Tariff पर ट्रंप का यू-टर्न! चीन को बड़ी राहत या नया गेम प्लान? 2025

पूरी दुनिया एक ऐसे धागे से बंधी हो जहां एक सिरा अमेरिका के हाथ में हो और दूसरा चीन के पास। इस धागे को खींचिए, और पूरी Global अर्थव्यवस्था हिल जाए। कुछ ऐसा ही हुआ जब अमेरिका ने चीन पर 145% Tariff थोप दिए थे। बाज़ार थरथराने लगे, सप्लाई चेन टूटने लगी, और हर देश की नजरें इस बात पर टिक गईं कि क्या ये दो महाशक्तियां सीधे टकरा जाएंगी? लेकिन अब, एक अप्रत्याशित मोड़ आया है—डोनाल्ड ट्रंप, जो अब तक “अमेरिका फर्स्ट” की हुंकार भरते थे, चीन के प्रति नरमी दिखा रहे हैं। सवाल ये है—क्या ये व्यापार युद्ध का अंत है या किसी बड़ी चाल की शुरुआत? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

व्हाइट हाउस में बैठे डोनाल्ड ट्रंप ने वो बात कही जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि 145% Tariff बहुत ज़्यादा है और अब यह “इतना ज़्यादा नहीं रहेगा।” यह एक बहुत बड़ा संकेत था कि अमेरिका अब शायद उस आग से पीछे हटने की कोशिश कर रहा है जिसे उसने खुद भड़काया था। यह बयान उस वक्त आया, जब अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने खुद इस Tariff को “अस्थिर और अस्थायी” बताया था। इसने बाजारों में हलचल मचा दी—वाल स्ट्रीट में उछाल आया और एशियाई बाजारों में भी तेजी देखी गई।

दरअसल, अमेरिका और चीन के बीच Tariff युद्ध कोई नई बात नहीं है। जब ट्रंप ने चीनी वस्तुओं पर 145% शुल्क लगाया, तो चीन ने भी पलटवार करते हुए अमेरिकी सामान पर 125% Tariff लगा दिया। दोनों देश अपनी-अपनी जगह अड़े रहे। पर इस लड़ाई में नुकसान किसी एक देश का नहीं हुआ—पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था इसकी चपेट में आ गई। सामान महंगा हो गया, सप्लाई चेन बाधित हो गई, और मंदी का डर मंडराने लगा। लेकिन अब ट्रंप का यू-टर्न इस जमी बर्फ को शायद पिघला सकता है।

ट्रंप ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा, “हम सख्ती नहीं करेंगे, हम और वे—दोनों अच्छे रहेंगे।” उन्होंने संकेत दिया कि चीन के साथ एक नई डील हो सकती है, लेकिन यह डील अमेरिकी हितों की रक्षा करते हुए ही होगी। उनके अनुसार, “अगर चीन डील नहीं करता, तो हम खुद तय करेंगे कि क्या डील होनी चाहिए। लेकिन हम चाहते हैं कि वे इसमें शामिल हों।” इस बयान से साफ है कि ट्रंप चीन को व्यापारिक बातचीत की मेज़ पर वापस लाना चाहते हैं, लेकिन बिना पूरी तरह झुके।

चीन ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी। बीजिंग ने कहा कि वो बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन उसकी एक शर्त है—सम्मान और समानता के आधार पर। चीन के विदेश मंत्रालय ने दो टूक कहा कि “Tariff युद्ध में कोई विजेता नहीं होता,” और अमेरिकी दबाव में आकर समझौता करना बीजिंग को मंजूर नहीं। यानी चीन सुलह के लिए तैयार है, पर शर्तें उसकी भी हैं।

यहां एक दिलचस्प बात ये है कि ट्रंप जहां नरमी का संकेत दे रहे हैं, वहीं चीन अपने तेवरों में बदलाव नहीं ला रहा। उसने अमेरिका से Imported वस्तुओं पर 125% तक का शुल्क लगाया हुआ है, साथ ही कई अमेरिकी कंपनियों को अपनी “अनरिलाएबल एंटिटी लिस्ट” में डाल दिया है। इतना ही नहीं, चीन ने आईफोन, माइक्रोचिप्स और सैन्य तकनीक में इस्तेमाल होने वाले कीमती खनिजों के Export पर भी रोक लगा दी है। इससे यह साफ है कि चीन अपने तरीके से अमेरिका पर दबाव बना रहा है।

चीन ने अमेरिका के खिलाफ सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और तकनीकी स्तर पर भी मोर्चा खोल दिया है। देश में हॉलीवुड फिल्मों की संख्या सीमित कर दी गई है, और कुछ बोइंग विमानों को भी वापस कर दिया गया है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने प्रत्यक्ष वार्ता से बचते हुए अन्य व्यापारिक साझेदारों के साथ कूटनीतिक चर्चाएं तेज कर दी हैं, ताकि अमेरिका के Tariff आधारित दबाव को संतुलित किया जा सके।

