ज़रा सोचिए… सुबह का वक्त है। आप अख़बार खोलते हैं और पहली हेडलाइन यही पढ़ते हैं—“अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50% टैरिफ लगा दिया।” पहले तो आपको लगता है कि यह सामान्य खबर है, क्योंकि ट्रंप अक्सर विवादित फैसले लेते रहे हैं। लेकिन जैसे ही आप खबर की गहराई में जाते हैं, आपकी आँखें चौड़ी हो जाती हैं। क्योंकि यह सिर्फ़ एक टैक्स का मामला नहीं है, यह दुनिया की सबसे बड़ी लोकतंत्र और सबसे पुरानी लोकतंत्र के बीच की खींचतान है।
यह ऐसा कदम है जो सिर्फ़ व्यापार को नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था और ताक़त के समीकरण को बदल सकता है। और तभी आप टीवी ऑन करते हैं—वहाँ अमेरिकी अर्थशास्त्री बैठकर चिल्ला रहे हैं, कह रहे हैं कि “भारत एक ऐसा तूफान है जिसे रोकना ट्रंप के बस की बात नहीं।” अमेरिका के अंदर ही अपने राष्ट्रपति की नीतियों को आत्मघाती और मूर्खतापूर्ण बताया जा रहा है। यह सिर्फ़ आलोचना नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि अब खेल बदल रहा है और भारत अब वह खिलाड़ी है जिसे नज़रअंदाज़ करना नामुमकिन है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
आपको बता दें कि ट्रंप का यह फैसला साधारण नहीं था। भारत पर 50% टैरिफ लगाया गया और इसके पीछे एक और खास वजह बताई गई—भारत रूस से तेल खरीद रहा है। लेकिन जब आप इस दलील की तह में जाते हैं तो हैरानी होती है। भारत रूस से तेल जरूर खरीदता है, लेकिन उसकी मात्रा चीन और यूरोप की तुलना में बहुत कम है।
फिर भी अमेरिका ने यूरोप पर इतनी सख़्ती नहीं दिखाई, चीन को भी उतना नहीं घेरा, लेकिन भारत को सीधा निशाना बनाया गया। इसमें कहीं न कहीं राजनीतिक संदेश छुपा है। ट्रंप यह दिखाना चाहते हैं कि वे वैश्विक ताक़त हैं और भारत को दबाव में ला सकते हैं। लेकिन अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह उनकी सबसे बड़ी भूल है। क्योंकि भारत आज ऐसा बाज़ार है, ऐसी ताक़त है जिसे न दबाया जा सकता है और न नज़रअंदाज़ किया जा सकता है।
अमेरिकी अर्थशास्त्री जेफ़री सैक्स ने इस नीति को “इतिहास का सबसे मूर्खतापूर्ण कदम” कहा है। अब एक और नाम जुड़ चुका है—रिचर्ड वोल्फ। ये दोनों सिर्फ़ अकादमिक लोग नहीं हैं, बल्कि दुनिया की अर्थव्यवस्था को दशकों से पढ़ाने और समझाने वाले बड़े दिमाग हैं। वोल्फ का कहना है कि ट्रंप की टैरिफ नीति अमेरिका के ही खिलाफ़ जाएगी।
क्योंकि जब आप भारत जैसे विशाल देश को बाज़ार से बाहर करते हैं, तो आप दरअसल उसे मजबूर कर देते हैं कि वह अपने नए सहयोगी ढूंढे। और भारत के पास विकल्पों की कमी नहीं है। BRICS जैसा संगठन पहले से मौजूद है, जहाँ भारत, चीन, रूस, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका मिलकर दुनिया की 35% से ज़्यादा जीडीपी और लगभग आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
वोल्फ ने अपने इंटरव्यू में बहुत गहरी बात कही। उन्होंने कहा कि अमेरिका अपनी नीतियों से अनजाने में BRICS को और मजबूत कर रहा है। सोचिए, यह वही BRICS है जिसे कभी पश्चिम ने गंभीरता से नहीं लिया था। लेकिन आज हालत यह है कि BRICS का दायरा बढ़ रहा है, नए देश इसमें शामिल होना चाहते हैं, और यह पश्चिमी देशों के मुकाबले एक वैकल्पिक आर्थिक शक्ति बन चुका है। टैरिफ और आर्थिक प्रतिबंधों की राजनीति ने भारत, चीन और रूस जैसे देशों को एक-दूसरे के करीब ला दिया है। और इसका सबसे बड़ा श्रेय अमेरिका की टकराव वाली नीतियों को ही जाता है।
