Economic Reform: Anti-Hindu budget 1946 भारत के विभाजन को गहरा करने वाला ऐतिहासिक कदम I

नमस्कार दोस्तों, क्या कोई बजट सिर्फ आर्थिक सुधारों का दस्तावेज होता है, या इसके पीछे राजनीतिक मंशा भी छिपी हो सकती है? क्या आपने कभी सुना है कि एक बजट इतना विवादास्पद बन गया था कि इसे ‘Anti-Hindu budget‘ कहा गया और इसे पेश करने वाले नेता को बाद में पाकिस्तान का पहला प्रधानमंत्री बना दिया गया? यह कहानी है साल 1946 के ऐतिहासिक बजट की, जिसे लियाकत अली खान ने पेश किया था।

यह बजट आर्थिक सुधारों के नाम पर पेश किया गया था, लेकिन इसके कई फैसले सीधे भारत के प्रमुख व्यापारिक समुदाय पर निशाना साध रहे थे। यही वजह थी कि इसे एक सांप्रदायिक बजट माना गया, जिसने न केवल तत्कालीन भारतीय अर्थव्यवस्था को झकझोर कर रख दिया, बल्कि राजनीति को भी बुरी तरह प्रभावित किया। आखिर ऐसा क्या था इस बजट में कि इसे ‘Anti-Hindu budget’ करार दिया गया? क्या यह वास्तव में एक आर्थिक दस्तावेज था, या इसके पीछे कोई गहरी राजनीतिक रणनीति छिपी हुई थी? और कैसे इस बजट ने भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ती खाई को और गहरा कर दिया? आइए, इस ऐतिहासिक घटना की पूरी कहानी जानते हैं।

लियाकत अली खान कौन थे?

लियाकत अली खान, जो इस विवादित बजट के सूत्रधार थे, भारतीय राजनीति के सबसे महत्वपूर्ण और चर्चित नेताओं में से एक थे। उनका जन्म 1 अक्टूबर 1895 को उत्तर प्रदेश के करनाल में हुआ था। वे एक संपन्न मुस्लिम परिवार से थे और उनकी शिक्षा बेहद प्रतिष्ठित संस्थानों से हुई थी। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से प्राप्त की और फिर आगे की पढ़ाई के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी गए।

उनका राजनीतिक सफर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ शुरू हुआ था। हालांकि, जल्द ही वे मोहम्मद अली जिन्ना की विचारधारा से प्रभावित हुए और कांग्रेस छोड़कर मुस्लिम लीग में शामिल हो गए। जिन्ना के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक बनकर लियाकत अली खान ने मुस्लिम हितों की रक्षा, और पाकिस्तान की स्थापना की मांग को प्रमुखता से आगे बढ़ाया।

1946 में जब ब्रिटिश सरकार ने भारत को स्वतंत्रता देने की प्रक्रिया शुरू की और अंतरिम सरकार का गठन हुआ, तब लियाकत अली खान को Finance Minister के रूप में नियुक्त किया गया। इस महत्वपूर्ण पद पर रहते हुए उन्होंने जो बजट पेश किया, वह भारतीय इतिहास का एक ऐसा मोड़ साबित हुआ, जिसने देश के राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य को पूरी तरह बदलकर रख दिया।

1946 के बजट की पृष्ठभूमि क्या थी, और इसका मुख्य उद्देश्य क्या था?

1946 का बजट एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और आर्थिक मोड़ पर पेश किया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत की अर्थव्यवस्था बेहद जर्जर थी। ब्रिटिश सरकार ने भारत छोड़ने की तैयारियां शुरू कर दी थीं, और इसी क्रम में एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया था। इस सरकार में कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया था।

लियाकत अली खान ने जब Finance Minister का पद संभाला, तो उन्होंने ऐसा बजट पेश किया जिसे “पुअर मैन बजट” कहा गया। इस बजट को गरीबों के हितों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया बताया गया। इसका उद्देश्य यह बताया गया कि समाज में आर्थिक असमानता को कम किया जाए, और धनवान वर्ग पर अधिक tax लगाकर सामाजिक कल्याण योजनाओं के लिए अधिक धन जुटाया जाए।

हालांकि, इस बजट का असली उद्देश्य कहीं अधिक जटिल और विवादास्पद था। इसमें कुछ ऐसे आर्थिक निर्णय लिए गए, जो विशेष रूप से हिंदू व्यापारियों और उद्योगपतियों को निशाना बनाते थे। व्यापारियों पर भारी टैक्स लगाए गए और उच्च वर्ग के मुनाफे को सीमित करने के लिए कठोर प्रावधान किए गए।

1946 के बजट की प्रमुख विशेषताएं और इससे जुड़े विवाद क्या थे?

