क्या आपने कभी सोचा है कि एक देश की गलत कूटनीति उसकी अर्थव्यवस्था को किस हद तक हिला सकती है? क्या सोशल मीडिया पर उठा एक विरोध आंदोलन किसी देश की सालों पुरानी टूरिज्म इंडस्ट्री को ध्वस्त कर सकता है? भारत की एक प्रतिक्रिया, एक भावना और एक फैसले से आज Turkey की नींदें उड़ चुकी हैं। कारण है Turkey का वह रवैया, जिसमें उसने भारत विरोधी रुख अपनाते हुए पाकिस्तान का समर्थन किया—और अब यह गलती Turkey को बहुत भारी पड़ने जा रही है।
यह सिर्फ एक राजनीतिक मोर्चा नहीं है, बल्कि अब एक आर्थिक युद्ध शुरू हो चुका है, जिसकी पहली चिंगारी भारत से भड़की है और अब लपटें Turkey के व्यापार और टूरिज्म सेक्टर को जला रही हैं। यह कहानी सिर्फ Turkey के बारे में नहीं है, यह उस नए भारत की है जो अब चुप नहीं रहता, जो हर अपमान का जवाब ठोस और असरदार तरीके से देता है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
Turkey ने हाल ही में भारत के खिलाफ पाकिस्तान का समर्थन किया। इस एक कदम से भारत की जनता में गहरा रोष फैल गया। एक ओर जहां भारत अपने वैश्विक प्रभाव को मजबूत कर रहा है, वहीं दूसरी ओर तुर्की ने भारत की संप्रभुता और संवेदनाओं को चुनौती दी।
इसका असर सोशल मीडिया पर दिखाई देने लगा और #Boycott Turkey भारत में ट्रेंड करने लगा। लेकिन यह विरोध सिर्फ वर्चुअल तक सीमित नहीं रहा। हजारों भारतीयों ने अपनी तुर्की यात्रा रद्द कर दी, ट्रैवल एजेंसियों ने तुर्की के टूर पैकेज हटाने शुरू कर दिए और एक पूरा टूरिज्म इंडस्ट्री, जो भारत पर निर्भर था, अब चरमराने लगा है। तुर्की के हवाई अड्डों से लेकर उसके बाजारों तक, हर जगह भारतीयों की गैर-मौजूदगी एक खालीपन छोड़ने लगी है, जो अब तुर्की की सरकार के लिए चिंता का विषय बन गया है।
आपको बता दें कि ऐसा पहले भी हो चुका है और उसका ताजा उदाहरण है मालदीव। जनवरी 2024 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लक्षद्वीप के दौरे पर गए थे, तब मालदीव के कुछ मंत्रियों ने भारत के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया। इसके बाद जो हुआ, वो किसी तूफान से कम नहीं था।
भारतीयों ने मालदीव के बहिष्कार का ऐलान कर दिया। सोशल मीडिया पर #Boycott Maldives ट्रेंड करने लगा। Ease My Trip जैसे बड़े ट्रैवल प्लेटफॉर्म्स ने मालदीव की फ्लाइट्स और होटल बुकिंग्स को अपने पोर्टल से हटा दिया। देखते ही देखते मालदीव की टूरिज्म इंडस्ट्री चरमरा गई। इस विरोध की ताकत ने ये साबित कर दिया कि जब भारत की जनता एकजुट होती है, तो वो किसी भी देश की आर्थिक रीढ़ हिला सकती है, चाहे वो जितना भी लोकप्रिय पर्यटन स्थल क्यों न हो।
मालदीव की जीडीपी का 28 प्रतिशत हिस्सा टूरिज्म पर निर्भर है। 2021 में लगभग 2.91 लाख और 2022 में 2.41 लाख भारतीय पर्यटक मालदीव गए थे। लेकिन बहिष्कार के बाद यह आंकड़े तेजी से गिरने लगे।
हजारों होटल कर्मचारी बेरोजगार हो गए, छोटे-बड़े व्यवसाय बंद होने की कगार पर पहुंच गए और मालदीव की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी इसका बुरा असर पड़ा। भारतीयों की गैरहाज़िरी ने मालदीव की सड़कों और समुद्र तटों को सुनसान कर दिया। इन नतीजों ने बाकी देशों के लिए एक चेतावनी का काम किया—भारत से पंगा लोगे, तो असर सिर्फ राजनीतिक नहीं, आर्थिक भी होगा।
वर्ष 2023 में भारतीय पर्यटकों ने दुनियाभर में 18 अरब डॉलर से अधिक खर्च किए थे। यह आंकड़ा बताता है कि भारतीय अब केवल टूरिस्ट नहीं हैं, बल्कि ग्लोबल टूरिज्म इंडस्ट्री की रीढ़ बन चुके हैं। जब भारत जैसा विशाल देश किसी देश के टूरिज्म को नकार देता है, तो उसका असर सिर्फ टिकट कैंसिलेशन या होटल खाली रहने तक सीमित नहीं रहता—यह पूरा इकोसिस्टम हिला देता है।
यही कारण है कि अब Turkey की ट्रैवल इंडस्ट्री पर एक सन्नाटा पसर चुका है। वहां की सरकार अब चिंतन कर रही है कि कैसे भारत की नाराजगी को शांत किया जाए। यह सिर्फ व्यापार की बात नहीं है, यह देश की प्रतिष्ठा और भविष्य के संबंधों का सवाल बन चुका है।
