Japan फिर से लौटेगा शिखर पर? मुश्किलों के बाद अब बदलाव की शुरुआत! 2025

एक ऐसा देश, जो कभी पूरी दुनिया की आर्थिक नीतियों का मार्गदर्शक था… जो अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा प्रभावशाली वित्तीय निर्णय लेता था… अचानक उस देश की अर्थव्यवस्था ढहने लगे? और वो भी इतनी तेजी से कि भारत जैसे विकासशील देश से भी पीछे छूट जाए? क्या यह सिर्फ एक संयोग है या इसके पीछे छिपी है कोई गहरी और धीमी गति से चल रही तबाही की कहानी? Japan, जो कभी चौथी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था था, आज पांचवें स्थान पर खिसक चुका है। और इसके पीछे की सच्चाई आपको हिला कर रख देगी। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

Japan की अर्थव्यवस्था लंबे समय से धीमी गति से चल रही थी, लेकिन अब यह ठहराव एक गहरे संकट का रूप ले चुका है। पिछले महीने भारत ने जब चौथे स्थान पर छलांग लगाई, तो यह सिर्फ भारत के विकास की कहानी नहीं थी, बल्कि Japan के गिरते कदमों की गवाही भी थी। एक स्टडी के मुताबिक Japan की मौजूदा आर्थिक तबाही के पीछे दो सबसे बड़े कारण हैं—पहला, दशकों तक जारी रही 0% ब्याज दर की नीति और दूसरा, वही पुरानी नीतियां जो अब देश को पीछे ले जा रही हैं।

बिजनेस टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, Japan ने बहुत लंबे समय तक अपने देश और बाकी दुनिया को शून्य ब्याज दरों पर कर्ज देने की नीति अपनाई। बैंक ऑफ जापान ने सरकारी बॉन्ड्स की खरीद कर यह सुनिश्चित किया कि उधारी की लागत बेहद कम रहे। इसका उद्देश्य था कि लोग और कंपनियां ज्यादा खर्च करें, Investment करें और देश की सुस्त अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिले। लेकिन यही रणनीति अब Japan पर उलटी पड़ रही है।

इसी नीति से जन्म हुआ एक फाइनेंशियल स्ट्रेटेजी का, जिसे कहा जाता है “Yen Carry Trade”। इसमें Investor जापानी येन को बेहद कम ब्याज पर उधार लेते थे और उसे उन देशों या बाजारों में लगाते थे, जहां ब्याज दरें ज्यादा थीं। यानी 0% पर कर्ज लेकर 5% या उससे ज्यादा कमाना—यह एक सोने की खान साबित हुआ। Investors ने इसे उभरते बाजारों, अमेरिका के शेयर बाजारों और रियल एस्टेट में लगाया। जब तक येन कमजोर रहा और Japan की नीति सस्ती बनी रही, येन कैरी ट्रेड का जादू चलता रहा। लेकिन फिर हालात बदल गए।

2024 के मार्च महीने में जब Japan में महंगाई ने सिर उठाया और येन की कीमत ऐतिहासिक रूप से गिरने लगी, तो बैंक ऑफ Japan को मजबूरी में अपनी नीति बदलनी पड़ी। उसने ब्याज दरें बढ़ाईं और अपनी ‘अल्ट्रा लूज’ पॉलिसी से कदम पीछे खींचने शुरू किए। इस कदम ने Investors के उस मुनाफे को खत्म कर दिया जो वे येन कैरी ट्रेड से कमा रहे थे। Investors ने एक साथ अपनी पोजीशन बंद करनी शुरू कर दी और बाजार में उथल-पुथल मच गई।

इतिहास एक बार फिर खुद को दोहराता दिखा। ठीक वैसे ही जैसे 2007 में हुआ था, जब वैश्विक मंदी की आहट ने इसी तरह के ट्रेड को खत्म कर दिया था, 2024 में भी जापान के Investor सुरक्षित जगहों की ओर भागने लगे और येन की कीमत चढ़ने लगी। इसका असर Japan की Monetary policy पर पड़ा और अर्थव्यवस्था पर भी। जो नीति कभी ताकत थी, अब वही कमजोर कड़ी बन गई।

इसी दौरान भारत ने वैश्विक मंच पर एक बड़ी छलांग लगाई। नीति आयोग के CEO बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने एक मीटिंग में यह घोषणा की कि भारत अब, आधिकारिक रूप से दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। 4 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ भारत ने Japan को पीछे छोड़ दिया। यह केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि एक बड़ी मनोवैज्ञानिक और रणनीतिक जीत थी।

Japan के लिए यह चेतावनी की घंटी थी। एनालिस्ट लौलिक शाह के अनुसार, Japan दोहरी मुसीबत में फंसा है। एक तरफ उसे महंगाई को नियंत्रित करना है, दूसरी तरफ अपनी मुद्रा येन को स्थिर रखना है। अगर ब्याज दरें घटाता है, तो येन कमजोर होता है और पूंजी बाहर जाने लगती है। अगर ब्याज दरें बढ़ाता है, तो Domestic investment और खर्च पर असर पड़ता है।

