ज़रा सोचिए… एक राज्य जिसकी पहचान है विकास, उद्योग और रोज़गार। वह राज्य जिसने भारत को सबसे मज़बूत औद्योगिक ढांचा दिया है। वहाँ के करोड़ों लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी अचानक एक विदेशी फैसले से हिलने लगे। बाहर से आया एक आदेश, और भीतर तक गूंजता असर। यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि आज के भारत की सबसे बड़ी आर्थिक सच्चाई है।
अमेरिका ने भारत से imported goods पर Tariff बढ़ाने की घोषणा की है, और इसने तमिलनाडु जैसे राज्यों की नींद उड़ा दी है। मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इसे लेकर गंभीर चिंता जताई है, और केंद्र से विशेष वित्तीय राहत पैकेज की मांग की है। सवाल यही है—क्या यह Tariff भारत की अर्थव्यवस्था को हिला देगा? और क्या लाखों परिवारों की रोज़ी-रोटी खतरे में पड़ जाएगी? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
आपको बता दें कि अमेरिका का फैसला छोटा नहीं है। मौजूदा 25% Tariff को बढ़ाकर 50% करने की संभावना जताई गई है। अब सोचिए, जब किसी उत्पाद पर अचानक दोगुना टैक्स लग जाए, तो वह उत्पाद महंगा हो जाएगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसकी कीमत बढ़ेगी और खरीदार सस्ता विकल्प तलाशेंगे। यही संकट आज भारत के सामने है।
पिछले वित्त वर्ष में भारत ने 434 अरब डॉलर का Export किया था, जिसमें 20% हिस्सा अमेरिका का था। लेकिन तमिलनाडु के लिए यह आंकड़ा और भी बड़ा है। राज्य ने 52 अरब डॉलर का Export किया, जिसमें से 31% सिर्फ अमेरिका गया। इसका मतलब साफ है—अगर अमेरिका अपने दरवाज़े बंद करता है, तो तमिलनाडु के उद्योग और वहां के श्रमिक सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे।
तमिलनाडु को औद्योगिक राज्य कहा जाता है। यहाँ के उद्योग देश की जीडीपी में बड़ा योगदान देते हैं। लेकिन इस Tariff संकट ने सबसे पहले और सबसे गहरा असर Labor intensive industries पर डाला है। इनमें शामिल हैं वस्त्र और परिधान, मशीनरी और ऑटो कंपोनेंट, रत्न और आभूषण, चमड़ा और फुटवियर, समुद्री उत्पाद और रसायन। वस्त्र उद्योग की बात करें तो अकेले तमिलनाडु देश के कुल वस्त्र Export में 28% योगदान देता है। यहाँ करीब 75 लाख लोग इस उद्योग से जुड़े हैं। अगर अमेरिकी Tariff बढ़ते हैं, तो अनुमान है कि 30 लाख नौकरियां तत्काल खतरे में आ जाएंगी। यह केवल एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि उन परिवारों की तस्वीर है जिनका जीवन इस उद्योग पर टिका हुआ है।
मुख्यमंत्री स्टालिन ने पत्र में यह स्पष्ट लिखा है कि यह संकट केवल राज्य का नहीं, बल्कि पूरे देश का है। Export Competition घटने का मतलब है विदेशी खरीदारों का अन्य देशों की ओर रुख करना। उदाहरण के लिए, बांग्लादेश, वियतनाम और कंबोडिया जैसे देश पहले से ही वस्त्र उद्योग में भारत को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। अगर भारत के उत्पाद महंगे हो गए, तो यह प्रतिस्पर्धी देश सस्ते विकल्प बन जाएंगे और हमारे exporters को बाजार से बाहर कर देंगे। नतीजा होगा फैक्ट्रियों का बंद होना, छंटनी और राज्य की अर्थव्यवस्था पर गहरा आघात।
लेकिन इस संकट के बीच स्टालिन ने सिर्फ चिंता ही नहीं जताई, बल्कि समाधान भी सुझाए। उन्होंने प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि कोविड-काल की तरह इस बार भी एक विशेष वित्तीय राहत पैकेज दिया जाए। इसमें मूलधन की अदायगी पर अस्थायी रोक लगाई जाए, ताकि उद्योगों को सांस लेने का मौका मिल सके। इसके अलावा उन्होंने जीएसटी ढांचे में सुधार की मांग की है। खासकर मानव-निर्मित फाइबर की पूरी उत्पादन श्रृंखला पर समान 5% जीएसटी लागू करने का सुझाव दिया है। उनका कहना है कि मौजूदा “इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर” उद्योग के लिए नुकसानदायक है।
