Bovine: भारत की आर्थिक और कृषि शक्ति को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का सुनहरा अवसर! 2025

नमस्कार दोस्तों, एक ऐसा समय था जब भारतीय नस्ल की गायें पूरी दुनिया में प्रसिद्ध थीं। इनकी ताकत, रोग प्रतिरोधक क्षमता और शुद्ध दूध की गुणवत्ता के कारण भारत का Bovine, विश्व का सबसे मूल्यवान पशुधन माना जाता था। लेकिन आज, वही Bovine सड़कों पर आवारा घूमने को मजबूर है, किसानों के लिए बोझ बन गया है और सरकारों के लिए समस्या। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि किसान अपने ही खेतों को इन आवारा पशुओं से बचाने के लिए बाड़ लगाने को मजबूर हैं।

यह विडंबना तब और बढ़ जाती है, जब भारत में उपेक्षित भारतीय नस्ल की गायें दुनिया में सबसे ज्यादा कीमतों पर बिक रही हैं। हाल ही में ब्राजील में भारतीय नस्ल की नेल्लोर गाय ‘वियाटिना-19’ को 40 करोड़ रुपये में बेचा गया, जिससे यह दुनिया की सबसे महंगी गाय बन गई। यह खबर न सिर्फ चौंकाने वाली है, बल्कि यह भारत की गौ-नीति और कृषि पर सोचने को मजबूर कर देती है।

क्या वाकई भारतीय नस्ल की गायें हमारे लिए बेकार हो गई हैं, या हमने ही इनके महत्व को समझना बंद कर दिया है? क्या भारत में Bovine का बेहतर उपयोग संभव है, जिससे यह कृषि, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए वरदान बन सके? आइए इस पूरे विषय की गहराई में जाकर इसका विश्लेषण करते हैं।

Bovine, जो कभी भारत की ताकत था, अब उपेक्षित क्यों हो गया?

प्राचीन भारत में गाय और बैल केवल पशु नहीं थे, बल्कि कृषि का एक अभिन्न अंग थे। हजारों वर्षों तक भारतीय किसान गायों से दूध प्राप्त करने के साथ-साथ बैलों से खेत जोतते थे, फसल की गहाई करते थे और माल ढुलाई का काम भी करते थे। Bovine का महत्व केवल दूध तक सीमित नहीं था, बल्कि इनका गोबर खेतों के लिए प्राकृतिक खाद का काम करता था I

और जैविक खेती को बढ़ावा देता था। लेकिन जैसे-जैसे तकनीक उन्नत हुई, ट्रैक्टर और आधुनिक मशीनों ने बैलों की जगह ले ली। खेती में अत्याधुनिक औजारों के इस्तेमाल के कारण किसानों को अब बैलों की जरूरत नहीं रही। जो बैल कभी खेती के लिए वरदान थे, वे अब अनुपयोगी समझे जाने लगे।

दूसरी ओर, गायों के दूध उत्पादन पर भी बाजार का प्रभाव पड़ा। भारतीय नस्ल की गायें विदेशी जर्सी और हॉल्सटीन गायों की तुलना में कम दूध देती हैं। हालांकि, अनुसंधानों से यह साबित हो चुका है कि देसी गायों का दूध ज्यादा पौष्टिक होता है और इसमें A2 प्रोटीन पाया जाता है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद होता है।

लेकिन सिर्फ ज्यादा दूध उत्पादन पर ध्यान देने के कारण, किसानों ने देसी नस्लों को छोड़कर विदेशी नस्लों को अपनाना शुरू कर दिया। नतीजा यह हुआ कि भारत में लाखों देसी गायें और बैल बेकार समझे जाने लगे और वे सड़कों पर आवारा घूमने को मजबूर हो गए।

भारतीय नस्ल की गाय ब्राजील में 40 करोड़ रुपये में क्यों बिकी, और इसकी खासियत क्या है?

जब भारत में देसी नस्ल की गायों को अनुपयोगी मानकर छोड़ा जा रहा है, तब दुनिया भर में इनकी मांग तेजी से बढ़ रही है। ब्राजील में हाल ही में एक भारतीय नस्ल की नेल्लोर गाय ‘वियाटिना-19’ को 40 करोड़ रुपये में बेचा गया। यह सिर्फ एक रिकॉर्ड-ब्रेकिंग बिक्री नहीं थी, बल्कि यह इस बात का प्रमाण था कि भारतीय नस्ल की गायों की कीमत और उपयोगिता को दुनिया ने समझ लिया है, लेकिन भारत अब भी उनसे मुंह मोड़ रहा है।

ब्राजील और अफ्रीका के कई देशों में भारतीय नस्ल की गायों की भारी मांग है। इसका कारण यह है कि ये गायें कठिन परिस्थितियों में भी आसानी से जीवित रह सकती हैं, कम देखभाल में भी स्वस्थ रहती हैं और अधिक रोग प्रतिरोधक क्षमता रखती हैं। इनके मजबूत इम्यून सिस्टम और टिकाऊ प्रकृति के कारण ये कठिन जलवायु में भी पनप सकती हैं।

भारतीय नस्ल की गायों में बीमारियों से लड़ने की क्षमता बहुत अधिक होती है, जिससे पशुपालकों के लिए उनका रखरखाव आसान हो जाता है।

यही कारण है कि ब्राजील, अमेरिका और कई यूरोपीय देशों में भारतीय नस्ल की गायों को संकरित कर नई नस्लें विकसित की जा रही हैं, ताकि वे अधिक उत्पादक बन सकें। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब भारत की देसी गायें इतनी मूल्यवान हैं, तो हम इन्हें खुद क्यों नहीं संजो रहे?

