ज़रा सोचिए… आधी रात का समय है। दिल्ली के नॉर्थ ब्लॉक की ऊँची इमारतों में अब भी लाइटें जल रही हैं। सरकारी अफ़सरों की थकी आँखें रिपोर्टों पर टिकी हैं और विदेश मंत्रालय से लेकर Ministry of Finance तक एक ही सवाल हवा में तैर रहा है—क्या भारत को रूस से तेल खरीदना जारी रखना चाहिए? बाहर बारिश की बूंदें टपक रही हैं, लेकिन कमरे के भीतर माहौल तपता हुआ है।
अचानक एक नाम गूंजता है—Raghuram Rajan। वही पूर्व आरबीआई गवर्नर, जिनकी पहचान सिर्फ़ एक बैंकिंग Expert तक सीमित नहीं है, बल्कि एक ऐसे Economist की है जिसकी बातों को दुनिया का हर बड़ा नेता गंभीरता से सुनता है। और अब उन्होंने भारत को चेतावनी दी है—“रूस से तेल पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता ख़तरनाक है। अगर हालात बदले, तो इसका अंजाम बुरा होगा और यह कैसे होगा। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
रघुराम राजन की यह चेतावनी ऐसे समय पर आई है जब भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ टेंशन अपने चरम पर है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के Export पर 50% तक का टैरिफ लगाकर, सीधा संदेश दिया कि अब अंतरराष्ट्रीय व्यापार सिर्फ़ पैसों का खेल नहीं, बल्कि राजनीति और दबाव का हथियार बन चुका है। इसी माहौल में राजन का बयान भारत की नीति-निर्माताओं के लिए जैसे आईना लेकर खड़ा हो गया है।
राजन ने साफ कहा है कि रूस से मिलने वाले सस्ते तेल का लालच हमें भविष्य के बड़े संकट में डाल सकता है। उन्होंने चेताया कि अगर कभी रूस पर और कड़े प्रतिबंध लग गए, या युद्ध की दिशा बदल गई, तो भारत की Energy security खतरे में पड़ सकती है। और तब हमारी अर्थव्यवस्था पर ऐसा दबाव आएगा जिसे संभालना मुश्किल हो जाएगा।
आज भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है। हमें अपनी ज़रूरत का 85% तेल Import करना पड़ता है। पहले यह ज़रूरतें खाड़ी देशों से पूरी होती थीं, लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद रूस ने सस्ते दाम पर तेल बेचना शुरू किया और भारत ने जमकर खरीदारी की।
रिफाइनरी कंपनियों ने इस सस्ते तेल को Import कर यूरोप और एशिया के अन्य देशों में, Refined product के रूप में बेचा और अरबों डॉलर का मुनाफा कमाया। देखने में यह एक शानदार डील लगी—भारत ने कम दाम में खरीदा, ज़्यादा दाम में बेचा। लेकिन राजन का तर्क अलग है। उनका कहना है कि इस व्यवस्था का लाभ रिफाइनर कंपनियों को तो मिल रहा है, पर बाकी अर्थव्यवस्था पर इसके दुष्परिणाम पड़ रहे हैं।
उन्होंने इंटरव्यू में कहा—“हमें यह समझना होगा कि इससे किसे फायदा हो रहा है और किसे नुकसान। रिफाइनरी कंपनियां ज़रूरत से ज़्यादा मुनाफा कमा रही हैं, लेकिन हमारे एक्सपोर्टर्स पर अमेरिकी टैरिफ की चोट पड़ रही है।” यह बात सही भी है। क्योंकि अमेरिका ने भारत के कई उत्पादों—कपड़े, झींगा, स्टील—पर भारी टैरिफ लगा दिए हैं। छोटे Exporter, जिन पर लाखों रोजगार निर्भर हैं, अब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में पिछड़ते जा रहे हैं।
27 अगस्त से लागू हुए ये टैरिफ एशिया पर लगाए गए सबसे बड़े शुल्कों में शामिल हैं। इसका सीधा असर भारतीय exporters की लागत पर पड़ा है। उनकी Competition कम हो गई है। और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी स्थिति कमजोर हो रही है। यह स्थिति भारत की विकास दर और रोजगार दोनों के लिए खतरे की घंटी है।
राजन का इशारा साफ है—अगर रूस से तेल खरीद का लाभ इतना बड़ा नहीं है कि पूरे देश को फायदा पहुँचे, तो फिर सरकार को इसे जारी रखने पर पुनर्विचार करना चाहिए। क्योंकि किसी एक साझेदार पर बहुत ज़्यादा निर्भर रहना हमेशा ख़तरनाक होता है। उन्होंने कहा—“आज की वैश्विक व्यवस्था में व्यापार, Investment और Finance को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसे में भारत को बहुत सावधानी से फैसले लेने होंगे।”
