Tariff तूफ़ान में भी मज़बूत भारत! ट्रंप की नई चाल से हिलेगा बाज़ार या और बढ़ेगा देश का दम? 2025

एक सुबह जब आप अखबार खोलते हैं, तो पहली ही हेडलाइन चीख़ रही होती है—“अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50% का Tariff लगा दिया!” चाय की प्याली हाथ से छूट जाती है। मन में सवाल उठता है—क्या अब हमारी फैक्ट्रियां बंद होंगी? क्या लाखों लोग बेरोज़गार हो जाएंगे? क्या डॉलर के सामने रुपया और भी गिर जाएगा? क्या ये वही तूफ़ान है जो भारत की अर्थव्यवस्था को हिला देगा? लेकिन तभी एक्सपर्ट्स की आवाज़ आती है—“Tariff? यह तो बस एक झोंका है। भारत पहले भी इससे कहीं बड़े तूफ़ानों से जूझ चुका है। और हर बार, भारत और मज़बूत बनकर निकला है।” आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

भारत की कहानी दरअसल संकटों से जूझने और फिर उठ खड़े होने की कहानी है। ये वही देश है जिसने परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका के कठोर प्रतिबंधों को सहा। यही देश है जिसने 2008 की वैश्विक मंदी के समय डगमगाई दुनिया में अपनी अर्थव्यवस्था को थामे रखा। और यही देश है जिसने कोविड जैसी महामारी में पूरे देश को लॉकडाउन करके भी करोड़ों लोगों तक वैक्सीन और भोजन पहुँचाया। इन बड़े-बड़े झंझावातों के सामने अगर हम खड़े रह सके, तो क्या वाकई ट्रंप का यह Tariff हमें गिरा पाएगा?

आइए इसे समझते हैं। सबसे पहले देखें तो भारत और अमेरिका के बीच का व्यापारिक रिश्ता। हर साल भारत लगभग 86 अरब अमेरिकी डॉलर का सामान अमेरिका को Export करता है। यह हमारी GDP का सिर्फ़ 2% है। यानी अगर अमेरिका ने 50% Tariff भी लगाया, तो भी असर उतना भारी नहीं होगा जितना पहली नज़र में लगता है। और इसका कारण है—भारत का व्यापार पैटर्न। भारत कई ऐसे प्रोडक्ट्स अमेरिका को बेचता है, जिन्हें अमेरिका आसानी से कहीं और से नहीं खरीद सकता। जैसे जेनेरिक दवाइयाँ, हीरे-जवाहरात, कपड़ा और चमड़ा। अमेरिका चाहे जितना Tariff लगाए, उसके अस्पतालों को भारतीय दवाइयों की ज़रूरत रहेगी। उसके बाज़ार को भारतीय इंजीनियरिंग और IT सेवाओं की ज़रूरत बनी रहेगी।

अब सवाल है—क्या Tariff के कारण भारत का Export ध्वस्त हो जाएगा? Expert कहते हैं—नहीं। क्योंकि भारत का Export सिर्फ़ अमेरिका पर निर्भर नहीं है। आज भारत का व्यापार ऑस्ट्रेलिया, UAE, जापान और यूरोप जैसे बाज़ारों में भी मज़बूत हो रहा है। हाल ही में भारत ने EFTA देशों और UK के साथ मुक्त व्यापार समझौते किए हैं। यूरोपियन यूनियन के साथ बातचीत चल रही है। यानी अगर अमेरिका किसी उत्पाद पर Tariff बढ़ाता है, तो भारत दूसरे बाज़ारों की ओर रुख़ कर सकता है।

लेकिन फिर भी, यह हल्के में लेने वाली बात नहीं है। क्योंकि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा रणनीतिक साझेदार भी है। सिर्फ़ व्यापार ही नहीं, रक्षा, टेक्नोलॉजी और कूटनीति में भी दोनों देश साथ खड़े हैं। और यही वजह है कि भारत को इस Tariff संकट को “तूफ़ान” नहीं, बल्कि “मौका” मानना चाहिए। इतिहास गवाह है कि भारत ने हर बार संकट को अवसर में बदला है।

याद कीजिए 1998 का वह दौर, जब भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था। उस समय अमेरिका और पश्चिमी देशों ने भारत पर भारी आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे। वर्ल्ड बैंक और IMF जैसी संस्थाओं ने फंडिंग रोक दी थी। भारत को दुनिया से काटने की कोशिश की गई। लेकिन क्या हुआ? भारत पीछे नहीं हटा। हमने अपनी टेक्नोलॉजी खुद विकसित की। ISRO ने सैटेलाइट्स बनाना शुरू किया। DRDO ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की राह पकड़ी। और परिणाम यह हुआ कि आज भारत न सिर्फ़ परमाणु शक्ति है, बल्कि दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था भी है।