दूसरी ओर, ट्रंप अब खुद कह रहे हैं कि अमेरिका चीन के साथ “बहुत अच्छा व्यवहार” करेगा। उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ हमारे अच्छे संबंध हैं। वे अरबों डॉलर कमाते हैं और अपनी सेना बनाते हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।” ट्रंप ने अमेरिका को “धोखा देने” का आरोप तो लगाया, लेकिन साथ ही दोस्ती की उम्मीद भी जताई। क्या यह ट्रंप की रणनीतिक चाल है या उन्हें एहसास हो गया है कि इस व्यापार युद्ध में अमेरिका को भी भारी नुकसान हो रहा है?

वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट की बात करें तो उन्होंने Tariff को “अस्थायी” बताते हुए स्पष्ट किया कि उद्देश्य चीन को खत्म करना नहीं है, बल्कि व्यापार को संतुलन में लाना है। इससे एक बात तो साफ होती है कि अमेरिका का टारगेट केवल बदले की भावना से नहीं, बल्कि लॉन्ग टर्म स्ट्रैटेजी से जुड़ा है। लेकिन ट्रंप की बदलती बयानबाज़ी से एक बार फिर ये सवाल उठ खड़ा हुआ है—क्या अमेरिका सच में चीन के खिलाफ नरम हो रहा है या यह एक कूटनीतिक गेम का हिस्सा है?

मौजूदा हालात में, 245% तक का पारस्परिक शुल्क अमेरिका ने कई चीनी प्रोडक्ट्स पर लगाया हुआ है। ये शुल्क हर प्रोडक्ट पर समान नहीं है लेकिन कुल मिलाकर ये व्यापार को मुश्किल और महंगा बना रहा है। अब अगर ट्रंप इस Tariff को “काफी हद तक” कम करने की बात कर रहे हैं, तो इसका सीधा असर ना सिर्फ अमेरिका-चीन व्यापार पर पड़ेगा, बल्कि पूरी दुनिया के बाजारों पर भी।

भारत जैसे देश भी इस व्यापार युद्ध से प्रभावित हुए हैं। एक तरफ उन्हें नए व्यापारिक अवसर मिले, तो दूसरी तरफ Global सप्लाई चेन में आए व्यवधान का खामियाज़ा भी भुगतना पड़ा। कई कंपनियों ने चीन से मैन्युफैक्चरिंग हटाकर भारत जैसे देशों का रुख किया, लेकिन Tariff युद्ध की अनिश्चितता ने Investors को सचेत भी कर दिया। ऐसे में, अगर अमेरिका और चीन के बीच तनाव कम होता है, तो इससे भारत जैसे देशों को भी राहत मिल सकती है।

ट्रंप के इस बयान का एक और बड़ा असर अमेरिकी और Global स्टॉक मार्केट्स पर पड़ा है। Investors ने इस बयान को पॉजिटिव सिग्नल माना और शेयर बाज़ार में उछाल आया। अमेरिका में S&P 500 और Nasdaq दोनों इंडेक्स में तेजी देखी गई, जबकि चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे एशियाई बाजारों ने भी पॉजिटिव ट्रेंड दिखाया। इसका सीधा मतलब है कि बाजारों को उम्मीद है कि दोनों महाशक्तियों के बीच कोई न कोई समझौता जरूर होगा।

इस समय चीन और अमेरिका की आर्थिक नीतियों पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं। अमेरिका चीन से बात करना चाहता है, लेकिन अपनी शर्तों पर। वहीं चीन किसी भी समझौते के लिए “सम्मान” और “समानता” की बात कर रहा है। दोनों देशों की सोच अलग है, लेकिन अगर बातचीत की शुरुआत होती है तो यही एक बड़ी जीत मानी जाएगी। इससे न केवल Global मंदी का खतरा कम होगा, बल्कि व्यापार की बहाली से दुनिया की अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा भी मिलेगी।

अब बड़ा सवाल यह है कि ट्रंप ने ये नरमी क्यों दिखाई?  क्या यह Global criticism और घरेलू महंगाई का दबाव है? दरअसल, Tariff का असर अमेरिका में भी महंगाई के रूप में दिख रहा है। उपभोक्ताओं को रोजमर्रा की चीज़ें महंगी पड़ रही हैं।

इस बीच, ट्रंप की एक और बात ध्यान देने वाली है—उन्होंने कहा कि अगर चीन डील नहीं करता, तो अमेरिका अपनी तरफ से फैसला करेगा। यह एक तरह की चेतावनी भी है, जो बताती है कि नरमी के पीछे अब भी एक सख्ती छुपी है। इसका मतलब ये हो सकता है कि अगर चीन बातचीत में देर करता है या अनावश्यक शर्तें रखता है, तो अमेरिका फिर से कड़ा रवैया अपना सकता है।

Conclusion

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