इस चेतावनी में एक और परत है। राजन के बयान अमेरिका के दबाव से भी मेल खाते हैं। ट्रंप प्रशासन पहले दिन से चाहता था कि भारत रूस से तेल खरीदना बंद करे और खाड़ी देशों, अफ्रीका या अमेरिका से विकल्प तलाशे। अमेरिका का तर्क है कि रूस से हो रही खरीद यूक्रेन युद्ध को लंबा खींच रही है। अमेरिकी थिंक टैंक और सलाहकार बार-बार आरोप लगाते रहे हैं कि भारत रूसी तेल को रिफाइन करके महंगे दामों में बेचकर “मुनाफाखोरी” कर रहा है।
व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने तो यहां तक कहा कि भारतीय रिफाइनरी “यूक्रेन युद्ध को बढ़ावा दे रही हैं”। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत को तेल की उतनी ज़रूरत नहीं है जितना वह खरीद रहा है। यह सिर्फ़ मुनाफाखोरी का खेल है। इन आरोपों ने भारत-अमेरिका रिश्तों को और तनावपूर्ण बना दिया है।
लेकिन भारत का पक्ष भी उतना ही सख्त है। मोदी सरकार ने साफ कहा है कि वह किसी भी दबाव के आगे नहीं झुकेगी। भारत का तर्क है कि यूरोप भी रूसी गैस खरीद रहा है, चीन भी तेल ले रहा है, तो केवल भारत पर उंगली क्यों उठाई जाए? भारत ने अमेरिका पर भेदभाव का आरोप लगाया और कहा कि वह अपने नागरिकों की ज़रूरतों के हिसाब से ही तेल खरीदता रहेगा।
यह तनातनी केवल ऊर्जा तक सीमित नहीं है। इसका असर पूरे व्यापार पर दिख रहा है। अमेरिकी टैरिफ से भारतीय Exporter दबाव में हैं, जबकि रिफाइनरी कंपनियां मुनाफा कमा रही हैं। सवाल यह है कि देश के लिए संतुलन कहाँ है? राजन का सुझाव यही है कि भारत को अपनी Energy strategy में Diversity लानी चाहिए। रूस के साथ व्यापार जारी रहे, लेकिन उस पर पूरी निर्भरता न बने। साथ ही यूरोप, अफ्रीका और अमेरिका जैसे विकल्प भी खुले रहें।
यह सुझाव इसलिए भी अहम है क्योंकि इतिहास गवाह है—जब-जब किसी एक स्रोत पर अत्यधिक भरोसा किया गया है, संकट आते ही देश डगमगाए हैं। 1970 के दशक में खाड़ी देशों के तेल प्रतिबंध ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं को हिला दिया था। आज वही गलती भारत नहीं दोहरा सकता।
राजन ने कहा—“हमें किसी पर बहुत ज़्यादा निर्भर नहीं रहना चाहिए। व्यापार, Investment और Finance सब हथियार बन चुके हैं। हमें अपनी आपूर्ति के स्रोतों और Export बाज़ारों में विविधता लानी होगी।” उनकी यह चेतावनी केवल आज के लिए नहीं, बल्कि आने वाले दशकों के लिए है।
यहाँ एक और दिलचस्प पहलू है—अमेरिका की टैरिफ नीति के पीछे की राजनीति। ट्रंप का मानना है कि व्यापार घाटा यानी अमेरिका का नुकसान। उन्होंने टैरिफ को हथियार बनाकर Revenue जुटाने और विदेश नीति में दबाव बनाने का साधन बना लिया। भारत के लिए यह स्थिति दोहरी मार जैसी है—एक तरफ़ तेल पर दबाव, दूसरी तरफ़ Export पर चोट।
राजन ने कहा कि भारत को इस संकट को अवसर के रूप में देखना चाहिए। Global supply chains में खुद को मज़बूत करना होगा, व्यापार में आसानी बढ़ानी होगी और घरेलू फर्मों की Competitiveness को और मज़बूत करना होगा। तभी भारत 8 से 8.5% की वृद्धि दर कायम रख पाएगा और युवाओं को रोज़गार दे पाएगा।
भारत के छोटे exporters, खासकर झींगा किसानों और कपड़ा निर्माताओं के लिए यह स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण है। अमेरिकी टैरिफ ने उनकी आजीविका पर सीधा वार किया है। राजन ने कहा—“यह कदम अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए भी हानिकारक है। वे अब महंगे दाम पर सामान खरीदेंगे।” यानी इस लड़ाई में दोनों देशों के लोग हार रहे हैं।
भारत और अमेरिका के रिश्ते इस साल फरवरी से लगातार तनाव में हैं। ट्रंप ने जब 50% तक टैरिफ की घोषणा की, तब से दोनों देशों के बीच व्यापारिक बातचीत ठप हो गई है। भारत ने कहा कि वह झुकेगा नहीं, अमेरिका ने कहा कि भारत “नियम नहीं मान रहा”। इस खींचतान में सबसे बड़ा सवाल यही है—भारत का अगला कदम क्या होगा?
इस पूरी कहानी का सार यही है कि भारत को अब संतुलित नीति अपनानी होगी। सिर्फ़ रूस या सिर्फ़ अमेरिका—किसी एक के भरोसे भविष्य नहीं चल सकता। भारत को कई विकल्प रखने होंगे, और जितना संभव हो, आत्मनिर्भरता को बढ़ाना होगा। यही रघुराम राजन की चेतावनी है, और यही आज की सबसे बड़ी सच्चाई भी।
Conclusion
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