Sundar Pichai की ग्लोबल उड़ान: भारत से अमेरिका तक, पासपोर्ट की सच्चाई और एक प्रेरणादायक सफर! 2025

एक ऐसा इंसान जिसने बचपन में रोटरी फोन के लिए 5 साल इंतज़ार किया… जिसके घर में पानी भरने के लिए रोज़ लाइन लगती थी… और जिसने मिट्टी की खुशबू में पली-बढ़ी ज़िंदगी से निकलकर दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनी गूगल की कमान संभाली… आज वही इंसान, भारत का नहीं रहा? जी हाँ, यह नाम है Sundar Pichai का—और उनकी नागरिकता से जुड़ी सच्चाई आपको चौंका सकती है। क्या दुनिया के सबसे ताकतवर टेक CEO का भारत से रिश्ता अब सिर्फ यादों तक सीमित रह गया है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

Sundar Pichai… एक नाम जो आज सिर्फ टेक्नोलॉजी की दुनिया में नहीं, बल्कि हर युवा के सपने में बसता है। एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से निकलकर उन्होंने वो मुकाम हासिल किया है, जो करोड़ों लोग सिर्फ किताबों या फिल्मों में ही देख पाते हैं। लेकिन इस शानदार सफर की सबसे अनकही और अनसुनी कहानी है—उनकी नागरिकता। आज सुंदर पिचाई अमेरिका के नागरिक हैं। उन्होंने भारत की नागरिकता छोड़ दी है। क्यों? इसके पीछे छिपी है एक संवैधानिक सच्चाई, जो भारत और अमेरिका दोनों देशों के नागरिकता कानूनों से जुड़ी है।

भारत में ‘डुअल सिटिजनशिप’ यानी दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं है। भारत का नागरिकता अधिनियम, 1955 साफ कहता है कि अगर कोई भारतीय नागरिक किसी दूसरे देश की नागरिकता ले लेता है, तो उसकी भारतीय नागरिकता अपने आप समाप्त हो जाती है। सुंदर पिचाई ने जब अमेरिकी नागरिकता ली, उसी पल उनकी भारतीय नागरिकता खत्म हो गई। यह एक भावनात्मक निर्णय नहीं था, बल्कि कानूनी अनिवार्यता थी।

Sundar Pichai
Sundar Pichai की ग्लोबल उड़ान

तो क्या इसका मतलब है कि Sundar Pichai का भारत से रिश्ता पूरी तरह खत्म हो गया? बिल्कुल नहीं। क्योंकि जो रिश्ता दिल से होता है, वो कानूनों से नहीं टूटता। सुंदर पिचाई ने भारत से जुड़े रहने के लिए ‘OCI कार्ड’ यानी ‘Overseas Citizen of India’ कार्ड लिया है। यह कार्ड भारत सरकार उन लोगों को देती है, जो कभी भारतीय नागरिक थे या जिनकी जड़ें भारत से जुड़ी हैं, लेकिन अब किसी अन्य देश के नागरिक बन चुके हैं।

OCI कार्ड का मतलब है—Sundar Pichai भारत में बिना वीज़ा के आ सकते हैं, यहाँ अनिश्चितकाल तक रह सकते हैं, प्रॉपर्टी खरीद सकते हैं, व्यापार कर सकते हैं, और निजी क्षेत्र में काम भी कर सकते हैं। यह एक तरह से भारत से जुड़े रहने का वैकल्पिक तरीका है। लेकिन इस कार्ड के साथ कुछ सीमाएं भी आती हैं। OCI कार्डधारकों को भारत में न तो वोट देने का अधिकार होता है, न ही वे सरकारी नौकरी कर सकते हैं या संवैधानिक पदों जैसे राष्ट्रपति, सांसद या मंत्री के लिए योग्य माने जाते हैं।

इन सबके बावजूद, Sundar Pichai का दिल आज भी भारत के लिए धड़कता है। वे हर इंटरव्यू में यह बात ज़रूर दोहराते हैं कि जो कुछ भी वे आज हैं, उसका श्रेय वे अपने बचपन के संघर्षों और भारत की मिट्टी को देते हैं। उन्होंने यह भी बताया है कि कैसे उनकी मां एक स्टेनोग्राफर थीं और उनके पिता एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर—लेकिन सीमित संसाधनों में भी उन्होंने उन्हें बड़ा सोचने के लिए प्रोत्साहित किया।

उनके बचपन की एक याद है—रोटरी फोन। उनके घर में एक रोटरी फोन लगवाने के लिए 5 साल का इंतज़ार करना पड़ा। जब फोन आया, तो पूरा मोहल्ला उस फोन को देखने आता था। सुंदर पिचाई बताते हैं कि उन्होंने फोन नंबर याद रखने की अपनी शानदार क्षमता वहीं से विकसित की। ये वो वक्त था जब कंप्यूटर एक सपने जैसा लगता था और इंटरनेट तो कल्पना से भी परे था।

उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई तमिलनाडु के एक सरकारी स्कूल से की और फिर IIT खड़गपुर में मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। वहीं से उनकी किस्मत ने करवट ली। उनके प्रोफेसरों ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए भेजा गया। यह वह दौर था जब एक भारतीय छात्र विदेश में पढ़ने का सपना देख तो सकता था, लेकिन उसे पूरा करना आसान नहीं था।

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान Sundar Pichai ने कम्प्यूटर साइंस और सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग के क्षेत्र में गहराई से काम किया। फिर उन्होंने व्हार्टन बिज़नेस स्कूल से MBA की डिग्री ली, जहाँ उन्हें ‘Siebel Scholar’ और ‘Palmer Scholar’ जैसी प्रतिष्ठित उपाधियाँ भी मिलीं। ये वो मोड़ था जब Sundar Pichai तकनीकी दुनिया में चमकने लगे थे।

2004 में गूगल में उनकी एंट्री हुई—उस समय एक मिड-लेवल प्रोडक्ट मैनेजर के रूप में। उनका पहला बड़ा काम था—गूगल टूलबार पर काम करना, जो इंटरनेट एक्सप्लोरर के ज़रिए लोगों को गूगल तक पहुँचाता था। फिर उन्होंने एक ऐसी चीज़ पर काम करना शुरू किया, जो बाद में इंटरनेट की दुनिया में क्रांति बन गई—गूगल क्रोम ब्राउज़र। यह ब्राउज़र आज दुनियाभर के 70% से अधिक यूज़र्स का पसंदीदा बन चुका है।

गूगल में उनके शानदार प्रदर्शन के बाद 2015 में उन्हें Google का CEO बना दिया गया। और फिर 2019 में Alphabet Inc का भी CEO बना दिया गया—जो गूगल की पैरेंट कंपनी है। इसका मतलब है, आज सुंदर पिचाई उन चुनिंदा लोगों में हैं, जो दुनिया के सबसे बड़े डेटा नेटवर्क और तकनीकी साम्राज्य के शीर्ष पर बैठे हैं।

लेकिन इतनी ऊँचाई पर पहुँचने के बावजूद, वे अपने भारतीय मूल को कभी नहीं भूले। उन्होंने गूगल के कई उत्पादों को भारत-केंद्रित बनाया—जैसे गूगल पे, जो भारत में डिजिटल भुगतान का मुख्य प्लेटफॉर्म बन गया है। उन्होंने भारत में इंटरनेट सस्ता करने और डिजिटल साक्षरता बढ़ाने के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की। उनके नेतृत्व में गूगल ने भारत के स्टार्टअप्स, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश किया।

जब भी वे भारत आते हैं, तो उनके शब्दों में एक अजीब-सी भावुकता होती है। वे कहते हैं—”भारत ने मुझे सपने देखना सिखाया… और अमेरिका ने उन्हें पूरा करने का अवसर दिया।” ये लाइन सिर्फ एक वाक्य नहीं, बल्कि उस प्रवासी भारतीय की आत्मा है, जो आज भी अपनी जड़ों से जुड़ा है… भले ही उसके पास भारतीय पासपोर्ट न हो।

भारत के लाखों युवाओं के लिए Sundar Pichai एक प्रेरणा हैं। वो बताते हैं कि सफलता किसी एक पासपोर्ट या नागरिकता से नहीं आती… बल्कि उस सोच से आती है जो सीमाओं से परे होती है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि अगर आपके भीतर जुनून है, संघर्ष करने की क्षमता है और सीखने का जज़्बा है—तो दुनिया की कोई ताकत आपको रोक नहीं सकती।

आज जब भारत वैश्विक स्तर पर एक टेक्नोलॉजी पावरहाउस बनने की ओर बढ़ रहा है, तो Sundar Pichai जैसे प्रवासी भारतीयों की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। वे पुल की तरह हैं—जो भारत और दुनिया के बीच तकनीकी, आर्थिक और सांस्कृतिक सेतु बना सकते हैं।

हालाँकि उनके पास आज अमेरिकी पासपोर्ट है, लेकिन उनके शब्दों, उनके काम और उनके दृष्टिकोण में आज भी ‘भारत’ बसता है। उनका चेहरा जब किसी मंच पर दिखाई देता है, तो करोड़ों भारतीयों को गर्व होता है कि वह भी कभी उसी ज़मीन से आया था, जहाँ वे हैं। तो अगली बार जब कोई आपसे पूछे—”Sundar Pichai भारतीय हैं या नहीं?” तो मुस्कुरा कर कहिए—”पासपोर्ट क्या बदलेगा… दिल तो अब भी यहीं है!”

Conclusion:-

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