ज़रा कल्पना कीजिए… दुनिया की अर्थव्यवस्था पर नज़र डालें, तो सबसे बड़े खिलाड़ी हमेशा अमेरिका, चीन, जापान या भारत जैसे विशाल देशों को माना जाता है। हम सोचते हैं कि टेक्नोलॉजी में आगे अमेरिका होगा, उत्पादन में चीन, और जनसंख्या व मार्केट में भारत। लेकिन अगर मैं आपसे कहूँ कि एशिया की सबसे बड़ी प्राइवेट कंपनी इनमें से किसी देश में नहीं, बल्कि एक छोटे से द्वीप देश में है, जिसकी आबादी महज़ 2.4 करोड़ है—तो क्या आप यकीन करेंगे?
यह देश ताइवान है, और यहाँ मौजूद है TSMC—Taiwan Semiconductor Manufacturing Company। एक ऐसी कंपनी, जिसकी ताक़त इतनी है कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ भी इसके बिना अधूरी हैं। अमेरिका जैसा महाशक्ति देश भी इसके चिप्स के बिना टेक्नोलॉजी में पीछे रह सकता है। यह है TSMC की कहानी। एक ऐसी कंपनी जो सिर्फ़ ताइवान की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की धड़कन है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
सोचिए, आपके स्मार्टफोन से लेकर लैपटॉप, आपकी कार से लेकर इंटरनेट, यहाँ तक कि ट्रंप का अमेरिका और चीन की फैक्ट्रियाँ भी जिस चीज़ पर निर्भर हैं, वह है TSMC द्वारा बनाए गए सेमीकंडक्टर चिप्स। बिना इन चिप्स के दुनिया की अर्थव्यवस्था एक झटके में रुक सकती है। यही वजह है कि इस कंपनी को “साइलेंट जाइंट” कहा जाता है—जो दिखाई नहीं देता, लेकिन पूरी दुनिया को चलाता है।
सऊदी अरामको भले ही एशिया की सबसे बड़ी कंपनी हो, लेकिन वह सरकारी है। असली खेल प्राइवेट कंपनियों का है, और उसमें TSMC सबसे ऊपर है। इसकी मार्केट कैपिटल 86 लाख करोड़ रुपये है, जो भारत की कई दिग्गज कंपनियों को मिलाकर भी नहीं पहुँचती। यह समझने के लिए हमें ताइवान पर एक नज़र डालनी होगी। 36,197 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाला यह छोटा सा देश दुनिया में 137वें स्थान पर आता है। लेकिन यहीं से निकली एक कंपनी ने तकनीक की परिभाषा बदल दी।
TSMC की शुरुआत 1987 में हुई थी। इसके संस्थापक मॉरिस चांग ने दुनिया को यह दिखाया कि सेमीकंडक्टर सिर्फ़ एक प्रोडक्ट नहीं, बल्कि भविष्य की ऊर्जा है। चांग का आइडिया साफ था—एक ऐसी कंपनी बनाना जो खुद ब्रांडेड प्रोडक्ट्स न बेचे, बल्कि दुनिया की हर टेक्नोलॉजी कंपनी को चिप्स सप्लाई करे। यह “प्योर-प्ले फाउंड्री” मॉडल था, यानी दूसरों के लिए चिप्स बनाना। इसने उद्योग की दिशा बदल दी। आज Apple, Nvidia, Qualcomm, AMD, MediaTek—सभी दिग्गज TSMC पर निर्भर हैं।
कहते हैं कि आज अगर आप iPhone पकड़ रहे हैं, Tesla चला रहे हैं, या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की कोई एप्लिकेशन इस्तेमाल कर रहे हैं, तो उसमें कहीं न कहीं TSMC का चिप जरूर मौजूद होगा। यही वजह है कि अमेरिका से लेकर चीन तक, हर देश की निगाह इस छोटे से ताइवान और उसकी कंपनी TSMC पर टिकी रहती है।
ताइवान की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री साल 2024 में 165 अरब डॉलर की रही, जबकि अमेरिका की इंडस्ट्री सिर्फ़ 80 अरब डॉलर की। सोचिए, एक छोटे से देश ने सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को इस सेक्टर में पीछे छोड़ दिया।
