कल्पना कीजिए एक ऐसा दौर, जब भारत की अर्थव्यवस्था अपने बदलाव की दहलीज़ पर खड़ी थी। Privatization और Liberalization की लहरें देश में दस्तक दे चुकी थीं, और हर कंपनी असमंजस में थी कि इस तूफान में टिकेगी कैसे। ठीक उसी समय, एक शख्स अपने सूझबूझ और निर्णय क्षमता से न केवल कंपनियों को दिशा दे रहा था, बल्कि उन्हें इस तूफान में स्थिरता भी दे रहा था। वो सिर्फ एक लीडर नहीं था, वो ‘मर्जर मैजिशियन’ था। एक ऐसा कॉरपोरेट जादूगर, जिसने Mergers के जरिए कंपनियों को नए जीवन दिए और बाजार की धार को बदल दिया। उनका नाम था—सुसीम मुकुल दत्ता, या फिर यूं कहिए SM Dutta। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
SM Dutta का जीवन एक General Management Trainee से शुरू होकर, भारत के सबसे बड़े एफएमसीजी ब्रांड हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड (HUL) के चेयरमैन बनने तक का अद्भुत सफर है। 1950 के दशक में उन्होंने एचयूएल में मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में कदम रखा। उस वक्त न तो तकनीक इतनी विकसित थी और न ही बाजार इतने Competitive, लेकिन SM Dutta ने जिस तेजी से उस दुनिया को समझा और उसमें अपनी जगह बनाई, वो विरले ही कर पाते हैं। वह उन लोगों में से थे, जो किसी भी चुनौती को अवसर में बदलने की कला में माहिर थे।
1990 में जब उन्हें एचयूएल का चेयरमैन बनाया गया, तब भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ अपने रिश्ते बना रहा था। यह वह दौर था जब बाजार में मल्टीनेशनल कंपनियां कदम रख रही थीं, और देश का उपभोक्ता पहली बार विकल्पों के समुद्र में उतर रहा था। ऐसे समय में SM Dutta ने न केवल कंपनी को स्थिर रखा, बल्कि उसकी पहचान को और मजबूत किया। उन्होंने लिप्टन और ब्रूक बॉन्ड जैसी दो बड़ी चाय कंपनियों को एचयूएल में मिला दिया। ये सिर्फ मर्जर नहीं था, ये एक विजन था—कि भारतीय कंपनी भी मल्टीनेशनल लेवल पर कॉम्पिटीशन कर सकती है।
उनकी सोच सिर्फ शहरी भारत तक सीमित नहीं थी। उन्होंने ग्रामीण भारत को एचयूएल की रीढ़ माना और वहां कंपनी की गहरी पैठ बनाने के लिए विशेष रणनीतियाँ बनाईं। उन्होंने महसूस किया कि असली भारत गांवों में बसता है, और वहीं से बाजार की असली शक्ति आती है। इसलिए उन्होंने ग्रामीण मार्केटिंग मॉडल को अपनाया और गांवों में अपने डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क को मजबूत किया। उनकी यही दूरदृष्टि थी जिसने एचयूएल को भारत की सबसे बड़ी एफएमसीजी कंपनी बना दिया।
सिर्फ एचयूएल ही नहीं, SM Dutta का प्रभाव भारतीय कॉरपोरेट जगत में व्यापक रहा। उन्होंने 21 से अधिक कंपनियों में लीडरशिप भूमिका निभाई, जिनमें कैस्ट्रोल इंडिया, फिलिप्स इंडिया, टाटा ट्रस्टी कंपनी, पीयरलेस जनरल फाइनेंस, और लिंडे इंडिया जैसी दिग्गज कंपनियां शामिल थीं। ये कंपनियाँ अलग-अलग सेक्टर्स में थीं—ऑयल से लेकर हेल्थकेयर और टेक्नोलॉजी तक, लेकिन हर जगह दत्ता ने वही संतुलन, वही समझ, और वही नेतृत्व दिखाया जो उन्हें ‘कॉरपोरेट योगी’ जैसा दर्जा देता है।
1993 में SM Dutta ने टाटा ऑयल मिल्स कंपनी (TOMCO) के अधिग्रहण का ऐतिहासिक निर्णय लिया। यह निर्णय न केवल व्यापारिक दृष्टिकोण से अहम था, बल्कि इससे यह भी सिद्ध हुआ कि भारतीय कंपनियां आक्रामक अधिग्रहण की रणनीतियों में भी पीछे नहीं हैं। TOMCO के Merger से न केवल व्हील डिटर्जेंट का कारोबार बढ़ा, बल्कि एचयूएल का मार्केट शेयर भी जबरदस्त रूप से बढ़ा।
एचयूएल के कार्यकाल के बाद भी उनका मार्गदर्शन कई कंपनियों ने लिया। कैस्ट्रोल इंडिया के साथ उनका रिश्ता वर्षों तक रहा और उन्होंने वहां भी नेतृत्व में उत्कृष्टता दिखाई। 2019 में उन्होंने कैस्ट्रोल से विदाई ली, लेकिन तब तक वह हजारों युवा लीडर्स के लिए प्रेरणा बन चुके थे। उन्होंने कई कंपनियों के बोर्ड में सदस्य के रूप में कार्य किया और रणनीतिक सलाह से उन्हें नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
