Leadership Role: Urjit Patel पूर्व RBI गवर्नर को IMF में मिली अहम जिम्मेदारी, भारत के लिए गर्व का पल! 2025

ज़रा कल्पना कीजिए… वॉशिंगटन डीसी के आईएमएफ मुख्यालय की विशाल इमारत में सैकड़ों देशों के प्रतिनिधि बैठे हैं। वहां लिए गए फैसले तय करते हैं कि दुनिया की अर्थव्यवस्था किस दिशा में जाएगी, कौन-सा देश संकट से उभरेगा और किसे कड़े सुधार लागू करने होंगे।

ऐसी संस्था में अगर भारत से कोई शख्स Executive Director की कुर्सी पर बैठता है, तो वह केवल एक पदभार नहीं होता—वह भारत की साख, भारत के अनुभव और भारत की आर्थिक शक्ति का प्रतिनिधित्व होता है। हाल ही में जब भारत सरकार ने पूर्व आरबीआई गवर्नर Urjit Patel को आईएमएफ में Executive Director नामित किया, तो यह केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं रही, बल्कि यह भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव का प्रतीक बन गया। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

Urjit Patel का नाम सुनते ही भारतीय अर्थव्यवस्था का एक उथल-पुथल भरा दौर याद आता है। वह दौर जब देश नोटबंदी जैसे ऐतिहासिक लेकिन विवादित फैसले से गुज़र रहा था। वह दौर जब जीएसटी लागू करके पूरे टैक्स सिस्टम को बदलने की कोशिश हो रही थी। वह दौर जब महंगाई और foreign investors के भरोसे को संभालना चुनौती थी। और उस समय आरबीआई की कमान एक ऐसे गवर्नर के हाथ में थी, जो कम बोलते थे, कैमरों से दूर रहते थे, लेकिन उनके फैसले पूरे वित्तीय ढांचे को हिला देने की ताक़त रखते थे। यही शख्स थे Urjit Patel।

आईएमएफ यानी इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड—यह संस्था केवल आंकड़ों का खेल नहीं है। यह संस्था उन देशों के लिए आख़िरी सहारा होती है, जो आर्थिक संकट में फंस जाते हैं। चाहे वह अर्जेंटीना हो, ग्रीस हो या श्रीलंका—हर देश ने संकट के समय आईएमएफ का दरवाज़ा खटखटाया है। यहां लिए गए फैसले केवल Economics नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की ज़िंदगी से जुड़े होते हैं। ऐसे मंच पर भारत से किसी का शीर्ष पद पर होना यह साबित करता है कि भारत अब केवल दर्शक नहीं, बल्कि निर्णय लेने वाला खिलाड़ी भी है।

Urjit Patel का जन्म 1963 में हुआ था। उनका शुरुआती सफर भारत से बाहर की यूनिवर्सिटियों में शुरू हुआ। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से ग्रेजुएशन किया, फिर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से 1986 में एमफिल की डिग्री और उसके बाद येल यूनिवर्सिटी से 1990 में पीएचडी पूरी की। येल से Economics में पीएचडी हासिल करना केवल एक डिग्री नहीं, बल्कि Global Economics के गहराई तक जाने का रास्ता है। यह वही जगह है जहां दुनिया के सबसे बड़े Economist पढ़ते और नीतियों की नींव रखते हैं।

पढ़ाई पूरी करने के बाद पटेल सीधे आईएमएफ से जुड़े। 1990 से 1995 तक उन्होंने अमेरिका, भारत, बहामास और म्यांमार जैसे देशों के डेस्क पर काम किया। यानी उनके करियर की शुरुआत ही अंतरराष्ट्रीय मंच से हुई। सोचिए, जिस संस्था में उन्होंने बतौर इकोनॉमिस्ट पहला अनुभव हासिल किया, उसी संस्था में आज वह Executive Director की कुर्सी पर बैठने जा रहे हैं। यह जीवन का पूरा चक्र है—जैसे कोई छात्र अपने पुराने स्कूल में लौटे, लेकिन इस बार वह वहां शिक्षक या प्रिंसिपल बनकर आया हो।

भारत लौटने के बाद 1998 से 2001 तक उन्होंने वित्त मंत्रालय में सलाहकार के रूप में काम किया। यह वह दौर था जब भारत ग्लोबलाइजेशन की नई राह पर चल रहा था। foreign investment आ रहा था, लेकिन साथ ही एशियन फाइनेंशियल क्राइसिस के झटके भी महसूस हो रहे थे। पटेल ने यहां नीतिगत सलाह देकर दिखा दिया कि वे केवल किताबों के Economist नहीं, बल्कि जमीनी सच्चाई को समझने वाले टेक्नोक्रैट हैं।

