सोचिए… रात के 11 बजे का समय है। बाहर हल्की ठंडी हवा चल रही है, और आप अपनी बालकनी में खड़े, सामने चमचमाती इमारतों को देख रहे हैं। हर फ्लोर की खिड़कियों से अलग-अलग ज़िंदगियों की झलक मिल रही है—कहीं परिवार हंसी-मज़ाक कर रहा है, कहीं कोई अकेला लैपटॉप पर काम में डूबा है, तो कहीं कोई बच्चा खिड़की से झांक रहा है। लेकिन इन रोशनियों के बीच कुछ खिड़कियां ऐसी भी हैं जो पूरी तरह अंधेरी हैं… महीनों से।
बिल्डिंग के बाहर बड़े-बड़े बैनर लगे हैं—“फॉर सेल”, “पॉज़ेशन रेडी”, “लास्ट फ्यू यूनिट्स!” मगर खरीदार नदारद। और अगर कोई खरीदने आता भी है, तो दाम सुनते ही पीछे हट जाता है। हैरानी की बात ये है कि जो युवा पहले ‘अपना घर’ खरीदने को जिंदगी का सबसे अहम सपना मानते थे, अब खुद कह रहे हैं—“नहीं… अभी किराए पर ही ठीक है।” इस सोच के पीछे सिर्फ पैसों का हिसाब नहीं, बल्कि एक पूरी नई जीवनशैली और प्राथमिकताओं का बदलाव है, जिसने इस पीढ़ी की मानसिकता को पलट कर रख दिया है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
पुराने दौर में ‘अपना घर’ होना सिर्फ चार दीवारें खरीदने का मामला नहीं था, यह एक भावनात्मक और सामाजिक उपलब्धि मानी जाती थी। पेरेंट्स बच्चों से कहते थे—“बेटा, EMI भरनी पड़े तो भी घर ले लो, क्योंकि किराया तो पानी में बहा हुआ पैसा है।” शादी के बाद घर खरीदना एक तरह का रिवाज था। लेकिन आज के युवा इस सोच को चुनौती दे रहे हैं। उनके लिए आज़ादी, मूवमेंट की फ्लेक्सिबिलिटी, और अपनी कमाई का स्मार्ट इस्तेमाल, स्टेटस सिंबल से ज्यादा महत्वपूर्ण है। यही वजह है कि मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु और पुणे जैसे शहरों में, जहां प्रॉपर्टी की कीमतें आसमान छू रही हैं, वहां युवा ‘खरीदने’ से ज्यादा ‘किराए पर रहने’ को प्राथमिकता दे रहे हैं।
आंकड़े भी इस बदलाव की कहानी कह रहे हैं। मुंबई में एक अच्छे 2BHK फ्लैट का दाम 1.5 करोड़ से ऊपर है। दिल्ली-NCR के प्राइम इलाकों में कीमतें करोड़ों में हैं। बेंगलुरु और पुणे, जो IT इंडस्ट्री के हब हैं, वहां भी पिछले पांच-सात साल में दाम दोगुने हो गए हैं। ऐसे में, 10 से 15 लाख सालाना कमाने वाला एक मिडिल-क्लास युवा करोड़ों की प्रॉपर्टी कैसे खरीदे? मजबूरी में उसे होम लोन लेना पड़ेगा, लेकिन वही होम लोन उसे अगले 20 से 25 साल तक बांधकर रख देगा।
मान लीजिए, आपने 50 लाख का होम लोन लिया, 20 साल के लिए, 8.5% से 9.5% की ब्याज दर पर। EMI करीब 50,000 महीने बैठेगी। अगर आपकी सैलरी 1 लाख है, तो आधा पैसा बैंक को चला गया। बाकी आधे से घर का खर्च, बच्चों की पढ़ाई, बुजुर्ग माता-पिता की जिम्मेदारियां, मेडिकल इमरजेंसी, और थोड़ी-बहुत बचत—इन सबके बाद अपने लिए क्या बचेगा? यही वजह है कि युवा कह रहे हैं—“क्यों न इस EMI को बचाकर किसी ऐसे एसेट में लगाया जाए, जो रिटर्न भी अच्छा दे और जरूरत पड़ने पर बेचा भी जा सके?”