फिर आया 2008 का Global Financial Crisis। अमेरिका और यूरोप की बैंकों के ढहने से पूरी दुनिया में मंदी छा गई। लेकिन भारत ने उस समय भी अपने घरेलू उपभोग और नीतिगत फैसलों से अर्थव्यवस्था को बचाए रखा। हमारे बैंकिंग सिस्टम ने मज़बूत होकर दुनिया को चौंका दिया। यही वजह है कि उस समय कई Foreign investor भारत की ओर खिंचे चले आए।

और फिर कोविड आया। एक ऐसा संकट जिसने पूरी दुनिया को ठहरने पर मजबूर कर दिया। भारत जैसे विशाल देश में, जहाँ करोड़ों लोग रोज़ कमाकर खाते हैं, वहाँ लॉकडाउन का मतलब था तबाही। लेकिन हमने इससे भी पार पाया। न सिर्फ़ वैक्सीन बनाई, बल्कि उसे करोड़ों लोगों तक पहुँचाया। और यही नहीं, “वैक्सीन मैत्री” के तहत दूसरे देशों को भी दवा पहुँचाई। यह वही भारत है, जिसने कठिन हालात में भी दुनिया को उम्मीद दी।

तो क्या ट्रंप का Tariff इन सबके सामने बड़ा संकट है? बिल्कुल नहीं। हाँ, इसका असर ज़रूर होगा। कुछ कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। कुछ सेक्टर्स में एक्सपोर्ट महंगा हो सकता है। लेकिन यह अर्थव्यवस्था को गिराने वाला तूफ़ान नहीं है। बल्कि यह भारत के लिए सुधार का एक मौका है।

भारत को अब इस चुनौती को अवसर में बदलना होगा। कैसे? सबसे पहले अपने घरेलू इकोसिस्टम को मज़बूत बनाकर। अगर हमारे उद्योगों को सस्ता लॉजिस्टिक्स, बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर, और आसान नियम मिलेंगे, तो हम किसी भी विदेशी Tariff से निपट सकते हैं।

दूसरा, भारत को अपने Export को और विविध बनाना होगा। आज हम कपड़ा, दवाइयाँ और IT सेवाओं पर निर्भर हैं। लेकिन अगर हम हाई-टेक मशीनरी, ग्रीन एनर्जी प्रोडक्ट्स और डिजिटल टेक्नोलॉजी में भी Export बढ़ाएँ, तो अमेरिका जैसे बाज़ारों में हमारी पकड़ और गहरी होगी।

तीसरा, हमें कूटनीति को और मज़बूत करना होगा। अमेरिका और भारत दोनों एक-दूसरे के लिए अहम साझेदार हैं। भारत के पास मज़बूत बाज़ार है, सस्ती और कुशल वर्कफोर्स है। अमेरिका के पास टेक्नोलॉजी और Investment है। यह साझेदारी दोनों के लिए फायदेमंद है। और अगर बातचीत जारी रही, तो टैरिफ जैसे मुद्दे अस्थायी ही साबित होंगे।

टैरिफ की लड़ाई दरअसल वैश्विक राजनीति का हिस्सा है। ट्रंप ने चीन पर भी कई गुना बड़े टैरिफ लगाए थे। उनका उद्देश्य अमेरिका के उद्योगों को बचाना है, लेकिन इसका असर वैश्विक सप्लाई चेन पर पड़ता है। और यही भारत का मौका है। अगर अमेरिकी कंपनियाँ चीन से निकलती हैं, तो उन्हें भारत जैसा विकल्प चाहिए। यही वजह है कि “चाइना प्लस वन” रणनीति में भारत की अहमियत बढ़ रही है।

अंत में सवाल यह है—क्या ट्रंप टैरिफ भारत को डिगा पाएगा? जवाब है—नहीं। भारत ने इतिहास में बार-बार साबित किया है कि वह कठिन से कठिन हालात में भी खड़ा रह सकता है। परमाणु प्रतिबंध, वित्तीय मंदी, कोविड—इन सबने हमें तोड़ा नहीं, बल्कि और मज़बूत किया। और यही वजह है कि आज जब अमेरिका ने टैरिफ का कार्ड खेला है, तो भारत इसे एक नई शुरुआत की तरह ले सकता है।

क्योंकि भारत की असली ताक़त उसके लोग हैं। हमारी 140 करोड़ की आबादी सिर्फ़ एक संख्या नहीं है, बल्कि यह सबसे बड़ा घरेलू बाज़ार है। अगर हम अपने बाज़ार को मज़बूत करेंगे, तो कोई भी टैरिफ हमें रोक नहीं पाएगा। तो अगली बार जब कोई कहे कि ट्रंप टैरिफ भारत को तोड़ देगा, तो आप मुस्कुराकर कह सकते हैं—“यह भी गुज़र जाएगा।” क्योंकि भारत की कहानी ही यही है—हर संकट के बाद और मज़बूत होकर खड़ा होना।

Conclusion

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