भारत की स्थिति इस पूरे खेल में और भी दिलचस्प है। क्योंकि भारत अब दुनिया का सबसे बड़ा देश है, जनसंख्या में उसने चीन को पीछे छोड़ दिया है। यह 140 करोड़ से ज्यादा लोगों का विशाल बाज़ार है। आज अमेरिका समेत हर देश जानता है कि भविष्य का असली ग्राहक और असली उत्पादन शक्ति भारत है। भारत का मध्यम वर्ग तेजी से बढ़ रहा है। हर साल करोड़ों लोग गरीबी से निकलकर उपभोक्ता वर्ग में शामिल हो रहे हैं। ऐसे में भारत से दूरी बनाना अमेरिका के लिए आत्मघाती कदम साबित होगा।
रिचर्ड वोल्फ ने चेतावनी दी है कि अगर ट्रंप इसी राह पर चलते रहे, तो भारत अपने Export के लिए दूसरे बाज़ार ढूंढ लेगा। उन्होंने रूस का उदाहरण दिया—जब यूरोप ने रूस से तेल खरीदना बंद किया, तो रूस ने एशिया और अफ्रीका में अपने ग्राहक बना लिए। उसी तरह भारत भी अमेरिका से हटकर BRICS और अन्य देशों में अपने सामान को बेच सकता है। और जब ऐसा होगा, तो अमेरिका सिर्फ़ एक बड़ा बाज़ार ही नहीं खोएगा, बल्कि अपनी वैश्विक ताक़त भी खो देगा।
अब ज़रा आँकड़ों पर गौर कीजिए। G7 देश, जिन्हें कभी दुनिया की सबसे अमीर और सबसे शक्तिशाली इकाई माना जाता था, आज वैश्विक उत्पादन का सिर्फ़ 28% हिस्सा संभालते हैं। वहीं BRICS देश 35% तक पहुँच चुके हैं और हर साल यह अंतर बढ़ रहा है। आबादी के मामले में अंतर और भी बड़ा है। अमेरिका के पास दुनिया की सिर्फ़ 4.5% आबादी है, जबकि भारत, चीन और रूस मिलकर आधी दुनिया का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसका मतलब साफ है—भविष्य का असली बाज़ार, असली उपभोक्ता और असली ताक़त पश्चिम में नहीं, बल्कि पूर्व में है।
भारत इस पूरे समीकरण में “गेम चेंजर” है। क्योंकि भारत न सिर्फ़ आबादी के लिहाज़ से बड़ा है, बल्कि आर्थिक विकास के मामले में भी सबसे तेज़ दौड़ रहा है। IMF और वर्ल्ड बैंक तक मानते हैं कि भारत आने वाले सालों में 7% से अधिक की दर से बढ़ेगा। जबकि अमेरिका और यूरोप 2% के आसपास अटके रहेंगे। इसका सीधा मतलब है कि भारत को रोकना अब नामुमकिन है। ट्रंप जितना उसे दबाने की कोशिश करेंगे, भारत उतना ही मज़बूत होता जाएगा।
यहाँ पर एक और महत्वपूर्ण बिंदु आता है—मनोवैज्ञानिक युद्ध। ट्रंप की टैरिफ नीति सिर्फ़ आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक संदेश भी है। वे दिखाना चाहते हैं कि अमेरिका अब भी दुनिया का “बॉस” है। लेकिन असलियत यह है कि उनके कदम अमेरिका की कमजोरी को उजागर कर रहे हैं। अमेरिका अब वह ताक़तवर देश नहीं रहा जो दूसरों को आदेश दे सके। अब वह एक ऐसा देश बनता जा रहा है जो अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए हर तरह की चालें चलता है—चाहे वह टैरिफ हो, प्रतिबंध हो या धमकियाँ।
भारत के लिए यह एक सुनहरा मौका है। आज ट्रंप की नीतियाँ भारत को मजबूर कर रही हैं कि वह नए सहयोगी बनाए। और भारत ने यह काम शुरू भी कर दिया है। BRICS बैंक, स्थानीय करेंसी में व्यापार, ऊर्जा समझौते—ये सब दिखाते हैं कि भारत अब अमेरिका पर निर्भर नहीं है। भारत अब आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी है।
अंततः यह कहानी सिर्फ़ टैरिफ की नहीं है। यह कहानी है उस तूफान की, जिसका नाम है भारत। और अमेरिकी अर्थशास्त्री खुद मान रहे हैं कि यह तूफान इतना प्रचंड है कि ट्रंप जैसे नेता भी इसे थाम नहीं पाएंगे। यह वह दौर है जब भारत दुनिया को दिखा रहा है कि असली ताक़त बंदूक़ों और मिसाइलों में नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था में होती है। और भारत की अर्थव्यवस्था आज इतनी मज़बूत हो चुकी है कि दुनिया की सबसे बड़ी ताक़त भी उससे डर रही है।
Conclusion
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