कपास पर Import duty हटाना भी एक अहम मांग है। कपास वस्त्र उद्योग की रीढ़ है। अगर कच्चा माल महंगा होगा, तो तैयार कपड़ा भी महंगा होगा और Competition में भारत पीछे रह जाएगा। इसलिए स्टालिन का मानना है कि कपास को सस्ता करना ज़रूरी है। साथ ही उन्होंने Interest subsidy scheme का प्रस्ताव रखा है, जिससे प्रभावित exporters को तरलता बनाए रखने और लागत घटाने में मदद मिल सके।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत को तेजी से मुक्त व्यापार समझौतों और द्विपक्षीय समझौतों की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। इससे ऊंचे शुल्क वाले बाजारों का जोखिम कम किया जा सकता है। अमेरिका जैसे देशों के साथ संतुलित और लाभकारी समझौते करने होंगे, ताकि हमारे उद्योगों को लंबे समय तक स्थिरता मिल सके।
स्टालिन ने पत्र में यह भी लिखा कि वह केंद्र सरकार के प्रयासों की सराहना करते हैं। उन्होंने अमेरिका के साथ परस्पर लाभकारी व्यापार समझौते की दिशा में हो रहे काम का समर्थन किया है। साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए केंद्र के रुख को पूरी तरह समर्थन दिया। लेकिन उन्होंने यह भी साफ किया कि तमिलनाडु की आर्थिक संरचना अमेरिकी बाजार पर इतनी अधिक निर्भर है कि, यहां Tariff वृद्धि का असर सीधे-सीधे लाखों नौकरियों पर पड़ेगा।
सोचिए, जब एक राज्य का मुख्यमंत्री यह कहे कि 30 लाख नौकरियां खतरे में हैं, तो यह केवल एक राज्य की समस्या नहीं रहती। यह पूरे देश की चिंता बन जाती है। भारत का export sector पहले ही वैश्विक Competition में चुनौतियों का सामना कर रहा है। डॉलर-रुपया असंतुलन, अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक तनाव और अब अमेरिकी Tariff ने स्थिति और मुश्किल कर दी है।
तमिलनाडु का manufacturing sector इस समय ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां से या तो सही नीतियों के सहारे इसे बचाया जा सकता है या यह इतिहास का सबसे बड़ा संकट झेल सकता है। और जब उद्योग डगमगाएंगे, तो सबसे पहले असर पड़ेगा उन श्रमिक परिवारों पर, जो दिन-रात मेहनत करके फैक्ट्रियों को चलाते हैं। वे परिवार जिनके बच्चे स्कूल जाते हैं, जिनकी रसोई रोज़ इन कारखानों की मजदूरी से जलती है। अगर ये नौकरियां चली गईं, तो यह केवल आर्थिक संकट नहीं होगा, बल्कि सामाजिक अस्थिरता भी पैदा करेगा।
स्टालिन ने प्रधानमंत्री से अपील की है कि वह संबंधित मंत्रालयों और उद्योग संगठनों से परामर्श करके तत्काल कदम उठाएं। उनका कहना है कि अगर समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, तो राज्य का manufacturing sector एक अभूतपूर्व संकट में फंस जाएगा। और यह संकट केवल तमिलनाडु तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे भारत में export sector की साख और क्षमता को प्रभावित करेगा।
आज स्थिति यह है कि अमेरिका के टैरिफ से भारत का export sector हिल गया है। तमिलनाडु, जो देश के वस्त्र और परिधान उद्योग का सबसे बड़ा केंद्र है, सबसे गहरी चोट महसूस कर रहा है। मशीनरी, ऑटो कंपोनेंट्स, आभूषण, फुटवियर और समुद्री उत्पाद जैसे क्षेत्र भी दबाव में हैं। अगर सही समय पर राहत नहीं मिली, तो यह भारत की “मेक इन इंडिया” महत्वाकांक्षा के लिए बड़ा झटका होगा।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार इस चुनौती का सामना कैसे करती है। क्या विशेष वित्तीय राहत पैकेज दिया जाएगा? क्या जीएसटी ढांचे में बदलाव होगा? क्या कच्चे माल पर शुल्क घटाया जाएगा? और क्या अमेरिका के साथ व्यापार समझौते में भारत अपनी शर्तों को मज़बूती से रख पाएगा?
कहानी यहीं खत्म नहीं होती। यह केवल तमिलनाडु की या भारत की नहीं, बल्कि उस वैश्विक व्यवस्था की भी कहानी है, जहां बड़े देश अपने फैसलों से छोटे और मध्यम अर्थव्यवस्थाओं की नींव हिला देते हैं। लेकिन सवाल यही है—क्या भारत अपने उद्योगों और अपने श्रमिकों को इस संकट से बचा पाएगा?
Conclusion
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