इसके अलावा, Turkey हर साल लगभग 5 से 6 लाख भारतीय पर्यटकों का स्वागत करता है। ये पर्यटक सिर्फ घूमने ही नहीं जाते, बल्कि वहां की अर्थव्यवस्था में करोड़ों की रकम जोड़ते हैं।
यदि भारत से पर्यटक जाना बंद कर दें, तो इसका सीधा असर Turkey के होटल, ट्रैवल एजेंसियों, गाइड्स, टैक्सी ड्राइवर और दुकानदारों की आय पर पड़ेगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या Turkey अपनी नीतियों में बदलाव करेगा या फिर उसे भी मालदीव जैसा आर्थिक करारा झटका झेलना पड़ेगा। भारतीयों की गैरमौजूदगी ने तुर्की की गलियों से रौनक छीन ली है और सरकार की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
बीते कुछ वर्षों में तुर्की भारतीयों के लिए पसंदीदा डेस्टिनेशन बनता जा रहा था। लोग वहां न सिर्फ हनीमून और छुट्टियों पर जाते थे, बल्कि डेस्टिनेशन वेडिंग, फैमिली ट्रिप्स और प्रोफेशनल इवेंट्स के लिए भी तुर्की को प्राथमिकता दे रहे थे। 2023 में करीब 2.74 लाख भारतीयों ने Turkey की यात्रा की, और 2024 में यह आंकड़ा 3.5 लाख तक पहुंच गया। लेकिन 2025 आते-आते, तुर्की की पाकिस्तान परस्ती ने यह ग्राफ उल्टा मोड़ दिया। अब भारत के लोग न सिर्फ Turkey जाने से बच रहे हैं, बल्कि दूसरों को भी ऐसा करने की सलाह दे रहे हैं। सोशल मीडिया पर चल रहे वीडियो, ट्वीट्स और रील्स इस भावना को और भड़का रहे हैं।
2025 में तुर्की सरकार को भारत से आने वाले पर्यटकों से लगभग 300 मिलियन डॉलर की आय की उम्मीद थी। लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए, अगर बहिष्कार लंबा चला तो अनुमान है कि Turkey को 150 से 200 मिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है। और यह नुकसान केवल पर्यटन तक सीमित नहीं रहेगा। इसके प्रभाव से Turkey का बैंकिंग सिस्टम, foreign investment और Currency exchange rate पर भी असर पड़ सकता है। जब एक देश की आमदनी का इतना बड़ा हिस्सा एक बाजार पर टिका हो, और वह बाजार नाराज हो जाए, तो उसका असर गहराई तक जाता है।
होटल मालिकों से लेकर टैक्सी ड्राइवर, लोकल गाइड, दुकानदार, हस्तशिल्प विक्रेता—हर कोई इस बहिष्कार की चपेट में आ जाएगा। जब ग्राहक ही नहीं होंगे, तो कारोबार कैसे चलेगा? यही कारण है कि अब Turkey के व्यवसायी भी सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि भारत से संबंध सुधारने के लिए कोई ठोस कदम उठाया जाए। कुछ व्यवसायियों ने सार्वजनिक तौर पर भी भारत से माफी की मांग की है, और कहा है कि Turkey को अपने विदेश नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए। यह उस बिंदु की ओर संकेत करता है जहां राजनीतिक गलती का आर्थिक भुगतान पूरे देश को करना पड़ता है।
पर्यटन ही नहीं, व्यापार पर भी इसका असर दिखने लगा है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में Turkey से Import होने वाले सेब, कालीन, सिल्क, सूखे मेवे और मसालों का करीब 1000 करोड़ रुपये का बाजार है। लेकिन अब इन उत्पादों की खपत पर असर पड़ रहा है। व्यापारी Turkey के विकल्प तलाशने लगे हैं। ‘नेशन फर्स्ट’ की भावना अब केवल सोशल मीडिया तक सीमित नहीं, बल्कि यह बाजार की दिशा तय कर रही है। भारतीय ग्राहक अब विदेशी माल खरीदने से पहले उसकी पृष्ठभूमि देखने लगे हैं। यह बदलाव एक बड़ी सांस्कृतिक और आर्थिक जागरूकता की ओर संकेत करता है।
यह स्पष्ट है कि भारत अब अपने सम्मान से कोई समझौता नहीं करेगा। न ही सरकार और न ही जनता। तुर्की के बहिष्कार ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारत केवल शब्दों से नहीं, आर्थिक शक्ति से भी जवाब देना जानता है। अब यह Turkey के ऊपर है कि वह अपने पुराने रुख पर अड़ा रहता है या फिर अपनी नीति में बदलाव कर भारत से माफी मांगता है। लेकिन इतना तय है कि अगर उसने समय रहते सबक नहीं लिया, तो उसका हाल भी मालदीव से बेहतर नहीं होगा।
Conclusion
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