एक ऐसा देश जो खुद दिवालिया होने की कगार पर खड़ा है, IMF और ADB जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से मदद की भीख मांग रहा है, लेकिन उसी वक्त अपने डिफेंस बजट में इज़ाफा कर रहा है। और इससे भी बड़ा झटका तब लगता है जब ये मालूम होता है कि उस पैसे का इस्तेमाल असल में, सुधारों या शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे विकास कार्यों में नहीं, बल्कि बम, गोलियों और आतंक के नेटवर्क को मज़बूत करने में हो रहा है।
यही वो सच्चाई है जो भारत ने पूरी दुनिया के सामने उजागर की है—इस बार ADB को सीधे चेतावनी देकर। भारत ने साफ कहा है, पाकिस्तान को दिया गया ये कर्ज़ पैसा नहीं, बल्कि एक खतरे को पालने जैसा है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
भारत की नाराज़गी एशियाई विकास बैंक द्वारा पाकिस्तान को दिए गए 800 मिलियन डॉलर के कर्ज़ पर है। यह कर्ज़ ऐसे समय में दिया गया है जब पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बेहद जर्जर है, और वो पहले ही दर्जनों बार अंतरराष्ट्रीय सहायता का लाभ ले चुका है—मगर हर बार बिना किसी सुधार के।
भारत का कहना है कि ये फंड असल में आर्थिक सुधारों के लिए नहीं, बल्कि पाकिस्तान की फौज के हाथों में जाकर सैन्य खर्च और आतंकी नेटवर्क को मज़बूत करने में इस्तेमाल हो रहा है।
भारत ने ADB को दिए गए आधिकारिक बयान में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की असलियत का पूरा दस्तावेज़ प्रस्तुत किया है। इसमें साफ तौर पर बताया गया है कि पाकिस्तान में टैक्स रेवेन्यू, जो पहले GDP का 13% था, वो अब घटकर 9.2% पर आ गया है। ये आंकड़ा न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय मानकों से बहुत नीचे है, बल्कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र के औसत 19% से भी शर्मनाक है। लेकिन हैरानी की बात ये है कि जहां टैक्स कलेक्शन गिरा है, वहीं रक्षा खर्च में इज़ाफा जारी है। यानी आर्थिक सुधार पीछे, बम और बंदूकें आगे।
भारत की आपत्ति सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि उसका तर्क ये है कि जब तक पाकिस्तान नीति आधारित सुधारों को अपनाने को तैयार नहीं होता, तब तक उसे कोई भी आर्थिक सहायता देना अपने आप में एक जोखिम है। भारत ने ADB से सवाल किया है कि क्या ये फंड वास्तव में पाकिस्तान की आर्थिक संरचना को सुधारने के लिए इस्तेमाल होगा, या फिर इसे भी सेना हथिया लेगी और इसका इस्तेमाल सीमा पार आतंकवाद को बढ़ाने में किया जाएगा?
भारत का यह रुख कोई अचानक लिया गया कदम नहीं है। ये उस गहरी चिंता का हिस्सा है जो पिछले कई वर्षों से भारत को पाकिस्तान की आर्थिक गतिविधियों, और उनके पीछे छिपी सैन्य मानसिकता को लेकर रही है। भारत ने ADB को साफ चेताया है कि पाकिस्तान में सेना का प्रभाव अब सिर्फ रक्षा मामलों तक सीमित नहीं है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भी अब सेना के नियंत्रण में जाती दिख रही है। इसका उदाहरण है SIFC—Special Investment Facilitation Council—जिसमें सेना सीधे तौर पर भागीदार है। इस संस्था के ज़रिए आर्थिक नीतियाँ तय होती हैं, Investment लाया जाता है और सरकार का हर बड़ा निर्णय अब सेना की मुहर के बिना संभव नहीं।
भारत ने यह भी स्पष्ट किया है कि ऐसे देश को बिना किसी सख्त शर्त और निगरानी के पैसा देना केवल ADB की ही नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की सुरक्षा के लिए भी खतरे की घंटी है। पाकिस्तान का इतिहास इस बात का गवाह है कि उसे दी गई बाहरी आर्थिक सहायता का उपयोग केवल संकट टालने के लिए किया जाता है, ना कि असल में सुधार लाने के लिए। अब तक पाकिस्तान ने IMF और अन्य संस्थाओं से 24 बेलआउट पैकेज लिए हैं, लेकिन सुधार नदारद हैं।
भारत की यह चेतावनी इसलिए भी Relevant है क्योंकि पाकिस्तान की कथनी और करनी में ज़मीन-आसमान का फर्क है। एक ओर वो दुनिया से कहता है कि हमें सुधार की ज़रूरत है, दूसरी ओर उसी समय अपनी सीमा में Terrorist training शिविरों को संरक्षण देता है। FATF ने जब पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाला था, तो दुनिया को लगा था कि शायद वो सुधरेगा, लेकिन नतीजे उलटे ही दिखे। भारत ने यही कहा है कि ऐसे देश को फंड देना विकास की नहीं, विनाश की तरफ कदम बढ़ाने जैसा है।
इस पूरे विवाद में भारत का सबसे बड़ा सवाल ये है कि जब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इतनी कमजोर है, उसका ऋण-से-जीडीपी अनुपात आसमान छू रहा है, उसकी क्रेडिट रेटिंग घट रही है, तब ADB क्यों आंखें मूंदे हुए उसे लोन देता जा रहा है? क्या ADB खुद नहीं देख पा रहा कि ऐसे देश को दी गई सहायता उसके अपने दीर्घकालिक हितों को भी नुकसान पहुंचा सकती है?
