Subroto Bagchi की 1 रुपए की शुरुआत: माइंडट्री के सह-संस्थापक की प्रेरणादायक सफलता की कहानी!

कल्पना कीजिए—एक आदमी, जिसने करोड़ों कमाए, करोड़ों दान किए, और देश की सबसे बड़ी IT कंपनियों में से एक को खड़ा किया… वह आखिर एक 1 रुपए का चेक संभालकर क्यों बैठा है? क्या यह कोई मज़ाक है? या कोई भावनात्मक छलावा? या फिर इसमें छिपा है कोई गहरा संदेश, जो दौलत और कर्तव्य की परिभाषा बदल सकता है? आज की इस कहानी में हम आपको एक ऐसे शख्स की यात्रा पर ले चलेंगे, जिसने दिखाया कि असली अमीरी न बैंक बैलेंस में होती है, न बंगलों में—बल्कि एक विचार, एक मूल्य और एक उद्देश्य में होती है।

Subroto Bagchi… ये नाम भारत के कॉरपोरेट जगत में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। माइंडट्री के को-फाउंडर, एक ऐसे उद्योगपति, जिन्होंने तकनीक की दुनिया में भारत का नाम रोशन किया। पर उनकी पहचान सिर्फ एक सफल उद्यमी की नहीं है—बल्कि एक ऐसे नागरिक की है जिसने अपने राज्य, ओडिशा, के लिए जो किया, वह शब्दों में नहीं मापा जा सकता। जब उन्होंने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का एक चेक सोशल मीडिया पर साझा किया—जिसमें राशि थी सिर्फ 1 रुपए—तो यह कोई साधारण बात नहीं थी। यह एक प्रतीक था, एक ऐसी सोच का जो अब Rare हो चुकी है।

यह चेक किसी Product या Service के बदले का भुगतान नहीं था। यह ओडिशा सरकार द्वारा Subroto Bagchi को दी गई उनकी अंतिम सैलरी थी। उन्होंने आठ साल तक राज्य सरकार के मुख्य सलाहकार के रूप में काम किया। और हर साल के लिए, उन्हें केवल एक रुपये की सांकेतिक सैलरी दी जाती थी। कोई दूसरा होता, तो लाखों में सलाहकार शुल्क तय करता—लेकिन बागची ने अपने राज्य के लिए सेवा को एक कर्तव्य माना, व्यापार नहीं। और यह 1 रुपए का चेक, उनके लिए उस यात्रा की सबसे कीमती निशानी है।

बागची ने उस पोस्ट में लिखा, “इस जीवन में सबसे बड़ी दौलत क्या है जिसे मैं कभी नहीं छोड़ूंगा?” सवाल जितना साधारण लगता है, जवाब उतना ही गूढ़। इस एक वाक्य में समा जाता है पूरा जीवन दर्शन—जहां दौलत सिर्फ संख्याएं नहीं होतीं, बल्कि वो अनुभव, वो सेवा, वो मूल्य होते हैं जो किसी की आत्मा को समृद्ध करते हैं। और बागची की आत्मा, उन आठ वर्षों की निस्वार्थ सेवा से समृद्ध हुई थी। यही कारण है कि उन्होंने चेक को नहीं भुनाया, बल्कि उसे सहेज कर रखा—जैसे कोई अपने बचपन की तस्वीर को संभालकर रखता है।

अगर आप Subroto Bagchi के बारे में गहराई से जानें, तो उनकी कहानी में हर मोड़ पर कुछ सिखने को मिलेगा। माइंडट्री की स्थापना उन्होंने सिर्फ एक टेक्नोलॉजी कंपनी के रूप में नहीं की थी, बल्कि एक ऐसे संगठन के रूप में खड़ा किया था जो लोगों की सोच बदल सके। नेतृत्व, प्रोफेशनलिज़्म और इनोवेशन को जिस तरह से उन्होंने आत्मसात किया, वह हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा बन गया। लेकिन उनकी सबसे बड़ी सफलता सिर्फ आर्थिक नहीं थी—बल्कि नैतिक थी। और यही नैतिकता उन्हें उस भीड़ से अलग करती है जो सिर्फ पैसा कमाने में लगी रहती है।

सुब्रतो और उनकी पत्नी सुस्मिता बागची ने मिलकर जो सामाजिक कार्य किए हैं, वे भी उतने ही अद्भुत हैं। कैंसर की देखभाल के क्षेत्र में उन्होंने करोड़ों रुपये दान किए, कौशल विकास के लिए संस्थाएं बनाईं और शिक्षा व स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी। यह दान सिर्फ चेक साइन करने भर का काम नहीं था—यह उनके समय, उनकी ऊर्जा और उनके दिल से जुड़ा हुआ प्रयास था। वे जब दान करते हैं, तो वह सिर्फ एक CSR एक्टिविटी नहीं होती—बल्कि एक जिम्मेदारी होती है, एक सामाजिक अनुबंध, जिसे वे पूरी ईमानदारी से निभाते हैं।

