चारों तरफ धुंध थी… शिलॉन्ग की पहाड़ियों में चुपचाप बहती हवा जैसे कोई राज़ फुसफुसा रही थी। और तभी, खबर आई—राजा रघुवंशी की लाश एक खाई में पाई गई। हनीमून पर गए इस नवविवाहित युवक की हत्या ने देश भर में सनसनी फैला दी। लेकिन ये कहानी सिर्फ एक हत्या की नहीं है। यह एक परिवार की बेशुमार कमाई, हवाला नेटवर्क, संदिग्ध लेन-देन और आटा चक्की से शुरू होकर करोड़ों के साम्राज्य तक पहुंचे उस सफर की है, जिसे अब देश की जांच एजेंसियां बारीकी से खंगाल रही हैं।
और इस सबके केंद्र में हैं—देवी सिंह रघुवंशी, Sonam Raghuvanshi के पिता। वो शख्स जिनका नाम पहले सिर्फ इंदौर के एक मेहनती कारोबारी के रूप में जाना जाता था, लेकिन अब उनकी गिनती उन लोगों में हो रही है जिनकी कमाई अचानक करोड़ों में पहुंच गई—इतनी तेजी से कि प्रशासन और कानून भी चौंक उठा। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
देवी सिंह रघुवंशी का सफर उत्तर प्रदेश के एक छोटे गांव से शुरू हुआ। अपने परिवार को बेहतर भविष्य देने के लिए उन्होंने इंदौर की ओर रुख किया। शुरुआत में वह आटा चक्की चलाते थे—सुबह से शाम तक मशीन की घर्र-घर्र के बीच मेहनत करके जो कुछ मिलता, उसी से गुजारा होता। लेकिन इस साधारण शुरुआत के पीछे कुछ असाधारण सपने थे। और शायद इसी सपनों की आग ने उन्हें आगे बढ़ने की ताकत दी। समय बीता, और आटा चक्की से कमाई हुई थोड़ी-बहुत पूंजी को उन्होंने प्लाईवुड बिजनेस में झोंक दिया। यहीं से शुरू हुई “बालाजी प्लाईवुड” की कहानी।
शुरुआत आसान नहीं थी। कई बार घाटा हुआ, कर्ज चढ़ा, लेकिन देवी सिंह पीछे नहीं हटे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होंने करीब 35 लाख रुपये एक साथ Investment कर कंपनी को दोबारा खड़ा किया। और फिर वही कंपनी कुछ ही सालों में इंदौर की ‘मंगल सिटी’ में इतना नाम कमाने लगी कि अब यह परिवार मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र तक में अपना व्यापार फैला चुका है। लेकिन कहानी यहीं तक सीमित नहीं रही। जैसे-जैसे दौलत आई, परिवार का रहन-सहन भी बदलने लगा।
आज देवी सिंह रघुवंशी का परिवार महंगी गाड़ियों, आलीशान घरों और दिखावेभरी लाइफस्टाइल के लिए जाना जाता है। हाल ही में इस परिवार ने इंदौर में 4000 स्क्वायर फीट का बड़ा गोदाम किराए पर लिया है। मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि देवी सिंह ने अपने सगे-संबंधियों में “रेवड़ियों की तरह पैसे बांटे”—इतना पैसा, इतनी जल्दी… कि अब लोग सवाल पूछने लगे हैं—क्या यह सब प्लाईवुड बिजनेस से ही आया है?
सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि बेटी Sonam Raghuvanshi इस समय शिलॉन्ग पुलिस की गिरफ्त में है। उसके ऊपर सिर्फ पति की हत्या का आरोप नहीं है, बल्कि हवाला नेटवर्क, मनी लॉन्ड्रिंग और संदिग्ध लेन-देन जैसे गंभीर आरोप भी हैं। और जैसे ही पुलिस ने इस केस की तहकीकात शुरू की, धीरे-धीरे सामने आने लगे उस आर्थिक साम्राज्य के ऐसे राज़, जिनकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
पुलिस ने जब बैंक रिकॉर्ड्स खंगाले, तो चौंकाने वाली बातें सामने आईं। Sonam Raghuvanshi ने अपने अनपढ़ और ग्रामीण रिश्तेदारों के नाम पर फर्जी बैंक खाते खुलवाए। मौसेरे भाई जितेंद्र रघुवंशी के नाम पर चार खाते—जिनमें लाखों का ट्रांजेक्शन हुआ। इतना ही नहीं, अपने कथित प्रेमी राज कुशवाहा की मां के नाम पर भी खाता खुलवाया गया। इन खातों में जो लेन-देन हुए, वह किसी सामान्य बिजनेस ट्रांजेक्शन जैसे नहीं थे। बार-बार छोटी-छोटी रकमें भेजी और निकाली गईं—जिसका पैटर्न हवाला की तरफ इशारा करता है।
मेघालय पुलिस के सूत्र कहते हैं कि यह सिर्फ संयोग नहीं है। जिस तरह से पैसा घुमाया गया है, उससे साफ होता है कि एक पूरा नेटवर्क काम कर रहा था। हवाला ट्रांजेक्शनों के जरिए नकद को एक जगह से दूसरी जगह भेजा जा रहा था, और प्लाईवुड कंपनी इसका एक दिखावटी मुखौटा बन चुकी थी। यहीं पर शक और गहराता है—क्या देवी सिंह रघुवंशी को अपनी बेटी की इन गतिविधियों की जानकारी नहीं थी? या फिर वे खुद इस खेल में कहीं न कहीं शामिल थे?