लौलिक शाह का मानना है कि अब वह पुरानी रणनीतियाँ—जैसे 0% ब्याज दर, बड़े पैमाने पर बॉन्ड खरीदना और मुद्रा को जानबूझकर कमजोर रखना—अब जापान के लिए जहर बन चुकी हैं। यही रणनीतियाँ दशकों तक Japan को आर्थिक रूप से संभालती रहीं, लेकिन अब ये ही देश को पीछे धकेल रही हैं। और यह केवल जापान की समस्या नहीं है, बल्कि उन सभी देशों के लिए एक चेतावनी है, जो दशकों से सस्ती तरलता और अधिक लोन पर निर्भर रहे हैं।

लीवरेज का सिद्धांत साफ है—जितना ज्यादा उधार, उतना बड़ा Risk। और आज Japan इस Risk के भार तले दबता जा रहा है। BoJ की monetary policy में किए जा रहे बदलावों से अंतरराष्ट्रीय बाजार भी प्रभावित हो रहे हैं। जिन Investors ने Japan के कर्ज से मुनाफा कमाया, अब वे परेशान हैं। बाजार में अनिश्चितता बढ़ गई है और इसका सीधा असर foreign investment पर भी पड़ रहा है।

एक और गंभीर पहलू यह है कि Japan की जनसंख्या भी तेजी से घट रही है। बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है और युवा वर्ग कम होता जा रहा है। इसका असर Japan के उत्पादन, खपत और श्रम बाजार पर पड़ा है। जनसांख्यिकीय असंतुलन ने देश की कार्यक्षमता को बुरी तरह प्रभावित किया है। जो देश एक समय तकनीकी क्रांति का नेतृत्व करता था, वह अब श्रम बल की कमी से जूझ रहा है।

इसका असर सामाजिक संरचना पर भी दिखने लगा है। युवा पीढ़ी जोखिम नहीं लेना चाहती, Investment की प्रवृत्ति घट रही है और भविष्य को लेकर अनिश्चितता का माहौल है। जबकि भारत, वियतनाम जैसे देश युवा आबादी की मदद से तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं, Japan अपने अतीत की रणनीतियों से बंधा हुआ है।

बैंक ऑफ Japan की स्थिति अब उस खिलाड़ी की तरह है जो एक तरफ से बॉल रोक रहा है तो दूसरी तरफ से गोल हो रहे हैं। महंगाई को नियंत्रित करने के लिए दरें बढ़ा रहा है, लेकिन इससे खर्च और Investment दोनों पर असर पड़ रहा है। मुद्रा को बचाने के लिए मजबूती ला रहा है, लेकिन इससे एक्सपोर्ट महंगा हो रहा है।

दुनिया भर के विश्लेषक Japan की इस स्थिति को केवल आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक भूलों का परिणाम मान रहे हैं। दशकों तक “अल्ट्रा लूज” मॉनिटरी पॉलिसी पर भरोसा करना, यथास्थिति को बनाए रखना और नए ग्लोबल आर्थिक रुझानों को न अपनाना—यही अब Japan के लिए खतरनाक बन गया है।

अब सवाल यह है कि Japan इस भंवर से कैसे बाहर निकलेगा? क्या वो नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन करेगा? क्या वह तकनीकी क्षेत्र में फिर से नेतृत्व करने की कोशिश करेगा? या फिर वह धीमी मौत को गले लगाएगा?

Expert मानते हैं कि Japan को अपने मॉडल को पूरी तरह से रिवाइज करना होगा। उसे ब्याज दरों की यथार्थवादी नीति अपनानी होगी, जनसंख्या असंतुलन को दूर करने के लिए Immigration की नीति में लचीलापन लाना होगा, और टेक्नोलॉजी तथा स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना होगा।

Japan के लिए यह एक निर्णायक मोड़ है। अगर उसने समय रहते खुद को नहीं बदला, तो वह दुनिया के आर्थिक नक्शे से धीरे-धीरे मिट सकता है। और यह केवल जापान की कहानी नहीं होगी, बल्कि एक चेतावनी होगी उन सभी देशों के लिए जो सस्ती तरलता, पुराने मॉडल और तात्कालिक मुनाफे के पीछे भाग रहे हैं।

भारत के लिए यह एक अवसर है। Japan की गिरावट, भारत की उन्नति का मार्ग बन सकती है, बशर्ते हम उससे सबक लें। समय का पहिया हमेशा घूमता है—कभी जापान आगे था, अब भारत है। लेकिन यह स्थिति स्थायी नहीं होती, अगर हमने भी वही गलतियां दोहराईं। Japan की कहानी एक सबक है—कि पुरानी रणनीतियां नई दुनिया में नहीं चलतीं। और जो देश समय के साथ नहीं बदलते, समय उन्हें पीछे छोड़ देता है।

Conclusion

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