आज TSMC का मुख्यालय और मैन्युफैक्चरिंग हब ताइवान के Hsinchu साइंस पार्क में है। लेकिन इसकी फैक्ट्रियाँ एशिया, यूरोप और अमेरिका तक फैली हुई हैं। और यहीं से निकलते हैं वो नैनोमीटर-स्तर के चिप्स, जिनकी कीमत सोने से भी ज़्यादा है। 5nm और 3nm तकनीक के चिप्स बनाने में यह कंपनी दुनिया में सबसे आगे है। यही वजह है कि Apple और Nvidia जैसी कंपनियाँ TSMC से जुड़ने के लिए अरबों डॉलर खर्च करती हैं।
अब सवाल यह है कि आखिर सेमीकंडक्टर इतना जरूरी क्यों है? जवाब आसान है। आपके मोबाइल फोन की मेमोरी, प्रोसेसर, कैमरा सेंसर, इंटरनेट कनेक्टिविटी—सब कुछ इन्हीं चिप्स पर चलता है। कारों के ब्रेक सिस्टम से लेकर हवाई जहाज के नेविगेशन, अस्पतालों के मेडिकल उपकरण से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सुपरकंप्यूटर—हर जगह इनकी ज़रूरत है। अगर TSMC कल सुबह अपनी फैक्ट्रियाँ बंद कर दे, तो पूरी दुनिया की टेक इंडस्ट्री पंगु हो जाएगी।
लेकिन यह कहानी सिर्फ़ बिज़नेस की नहीं है, बल्कि राजनीति की भी है। ताइवान का नाम लेते ही चीन सामने आता है। चीन हमेशा से ताइवान को अपना हिस्सा मानता है। और यह बात अमेरिका और बाकी देशों को भी परेशान करती है। क्योंकि अगर चीन ने कभी ताइवान पर कब्ज़ा कर लिया, तो दुनिया की चिप सप्लाई उसकी मुट्ठी में होगी। और सोचिए, अगर दुनिया की 60% से ज़्यादा चिप्स बनाने वाली यह कंपनी किसी एक देश के हाथ में बंध जाए, तो बाकी देशों की क्या हालत होगी?
यही वजह है कि ट्रंप का अमेरिका भी ताइवान और TSMC पर निर्भर है। ट्रंप के समय अमेरिका ने कई बार चीन को टक्कर देने की कोशिश की, लेकिन जब बात सेमीकंडक्टर की आती है, तो अमेरिका को भी ताइवान की तरफ़ झुकना पड़ता है। अमेरिका खुद भी सेमीकंडक्टर बनाता है, लेकिन उसकी इंडस्ट्री ताइवान से आधी भी नहीं है। यही कारण है कि अमेरिका ने हाल ही में TSMC को एरिज़ोना में चिप फैक्ट्री लगाने के लिए बुलाया।
TSMC का राजस्व साल 2024 में 514 बिलियन डॉलर यानी 45 लाख करोड़ रुपये से भी ज़्यादा रहा। यह सिर्फ़ पैसे की कहानी नहीं, बल्कि वर्चस्व की कहानी है। आज यह कंपनी जितनी कमाती है, उतना कई देशों का सालाना बजट भी नहीं होता।
लेकिन इस सफर में TSMC ने सिर्फ़ पैसे नहीं कमाए, बल्कि यह दुनिया की रणनीति बदलने वाला खिलाड़ी बन गया। कोविड महामारी के समय जब चिप शॉर्टेज हुई, तो कार कंपनियों से लेकर मोबाइल ब्रांड्स तक सब ठप पड़ गए। उस समय सबको एहसास हुआ कि दुनिया कितनी ज़्यादा TSMC पर निर्भर है।
ताइवान के लोग इसे “सिलिकॉन शील्ड” कहते हैं। यानी सिलिकॉन चिप्स की ताक़त ही ताइवान की सुरक्षा है। क्योंकि जब तक दुनिया को TSMC की ज़रूरत है, तब तक कोई भी देश ताइवान पर हमला करने से पहले सौ बार सोचेगा। आज की तारीख में भारत, चीन, जापान और अमेरिका सब TSMC के ग्राहक हैं। यह कंपनी किसी एक देश के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए काम करती है। और यही उसकी सबसे बड़ी ताक़त है।
अब सोचिए, एक तरफ़ भारत जैसी विशाल अर्थव्यवस्था, जहाँ अरबों लोग रहते हैं और हज़ारों कंपनियाँ हैं, वहीं दूसरी ओर ताइवान जैसा छोटा देश है। लेकिन इस छोटे देश की एक कंपनी ने भारत, चीन और जापान को पीछे छोड़ दिया। यह हमें यह सिखाती है कि देश का आकार नहीं, बल्कि उसकी सोच और इनोवेशन ही भविष्य तय करते हैं।
TSMC की कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि टेक्नोलॉजी ही असली ताक़त है। तेल और गैस आज की ज़रूरत हो सकते हैं, लेकिन कल की दुनिया को चलाने वाली ताक़त सेमीकंडक्टर ही होंगे।
Conclusion
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