उनके करीबी सहयोगियों में से एक, शिव शिवकुमार ने बताया कि SM Dutta सिर्फ एक मजबूत चेयरमैन ही नहीं थे, बल्कि एक गाइड, एक संरक्षक भी थे। वह कठिन सवाल जरूर पूछते थे, लेकिन टीम की मुश्किलों को भी समझते थे। टेक्नोलॉजी को लेकर उनका दृष्टिकोण भी दूरदर्शी था। जब शिवकुमार नोकिया इंडिया जॉइन करने जा रहे थे, तो दत्ता ने उन्हें बताया था कि टेक्नोलॉजी भारत का भविष्य है। उस वक्त यह सिर्फ एक सलाह नहीं थी, बल्कि एक विजन था, जो आज की डिजिटल क्रांति में सच साबित हो चुका है।
संदीप घोष, जो वर्तमान में बिड़ला कॉर्पोरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं, उन्होंने भी दत्ता के साथ काम किया है। वह बताते हैं कि 1990 का दशक जब भारत के लिए सबसे बड़ा आर्थिक बदलाव लेकर आया, तब SM Dutta ने उस परिवर्तन को समझते हुए कंपनी को री-स्ट्रक्चर किया। उन्होंने टीम के साथ हर स्तर पर बैठकर रणनीति बनाई, कर्मचारियों को भरोसा दिलाया और बाजार को दिखा दिया कि एचयूएल किसी भी चुनौती का सामना कर सकता है।
SM Dutta सिर्फ कॉरपोरेट लीडर नहीं थे, वो एक शिक्षक भी थे। उन्होंने अपने जीवन में शिक्षा को विशेष महत्व दिया और कई शैक्षणिक संस्थाओं से जुड़कर वहां अपने अनुभव साझा किए। कोलकाता विश्वविद्यालय से विज्ञान और तकनीक में पोस्टग्रेजुएशन करने के बाद, उन्होंने न केवल तकनीकी समझ विकसित की, बल्कि उसे प्रबंधन के साथ जोड़ा। All India Management Association, Indian Institute of Chemical Engineers और Institution of Engineers India, जैसे प्रतिष्ठानों से उनका जुड़ाव इस बात का प्रमाण है कि वह ज्ञान बांटने में भी विश्वास रखते थे।
उन्होंने Rabo India Finance, Atul Ltd, Bhoruka Power, Philips Electronics India और Wockhardt Hospitals जैसी कंपनियों में भी बोर्ड सदस्य के रूप में काम किया। हर जगह उन्होंने एक साइलेंट इनफ्लुएंसर की तरह, अपने फैसलों और सलाह से कंपनियों की दशा-दिशा बदली। वह कभी लाइमलाइट में नहीं आए, लेकिन उनकी छाया में कई ब्रांड्स ने अपनी स्थिरता और ऊंचाई पाई।
उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि नेतृत्व का अर्थ केवल शीर्ष पदों पर बैठना नहीं होता, बल्कि सही समय पर सही निर्णय लेकर टीम को आगे बढ़ाना होता है। उन्होंने एक ऐसी कार्य संस्कृति को जन्म दिया, जिसमें Innovation, जिम्मेदारी और पारदर्शिता के साथ विकास को प्राथमिकता दी गई। उन्होंने यह साबित किया कि कॉरपोरेट लीडरशिप एक कला है—जहां मैनेजमेंट के साथ-साथ इंसानियत भी जरूरी है।
8 जून 2024 की सुबह, जब मुंबई से यह खबर आई कि ‘मर्जर मैजिशियन’ अब हमारे बीच नहीं रहे, तो पूरे कॉरपोरेट इंडिया में एक सन्नाटा सा छा गया। यह सिर्फ एक व्यक्ति का जाना नहीं था, बल्कि एक युग का अंत था। एक ऐसा युग जिसने भारत की कंपनियों को न केवल मुनाफा कमाना सिखाया, बल्कि उन्हें मूल्य और विश्वास की नींव पर खड़ा किया। SM Dutta आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी विरासत, उनकी सोच, और उनकी प्रेरणा आने वाली पीढ़ियों को दिशा दिखाती रहेगी।
उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि बदलाव से डरना नहीं चाहिए, बल्कि उसे समझकर उस पर सवार होना चाहिए। उन्होंने कंपनियों को जोड़ना सिखाया, लेकिन उससे भी ज़्यादा उन्होंने लोगों को जोड़ना सिखाया—उनके विचारों से, उनके दृष्टिकोण से और उनके नेतृत्व से। यही वजह है कि उन्हें कॉरपोरेट दुनिया का ‘जादूगर’ कहा गया। और अब जब वह नहीं हैं, तब भी उनका जादू हर उस युवा प्रोफेशनल के दिल में ज़िंदा रहेगा, जो कॉरपोरेट में बदलाव लाने का सपना देखता है।
Conclusion
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