भारत ने ADB को एक समाधान भी सुझाया है—अगर फंड देना ही है, तो उसके साथ कड़ी शर्तें जोड़ी जाएं। सिर्फ शर्तें ही नहीं, बल्कि उनकी निगरानी भी पारदर्शी होनी चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाए कि हर डॉलर केवल विकास कार्यों में लगे और उसका कोई हिस्सा भी रक्षा या आतंकवाद से जुड़ी गतिविधियों में ना जाए। भारत का तर्क है कि ये सिर्फ ADB के हितों की सुरक्षा नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की स्थिरता और शांति के लिए ज़रूरी है।
भारत की आपत्ति तब और भी बड़ी बन जाती है जब यह सामने आता है कि ADB के अध्यक्ष, मसातो कांडा ने 1 जून को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी, और उसी मुलाकात के तीन दिन बाद पाकिस्तान को ये 800 मिलियन डॉलर का ऋण पास कर दिया गया। इस फैसले को लेकर कांग्रेस पार्टी ने भी सवाल उठाए हैं। सोशल मीडिया पर यह बहस छिड़ गई है कि क्या भारत के साथ हुई बातचीत के बावजूद ADB ने पाकिस्तान को कर्ज़ देकर उसकी अवहेलना की?
सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत को यह उम्मीद है कि ADB इस बार सतर्कता बरतेगा और अपने फंड को सुरक्षित और सही दिशा में सुनिश्चित करेगा। लेकिन इतिहास यही दिखाता है कि पाकिस्तान जैसे देशों में फंड के दुरुपयोग की संभावना सबसे अधिक रहती है।
भारत सरकार का रुख स्पष्ट है—विकास के नाम पर किसी देश को बम और आतंक फैलाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। पाकिस्तान की मौजूदा आर्थिक संरचना, फौज के दखल, और आतंकवाद के साथ उसकी नरमी ने उसे एक अस्थिर राष्ट्र बना दिया है। और ऐसे राष्ट्र को आर्थिक मदद देना ADB जैसे संस्थानों की नैतिक ज़िम्मेदारी पर भी सवाल खड़ा करता है।
भारत का तर्क साफ है—जो देश अपने नागरिकों की भलाई से पहले हथियारों और सेना को प्राथमिकता देता है, उसे बिना शर्त फंड देना केवल उस व्यवस्था को और मज़बूत करना है जो आतंकवाद को पालती है। अगर ADB को अपनी साख बचानी है, तो उसे अपनी नीतियों में स्पष्टता, सख्ती और पारदर्शिता लानी होगी। नहीं तो, इसका दुष्प्रभाव सिर्फ एशिया पर ही नहीं, बल्कि वैश्विक शांति पर भी पड़ेगा।
तो सवाल यह नहीं है कि पाकिस्तान को पैसे मिल रहे हैं, सवाल यह है कि उन पैसों से हो क्या रहा है? भारत का जवाब साफ है—बम बन रहे हैं, आतंकवादी तैयार हो रहे हैं, और खतरा दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। अगर अब भी दुनिया चुप रही, तो कल यही चुप्पी पूरे क्षेत्र को महंगा पड़ सकती है।
Conclusion
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