भारत में Bovine की उपेक्षा का कृषि और पर्यावरण पर क्या असर पड़ रहा है?

आज उत्तर भारत में हालात इतने खराब हो चुके हैं कि गांवों में हजारों आवारा मवेशी इधर-उधर घूमते रहते हैं। किसानों को अपने ही खेतों को इन मवेशियों से बचाने के लिए बाड़ लगानी पड़ती है।
जो फसलें कभी बैलों के लिए चारा बनती थीं, अब उन्हें जलाया जा रहा है। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की समस्या इतनी विकराल हो चुकी है कि दिल्ली की हवा जहरीली बन गई है। पहले यही फसल अवशेष बैलों के चारे के रूप में इस्तेमाल होते थे, लेकिन अब वे सीधे आग में झोंक दिए जाते हैं।

दूसरी ओर, रासायनिक खाद और Pesticides का अत्यधिक उपयोग खेतों को बंजर बना रहा है। गोबर से बनी जैविक खाद जो मिट्टी को उपजाऊ बनाती थी, अब उसका उपयोग ना के बराबर हो गया है। अगर देसी नस्ल की गायों को सही तरीके से पाला जाए, तो ये फिर से जैविक कृषि के लिए मददगार साबित हो सकती हैं।

देसी नस्ल की गायें भारत के लिए कैसे वरदान साबित हो सकती हैं?

देसी नस्ल की गायें भारत के लिए सिर्फ दूध उत्पादन का स्रोत नहीं हैं, बल्कि वे कृषि, पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए एक वरदान साबित हो सकती हैं। सबसे पहली बात यह कि इन गायों का दूध अत्यधिक पौष्टिक होता है और इसमें A2 प्रोटीन पाया जाता है, जो विदेशी नस्लों के दूध में नहीं होता।

वैज्ञानिक शोधों से यह साबित हो चुका है कि A2 प्रोटीन वाला दूध पाचन के लिए बेहतर होता है और कई गंभीर बीमारियों जैसे हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर से बचाव में सहायक हो सकता है। यही कारण है कि पश्चिमी देशों में A2 दूध की भारी मांग है, लेकिन विडंबना यह है कि जिस दूध को दुनिया सुपरफूड मान रही है, उसी को भारत में कम उत्पादन के कारण नजरअंदाज किया जा रहा है।

इसके अलावा, गोबर और गोमूत्र से जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है। देसी गायों का गोबर प्राकृतिक खाद के रूप में उपयोग किया जाता रहा है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और यह Chemical Fertilizers की तुलना में अधिक टिकाऊ होता है। गोमूत्र से Organic Pesticides और Medicines तैयार की जाती हैं, जिससे फसलों को बिना किसी हानिकारक रसायन के संरक्षित किया जा सकता है। अगर इसे सही तरह से प्रोत्साहित किया जाए, तो भारत में जैविक खेती को बढ़ावा मिल सकता है और किसानों को Fertilizers व Pesticides पर होने वाले खर्च से मुक्ति मिल सकती है।

इसके अलावा, देसी नस्ल के बैल कृषि कार्यों के लिए बेहद उपयोगी हो सकते हैं। आधुनिक तकनीक से अगर हल्के वजन वाले उपकरण विकसित किए जाएं, जिन्हें बैल आसानी से खींच सकें, तो ट्रैक्टरों की जरूरत कम हो सकती है।

इससे न केवल किसानों का ईंधन खर्च घटेगा, बल्कि मिट्टी का प्राकृतिक संतुलन भी बना रहेगा, क्योंकि बैलों से जुताई करने पर मिट्टी अधिक उपजाऊ रहती है। आज जब दुनिया कार्बन फुटप्रिंट कम करने की बात कर रही है, तो भारत अपनी परंपरागत पद्धतियों को अपनाकर दुनिया को टिकाऊ कृषि का नया मॉडल दे सकता है।

Conclusion

तो दोस्तों, ब्राजील में 40 करोड़ रुपये में बिकी भारतीय नस्ल की गाय ने यह साबित कर दिया कि, हमारी गायों का महत्व पूरी दुनिया समझ चुकी है। अब वक्त आ गया है कि हम भी अपनी देसी नस्लों की कीमत समझें, उन्हें संरक्षित करें और उनके उपयोग के नए तरीके खोजें। क्या आप मानते हैं कि भारत को अपनी देसी नस्ल की गायों के संरक्षण और उपयोग को प्राथमिकता देनी चाहिए?

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