Tarun Sharma: बिना कंप्यूटर के शुरू किया सपना, अब बना रहे हैं भारत के नए उद्यमियों की फौज! 2025

एक ऐसा दौर था जब घर-घर में कंप्यूटर नहीं हुआ करते थे। इंटरनेट एक सपना था और मोबाइल फोन केवल बड़े लोगों की चीज़ मानी जाती थी। नौकरी की तलाश में लाखों युवा भटक रहे थे, और तब आपके सामने एक ऐसा मौका आए जिसे पाने के लिए आपको कंप्यूटर की जरूरत हो… लेकिन आपके पास वो भी नहीं हो। ऐसी स्थिति में ज्यादातर लोग हार मान लेते, लेकिन एक नौजवान ऐसा था, जिसने उस असंभव को संभव बनाने की ठान ली।

दिल्ली के नारायणा विहार का एक सीधा-सादा नौजवान—जिसके पिता एयर इंडिया में नौकरी करते थे और जिसकी जेब में सीमित पैसे थे—ने उस वक्त जो सपना देखा, उसने सिर्फ उसकी किस्मत ही नहीं बदली, बल्कि आज वो सैकड़ों युवाओं की किस्मत बदलने वाला एक प्रेरणास्त्रोत बन चुका है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

Tarun Sharma… एक ऐसा नाम जो आज भारत में मीडिया, ब्रांडिंग, डिजिटल कम्युनिकेशन और उद्यमिता के क्षेत्र में जाना-पहचाना चेहरा बन चुका है। लेकिन उनकी शुरुआत जितनी साधारण थी, उनकी कहानी उतनी ही असाधारण। 1980 में दिल्ली में जन्मे Tarun Sharma का परिवार एक मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि से आता है। उनके पिता योगेंद्र दत्त शर्मा एयर इंडिया में सीनियर मैनेजर थे, और उनके नाना महेश चंद्र शर्मा दिल्ली के पूर्व मेयर और जनसंघ के प्रभावशाली नेता थे। यानी राजनीतिक और कॉर्पोरेट अनुभव का संगम उनके परिवार में था, लेकिन तरुण ने इसका इस्तेमाल किसी शॉर्टकट के लिए नहीं किया। उन्होंने अपनी मंज़िल खुद बनाई—सीढ़ी दर सीढ़ी।

Tarun Sharma की पढ़ाई पूरी होते-होते देश में ग्लोबलाइजेशन और कंप्यूटराइजेशन दोनों तेज़ी से पांव पसार रहे थे। लेकिन कंप्यूटर उस समय हर किसी के लिए उपलब्ध नहीं था। वो एक लग्ज़री थी। और Tarun Sharma—जिनके पास एक अदद कंप्यूटर खरीदने के पैसे नहीं थे—वो सपना देख रहे थे कुछ अलग करने का। जब सबने उन्हें कहा कि “एक सरकारी या प्राइवेट नौकरी देख लो”, तरुण ने ठान लिया कि वो सिस्टम से बाहर कुछ ऐसा बनाएंगे जो सिस्टम को बदल देगा।

कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने अपने पैसों से एक सेकेंडहैंड कंप्यूटर खरीदा। कई बार दोस्तों से मदद ली, कई बार खुद कमाए। और यहीं से शुरू हुई उनकी पहली उड़ान—1999 में उन्होंने “मीडिया डिजाइन्स” नाम से एक कंपनी शुरू की, जो शुरुआत में मार्केटिंग और प्रिंटिंग जैसी साधारण सेवाएं देती थी। लेकिन साधारण से असाधारण बनने के लिए जुनून चाहिए, और Tarun Sharma के पास उसका कोई अंत नहीं था।

धीरे-धीरे उनकी कंपनी कॉर्पोरेट फिल्म निर्माण, इवेंट मैनेजमेंट, ब्रांडिंग और डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में उतर गई। उनका विजन स्पष्ट था—हर काम सिर्फ मुनाफे के लिए नहीं, बल्कि प्रभाव के लिए होना चाहिए। आज मीडिया डिजाइन्स एक ऐसा ब्रांड है जिसने भारत में ही नहीं, चीन, दुबई और थाईलैंड जैसे देशों में भी अपनी पहचान बना ली है।

लेकिन Tarun Sharma का सफर केवल व्यापार तक सीमित नहीं था। उन्होंने जल्दी ही समझ लिया कि असली बदलाव तब आता है जब शिक्षा और उद्योग के बीच की खाई को भरा जाए। यही सोचकर उन्होंने “IMAC” यानी Innovative Media, Advertising & Communication की शुरुआत की। यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो युवाओं को Professional skills और वास्तविक इंडस्ट्री ट्रेनिंग देता है।

दिल्ली विश्वविद्यालय, YWCA और कई सरकारी व गैर-सरकारी संस्थानों के साथ साझेदारी कर Tarun Sharma ने, कॉलेज के छात्रों को अपनी कंपनी में लाइव प्रोजेक्ट्स पर काम करने का मौका देना शुरू किया। कुछ छात्रों को ट्रेनिंग के बाद वहीं पर रोजगार भी मिला, और कुछ ने खुद की कंपनियां भी शुरू कर दीं। ये केवल CSR नहीं था, ये एक “सस्टेनेबल एंटरप्रेन्योरशिप इंफ्रास्ट्रक्चर” खड़ा करना था—जो आज भी बदस्तूर जारी है।

