Quick Commerce ने बदली खरीदारी की परिभाषा: मिनटों में डिलीवरी से कैसे बना 20 हज़ार करोड़ का बाज़ार!

जरा सोचिए, आप अपने मोबाइल पर एक क्लिक करते हैं और महज 10 से 15 मिनट में दूध, ब्रेड, अंडे, आइसक्रीम या फ्रोजन फूड आपके दरवाजे पर पहुंच जाता है। हर चीज़ साफ-सुथरी पैकेजिंग में, ठंडी और फ्रेश। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि वो सामान असल में रखा कहां गया था? क्या जिस जगह से वो आया, वहां साफ-सफाई का भी कोई ख्याल रखा गया था? इसी सवाल ने आज पूरे Quick Commerce इंडस्ट्री की नींव को झकझोर कर रख दिया है। क्योंकि तेज़ डिलीवरी के पीछे अगर अस्वच्छता छुपी हो, तो उस पूरी व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

देश में Quick Commerce का चलन बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। Swiggy Instamart, Zepto, Blinkit जैसे प्लेटफॉर्म्स पर ऑर्डर देना अब उतना ही सामान्य हो गया है, जितना पास की दुकान से कुछ खरीदना। लेकिन इन प्लेटफॉर्म्स की तेज़ डिलीवरी के पीछे जो ‘डार्क स्टोर्स’ हैं—वो आज सवालों के घेरे में हैं। ये डार्क स्टोर्स दरअसल बड़े गोदाम होते हैं, जहां सारा स्टॉक रखा जाता है ताकि तुरंत डिलीवर किया जा सके। और यहीं से उठती है गंदगी की वो कहानी, जो शायद उपभोक्ताओं को पता ही नहीं चलती। इन्हीं स्टोर्स में छिपा है Quick Commerce का असली चेहरा—चमकती स्क्रीन के पीछे की हकीकत।

पिछले कुछ महीनों में एक दर्जन से ज्यादा फूड कंपनियों ने Quick Commerce प्लेटफॉर्म्स को पत्र लिखकर अपनी चिंता जताई है। इन कंपनियों ने बताया कि कुछ डार्क स्टोर्स में साफ-सफाई का बहुत बुरा हाल है। वहां स्टोरेज के दौरान सामान को सही तापमान पर नहीं रखा जाता, एक्सपायरी डेट के सामान भी खुले में पड़े मिलते हैं, और फ्रोजन फूड के पास अगरबत्ती जैसी चीजें रख दी जाती हैं, जिससे स्वाद और सुगंध दोनों प्रभावित होते हैं। इन शिकायतों में एक आम स्वर यह भी है कि ग्राहक तो सबसे बेहतरीन अनुभव चाहता है, लेकिन बैकेंड में जो हालात हैं, वे उसकी अपेक्षाओं के बिलकुल विपरीत हैं।

ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज के एमडी वरुण बेरी ने खुलकर कहा है कि उनकी कंपनी सबसे ताजा स्टॉक देती है, और उम्मीद करती है कि उनके पार्टनर भी साफ-सफाई और FMFO (First Manufactured First Out) के नियमों का पालन करें। लेकिन Quick Commerce की तेज़ी से बढ़ती रफ्तार में यह ज़िम्मेदारी कहीं पीछे छूटती जा रही है। उन्होंने इस पर भी जोर दिया कि तापमान और स्टोरेज कंडीशन जैसे विषयों पर नियमित मॉनिटरिंग आवश्यक है, क्योंकि इनसे सीधे तौर पर ग्राहक की सेहत और ब्रांड की साख जुड़ी होती है।

Quick Commerce का मॉडल जितना आकर्षक है, उतनी ही तेज़ी से इसमें दिक्कतें भी सामने आ रही हैं। खासकर डार्क स्टोर्स में फ्रेंचाइज्ड मॉडल लागू करने से स्थिति और बिगड़ गई है। कई बार स्थानीय स्तर पर स्टाफ को ट्रेनिंग नहीं दी जाती, स्टोरेज एरिया की स्थिति खराब होती है और हाइजीन को लेकर कोई स्पष्ट मानक नहीं होता। यही कारण है कि फ्रोजन फूड कंपनियां, डेयरी प्रोड्यूसर और FMCG ब्रांड्स अब खुद इन स्टोर्स का ऑडिट करने में लग गए हैं। उन्हें समझ में आ रहा है कि डिलीवरी के इस फॉर्मेट में सबसे कमज़ोर कड़ी वही जगह है जहां से सामान निकल रहा है।

एक फ्रोजन फूड कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उनकी प्रोडक्ट यूनिट के पास अगरबत्ती रखी गई थी, जिससे गंध का ट्रांसफर होने का खतरा था। इस पर उन्होंने तत्काल कार्रवाई की और Quick Commerce प्लेटफॉर्म को स्टोरेज सुधारने के निर्देश दिए। लेकिन यह केवल एक घटना नहीं है—ऐसी कई शिकायतें लगातार सामने आ रही हैं। उन्होंने यह भी बताया कि फ्रोजन खाद्य पदार्थों के पास मांस, मसाले और तेज़ गंध वाली वस्तुएं रखने से उनकी गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है, जिससे ग्राहक का अनुभव खराब हो सकता है और ब्रांड की छवि को नुकसान पहुंच सकता है।

