सोचिए, अगर आप किसी कॉर्पोरेट मीटिंग में बैठे हों और अचानक कोई आपको कहे, “तुम अभी तक यहां क्या कर रहे हो?”… और आप बिना कुछ कहे, बिना कपड़े बदले, बिना बैग उठाए सीधे एयरपोर्ट निकल जाएं, सिर्फ इसलिए क्योंकि कंपनी को आपकी ज़रूरत है।
ये कोई फिल्मी सीन नहीं, बल्कि हकीकत है – एक ऐसे भारतीय की हकीकत जिसने कभी मुरादाबाद की गलियों से सपने देखे थे, और आज दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनी Apple का चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर बन चुका है। नाम है – Sabih Khan। इस कहानी में सिर्फ एक आदमी की तरक्की नहीं है, इसमें उस सोच की जीत है जो कहती है, “Abdul सिर्फ पंचर नहीं बनाता, Apple भी चला सकता है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
कहानी शुरू होती है उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से – एक ऐसा शहर जो अपने पीतल के बर्तनों और पारंपरिक कारीगरी के लिए जाना जाता है। लेकिन शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यहीं की गलियों में कभी एक ऐसा लड़का भी खेलता था, जो एक दिन Apple जैसी दिग्गज कंपनी की कमान संभालेगा। Sabih Khan का जन्म एक सामान्य से परिवार में हुआ था।
सपने बड़े थे लेकिन साधन सीमित। कई बार हालात ऐसे हुए कि लोगों ने कहा, “तू क्या करेगा अमेरिका जाकर? यहां रह, कोई नौकरी कर ले।” लेकिन सबीह के इरादे लोहे जैसे मज़बूत थे, और शायद मुरादाबाद की मिट्टी में पलकर उन्होंने वही हुनर सीखा था – किसी भी आकार को तराश देना।
सबीह का सफर भारत से सिंगापुर और फिर अमेरिका तक का रहा। ये कोई आसान रास्ता नहीं था। न भाषा की सहूलियत, न आर्थिक आराम, लेकिन एक चीज़ थी जो हर परिस्थिति में उनके साथ थी – उनकी लगन। उन्होंने टफ्ट्स यूनिवर्सिटी से इकॉनॉमिक्स और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री ली, और फिर आरपीआई यानी रेंसलर पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट से मास्टर्स किया। एक ऐसा इंसान जिसने तकनीक और आर्थिक समझ दोनों को अपना हथियार बना लिया।
1995 में जब बहुत से लोग एप्पल के भविष्य को लेकर असमंजस में थे, तब Sabih Khan ने Apple को जॉइन किया। उस समय कंपनी मुश्किल दौर में थी – Macintosh की लोकप्रियता घट रही थी, Steve Jobs कंपनी में नहीं थे और Microsoft तेजी से आगे बढ़ रहा था। लेकिन सबीह ने उस कंपनी को चुना जिसका भरोसा दुनिया धीरे-धीरे खो रही थी। क्यों? क्योंकि सबीह को दूसरों से अलग दिखने का शौक नहीं था, उन्हें अलग सोचने की आदत थी।
Apple में सबीह ने शुरुआत की इंजीनियरिंग टीम के साथ। धीरे-धीरे वो उन चुनिंदा लोगों में शामिल हो गए जिनकी नजर सिर्फ स्क्रीन डिज़ाइन या फीचर्स पर नहीं थी, बल्कि वो Apple के सप्लाई चेन की धड़कनों को समझते थे। साल 2019 में उन्हें Apple का सीनियर वाइस प्रेसिडेंट बनाया गया और उनके कंधों पर आए कंपनी के सबसे अहम सेक्टर्स – मैन्युफैक्चरिंग, पर्यावरणीय जिम्मेदारी और सप्लाई चेन ऑपरेशन।
फिर आया साल 2020 – एक ऐसा साल जब पूरी दुनिया ठहर सी गई थी। कोविड ने जहां आम आदमी की ज़िंदगी थाम दी थी, वहीं कंपनियों की सप्लाई चेन पूरी तरह चरमरा गई थी। लेकिन Apple की डिलीवरी में देरी नहीं हुई, प्रोडक्शन नहीं रुका। इसकी वजह सिर्फ टेक्नोलॉजी नहीं थी, बल्कि एक ऐसा इंसान जो दबाव में भी शांति से निर्णय लेता था – Sabih Khan। उन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में प्रोडक्शन को बांटा, वैकल्पिक सप्लायर्स से साझेदारी की और सुनिश्चित किया कि Apple के ग्राहक दुनिया के किसी कोने में हों, उनके पास समय पर डिलीवरी पहुंचे।
Apple के CEO टिम कुक ने खुद सबीह की तारीफ करते हुए उन्हें ‘ब्रिलियंट स्ट्रैटजिस्ट’ कहा। उन्होंने बताया कि कैसे सबीह ने पर्यावरणीय स्थिरता में Apple की कोशिशों को एक नई दिशा दी। उन्होंने कंपनी के कार्बन फुटप्रिंट को 60 प्रतिशत से भी ज्यादा घटाने में बड़ी भूमिका निभाई। लेकिन कुक ने एक बात और कही जो सबीह की असली पहचान है – “He leads with his heart and values.” मतलब, सबीह सिर्फ दिमाग से नहीं, दिल और उसूलों से काम करते हैं।