इसके बाद उन्होंने निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में काम किया। रिलायंस इंडस्ट्रीज, आईडीएफसी लिमिटेड, एमसीएक्स लिमिटेड और गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन—हर जगह उनका अनुभव बढ़ता गया। यही अनुभव उन्हें एक “हाइब्रिड इकोनॉमिस्ट” बनाता है, जो न सिर्फ नीतियां समझता है, बल्कि बाजार की नब्ज़ भी पकड़ता है।

2013 में जब उन्हें आरबीआई का डिप्टी गवर्नर नियुक्त किया गया, तो उन्होंने Monetary policy, economic research, statistics, deposit insurance और Information Management जैसे अहम विभाग संभाले। यह वह दौर था जब भारत रुपया गिरने और महंगाई से जूझ रहा था। डॉलर के मुकाबले रुपया टूट रहा था और Foreign investor भारत से दूरी बना रहे थे। ऐसे समय में पटेल ने सख्त monetary policy अपनाई। ब्याज दरों को नियंत्रित करके उन्होंने महंगाई को काबू में रखने की कोशिश की।

2016 में जब रघुराम राजन ने गवर्नर पद छोड़ा, तो उर्जित पटेल को भारत का 24वां आरबीआई गवर्नर बनाया गया। यह नियुक्ति आसान नहीं थी। पूरे देश में नोटबंदी का तूफान आने वाला था और उसकी जिम्मेदारी केंद्रीय बैंक के कंधों पर थी। लाखों लोग बैंकों की कतारों में खड़े थे, अर्थव्यवस्था अचानक कैशलेस बनने की ओर धकेली जा रही थी और लोग परेशान थे। ऐसे समय में पटेल को अपनी भूमिका निभानी पड़ी। आलोचना हुई, मीडिया ने उन्हें “शांत गवर्नर” कहा, लेकिन उन्होंने सार्वजनिक मंच पर कभी विवादास्पद बयान नहीं दिया। उनका मानना था कि केंद्रीय बैंक को अपनी गरिमा और स्वतंत्रता बनाए रखनी चाहिए।

उनके कार्यकाल में एक और बड़ा सुधार आया—जीएसटी का लागू होना। टैक्स सिस्टम का यह सबसे बड़ा सुधार था। पटेल ने वित्त मंत्रालय और सरकार के साथ मिलकर इस बदलाव को आर्थिक स्थिरता के साथ लागू करने की कोशिश की। उनका काम यहां केवल monetary policy नहीं, बल्कि पूरे Financial discipline को बनाए रखना था।

लेकिन 2018 में उन्होंने अचानक इस्तीफा दे दिया। वजह थी सरकार और आरबीआई के बीच टकराव। सरकार चाहती थी कि आरबीआई अपनी रिजर्व राशि का बड़ा हिस्सा केंद्र को दे, जबकि पटेल मानते थे कि केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता से समझौता नहीं होना चाहिए। यह मतभेद इतना गहरा हुआ कि उन्होंने पद छोड़ना ही उचित समझा। उनका इस्तीफा भारतीय वित्तीय इतिहास की सबसे बड़ी खबर बना।

आज वही पटेल जब आईएमएफ में जा रहे हैं, तो इसका मतलब है कि भारत ने वैश्विक स्तर पर अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए सबसे मजबूत चेहरों में से एक को चुना है। आईएमएफ में उनका अनुभव यह दिखाएगा कि भारत केवल एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि नीतिगत रूप से परिपक्व देश है।

दुनिया आज महंगाई, भू-राजनीतिक संकट और असमान विकास से जूझ रही है। अमेरिका-चीन का टकराव, रूस-यूक्रेन युद्ध और ऊर्जा संकट ने पूरे ग्लोबल सिस्टम को अस्थिर कर दिया है। ऐसे समय में उर्जित पटेल जैसे शांत, दृढ़ और अनुभवी Economist का वहां होना बेहद अहम है।

उनकी नियुक्ति केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि पूरे ग्लोबल साउथ के लिए मायने रखती है। क्योंकि आईएमएफ जैसे मंच पर अब तक विकसित देशों की आवाज़ हावी रहती थी। अब भारत की मौजूदगी वहां विकासशील देशों की समस्याओं को उठाने का अवसर है।

यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि व्यक्तिगत मेहनत और ईमानदारी से बढ़कर कोई ताक़त नहीं। एक गुजराती परिवार से निकला लड़का, जिसने विदेश में पढ़ाई की, भारत का केंद्रीय बैंक संभाला और अब दुनिया की सबसे बड़ी वित्तीय संस्था में पहुंचा—यह भारत की नई ताक़त का प्रतीक है।

Conclusion

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