भारत सरकार भी अब इस मामले में सतर्क हो गई है। FSSAI और FDA जैसी संस्थाएं देश भर में डार्क स्टोर्स पर औचक निरीक्षण कर रही हैं। हाल ही में महाराष्ट्र FDA ने धारावी में Zepto के एक डार्क स्टोर का फूड लाइसेंस रद्द कर दिया क्योंकि वहां फंगल कंटैमिनेशन और गंदगी फैली हुई थी। यह घटनाएं दर्शाती हैं कि इन स्टोर्स में साफ-सफाई कोई प्राथमिकता नहीं रही। यह केवल एक ब्रांड की नहीं, बल्कि पूरी इंडस्ट्री की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने वाला मामला बनता जा रहा है।

इतना ही नहीं, बड़ी कंपनियां जैसे HUL, ITC, अमूल, पेप्सिको, पार्ले, कोका-कोला और टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स ने Quick Commerce चैनल्स के लिए खास पैकेजिंग शुरू की है। वे उम्मीद करती हैं कि उनका प्रोडक्ट उसी क्वालिटी और केयर के साथ ग्राहक तक पहुंचे, जैसा वह खुद प्रोड्यूस करते हैं। लेकिन डार्क स्टोर्स की गंदगी इस सप्लाई चेन की सबसे कमजोर कड़ी बनती जा रही है। अगर उपभोक्ताओं का भरोसा एक बार टूटा, तो उसे फिर से जीतना आसान नहीं होगा।

GreenDot Health Foods, जो कॉर्निटोस स्नैक्स बनाती है, उसके एमडी विक्रम अग्रवाल ने साफ कहा है कि उन्होंने सभी पार्टनर्स से अपने स्तर पर रूटीन ऑडिट करने को कहा है। उनकी कंपनी की लगभग 20% सालाना बिक्री अब Quick Commerce से होती है, इसलिए उनके लिए इन स्टोर्स की क्वालिटी सीधा ब्रांड की साख से जुड़ी है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि फ्रेंचाइज्ड डार्क स्टोर्स की स्थिति और भी गंभीर है, क्योंकि वहां निगरानी कमजोर रहती है और जवाबदेही कम होती है।

हेरिटेज फूड्स के सीईओ श्रीदीप केसवन ने भी इसी चिंता को साझा किया है। उनका कहना है कि कोल्ड चेन की इंटीग्रिटी और साफ-सफाई Quick Commerce की सफलता की रीढ़ हैं। दूध, बटर, फ्लेवर्ड मिल्क जैसे डेयरी उत्पाद अगर सही तापमान में नहीं रखे जाएं, तो वे मिनटों में खराब हो सकते हैं। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि डार्क स्टोर्स न केवल हाईजीन मानकों को पूरा करें, बल्कि उपभोक्ताओं के भरोसे को भी बनाए रखें। उन्होंने यह भी कहा कि इस तेजी से बदलती रिटेल दुनिया में अगर कोई कड़ी कमजोर रह गई, तो वह पूरी चेन को प्रभावित कर सकती है।

KRBL, जो इंडिया गेट बासमती चावल बनाती है, उनके मार्केटिंग हेड कुणाल शर्मा ने भी दो टूक कहा है कि स्वच्छता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। चाहे उत्पाद कहीं से भी भेजा जाए, ग्राहक के लिए ब्रांड की पहचान वही है। अगर डिलीवरी में कोई गड़बड़ी होती है, तो इसका असर पूरे ब्रांड पर पड़ता है। उनके मुताबिक उपभोक्ता अब सिर्फ कीमत नहीं देखता, वह गुणवत्ता, सुरक्षा और भरोसे की भी मांग करता है। और यही वह बिंदु है जहां Quick Commerce को और अधिक जिम्मेदार बनना होगा।

FSSAI ने अब टियर-1 से लेकर टियर-3 शहरों तक डार्क स्टोर्स का ऑडिट तेज़ कर दिया है। इसके पीछे मकसद है कि जहां से सामान आता है, वहां की स्थिति उसी तरह से मानक पर हो, जैसा ग्राहक उम्मीद करता है। लेकिन कंपनियों की मानें तो डार्क स्टोर्स में अब भी सुधार की बहुत गुंजाइश है। कई बार स्टोर्स में एक ही स्टाफ पैकिंग, स्टोरेज और डिलीवरी का काम देखता है। इससे न केवल गुणवत्ता प्रभावित होती है, बल्कि मानव त्रुटियों की संभावना भी बढ़ जाती है। यह भी देखा गया है कि कई जगह कर्मचारियों को फूड हैंडलिंग की बेसिक ट्रेनिंग तक नहीं दी जाती, जो इस बिजनेस मॉडल की सबसे बड़ी खामी बनती जा रही है।

इस समय जब Quick Commerce की ग्रोथ पारंपरिक दुकानों से दोगुनी हो रही है, यह ज़रूरी हो गया है कि इन डार्क स्टोर्स पर भी उतना ही ध्यान दिया जाए जितना ऐप्स की ब्रांडिंग और टेक्नोलॉजी पर दिया जाता है। क्योंकि अगर बेस ही कमजोर हो, तो कितनी भी सुंदर पैकेजिंग, ब्रांडिंग और मार्केटिंग उस भरोसे को नहीं बचा सकती जो ग्राहक के दिल में होता है। जब ग्राहक को यह अहसास होने लगे कि सुविधा के चक्कर में उसकी सुरक्षा से समझौता हो रहा है, तो वह असहज हो जाता है—और यही क्विक कॉमर्स के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

सवाल अब यही है—क्या Quick Commerce के पीछे भागती इस दौड़ में हमने बुनियादी चीज़ों को नज़रअंदाज़ तो नहीं कर दिया? क्या ग्राहक का भरोसा महज 10 मिनट की डिलीवरी में खो रहा है? और अगर हां, तो इसे कैसे बचाया जाएगा?

Conclusion

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