राजा रघुवंशी की हत्या से यह मामला एक क्राइम थ्रिलर की तरह खुलता चला गया। पीड़ित परिवार के अनुसार यह केवल एक “क्राइम ऑफ पैशन” नहीं है—यह एक आर्थिक साजिश है। राजा के भाई सचिन रघुवंशी ने स्पष्ट शब्दों में कहा—”यह एक सिस्टमेटिक फ्रॉड है। इसमें हवाला, फर्जी लेन-देन, और बड़ी रकम के काले खेल की परतें छिपी हैं।”
जब बात पैसे की हो, तो शक की सुई सबसे पहले उस स्रोत पर जाती है जहां से यह पैसा आया। और इस केस में वह स्रोत है—बालाजी प्लाईवुड। क्या वाकई यह कंपनी एक सच्चे मेहनतकश की सफलता की कहानी है? या फिर हवाला और मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए तैयार किया गया एक दिखावटी साम्राज्य? यह जांच अब ईडी, इनकम टैक्स, और अन्य वित्तीय एजेंसियों तक पहुंच चुकी है। हर दिन नए खुलासे हो रहे हैं।
सोचिए, एक आटा चक्की से शुरू हुआ जीवन… और अब करोड़ों की संपत्ति, हाई-प्रोफाइल लाइफस्टाइल, हवाला ट्रांजेक्शन, फर्जी खाते, हत्या की साजिश… सब कुछ एक ही परिवार के इर्द-गिर्द घूम रहा है। और इसी वजह से अब पूरा रघुवंशी परिवार जांच के घेरे में है। बेटा गोविंद रघुवंशी, जो कंपनी के संचालन में भागीदार था—उसकी भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। क्या वह सिर्फ व्यापार संभाल रहा था या फिर हवाला चैन का हिस्सा भी था?
मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि Sonam Raghuvanshi की लाइफस्टाइल में अचानक बड़ा बदलाव आया था। महंगे कपड़े, लग्जरी कारें, बार-बार विदेश यात्रा, ब्रांडेड सामान—इन सबके पीछे प्लाईवुड का धंधा ही था या कुछ और? हवाला से आने वाला पैसा जब “सफेद” बनता है, तो वो सबसे पहले लाइफस्टाइल में दिखाई देता है। और यही Sonam Raghuvanshi के मामले में भी हुआ।
अब जब Sonam Raghuvanshi पुलिस हिरासत में है, उसके बयान हर दिन नए मोड़ ले रहे हैं। पहले वह खुद को निर्दोष बता रही थी, लेकिन फिर उसने कई चौंकाने वाले कबूलनामे दिए। उसने कबूल किया कि उसने फर्जी खातों का उपयोग किया, लेकिन वह खुद को पीड़ित बता रही है—कह रही है कि यह सब राज कुशवाहा ने उसके कहने पर किया। लेकिन जब इतने फर्जी अकाउंट्स एक ही परिवार से जुड़े हो, और पैसों का ट्रैक सीधे एक ही कंपनी से जुड़ता हो, तो यह तर्क कमजोर लगने लगता है।
अब देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसियां इस पूरे काले कारोबार की तह तक जाने की कोशिश कर रही हैं। उनके पास बैंक रिकॉर्ड्स हैं, डिजिटल ट्रांजेक्शन का डाटा है, और अब तो हवाला नेटवर्क के कई लिंक भी सामने आ चुके हैं। सवाल ये है कि क्या यह सब Sonam Raghuvanshi ने अकेले किया? क्या देवी सिंह रघुवंशी सच में अनजान थे? या फिर आटा चक्की से लेकर करोड़ों की कंपनी तक की यह पूरी यात्रा हवाला का ही एक विस्तार थी?
सच चाहे जो भी हो, लेकिन एक बात तय है—यह मामला सिर्फ एक हत्या या हवाला का नहीं है। यह उस समाज का आईना है जहां पैसा ही सबकुछ बन गया है, और रिश्ते, भरोसा, मेहनत सब सिर्फ एक मुखौटा। और जब मुखौटा उतरता है, तो जो चेहरा दिखता है, वो डराता है।
एक समय था जब देवी सिंह रघुवंशी को लोग मेहनती इंसान मानते थे। लेकिन अब वही लोग पूछ रहे हैं—”इतनी दौलत अचानक कैसे आई?” क्या यह सचमुच एक सफल कारोबारी की कहानी है, या फिर एक क्रिमिनल नेटवर्क का बिजनेस मॉडल?
जवाब अभी जांच में हैं। लेकिन तब तक, शिलॉन्ग की उस खामोश खाई में राजा रघुवंशी की आत्मा पूछ रही होगी—”मेरी जान की कीमत सिर्फ हवाला के कुछ लाख रुपये थी?” और इंदौर की वो चक्की, जो कभी मेहनत की आवाज़ देती थी, आज सन्नाटे में डूबी है… जैसे वो खुद पूछ रही हो—”क्या मेरा इस्तेमाल सिर्फ दिखावे के लिए हुआ?”
Conclusion
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