, जिसने रेलवे स्टेशन के ठंडे फर्श पर रातें बिताई हों I

जिसके पास रहने के लिए घर न हो, खाने के लिए पैसे न हों – और वही व्यक्ति एक दिन अरबों की कंपनी का मालिक बन जाए? यह कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट जैसी लगती है, लेकिन यह हकीकत है Satyanarayan Nuwal की जिंदगी की। Satyanarayan Nuwal जिन्होंने गरीबी और संघर्ष के दौर से निकलकर अपनी मेहनत और दूरदृष्टि से भारत की सबसे बड़ी विस्फोटक निर्माण कंपनी की नींव रखी।

 उनकी कंपनी Solar Industries India Ltd का मार्केट कैप आज 85,840 करोड़ रुपये से भी ज्यादा है। लेकिन इस सफलता के पीछे एक लंबा सफर है – संघर्षों से भरा हुआ सफर, जिसमें हर कदम पर चुनौतियां थीं, हर मोड़ पर असफलताएं थीं, लेकिन नुवाल ने कभी हार नहीं मानी। यह कहानी सिर्फ एक बिजनेसमैन की सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह हौसले, संकल्प और आत्मविश्वास की कहानी है।  आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

सत्यनारायण नुवाल का जन्म राजस्थान के भीलवाड़ा में एक साधारण मारवाड़ी परिवार में हुआ था। उनके पिता पटवारी थे और दादा की एक छोटी सी परचून की दुकान थी। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी। सत्यनारायण का बचपन साधारण परिस्थितियों में बीता। घर के हालात इतने अच्छे नहीं थे कि उन्हें उच्च शिक्षा दिलाई जा सके। सत्यनारायण बचपन से ही बहुत तेज-तर्रार और मेहनती थे।

उन्हें किताबों से ज्यादा जिंदगी के सबक से सीखने में रुचि थी। 1971 में उनके पिता रिटायर हो गए, जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति और खराब हो गई। घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया। सत्यनारायण ने हालातों को समझते हुए दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी। उस समय वह पढ़ाई जारी रखना चाहते थे, लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। उस समय उनके मन में यही विचार चल रहा था कि उन्हें जल्द से जल्द अपने परिवार की जिम्मेदारी संभालनी होगी।

19 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई। शादी के बाद उनके ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ और बढ़ गया। अब उनके पास कोई विकल्प नहीं था। उन्होंने रोजगार की तलाश शुरू की। शुरुआत में उन्होंने फाउंटेन पेन की स्याही बेचने का काम शुरू किया। उन्हें लगा कि यह काम उन्हें अच्छी कमाई देगा, लेकिन यह काम ज्यादा दिन नहीं चला। स्याही बेचने का काम घाटे में चला गया और सत्यनारायण की आर्थिक स्थिति और खराब हो गई।

घर चलाना मुश्किल हो गया। इसके बाद उन्होंने अपने गुरुदेव के साथ मथुरा में कुछ समय बिताया। वहां उन्होंने छोटे-मोटे काम किए। यह वह समय था जब सत्यनारायण को एहसास हुआ कि उनकी असली रुचि बिजनेस में है। उन्होंने महसूस किया कि अगर उन्हें सफल होना है, तो उन्हें खुद का बिजनेस शुरू करना होगा। लेकिन उनके पास न तो पैसे थे और न ही अनुभव। इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

1977 में जब हालात और खराब हो गए, तो सत्यनारायण नुवाल महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के बल्हारशाह पहुंचे। वहां उनके पास रहने के लिए घर तक नहीं था। उन्होंने कई रातें रेलवे स्टेशन के फर्श पर गुजारीं। जेब में पैसे नहीं थे, खाने के लिए भी मुश्किल से इंतजाम हो पाता था। उस वक्त उनके पास कोई उम्मीद नहीं थी, लेकिन उनके मन में एक विश्वास था कि वह एक दिन सफल होंगे।

इसी दौरान उनकी मुलाकात अब्दुल सत्तार अल्लाहभाई से हुई। अल्लाहभाई खदानों में इस्तेमाल होने वाले विस्फोटकों का कारोबार करते थे। सत्यनारायण ने इस बिजनेस को करीब से देखा और इसमें मौके तलाशे। उन्होंने अल्लाहभाई से एक डील की। उन्होंने 1000 रुपये महीना देकर एक गोदाम और विस्फोटकों को बेचने का लाइसेंस ले लिया। यह फैसला उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।

सत्यनारायण ने इस काम को पूरे मन से किया। उन्होंने खुद खदानों में जाकर काम देखा, सप्लाई चेन को समझा और ग्राहकों की जरूरतों को जाना। कुछ ही समय में ब्रिटेन की कंपनी इंपीरियल केमिकल इंडस्ट्रीज (ICI) के अधिकारियों ने उनके काम को नोटिस किया। ICI ने सत्यनारायण को Authorized डिस्ट्रीब्यूटर बना दिया। इस फैसले ने उनके बिजनेस को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। उन्होंने कोयला खदानों के लिए बड़े पैमाने पर विस्फोटकों की सप्लाई शुरू कर दी।

1984 में सत्यनारायण ने नागपुर में कारोबार शुरू किया। उन्होंने सरकारी कंपनी वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (WCL) के साथ डील की। इसके बाद उनका कारोबार तेजी से बढ़ा। 1995 में उन्होंने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से 60 लाख रुपये का लोन लिया और सोलर इंडस्ट्रीज इंडिया की स्थापना की। शुरुआत में कंपनी ने सीमित मात्रा में विस्फोटकों का निर्माण किया। लेकिन धीरे-धीरे कंपनी ने Production बढ़ाया। 1996 में कंपनी को 6,000 टन विस्फोटकों के Production का लाइसेंस मिला। इसके बाद कंपनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

सोलर इंडस्ट्रीज आज भारत की सबसे बड़ी विस्फोटक निर्माण कंपनी है। कंपनी ड्रोन के लिए वारहेड, हथगोले, सैन्य विस्फोटक, प्रॉपेलेंट, ग्रेनेड, रॉकेट तथा मिसाइलों के लिए विस्फोटक बनाती है। कंपनी के पास भारत में 25 मैन्युफैक्चरिंग प्लांट हैं। इसके अलावा गाम्बिया, नाइजीरिया, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका, घाना और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी इसके प्लांट्स हैं।

आज सत्यनारायण नुवाल की कंपनी 50 से ज्यादा देशों में अपने प्रोडक्ट्स का Export करती है। उनकी संपत्ति 4.3 अरब डॉलर है। कंपनी का कुल मार्केट कैप 85,840 करोड़ रुपये से ज्यादा है। यह सफलता सत्यनारायण के संघर्ष और संकल्प का नतीजा है। उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने हर असफलता को चुनौती की तरह स्वीकार किया। उन्होंने दिखा दिया कि अगर इरादा मजबूत हो, तो कोई भी सपना सच हो सकता है।

सत्यनारायण नुवाल की कहानी उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है, जो अपनी जिंदगी में संघर्ष कर रहे हैं। यह कहानी बताती है कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। मेहनत और ईमानदारी ही सफलता की असली कुंजी है। सत्यनारायण ने यह साबित कर दिया कि मुश्किलें चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हों, अगर इरादा मजबूत हो और हौसला कायम हो, तो सफलता एक न एक दिन जरूर मिलती है। सत्यनारायण नुवाल की यह कहानी इस बात का सबूत है कि असंभव कुछ भी नहीं है। मेहनत और लगन से कोई भी इंसान फर्श से अर्श तक पहुंच सकता है।

Conclusion

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