एक चिट्ठी… एक हस्ताक्षर… और पूरा देश चौंक गया। 21 जुलाई की सुबह जैसे ही यह खबर आई कि भारत के Vice President जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, हर कोई एक ही सवाल पूछने लगा—आख़िर ऐसा क्या हुआ? क्या कोई बड़ा राजनीतिक कारण है या वाकई स्वास्थ्य खराब होने की वजह से लिया गया यह फैसला? लेकिन इस चौंकाने वाली खबर के साथ-साथ एक और सवाल सबके ज़हन में गूंजने लगा—अब उन्हें क्या मिलेगा? पेंशन कितनी होगी? सुविधाएं रहेंगी या छिन जाएंगी? और सबसे दिलचस्प सवाल—क्या अब भी उन्हें प्रधानमंत्री से ज़्यादा सैलरी मिलती है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
सबसे पहले आपको बता दें कि Vice President पद अपने आप में देश का दूसरा सबसे ऊंचा संवैधानिक ओहदा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पद के साथ क्या-क्या सुविधाएं जुड़ी होती हैं? क्या सिर्फ एक कुर्सी होती है या वो ज़िंदगी होती है, जो आम आदमी सपने में भी नहीं सोच सकता? चलिए इस कहानी की परतें खोलते हैं—धीरे-धीरे, भावनाओं से लिपटी हुई, एक ऐसे इंसान की ज़िंदगी को देखते हुए जो अब कुर्सी तो छोड़ चुका है… लेकिन उसकी ज़िंदगी अब भी आम नहीं हुई।
जगदीप धनखड़—एक ऐसा नाम जो राजनीति से पहले न्याय के गलियारों में गूंजता था। वकील के रूप में अपनी पहचान बनाने के बाद वो धीरे-धीरे देश की राजनीतिक धारा में बहे, और फिर Vice President बनकर देश की सबसे ऊंची कुर्सियों में से एक पर बैठे। लेकिन अब जब उन्होंने इस्तीफा दे दिया है, तब सवाल ये है कि क्या इस्तीफे के बाद उनकी ज़िंदगी आम हो जाएगी?
सच तो ये है कि बिल्कुल नहीं। Vice President भले ही पद छोड़ दे, लेकिन पद के बाद मिलने वाली सुख-सुविधाएं आम आदमी की कल्पना से बहुत परे होती हैं। पेंशन? जी हां, उन्हें हर महीने 1.5 से 2 लाख रुपये तक पेंशन के रूप में मिलेंगे। यानी पद से विदाई के बाद भी एक सम्मानजनक जीवन जीने का हर इंतज़ाम रहेगा। और यह व्यवस्था ऐसे ही नहीं बनती—इसके पीछे है Vice President पेंशन एक्ट, 1997।
इस एक्ट के अनुसार, जो व्यक्ति Vice President के रूप में सेवा दे चुका हो, उसे आजीवन पेंशन मिलती है। और अगर कार्यकाल दो साल से कम हो तो पेंशन अनुपातिक आधार पर तय होती है। यानी यह सुनिश्चित किया गया है कि देश की सेवा करने वाले व्यक्ति को ज़िंदगी के अंतिम समय तक कोई आर्थिक कठिनाई न हो।
पर सिर्फ पेंशन ही नहीं, यहां तो बात उससे कहीं आगे की है। Vice President को दिल्ली के लुटियंस ज़ोन में एक विशाल सरकारी आवास—Vice President भवन मिलता है। ये कोई आम फ्लैट नहीं, बल्कि एक आलीशान बंगला होता है, जिसमें वो और उनका परिवार पूर्ण सुविधा के साथ जीवन बिता सकता है। एक स्थायी पता—जहां न रेंट देना है, न मेंटेनेंस, बस आराम से रहना है।
इसके अलावा सरकारी गाड़ी—चालक समेत, बिना किसी ईंधन की चिंता के। सुरक्षा? Z Plus श्रेणी की सुरक्षा, यानी देश के सबसे सुरक्षित लोगों में शामिल रहेंगे धनखड़ साहब। साथ ही मेडिकल खर्च की पूरी भरपाई, देश में किसी भी कोने में मुफ्त हवाई और रेल यात्रा की सुविधा, टेलीफोन बिल से लेकर दफ्तर के संचालन तक हर बात का खर्च सरकार उठाएगी।
यह सारी सुविधाएं सिर्फ इसलिए नहीं दी जातीं कि किसी ने कुर्सी संभाली थी। ये उस भरोसे की निशानी होती हैं जो देश अपने नेतृत्व पर करता है। पर सोचिए, ये सारी चीज़ें तब भी दी जाएंगी जब वो अब देश का उपराष्ट्रपति नहीं रहेंगे।
