Rare Earth में भारत की बड़ी जीत! चीन की चाल पर पानी फेरता नया रणनीतिक गठबंधन। 2025

चुपचाप एक दस्तावेज़ पर दस्तखत हुए… कोई घोषणा नहीं… कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं… न ही किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर कोई हलचल… लेकिन इन स्याही के निशानों ने भारत जैसे देश की नींव को हिला देने वाली चाल चल दी। चीन ने 2025 के लिए Rare Earth यानी दुर्लभ पृथ्वी तत्वों का माइनिंग और स्मेल्टिंग कोटा जारी कर दिया—बिना दुनिया को बताए। पहले ये बातें सार्वजनिक होती थीं, बड़ी शान से घोषित की जाती थीं। मगर इस बार, सब कुछ खामोशी से हुआ। और यही खामोशी आज भारत के लिए तूफान बन गई है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

आपको बता दें कि इस खबर के सामने आते ही भारतीय रणनीतिकारों की पेशानी पर बल पड़ने लगे। क्योंकि Rare Earth Elements कोई आम खनिज नहीं होते। ये हैं 17 ऐसे तत्व जो आज की आधुनिक दुनिया को चलाते हैं—ईवी से लेकर मिसाइल तक, मोबाइल से लेकर विंड टरबाइन तक। चीन इस पूरी supply chain का बादशाह है, और भारत? वह लगभग पूरी तरह चीन पर निर्भर। और अब चीन का ये खामोश फैसला—एक ऐसा संकेत है कि वह इस उद्योग पर अपनी पकड़ को और मजबूत कर रहा है, अपनी मर्जी से, अपने नियमों से।

भारत में इलेक्ट्रिक वाहन का उद्योग तेजी से बढ़ रहा है। हर रोज़ नई ईवी कंपनियाँ खुल रही हैं, Investment आ रहे हैं, और सरकार भी 2030 तक 30% वाहन बिक्री को ईवी बनाना चाहती है। लेकिन ज़रा सोचिए, अगर इन वाहनों की सबसे महत्वपूर्ण सामग्री ही मिलनी बंद हो जाए… तो क्या होगा? Rare Earth Magnets जैसे Neodymium और Dysprosium के बिना ईवी मोटर एक ढांचे के सिवा कुछ नहीं।

इतना ही नहीं, विंड टरबाइन जो हरियाली की आस दिखाते हैं, रोबोट जो मैन्युफैक्चरिंग को तेज़ करते हैं, और रक्षा प्रणालियां जो देश की सीमाओं की रक्षा करती हैं—इन सबकी नींव में Rare Earth शामिल है। और चीन ने अब इन्हें अपने Export Restriction List में डाल दिया है, वह भी अमेरिका के टैरिफ का जवाब देने के बहाने। लेकिन असल चाल है वैश्विक दबदबा बनाना।

आम तौर पर चीन साल में दो बार सरकारी कंपनियों के लिए कोटा जारी करता था। मगर इस बार, वो भी बिना किसी जानकारी के, गुपचुप तरीके से जारी किया गया। कंपनियों को यहां तक कहा गया कि ये डेटा सुरक्षा कारणों से साझा न किया जाए। ये दर्शाता है कि चीन अब सिर्फ उत्पादन पर ही नहीं, सूचना के प्रवाह पर भी नियंत्रण चाहता है।

पिछले साल 2.7 लाख टन का माइनिंग कोटा था। लेकिन इस बार मात्रा बताई ही नहीं गई। क्या ये मात्रा बढ़ी है या घटाई गई? रहस्य बना हुआ है। लेकिन इतना साफ है कि सप्लाई चेन पर चीन का शिकंजा कसता जा रहा है। और भारत जैसे देश जो 95% से ज़्यादा Rare Earth चीन से Import करते हैं, उनकी नींद उड़ना तय है।

भारतीय कंपनियों की स्थिति बेहद नाजुक हो चुकी है। Society of Indian Automobile Manufacturers, यानी SIAM ने सरकार को स्पष्ट चेतावनी दी है कि Rare Earth Magnets की Inventory घट रही है। इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ रहा है। उदाहरण के तौर पर, Maruti Suzuki को अपना EV Vitara मॉडल अप्रैल से सितंबर 2025 तक दो-तिहाई तक घटाना पड़ा है। इतना बड़ा असर, एक खामोश फैसले से!

इसी वजह से अब भारत में उत्पादन लागत भी तेजी से बढ़ रही है। सप्लाई की कमी, कीमतों में उछाल, और विकल्पों की गैर-मौजूदगी ने भारत के ईवी मिशन को बड़ा झटका दिया है। सरकार और उद्योग दोनों इस बात को लेकर बेचैन हैं कि यदि जल्द समाधान नहीं निकाला गया, तो भारत की ईवी क्रांति की रफ्तार धीमी पड़ सकती है।