Sabih Khan सिर्फ एक कॉर्पोरेट एग्जीक्यूटिव नहीं हैं, वो एक मिशन पर हैं – दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनी को ना सिर्फ टेक्नोलॉजिकल लीडर बनाना, बल्कि उसे नैतिकता, पर्यावरण और समर्पण के प्रतीक के रूप में भी स्थापित करना। और इस मिशन में उनकी सबसे बड़ी ताकत है – उनका भारतीय संस्कार, जहां ‘कर्म’ को पूजा माना गया है।
2008 की एक और घटना ने सबीह की कमिटमेंट को नई परिभाषा दी। Apple की मीटिंग चल रही थी, सप्लाई चेन की एक गंभीर समस्या पर चर्चा हो रही थी। टिम कुक ने सवाल किया, “आप अभी भी यहीं हैं?” और सबीह उठे, बिना कपड़े बदले, बिना बैग लिए सीधे एयरपोर्ट के लिए निकल पड़े – चीन जाने के लिए। कोई वापसी की तारीख नहीं तय, कोई एयरलाइन प्रायोरिटी नहीं, सिर्फ एक चीज़ थी – Apple को अब मेरी ज़रूरत है।
सोशल मीडिया पर जब ये खबर आई कि एक भारतीय – और वो भी यूपी के मुरादाबाद से – Apple का COO बन गया है, तो प्रतिक्रियाएं बौछार की तरह आने लगीं। किसी ने इसे भारत के लिए गौरव का क्षण कहा, किसी ने इसे नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा बताया। लेकिन एक कमेंट जो सबसे ज़्यादा वायरल हुआ, उसमें लिखा था – “अब्दुल सिर्फ पंचर नहीं बनाता, अब्दुल Apple का COO भी बनता है।” ये लाइन सिर्फ तंज नहीं थी, बल्कि उस सोच की हार थी जो नाम देखकर इंसान की काबिलियत का अंदाज़ा लगाती है।
आज जब दुनिया Diversity और Inclusion की बात करती है, तो Sabih Khan जैसे लोगों की कहानियां उस सोच को सच्चाई में बदलती हैं। उन्होंने साबित कर दिया कि चाहे नाम कुछ भी हो, पहचान आपकी मेहनत से बनती है। मुरादाबाद का वो लड़का जिसने शायद कभी गलियों में साइकल चलाई होगी, आज करोड़ों iPhones के पीछे की रणनीति तय करता है।
भारत में अब सबीह की चर्चा सिर्फ इसलिए नहीं हो रही कि वो Apple में ऊंचे पद पर पहुंचे हैं। चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि उन्होंने उन सभी भारतीयों को उम्मीद दी है जो सीमित संसाधनों में बड़े सपने देखते हैं। उन्होंने दिखा दिया कि अगर मेहनत की ईमानदारी हो, तो मुरादाबाद से मैकबुक तक का सफर भी तय हो सकता है।
Apple के नए COO बनने के बाद सबीह का फोकस और बड़ा हो गया है। अब उनकी जिम्मेदारी सिर्फ सप्लाई चेन या मैन्युफैक्चरिंग नहीं, बल्कि पूरी कंपनी के day-to-day operations की निगरानी है। जिस तरह उन्होंने अब तक हर संकट में Apple को स्थिर रखा, अब वही अनुभव पूरी कंपनी को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा।
सबीह की ये सफलता बताती है कि भारत सिर्फ एक मार्केट नहीं है, बल्कि टैलेंट का भंडार है। Silicon Valley में बैठा हर CEO आज भारत की ओर देख रहा है – सिर्फ ग्राहक के तौर पर नहीं, बल्कि लीडर के तौर पर भी। और Sabih Khan जैसे लोग उस लीडरशिप का चेहरा बनते जा रहे हैं।
एक वक्त था जब अंतरराष्ट्रीय कंपनियों में भारतीय नाम ढूंढने पड़ते थे। आज, चाहे Microsoft के सत्या नडेला हों, Alphabet के सुंदर पिचाई, IBM की अरविंद कृष्णा या अब Apple के Sabih Khan – भारतीय हर उस कुर्सी पर हैं जहां से दुनिया की दिशा तय होती है। Sabih Khan की कहानी एक उदाहरण है कि किस तरह एक सपना, एक संघर्ष और एक संकल्प मिलकर इतिहास बना सकते हैं। ये कहानी हर उस युवा के लिए है जो अपने हालात से जूझ रहा है, जो खुद को सिर्फ एक नाम या पहचान से सीमित समझता है।
सबीह ने सिर्फ खुद को नहीं बदला, उन्होंने समाज की सोच बदलने का बीड़ा उठाया है – बिना किसी भाषण के, सिर्फ अपने काम और अपने कर्म से। उन्होंने ये दिखा दिया कि लीडर वही नहीं होता जो सबसे ऊपर बैठा हो, लीडर वो होता है जो ज़रूरत पड़ने पर सबसे पहले खड़ा हो। तो अगली बार जब कोई अब्दुल, रवि या सुरेश अपने छोटे से गांव से निकलकर बड़े सपने देखे, तो उसे ये कहने वाला न मिले कि “तू क्या कर पाएगा?” बल्कि हर कोई कहे, “तू भी एक दिन Apple चला सकता है।”
Conclusion:-
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