अब ज़रा पीछे चलते हैं। जब धनखड़ Vice President बने थे, तब उनकी सैलरी थी 4 लाख रुपए प्रति माह। ये सैलरी उन्हें Vice President के नाते नहीं, बल्कि राज्यसभा के सभापति—Ex-Officio Chairman—के रूप में दी जाती थी। यानी, तकनीकी रूप से Vice President को सैलरी नहीं दी जाती, बल्कि जो ज़िम्मेदारी वो निभाते हैं, उसकी सैलरी उन्हें मिलती है।
यही कारण है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सैलरी 1.66 लाख रुपए प्रति माह है, जबकि Vice President की 4 लाख रुपए। ये तुलना कई बार चर्चा में आती है, लेकिन इसका कारण सैलरी का संरचनात्मक निर्धारण है, जिसमें राज्यसभा के सभापति को पार्लियामेंट ऑफिसर्स के वेतन और भत्ते अधिनियम, 1953 के तहत भुगतान होता है।
इस अधिनियम में 2018 में संशोधन हुआ था, जब एनडीए सरकार ने Vice President की सैलरी 1.25 लाख से बढ़ाकर 4 लाख रुपए कर दी थी। और यही नहीं, इस सैलरी के अलावा भी उन्हें दैनिक भत्ता, ट्रैवल खर्च, ऑफिस खर्च, सिक्योरिटी खर्च जैसी सुविधाएं भी दी जाती थीं, जो किसी भी कॉरपोरेट सीईओ से कम नहीं थीं।
पर अब जब धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, तब इन सुविधाओं का क्या होगा? जवाब साफ है—अधिकांश सुविधाएं आजीवन दी जाएंगी। हां, कुछ जैसे कि सरकारी कार्यों से जुड़े स्टाफ की संख्या कम हो सकती है, लेकिन मूलभूत सुविधाएं बनी रहेंगी।
धनखड़ साहब सिर्फ एक Vice President नहीं थे, वो एक वक्ताओं के रूप में प्रसिद्ध थे। उनके भाषणों में तीखापन था, न्यायपालिका पर उनके कमेंट्स मीडिया में वायरल होते थे, और हाल ही में उनके बयानों ने फिर से संविधान और न्याय की सीमाओं पर बहस छेड़ दी थी। ऐसे व्यक्ति का जाना सिर्फ एक इस्तीफा नहीं होता—वो एक विचारधारा का विराम होता है।
ऐसा नहीं है कि इससे पहले कोई Vice President कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया हो। इतिहास गवाह है कि कृष्णकांत और वीवी गिरी जैसे नेता भी उपराष्ट्रपति पद से पहले ही अलग हो चुके थे। लेकिन फर्क सिर्फ वक्त का नहीं होता—हर नाम के पीछे एक दास्तान होती है, और हर दास्तान अपने समय की राजनीतिक तस्वीर को सामने लाती है।
अब जब धनखड़ पद छोड़ चुके हैं, देश में नए Vice President की तलाश शुरू हो चुकी है। लेकिन जो बात सबसे ज़्यादा दिलचस्प है, वो यह है कि देश की दूसरी सबसे ऊंची कुर्सी से विदा लेने के बाद भी ज़िंदगी में कोई आर्थिक या सामाजिक कठिनाई नहीं आती। इसका कारण है—देश का सम्मानजनक तंत्र, जो यह सुनिश्चित करता है कि सेवा देने वाले को कभी किसी तरह की अपमानजनक परिस्थिति का सामना न करना पड़े।
जहां एक आम नागरिक रिटायर होते ही अपनी पेंशन के लिए फॉर्म भरता है, वहीं Vice President को कोई लाइन में नहीं लगना पड़ता। न कोई फॉर्म, न कोई क्लेम। सब कुछ स्वचालित रूप से सरकार की ओर से हो जाता है। और यह भारत जैसे लोकतंत्र की खूबसूरती भी है—जहां संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के लिए हर प्रक्रिया पहले से तय है।
धनखड़ साहब का इस्तीफा भले ही स्वास्थ्य कारणों से हुआ हो, लेकिन यह निर्णय राजनीति में हलचल जरूर पैदा करेगा। और जब तक देश को नया Vice President नहीं मिल जाता, तब तक उनकी कुर्सी एक बार फिर चर्चा का केंद्र बनी रहेगी। तो अगली बार जब आप किसी बड़े पदधारी के इस्तीफे की खबर पढ़ें, तो यह ज़रूर याद रखें—वो पद भले ही खाली हो जाए, लेकिन पद का प्रभाव, पद की गरिमा और पद की ज़िंदगी… वो कभी रिटायर नहीं होती।
Conclusion
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