सोशल मीडिया पर जब उन्होंने यह 1 रुपए का चेक दिखाया, तो प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। लोग भावुक हो गए, प्रेरित हो गए, और कहीं-न-कहीं शर्मिंदा भी—क्योंकि आज के दौर में जब हर कोई अपनी कीमत लगाता है, तब एक व्यक्ति ऐसा भी है जिसने अपनी सेवा की कीमत 1 रुपए तय की। एक यूज़र ने लिखा, “आपका यह काम सार्वजनिक जीवन में कमल की तरह है—जिसकी खुशबू बिना बताए ही फैलती है।” और यह सच भी है। बागची ने कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की, कोई मीडिया कवरेज नहीं मांगी। बस एक पोस्ट की… और पोस्ट ने काम कर दिया। लोगों के दिलों को छू लिया।

एक और यूज़र ने लिखा, “हमें ओडिशा में Subroto Bagchi जैसे और लोगों की जरूरत है।” यह सिर्फ एक तारीफ नहीं थी, यह एक पुकार थी। आज जब सार्वजनिक सेवा का मतलब कुर्सी और सत्ता बन गया है, बागची जैसे लोग याद दिलाते हैं कि सेवा का असली अर्थ क्या होता है। वे दिखाते हैं कि आप कितनी भी ऊंचाई पर हों, अगर आपकी जड़ें ज़मीन से जुड़ी हैं, तो आप किसी भी समाज को बेहतर बना सकते हैं।

आपको बता दें कि सांकेतिक सैलरी की परंपरा कोई नई नहीं है। महात्मा गांधी, doctor एपीजे अब्दुल कलाम, या जयप्रकाश नारायण जैसे लोगों ने भी अपने कार्यकाल में धन को कभी प्राथमिकता नहीं दी। लेकिन समय के साथ यह परंपरा खत्म सी हो गई थी। ऐसे में बागची का यह 1 रुपए का चेक फिर से हमें याद दिलाता है कि सच्ची सेवा कैसी दिखती है। यह एक ऐसा आइना है जिसमें देखकर हर नेता, हर अधिकारी, हर उद्यमी खुद से एक सवाल पूछ सकता है—क्या मैं भी ऐसा कुछ कर सकता हूं?

बागची की यह कहानी सिर्फ एक इंसान की नहीं है, यह उस विचार की है जो बताता है कि सफलता का पैमाना क्या होना चाहिए। क्या हम सिर्फ अपने लिए जी रहे हैं या किसी उद्देश्य के लिए? क्या हमारी महत्वाकांक्षाएं सिर्फ पद और पैसे तक सीमित हैं या कुछ बड़ा करने की चाह है? यह कहानी हमें झकझोरती है, सोचने पर मजबूर करती है और प्रेरणा देती है।

और सबसे खास बात यह है कि बागची ने कभी यह सब कुछ प्रचार के लिए नहीं किया। उनका यह 1 रुपए का चेक उनकी अलमारी में चुपचाप पड़ा रहा। उन्होंने तब तक कुछ नहीं कहा, जब तक उनके दिल ने नहीं कहा कि अब समय आ गया है लोगों को बताने का कि असली दौलत क्या होती है। यह एक सच्चे नेता की निशानी है—जो शब्दों से नहीं, कर्मों से बोलता है। जो दिखावे से नहीं, शांति और स्थिरता से लोगों का दिल जीतता है।

कई लोग कहते हैं कि भारत को बदलना मुश्किल है। लेकिन Subroto Bagchi जैसे लोग दिखाते हैं कि बदलाव बड़े आंदोलनों से नहीं, छोटे इरादों से आता है। जब कोई व्यक्ति तय करता है कि वह अपने राज्य, अपने देश, अपने समाज के लिए कुछ करेगा—तो उसकी शक्ति असंख्य हो जाती है। और बागची ने यह शक्ति उस 1 रुपए के चेक में समेट दी।

उनकी यह सेवा अब समाप्त हो रही है। वे सरकारी सलाहकार पद से विदा ले रहे हैं। लेकिन जो चीज़ वे पीछे छोड़कर जा रहे हैं, वह सिर्फ दस्तावेज नहीं है। यह एक विरासत है—जो नैतिकता, कर्तव्य और विनम्रता पर आधारित है। उनके जाने के बाद शायद नई नीतियाँ आएंगी, नए लोग आएंगे, लेकिन बागची की यह कहानी उन सबके लिए एक मार्गदर्शक रहेगी।

आज जब हम समाज में ईमानदारी, सेवा और विनम्रता की कमी की बात करते हैं, तब बागची का उदाहरण एक प्रकाशस्तंभ की तरह चमकता है। यह सिर्फ 1रुपए का चेक नहीं है। यह एक विचार है। एक आंदोलन है। एक संदेश है कि आप अपने कर्तव्यों को निभाकर, बिना किसी अपेक्षा के, एक ऐसा बदलाव ला सकते हैं जो पीढ़ियों तक याद रखा जाएगा।

सोचिए, अगर हमारे देश में हर राज्य को एक Subroto Bagchi मिल जाए… तो क्या हमारा भारत वैसा नहीं बन सकता जैसा हम सपना देखते हैं? एक ऐसा भारत जो सिर्फ विकास नहीं, मूल्य आधारित विकास करे। एक ऐसा भारत, जहाँ दौलत को सिर्फ पैसों से नहीं, बल्कि सेवा से मापा जाए।

Conclusion

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