एक बार फिर Adani Group का नाम अंतरराष्ट्रीय जांच एजेंसियों की फाइलों में घूम रहा है—और इस बार मामला न सिर्फ पैसों का है, बल्कि भू-राजनीति, प्रतिबंधों और एक गहरे रहस्य से जुड़ा है। वॉल स्ट्रीट जनरल की एक रिपोर्ट ने दावा किया है कि अमेरिका के प्रोसिक्यूटर यह जांच कर रहे हैं कि, क्या Adani Group की कंपनियां ईरानी पेट्रोकेमिकल प्रोडक्ट्स के आयात में शामिल थीं। वो भी ऐसे समय में जब ईरान पर अमेरिका ने भारी आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं। सवाल ये है—क्या वाकई मुंद्रा पोर्ट से फारस की खाड़ी तक का सफर सिर्फ व्यापारिक था या इसमें कुछ और भी छुपा हुआ था? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
वॉल स्ट्रीट जनरल की रिपोर्ट ने साफ तौर पर संकेत दिया है कि अमेरिकी अधिकारियों की नजर, Adani Group के उन ऑपरेशनों पर है जिनके जरिए मुंद्रा पोर्ट के माध्यम से भारत में ईरानी एलपीजी लाए जाने की संभावना है। मुंद्रा पोर्ट, जो कि Adani Group का संचालनाधीन है, वहां ऐसे टैंकरों की गतिविधि देखी गई है जो फारस की खाड़ी से नियमित रूप से आते-जाते रहे हैं। शक की सुई उन जहाजों पर है जो प्रतिबंधों को दरकिनार कर कथित रूप से प्रतिबंधित ईरानी उत्पाद भारत पहुंचा रहे थे। अगर यह आरोप सही साबित होता है, तो यह सिर्फ एक कारोबारी घोटाला नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के उल्लंघन की एक बड़ी साजिश मानी जाएगी।
यह पहली बार नहीं है जब Adani Group अमेरिकी जांच एजेंसियों की निगाहों में आया हो। इससे पहले भी Adani Group के शीर्ष अधिकारियों पर रिश्वतखोरी के गंभीर आरोप लग चुके हैं। अमेरिकी प्रोसिक्यूटर का दावा है कि अडानी और उनके भतीजे सागर अडानी समेत सात अन्य व्यक्तियों ने, भारतीय अधिकारियों को करीब 265 मिलियन डॉलर की रिश्वत देने की सहमति जताई थी। यह रिश्वत कथित रूप से भारत की सबसे बड़ी सोलर एनर्जी परियोजना के निर्माण और उससे जुड़ी डील्स को आसान बनाने के लिए दी गई थी।
इतना ही नहीं, अडानी ग्रीन एनर्जी के पूर्व सीईओ विनीत जैन के साथ मिलकर कथित रूप से अडानी ने, Investors और लेंडर्स से भ्रष्टाचार की जानकारी छिपाई और 3 बिलियन डॉलर से अधिक के लोन व बॉन्ड हासिल किए। यह आरोप केवल एक कंपनी के विरुद्ध नहीं है, बल्कि देश की कारोबारी पारदर्शिता और संस्थागत आचरण पर भी सवाल उठाते हैं। इससे शेयर बाजार, Investor community और आम लोगों के मन में संदेह की लहर दौड़ गई है।
अमेरिकी प्रोसिक्यूटर का यह भी कहना है कि, Adani Group ने जब इस साल की शुरुआत में अमेरिकी जांच की खबरों के बारे में सार्वजनिक बयान जारी किया था, तो वह बयान भ्रामक और अपूर्ण था। इसने एक बार फिर अडानी की पब्लिक डिस्क्लोजर प्रैक्टिसेस पर सवाल खड़े कर दिए। एक ओर जहां Adani Group खुद को पारदर्शिता और विकास का प्रतीक बताता है, वहीं दूसरी ओर उसके कदम कई बार संदेहास्पद दिशा में मुड़ते नजर आते हैं।
इन गंभीर आरोपों और जांचों के बीच, Adani Group की कारोबारी गतिविधियां रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। हाल ही में, अडानी एनर्जी सॉल्यूशंस लिमिटेड ने लगभग 502 मिलियन डॉलर जुटाने की योजना को मंजूरी दी है। यह फंड रेजिंग क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट (QIP) के ज़रिए किया जाएगा और इसे एक या एक से अधिक किस्तों में किया जा सकता है। यह कदम इस समय इसलिए भी अहम है क्योंकि Adani Group के सामने भरोसे की बहाली की चुनौती भी है।
