एक ऐसी कहानी, जो ना सिर्फ एक फिल्मी सितारे की दौलत से जुड़ी है, बल्कि आज़ादी के बाद के सबसे पेचीदा कानून, जटिल राजनीति, बंटवारे की टीस और विरासत की लड़ाई को एक साथ समेटे हुए है। ज़रा सोचिए… करोड़ों की नहीं, बल्कि 15,000 करोड़ रुपये की संपत्ति, एक पूरा महल, राजसी हवेलियां, पैलेस होटल, जमीनें, बंगले और विरासत का गहना—जिस पर अब खुद सरकार दावा ठोक रही है।
और उस दौलत के केंद्र में है एक सुपरस्टार – सैफ अली खान। हां, वही नवाबी स्टाइल में एक्टिंग करने वाला हीरो, जिसकी असल जिंदगी अब पर्दे से भी ज़्यादा ड्रामेटिक हो चुकी है। लेकिन इस बार कोई स्क्रिप्ट नहीं है, कोई रीटेक नहीं। यह कानूनी रियलिटी है—जिसमें अगर एक भी चूक हुई, तो सैफ का पूरा साम्राज्य मिट्टी में मिल सकता है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
आपको बता दें कि सैफ अली खान की भोपाल के इतिहास से निकली ये कहानी, अब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की दीवारों में उलझ चुकी है। जहां एक तरफ सैफ अली खान और उनका परिवार अपने हक के लिए लड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर सरकार और कानून उन्हें विरासत के नाम पर “enemy property” के दायरे में खींच ला रहे हैं। बात सिर्फ जमीन-जायदाद की नहीं है, बात उस पहचान की है जो सैफ को नवाबी ठाठ के साथ मिली थी। जिस पैलेस में उन्होंने अपना बचपन बिताया, वो अब सरकार के कब्जे में जा सकता है।
30 जून 2025 – इस तारीख ने सैफ की जिंदगी की सबसे बड़ी कानूनी जंग को और भी कठिन बना दिया। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सैफ, उनकी मां शर्मिला टैगोर और बहनों सोहा-सबा की याचिका खारिज कर दी। मतलब ये कि जिस फैसले के आधार पर उन्होंने खुद को भोपाल के आखिरी नवाब की संपत्ति का वारिस माना था, वो अब कानून की नजरों में टिक नहीं पाया।
असल में साल 2000 में एक निचली अदालत ने सैफ के पक्ष में फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा था कि नवाब हमीदुल्लाह खान की विरासत उनकी बेटी साजिदा सुल्तान को मिली थी, और आगे वही संपत्ति सैफ के परिवार की हो गई। लेकिन नवाब के परिवार के कुछ दूसरे सदस्यों ने इसे चुनौती दी। उनका कहना था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार यह संपत्ति सभी उत्तराधिकारियों में बराबरी से बांटी जानी चाहिए थी।
उनकी सबसे बड़ी आपत्ति ये थी कि नवाब की बड़ी बेटी अबीदा सुल्तान, जो पाकिस्तान चली गई थीं, उन्हें संपत्ति से बाहर कर देना कानूनन सही नहीं था। उनका कहना था कि साजिदा सुल्तान को इस तरीके से पूरा वारिस बनाना अन्यायपूर्ण था।
अब हाईकोर्ट ने उस पुराने फैसले को पलटते हुए साफ कहा है कि निचली अदालत को इस केस को फिर से देखना होगा। कोर्ट ने एक साल की सीमा दी है, जिसके अंदर उन्हें नई सुनवाई और फैसले के साथ सामने आना होगा। लेकिन यह सिर्फ शुरुआत थी। इस पूरे मामले में असली ट्विस्ट तब आया जब एक और कानूनी धारणा सामने आई – Enemy Property Act।
साल 2014 में एक सरकारी नोटिफिकेशन ने सबको चौंका दिया। ‘कस्टोडियन ऑफ एनिमी प्रॉपर्टी फॉर इंडिया’ नामक सरकारी संस्था ने भोपाल की इस संपत्ति को “enemy property” घोषित कर दिया। इसकी वजह थी – अबीदा सुल्तान। अबीदा सुल्तान, यानी सैफ की दादी की बड़ी बहन, जिन्होंने भारत-पाक बंटवारे के बाद पाकिस्तान की नागरिकता ले ली थी।
अब कानून के हिसाब से, जिस व्यक्ति ने पाकिस्तान की नागरिकता ले ली हो, उसकी भारत में मौजूद संपत्ति को सरकार enemy property घोषित कर सकती है। और ये सिर्फ अबीदा के नाम तक सीमित नहीं रहता – इस कानून के तहत उनके भारतीय वंशजों का भी कोई हक उस संपत्ति पर नहीं माना जाता।
यहीं से सैफ की मुसीबतें और भी बढ़ गईं। उन्होंने साल 2015 में इस नोटिफिकेशन को कोर्ट में चुनौती दी थी और तब एक अस्थायी स्टे ऑर्डर हासिल कर लिया गया था। लेकिन 13 दिसंबर 2024 को हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया और स्टे भी खत्म कर दिया। अब सरकार के पास कानूनी अधिकार है कि वो इन संपत्तियों को अपने कब्जे में ले ले।
कोर्ट ने सैफ और उनके परिवार को सिर्फ 30 दिन का समय दिया था अपील के लिए। लेकिन खबरों के अनुसार, इस अवधि के अंदर कोई अपील दायर नहीं की गई। इसका सीधा मतलब यह है कि अब भोपाल की वो सभी प्रॉपर्टीज – जो किसी दौर में सैफ की फैमिली का गर्व थीं – सरकार के अधिग्रहण के लिए तैयार हैं।