आज के Investment विकल्प पहले से कहीं ज्यादा विविध हैं। स्टॉक मार्केट, म्यूचुअल फंड्स, गोल्ड, डिजिटल एसेट्स, या फिर अपना खुद का बिज़नेस—ये सब युवाओं को ऐसे रिटर्न का वादा करते हैं, जो रियल एस्टेट से कहीं तेज़ हो सकते हैं। और सबसे बड़ी बात—ये Investment ‘लिक्विड’ होते हैं, यानी जरूरत पड़ने पर तुरंत कैश में बदले जा सकते हैं। जबकि घर एक ‘इलिक्विड’ एसेट है—बेचना समय लेता है, और कीमत भी मार्केट के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करती है।
करियर का बदलता स्वरूप भी इस सोच को मजबूत कर रहा है। मिलेनियल्स और जेनरेशन Z बार-बार शहर बदलने में हिचकिचाते नहीं। बेहतर अवसर, ज्यादा सैलरी, या अंतरराष्ट्रीय एक्सपोज़र—इनके लिए ये किसी भी वक्त अपना लोकेशन बदल सकते हैं। टेक सेक्टर में काम करने वाले कई प्रोफेशनल्स आज बेंगलुरु में हैं, अगले साल पुणे, और दो साल बाद शायद दुबई या सिंगापुर में। ऐसे में, अगर आपने करोड़ों लगाकर घर खरीदा है, तो उसे छोड़ना और नया शहर बसाना आसान नहीं होता। किराए का घर इस फ्लेक्सिबिलिटी का मास्टर की है—आज यहां, कल वहां।
अब रखरखाव की बात करें। घर खरीदना सिर्फ EMI भरने तक सीमित नहीं है। इसके साथ आती हैं ढेरों जिम्मेदारियां—प्रॉपर्टी टैक्स, सोसाइटी मेंटेनेंस, मरम्मत का खर्च, पेंटिंग, प्लंबिंग, इलेक्ट्रिकल रिपेयर, और भी बहुत कुछ। हर छोटी-बड़ी समस्या के लिए आपको ही पैसे और समय लगाना पड़ता है। लेकिन किराए के घर में ये सिरदर्द मकान मालिक का होता है। छत टपक रही है? मकान मालिक ठीक कराएगा। दीवार में सीलन? उसका खर्च भी वही उठाएगा। इस बचत से न सिर्फ पैसा बचता है, बल्कि आपका समय और मानसिक ऊर्जा भी बचती है।
लाइफ़स्टाइल के मामले में भी किराए पर रहना कई बार फायदेमंद साबित होता है। आज के किराए के घर, खासकर को-लिविंग स्पेसेज़, ऐसी सुविधाएं देते हैं जो स्वतंत्र रूप से घर खरीदकर पाना मुश्किल है—जैसे जिम, स्विमिंग पूल, कम्यूनिटी लाउंज, गेमिंग एरिया, हाई-स्पीड वाई-फाई, और 24/7 सिक्योरिटी। यहां रहने वाले लोग अक्सर एक जैसे करियर और सोच वाले होते हैं, जिससे दोस्ती और नेटवर्किंग दोनों का फायदा मिलता है।
शादी और परिवार की सोच भी बदल चुकी है। पहले 25 से 28 साल की उम्र में शादी होना आम बात थी, और उसके बाद ‘अपना घर’ लेने का सामाजिक दबाव बढ़ जाता था। अब शादी की उम्र बढ़ रही है, और कई लोग सिंगल रहकर अपने करियर, ट्रैवल और पर्सनल ग्रोथ पर फोकस कर रहे हैं। ऐसे में, घर खरीदने का कोई दबाव नहीं है। किराए पर रहना उन्हें वो आज़ादी देता है कि जब चाहें, अपनी जीवनशैली बदल लें, बिना किसी भारी Investment के।
मिनिमलिज़्म का ट्रेंड भी युवाओं को किराए की ओर खींच रहा है। कम सामान, ज्यादा स्पेस, और बिना अनावश्यक चीजों के बोझ के रहना—ये अब एक फैशन नहीं, बल्कि जरूरत बन गया है। फर्निश्ड किराए के घर या को-लिविंग स्पेस में बेड, सोफा, फ्रिज, वॉशिंग मशीन—सब पहले से मौजूद होते हैं। न नया फर्नीचर खरीदने का खर्च, न शिफ्टिंग का झंझट।
सबसे बड़ा फायदा है वित्तीय स्वतंत्रता। EMI में बंधने के बजाय किराए पर रहना युवाओं को अपनी कमाई का इस्तेमाल अपने सपनों के लिए करने की छूट देता है। चाहे वो यूरोप ट्रिप हो, एमबीए की पढ़ाई, कोई नई स्किल सीखना, या फिर अपना स्टार्टअप शुरू करना—पैसा हाथ में होने का मतलब है मौके पकड़ने की ताकत। आंकड़े बताते हैं कि 2023 तक ‘स्टार्टअप इंडिया’ के तहत 90,000 से ज्यादा स्टार्टअप पंजीकृत हुए, जिनमें से अधिकांश युवाओं के थे। अगर ये सभी EMI के बोझ में दबे होते, तो शायद इतने स्टार्टअप कभी जन्म ही नहीं लेते।
और अंत में—अनिश्चितता। कोविड महामारी ने ये सिखाया कि नौकरी भी स्थायी नहीं, और प्रॉपर्टी की कीमतें भी। जिन लोगों ने भारी Investment करके घर खरीदे थे, उनमें से कई को लॉकडाउन के दौरान वित्तीय दबाव झेलना पड़ा। आज का युवा इस अनुभव से सीख चुका है। वह जानता है कि बदलते समय में फ्लेक्सिबिलिटी और फाइनेंशियल बफर, प्रॉपर्टी के कागज से ज्यादा अहम है।
Conclusion
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