Adani Group ने अप्रैल में भी लगभग 750 मिलियन डॉलर का Investment जुटाया था, जिसमें एक तिहाई योगदान ब्लैकरॉक इंक का था—जो अपने आप में एक Global Investor है। इससे यह संकेत मिलता है कि Investor अडानी पर फिर से भरोसा करने लगे हैं या उन्हें लंबी अवधि में इससे लाभ की उम्मीद है। इसके अलावा, समूह की पोर्ट ब्रांच ने DBS ग्रुप होल्डिंग्स लिमिटेड से 150 मिलियन डॉलर का Bilateral loan भी हासिल किया है। यह दिखाता है कि Adani Group बाजार में अपनी फाइनेंशियल क्रेडिबिलिटी को पुनर्स्थापित करने की पूरी कोशिश में जुटा है।
मगर सवाल यह है कि क्या इस भरोसे की नींव वास्तव में मजबूत है या फिर यह एक ऐसी दीवार है जिसमें बाल धीरे-धीरे गहराते जा रहे हैं? अमेरिकी जांच एजेंसियों की नजरें अभी भी Adani Group पर टिकी हुई हैं, और जब तक इस मामले में पूरी सच्चाई सामने नहीं आती, तब तक हर नई डील, हर नया फंड रेज, और हर नया प्रोजेक्ट एक नई बहस को जन्म देता रहेगा।
भारत में भी यह मामला सिर्फ कारोबारी विवाद तक सीमित नहीं रह गया है। यह अब एक ऐसा मसला बन चुका है जो राजनीति, कूटनीति और व्यापार की जटिल परतों में उलझ गया है। ईरान से व्यापार करना, खासकर ऐसे समय में जब अमेरिका और उसके सहयोगी देश उस पर कड़े प्रतिबंध लगाए हुए हैं, न केवल अडानी बल्कि भारत की विदेश नीति और उसकी अंतरराष्ट्रीय स्थिति को भी प्रभावित कर सकता है।
अगर Adani Group पर लगे आरोपों में सच्चाई निकलती है, तो यह अमेरिका के साथ भारत के व्यापारिक और राजनीतिक संबंधों में एक बड़ा झटका बन सकता है। खासतौर से तब जब भारत अमेरिका के साथ Strategic partnership बढ़ाने, और वैश्विक मंच पर खुद को विश्वसनीय लोकतांत्रिक सहयोगी के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश में लगा हुआ है। अडानी का यह मामला भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी प्रभाव डाल सकता है।
इसके अलावा, अगर Adani Group ने सच में ईरानी कच्चे तेल या एलपीजी का प्रतिबंधों को दरकिनार कर इंपोर्ट किया है, तो यह सीधे तौर पर अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन होगा। इसका परिणाम न केवल आर्थिक पेनल्टी हो सकता है, बल्कि इससे समूह की अमेरिका और यूरोप में कारोबार करने की क्षमता पर भी असर पड़ सकता है। अमेरिकी जांच एजेंसियां अगर ठोस सबूत जुटा लेती हैं, तो Adani Group को बहुराष्ट्रीय कानूनी लड़ाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
वहीं दूसरी तरफ, Adani Group ने अब तक इन आरोपों का कोई औपचारिक खंडन नहीं किया है, जिससे अटकलों को और भी हवा मिल रही है। हालांकि समूह के प्रवक्ताओं ने सार्वजनिक तौर पर भरोसा जताया है कि कंपनी किसी भी, अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं करती और सभी गतिविधियां पारदर्शिता के दायरे में होती हैं, लेकिन अब मामला इतना बड़ा हो चुका है कि सिर्फ शब्दों से भरोसा कायम नहीं किया जा सकता।
कुल मिलाकर, यह मामला एक कारोबारी घराने के वैश्विक विस्तार की महत्वाकांक्षा, भू-राजनीतिक रणनीति, और कानूनी जटिलताओं का जटिल संगम बन चुका है। क्या अडानी सच में अपनी सीमाओं से बाहर निकलकर एक वैश्विक शक्ति बन पाएंगे, या यह मामला उनके साम्राज्य की नींव को हिला देगा—यह आने वाले महीनों में साफ होगा।
इस कहानी में अब हर मोड़ पर एक नई परत खुल रही है—कभी अमेरिकी प्रोसिक्यूटर की फाइल से, कभी वॉल स्ट्रीट की रिपोर्ट से, तो कभी कंपनी के फाइनेंशियल प्लान्स से। और जनता, Investor, और सरकार सभी यही जानना चाहते हैं कि इस कहानी का अगला अध्याय क्या होगा: एक क्लीन चिट या एक और बड़ा झटका।
Conclusion
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