अब ज़रा उन संपत्तियों की बात करें जिन पर ये सारा विवाद खड़ा हुआ है। सबसे पहले है – नूर-उस-सबाह पैलेस। ये महल अब एक आलीशान होटल बन चुका है, लेकिन किसी दौर में नवाबों की शान हुआ करता था। इसके बाद आता है – फ्लैग स्टाफ हाउस, वही जगह जहां सैफ ने अपना बचपन बिताया था। फिर हैं – दर-उस-सलाम, हबीबी का बंगला, अहमदाबाद पैलेस, और कोहे-फिजा प्रॉपर्टी – ये सभी बेशकीमती संपत्तियां हैं जिनकी कुल कीमत 15,000 करोड़ रुपये के आसपास बताई जा रही है।
अब सवाल ये है कि आखिर enemy property कानून है क्या? इसका इतिहास हमें वापस 1965 में लेकर जाता है, जब भारत और पाकिस्तान के बीच जंग हुई थी। उस दौरान कई पाकिस्तानी नागरिकों की संपत्तियां भारत में छूट गई थीं। 1968 में सरकार ने Enemy Property Act पास किया, जिसके तहत उन सभी संपत्तियों को “enemy property” घोषित कर दिया गया जो पाकिस्तान या चीन के नागरिकों की मानी गईं। लेकिन असल सख्ती इस कानून में 2017 में लाए गए संशोधन से आई।
Enemy Property (Amendment and Validation) Act 2017 के बाद, अगर कोई व्यक्ति या उसके पूर्वज पाकिस्तान या चीन की नागरिकता ले चुके हैं, तो उस संपत्ति पर भारत में रहने वाले उनके रिश्तेदारों का भी कोई दावा नहीं माना जाएगा – चाहे उनकी भारतीय नागरिकता हो या नहीं। इस संशोधन ने हजारों भारतीय परिवारों की उम्मीदों को तोड़ दिया, जो वर्षों से ऐसी संपत्तियों को लेकर कोर्ट-कचहरी में लड़ रहे थे। अब अगर सैफ के पास इस विरासत को बचाने का कोई रास्ता बचा है, तो वो या तो सुप्रीम कोर्ट की अपील है, या केंद्र सरकार से सीधा हस्तक्षेप।
लेकिन क्या केंद्र सरकार किसी फिल्मी सितारे के लिए कानून में ढील देगी? यह सवाल सैफ की कानूनी लड़ाई को और भी गंभीर बना देता है। अब बात करें सैफ के इस संपत्ति से जुड़ाव की। सैफ को यह संपत्तियां अपनी दादी साजिदा सुल्तान से मिली थीं, जो भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान की बेटी थीं। जब अबीदा सुल्तान पाकिस्तान चली गईं, तो केंद्र सरकार ने 1962 में एक नोटिफिकेशन जारी कर साजिदा को नवाब की व्यक्तिगत संपत्तियों का कानूनी वारिस घोषित कर दिया।
इसी आधार पर बाद में ये संपत्तियां मंसूर अली खान पटौदी के नाम आईं – यानी सैफ के पिता के पास। और फिर सैफ और उनके परिवार को इसका कानूनी उत्तराधिकारी माना गया। लेकिन अब जब मामला Enemy Property Act की जटिल परिधियों में फंस गया है, तब सारे अधिकार, कागजों की जड़ियों में उलझते जा रहे हैं। इसमें भावनाओं का मसला भी है।
जिन दीवारों ने सैफ को नवाबों का वारिस बनाया, जहां उनकी दादी ने राजसी जीवन जिया, जहां उनके पिता ने क्रिकेट से लेकर राजनीति तक की बातों की योजना बनाई – अब वही दीवारें सरकारी दफ्तरों की फ़ाइलों में कैद हो गई हैं। एक दौर था जब सैफ को “नवाब” कहना स्टाइल था। आज उसी नवाबियत पर सवाल उठ रहे हैं। सिर्फ इतना ही नहीं – इस मामले से जुड़े फैसले कई और हाई प्रोफाइल संपत्ति विवादों के लिए भी मिसाल बन सकते हैं।
अगर यह फैसला Enemy Property Act के तहत संपत्ति को सरकारी घोषित करता है, तो आने वाले समय में हजारों ऐसे पुराने मामले खुल सकते हैं, जिनमें बंटवारे के समय विदेश चले गए लोगों की संपत्तियों पर विवाद बना हुआ है। यह सिर्फ एक सैफ अली खान की कहानी नहीं है – यह उस भारत की कहानी है जो आज भी बंटवारे के दर्द को अपने कानूनों में ढो रहा है। जहां एक ओर नई पीढ़ी अपने अतीत से विरासत लेना चाहती है, वहीं कानून कहता है – अगर वो अतीत पाकिस्तान की ओर मुड़ गया था, तो वह तुम्हारा नहीं रह गया।
सैफ के सामने अब दो ही रास्ते हैं – या तो वे सुप्रीम कोर्ट जाएं और यह साबित करें कि Enemy Property Act उनके मामले में लागू नहीं होता, या फिर वे सरकार से विशेष अनुमति लें, जो शायद ही संभव हो। और इस बीच, भोपाल प्रशासन इन प्रॉपर्टीज को अपने नियंत्रण में लेने की तैयारी में है। जिस दिन प्रशासन इन संपत्तियों पर कब्ज़ा कर लेगा, उस दिन सैफ का नवाबी इतिहास सरकारी कब्जे की मुहर में बदल जाएगा। और शायद आने वाले वर्षों में कोई और कहानी सुनाएगा – कि एक दौर में पटौदी खानदान के पास 15,000 करोड़ की विरासत थी, जो कानून की बारीकियों में फंसकर धूल हो गई।
Conclusion
अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।
GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।
अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business Youtube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”