इस बजट की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इसमें बड़े उद्योगपतियों और व्यापारियों पर भारी tax लगाए गए थे। लियाकत अली खान ने एक लाख रुपये से अधिक की Annual Income पर 25% टैक्स लगाने का प्रस्ताव दिया। इसके साथ ही कॉरपोरेट टैक्स को दोगुना कर दिया गया, जिससे बड़ी कंपनियों को भारी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा।

शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर अधिक खर्च करने की योजना भी इस बजट में थी, लेकिन इसके लिए पैसा जुटाने का तरीका विवादित था। बजट में यह साफ झलक रहा था कि बड़े व्यापारियों, जिनमें अधिकांश हिंदू थे, पर अधिक tax लगाया जा रहा था। इससे उन पर आर्थिक दबाव बढ़ गया और व्यापार जगत में गहरा असंतोष फैल गया।

इसी कारण कई उद्योगपतियों और नेताओं ने इसे “Anti-Hindu budget” कहना शुरू कर दिया। व्यापारिक जगत की बड़ी हस्तियों जैसे घनश्याम दास बिड़ला और जमनालाल बजाज ने इस बजट का खुलकर विरोध किया। उनका कहना था कि यह बजट जानबूझकर हिंदू व्यापारियों और व्यवसायों को, आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए बनाया गया था।

1946 के बजट के पीछे की राजनीतिक रणनीति क्या थी, और इससे सांप्रदायिक तनाव कैसे बढ़ा?

इस बजट को सिर्फ एक आर्थिक नीति मान लेना एक बड़ी भूल होगी। लियाकत अली खान और मुस्लिम लीग ने इस बजट का उपयोग सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा देने के लिए किया। मुस्लिम लीग का मकसद उस समय स्पष्ट हो चुका था – एक अलग राष्ट्र पाकिस्तान की मांग को मजबूत करना।

लियाकत अली खान के बजट ने न केवल आर्थिक मोर्चे पर हिंदू व्यापारियों को निशाना बनाया, बल्कि Communal polarisation को भी तेज कर दिया। उन्होंने जानबूझकर ऐसा बजट पेश किया, जो हिंदू व्यापारियों को नाराज कर सके और मुस्लिम लीग को मुस्लिम समुदाय का समर्थन दिला सके।

इस बजट के बाद कई व्यापारियों ने प्रदर्शन किए। उद्योगपति संगठनों ने इसे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक बताया। लेकिन मुस्लिम लीग ने इसे गरीबों के हित में बताया और इसे मुस्लिम हितों की रक्षा का प्रयास कहा।

1946 के बजट के परिणाम क्या थे, और इसका भारत के विभाजन पर क्या प्रभाव पड़ा?

इस बजट के परिणाम दूरगामी और विनाशकारी साबित हुए। यह न केवल एक आर्थिक नीति थी, बल्कि इसने भारत में Communal polarisation को और गहरा किया। कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच की खाई और बढ़ गई।

कांग्रेस के नेताओं ने इस बजट की आलोचना करते हुए इसे सांप्रदायिक और विभाजनकारी बताया। वहीं मुस्लिम लीग ने इसे गरीबों का बजट बताते हुए राजनीतिक फायदा उठाया। इस बजट के बाद देश में सांप्रदायिक तनाव और अधिक बढ़ गया।

इसी बढ़ते तनाव के बीच 1947 में भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान का निर्माण हुआ। लियाकत अली खान ने पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री का पद संभाला। हालांकि, पाकिस्तान बनने के बाद भी उनके नेतृत्व को लेकर सवाल उठते रहे।

लियाकत अली खान का पाकिस्तान में राजनीतिक सफर कैसा रहा, और उनका अंत कैसे हुआ?

पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बनने के बाद लियाकत अली खान ने कई आर्थिक और राजनीतिक नीतियां अपनाई, लेकिन उनके फैसलों की आलोचना भी होती रही। उनकी सरकार पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव के आरोप लगे। 1951 में, एक राजनीतिक रैली के दौरान लियाकत अली खान की गोली मारकर हत्या कर दी गई। उनकी हत्या के पीछे आज भी कई षड्यंत्र की कहानियां प्रचलित हैं।

Conclusion

तो दोस्तों, 1946 का बजट सिर्फ एक आर्थिक नीति नहीं था, यह भारत के राजनीतिक और सांप्रदायिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। लियाकत अली खान ने इसे गरीबों के लिए बताया, लेकिन इसके पीछे Communal polarisation की गहरी राजनीति छिपी थी।

आज जब हम आर्थिक सुधारों की बात करते हैं, तो यह ध्यान रखना जरूरी है कि बजट सिर्फ आर्थिक आंकड़ों का खेल नहीं होता। यह समाज और राजनीति को भी प्रभावित करता है। 1946 का बजट इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसने भारत के इतिहास की दिशा बदल दी।

अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।

अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business Youtube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”

Spread the love

Leave a Comment