कभी-कभी कुछ नाम अचानक दुनिया के सबसे चमकदार सितारों के बीच उभर आते हैं। अचानक खबर आती है कि टाइम मैगजीन ने साल 2025 के 100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों की लिस्ट जारी की है, और उसमें सिर्फ एक भारतीय का नाम शामिल है। सोचिए, इस भीड़ में जहां अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर जैसे दिग्गज शामिल हों, वहां एक भारतीय महिला — Reshma Kewalramani — अपनी पहचान के साथ खड़ी हो।
यह सिर्फ एक उपलब्धि नहीं, बल्कि हर उस सपने की जीत है जो सीमित संसाधनों के बावजूद, दिल के किसी कोने में पलता है। आज हम उसी असाधारण महिला की प्रेरक यात्रा पर चलेंगे, जिसने मुंबई की गलियों से उठकर अमेरिका के फार्मा वर्ल्ड पर राज किया, और अब पूरी दुनिया उसे सलाम कर रही है।
आपको बता दें कि मुंबई की गलियों में जन्मी रेशमा केवलरमानी का जीवन शुरू से ही साधारण रहा था, लेकिन उनके सपने असाधारण थे। जब वह सिर्फ 11 साल की थीं, तब उनका परिवार बेहतर भविष्य की तलाश में अमेरिका चला गया। अमेरिका — एक देश जहां अवसर भी मिलते हैं और संघर्ष भी। एक नई भाषा, एक नया माहौल, नए दोस्त और नई चुनौतियां — 11 साल की Reshma Kewalramani के लिए सबकुछ अनजान था। लेकिन उनमें कुछ अलग था — एक अदम्य इच्छाशक्ति, जो हर नई चुनौती को स्वीकार करना जानती थी। बोस्टन में नई जिंदगी शुरू हुई, जहां रेशमा ने खुद को साबित करने के लिए दिन-रात मेहनत करनी शुरू कर दी।
1998 में Reshma Kewalramani ने बोस्टन यूनिवर्सिटी से लिबरल आर्ट्स और मेडिकल एजुकेशन प्रोग्राम पूरा किया। ये एक बेहद कठिन कोर्स था, जो सिर्फ पढ़ाई का नहीं, बल्कि समर्पण का भी इम्तहान था। लेकिन Reshma Kewalramani ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी मेडिकल फेलोशिप के लिए देश के सबसे प्रतिष्ठित अस्पतालों में जगह बनाई — मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल, ब्रिघम एंड विमेंस हॉस्पिटल, और मैसाचुसेट्स आई एंड ईयर इन्फर्मरी जैसे संस्थानों में उन्होंने अपनी चिकित्सा सेवा दी। एमआईटी जैसे संस्थान के साथ भी उनका जुड़ाव रहा। ये वो मंच थे, जहां दुनिया के सबसे तेज दिमाग काम करते हैं, और रेशमा ने वहां अपनी अलग पहचान बनाई।
Reshma Kewalramani का सपना सिर्फ डॉक्टर बनना नहीं था, बल्कि वह स्वास्थ्य सेवाओं में नेतृत्व करना चाहती थीं। इसलिए 2015 में उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से जनरल मैनेजमेंट की डिग्री ली। इस फैसले ने उनके करियर को एक नया मोड़ दिया। जहां एक ओर वह मरीजों की सेवा कर रही थीं, वहीं दूसरी ओर वह स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़े निर्णय लेने के लिए खुद को तैयार कर रही थीं। उनका विजन साफ था — वह सिर्फ एक डॉक्टर नहीं, एक लीडर बनना चाहती थीं जो लाखों लोगों की जिंदगी बदल सके।
2017 वह साल था जब Reshma Kewalramani ने वर्टेक्स फार्मास्यूटिकल्स कंपनी ज्वाइन की। एक कंपनी जो बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में दुनिया भर में जानी जाती है। 2018 में उन्हें कंपनी का चीफ मेडिकल ऑफिसर बनाया गया। यह पद कोई साधारण जिम्मेदारी नहीं थी — कंपनी के हर मेडिकल फैसले पर उनकी मुहर जरूरी थी। और फिर 2020 में वह वर्टेक्स की सीईओ बन गईं। सोचिए, एक भारतीय लड़की जो कभी एक नए देश में सिर्फ एक छात्रा बनकर आई थी, आज एक वैश्विक बायोटेक्नोलॉजी कंपनी की कप्तान बन गई थी।