2009 में उन्होंने एक और क्रांतिकारी पहल शुरू की—“Tarun Sharma भारत।” यह एक सामाजिक अभियान था, जिसमें युवाओं को यह सिखाया जाता था कि “परिवर्तन की शुरुआत आपसे होती है।” यह केवल एक स्लोगन नहीं था, बल्कि एक आंदोलन था। कॉलेजों में, सड़कों पर, सोशल मीडिया पर—Tarun Sharma और उनकी टीम ने युवाओं को यह बताया कि अगर देश बदलना है तो सबसे पहले खुद को बदलो।

2010 से 2014 के बीच Tarun Sharma की कंपनी ने इंटरनेशनल स्तर पर काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने चीन, थाईलैंड और दुबई में इवेंट्स और ब्रांड कैंपेन किए। भारत में होने वाले ग्लोबल एक्सपो और इंडस्ट्री फेयर में उनके बनाए कॉर्पोरेट वीडियो और डॉक्यूमेंट्रीज़ दिखाए जाने लगे। और तभी उन्हें एक नई प्रेरणा मिली—अपनी भाषा और संस्कृति को पहचान दिलाने की।

2018 में उन्होंने दो प्रमुख अभियानों की शुरुआत की—“द हिंदी” और “हिंदी में हस्ताक्षर।” इन अभियानों का उद्देश्य था कि लोग अपनी मातृभाषा से फिर से जुड़ें, और उसे गर्व से अपनाएं। डिजिटल युग में जहां अंग्रेज़ी का बोलबाला था, वहां Tarun Sharma ने हिंदी की गरिमा को नए सिरे से स्थापित करने की पहल की। स्कूल, कॉलेज, सरकारी कार्यालय और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर यह अभियान वायरल हुआ और लाखों लोगों तक पहुंचा।

उनकी पूरी यात्रा एक ऐसा उदाहरण बन गई कि कैसे एक साधारण परिवार का युवक, सीमित संसाधनों के बावजूद, सिर्फ अपने जज़्बे के दम पर एक ऐसा सिस्टम खड़ा कर सकता है जो न केवल उसकी ज़िंदगी बदल दे, बल्कि हजारों युवाओं को दिशा दे।

आज Tarun Sharma की कंपनी में काम करने वाले लोग सिर्फ कर्मचारी नहीं, बल्कि “उद्यमी इन ट्रेनिंग” होते हैं। उनके ट्रेनिंग मॉडल को नीति आयोग से लेकर विभिन्न राज्यों की सरकारें भी स्टडी कर चुकी हैं। उनकी यह सफलता उन्हें सिर्फ एक बिजनेसमैन नहीं, बल्कि एक युवा प्रेरक, एक विचारशील समाज सुधारक और एक सच्चा ‘करियर क्राफ्ट्समैन’ बनाती है।

जहां आज भी कई लोग नौकरी के लिए दूसरों की सिफारिश ढूंढते हैं, Tarun Sharma ने एक ऐसा प्लेटफॉर्म बना दिया जहां युवा खुद को सशक्त बना सकते हैं। उनका मानना है कि अगर एक बच्चा जिसके पास कंप्यूटर खरीदने के पैसे न हों, वो भी आज अपनी कंपनी खड़ी कर सकता है, तो भारत के हर कोने में ऐसे हज़ारों तरुण तैयार हो सकते हैं—बस उन्हें एक मौका चाहिए, एक दिशा चाहिए और एक प्लेटफॉर्म चाहिए।

उनकी कहानी यह भी सिखाती है कि शिक्षा का अर्थ केवल डिग्री नहीं, बल्कि समझ और प्रयोग है। Tarun Sharma कॉलेज की पढ़ाई से असंतुष्ट थे, लेकिन उन्होंने कभी सीखना नहीं छोड़ा। वह आज भी खुद को “सीखता हुआ उद्यमी” कहते हैं। यही कारण है कि उनका हर कदम—चाहे वो कोई ब्रांड कैम्पेन हो या सोशल इनीशिएटिव—किसी एजुकेशनल इकोसिस्टम की तरह होता है।

Tarun Sharma आज उस पीढ़ी के लिए मिसाल हैं जो स्टार्टअप की बातें तो करती है लेकिन जमीनी हकीकत नहीं जानती। वो दिखाते हैं कि स्टार्टअप महज़ एक पिच डेक या इन्वेस्टर प्रजेंटेशन नहीं होता—वो होता है, रात-रात भर की मेहनत, असफलताओं से सीखना, और हर नए दिन कुछ नया करने की जिद।

उनकी यात्रा यह भी साबित करती है कि उद्यमिता केवल उन लोगों के लिए नहीं होती जो IIT या IIM से निकले हों। असली उद्यमिता वही होती है जहां कम संसाधनों के बावजूद, आप दूसरों के लिए अवसर बना पाते हैं।

तरुण की कहानी केवल उनके व्यक्तिगत संघर्ष की नहीं, बल्कि एक सोच की कहानी है—जो कहती है कि “अगर आपके पास जुनून है, तो संसाधन खुद-ब-खुद रास्ता बनाते हैं।” और यही सोच आज उन्हें हजारों युवाओं के लिए रोल मॉडल बनाती है।

Conclusion

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