इस संकट ने भारत को एक नई दिशा में सोचने पर मजबूर किया है। अब भारतीय इंजीनियर और वैज्ञानिक Rare Earth-Free Powertrain पर काम कर रहे हैं। यानी ऐसे मोटर्स और बैटरी जो Rare Earth Magnets पर निर्भर न हों। इसके लिए Copper, Steel, और Aluminium जैसी घरेलू धातुओं का इस्तेमाल बढ़ाया जा रहा है। यह सिर्फ तकनीकी बदलाव नहीं, बल्कि रणनीतिक आत्मनिर्भरता की ओर बड़ा कदम है।

मगर इस बदलाव में समय लगेगा। और तब तक क्या? इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग निकाय ELCINA की रिपोर्ट बताती है कि Rare Earth संकट के कारण भारत में 21,000 से ज़्यादा नौकरियां खतरे में हैं। हेडफोन, स्पीकर्स, वियरेबल्स जैसे उत्पादों के लिए Neodymium-Iron-Boron Magnets बेहद ज़रूरी हैं। और इनका लगभग पूरा Import चीन से होता है।

अब ज़रा सोचिए… देश की युवाओं की नौकरियां, स्टार्टअप्स के सपने, उद्योगपतियों का Investment, और सरकार की योजनाएं—सिर्फ एक कोटा प्रणाली के कारण डगमगा रही हैं। चीन ने Rare Earth पर ऐसा शिकंजा कसा है कि पूरी दुनिया उसकी चालों को लेकर सतर्क हो गई है।

इसके अलावा, रक्षा क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। भारत की रक्षा परियोजनाएं—मिसाइल सिस्टम, इलेक्ट्रॉनिक जैमर, रडार, सबमें Rare Earth की ज़रूरत होती है। और इस सप्लाई चेन पर चीन का शिकंजा सिर्फ आर्थिक नहीं, रणनीतिक भी है। यह भारत की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए गंभीर चिंता का विषय है।

इतिहास बताता है कि चीन 2006 से इस क्षेत्र पर नियंत्रण करना चाहता था। तभी कोटा प्रणाली की शुरुआत हुई थी। और धीरे-धीरे, उसने छोटी कंपनियों को विलय कराकर दो बड़े समूह बना दिए—China Rare Earth Group और China Northern Rare Earth Group। अब कोटा इन्हीं को मिलता है। यानी सरकार के इशारे पर चलने वाला Centralized production।

2024 में जब चीन ने Imported Ore को भी कोटा प्रणाली में शामिल करने की बात कही, तब तो देश के भीतर की कंपनियों ने भी विरोध किया। जो कंपनियां Imported minerals पर निर्भर थीं, उन्हें डर था कि वे कच्चे माल तक पहुंच खो देंगी। मगर चीन टस से मस नहीं हुआ। क्योंकि उसका उद्देश्य है—पूरे उद्योग पर नियंत्रण।

इसका सबसे बुरा असर भारत जैसे देशों पर पड़ा है। भारत के पास भी Rare Earth के भंडार हैं, जैसे अरुणाचल, कर्नाटक और राजस्थान में। मगर हमने उसका पूर्ण रूप से दोहन नहीं किया। नीति, पर्यावरणीय मंजूरी, तकनीकी उपकरण और Investment की कमी ने भारत को Importer बना दिया। और यही कमजोरी आज चीन के लिए ताकत बन गई है।

अब वक्त है भारत को इस नींद से जागने का। भारत सरकार ने हाल ही में Rare Earth Exploration को बढ़ावा देने के लिए कुछ नीतियां बनाई हैं, Geological Survey of India (GSI) को सक्रिय किया गया है। लेकिन यह लंबी प्रक्रिया है। तब तक वैश्विक दबाव, Investors की चिंता और घरेलू उत्पादन की सुस्ती—इन सबसे निपटना पड़ेगा।

इस संकट ने एक सवाल और उठाया है—क्या हम Technological Independence के लिए तैयार हैं? क्या हमारी फैक्ट्रियां और स्टार्टअप्स भविष्य में चीन-मुक्त सप्लाई चेन बना सकते हैं? जवाब है—अगर आज से शुरुआत हो तो हां। लेकिन यदि हम फिर से चूक गए, तो Rare Earth हमारी दुर्बलता बनकर उभरेगा।

आज आवश्यकता है कि हम घरेलू खनिज संसाधनों की खोज को गति दें, R&D में Investment बढ़ाएं, और निजी कंपनियों को इस क्षेत्र में प्रोत्साहन दें। साथ ही, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी भी ज़रूरी है, जो खुद भी चीन से परेशान हैं और Alternative supply चेन की खोज में हैं।

इस पूरे परिदृश्य से एक बात स्पष्ट होती है—चीन ने Rare Earth को महज़ खनिज नहीं, बल्कि रणनीतिक हथियार बना लिया है। और जब कोई देश अपने खनिजों को हथियार बना ले, तो युद्ध सिर्फ सीमा पर नहीं, उद्योगों और अर्थव्यवस्थाओं के बीच लड़ा जाता है।

आज भारत को तय करना है—क्या वह इस Supply जाल में फँसा रहेगा या स्वतंत्रता की राह खुद तय करेगा? क्योंकि Rare Earth की यह कहानी अब सिर्फ खनन की नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता, तकनीकी स्वतंत्रता और आर्थिक मजबूती की बन चुकी है।

Conclusion

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