Reshma Kewalramani के नेतृत्व में वर्टेक्स ने इतिहास रच दिया। उन्होंने दो नई दवाइयों का विकास कराया — ट्रिफैक्टा, जो सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसी जानलेवा बीमारी के इलाज में कारगर साबित हुई, और VX-147, जो किडनी से जुड़ी एक गंभीर बीमारी के इलाज के लिए बनाया गया। खास बात यह है कि वर्टेक्स ने CRISPR तकनीक पर आधारित एक थेरेपी विकसित की, जिसे अमेरिका की दवा एजेंसी FDA ने मंजूरी दी। यह थेरेपी ‘सिकल सेल’ नाम की खतरनाक बीमारी का इलाज करती है। दुनिया भर में करोड़ों लोग इस बीमारी से जूझते हैं, और रेशमा की अगुवाई में वर्टेक्स ने उनके लिए उम्मीद की एक किरण जलाई।
Reshma Kewalramani की उपलब्धियों की गूंज इतनी तेज थी कि टाइम मैगजीन ने उन्हें साल 2025 के दुनिया के, 100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों की लिस्ट में जगह दी। और गौर करने वाली बात यह थी कि इस लिस्ट में वह अकेली भारतीय थीं। यह केवल Reshma Kewalramani के लिए नहीं, बल्कि हर उस भारतीय के लिए गर्व का पल था जो विदेश में मेहनत कर रहा है, अपने सपनों के पीछे भाग रहा है। उनकी सफलता ने साबित कर दिया कि अगर हौसले बुलंद हों, तो देश, भाषा, जाति कोई भी दीवार बड़ी नहीं होती।
आज रेशमा केवल एक फार्मा कंपनी की सीईओ नहीं हैं, बल्कि वह बदलाव की एक मिसाल हैं। उनके दो जुड़वां बेटे हैं, और वह बोस्टन में एक साधारण लेकिन गरिमामय जीवन जीती हैं। काम और परिवार के बीच संतुलन बनाना आसान नहीं होता, लेकिन Reshma Kewalramani ने यह कर दिखाया है। वह युवा लड़कियों के लिए एक रोल मॉडल बन चुकी हैं, जो यह दिखाती हैं कि आप एक शानदार प्रोफेशनल भी बन सकती हैं और एक जिम्मेदार मां भी।
Reshma Kewalramani का सफर यह भी दिखाता है कि असली लीडरशिप क्या होती है। वह अपनी टीम को साथ लेकर चलती हैं, अपने सहयोगियों को प्रेरित करती हैं, और विज्ञान को इंसानियत की सेवा में लगाती हैं। उनके लिए दवाइयां केवल उत्पाद नहीं हैं, बल्कि लाखों जिंदगियों को बेहतर बनाने का जरिया हैं। उनके काम करने का तरीका यह बताता है कि सच्ची सफलता वही है, जो दूसरों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए।
टाइम की 2025 की लिस्ट में Reshma Kewalramani का नाम उन दिग्गजों के साथ लिखा गया है, जिनके फैसलों से दुनिया की दिशा तय होती है। डोनाल्ड ट्रंप, मार्क जुकरबर्ग, कीर स्टार्मर, मुहम्मद यूनुस जैसे वैश्विक नेताओं के बीच एक भारतीय महिला का नाम चमकना सिर्फ व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि भारत की नई वैश्विक पहचान का प्रतीक है। यह बताता है कि भारतीय मूल के लोग अब केवल नौकरियों में नहीं, बल्कि नेतृत्व की कुर्सी पर भी अपनी जगह बना रहे हैं।
Reshma Kewalramani की कहानी हर उस युवा के लिए प्रेरणा है, जो आज अपने छोटे से कमरे में बड़े सपने देख रहा है। जो सोचता है कि क्या वाकई में उसकी मेहनत रंग लाएगी? जवाब है — हां, अगर हिम्मत है, तो दुनिया बदलने से भी कोई नहीं रोक सकता। Reshma Kewalramani ने न केवल अपने लिए एक रास्ता बनाया, बल्कि हजारों लड़कियों को दिखा दिया कि सपने सीमाओं से बड़े होते हैं।
अगर इस कहानी से हम कुछ सीख सकते हैं, तो वह यह है कि संघर्ष से कभी मत डरिए। बदलाव को अपनाइए। अवसर को पहचानिए और जब मौका मिले तो उसे दोनों हाथों से थाम लीजिए। क्योंकि अगर Reshma Kewalramani कर सकती हैं, तो हम सभी भी कर सकते हैं। बस जरूरत है सपनों को खुली आंखों से देखने की, और उन्हें सच्चाई में बदलने के लिए जी-जान लगा देने की।
Reshma Kewalramani रानी हैं, जिन्होंने हार्वर्ड के क्लासरूम से लेकर अमेरिका की फार्मा इंडस्ट्री के बोर्डरूम तक अपनी जगह बनाई। जो एक छोटे से कमरे से निकलकर दुनिया के सबसे बड़े मंचों पर पहुंचीं। और आज, जब उनका नाम टाइम मैगजीन में दर्ज हुआ है, तो वह सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि करोड़ों सपनों का प्रतीक बन चुकी हैं।
Conclusion
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