Pope Francis की विरासत? सादगी, सेवा और भरोसे की दौलत छोड़ गए एक सच्चे संत! 2025

वेटिकन सिटी की सर्द हवाओं में एक अजीब सी खामोशी फैल गई थी। चर्च की घंटियों की आवाज़ उस दिन कुछ अलग थी, जैसे वे किसी बहुत बड़े व्यक्ति की विदाई का ऐलान कर रही हों। हर आंख नम थी, हर दिल भारी। और उस दिन, एक सवाल हवा में तैर रहा था—क्या वाकई एक संत जैसा जीवन जीने वाला व्यक्ति, दुनिया की सबसे प्रभावशाली धार्मिक कुर्सी पर बैठने वाला शख्स, अपने पीछे कुछ छोड़कर गया है? या वो भी उस संदेश की तरह शुद्ध और खाली था जिसे उसने सारी उम्र जिया—सादगी, सेवा और समर्पण।

Pope Francis अब नहीं रहे। लेकिन क्या उनकी ज़िंदगी सिर्फ धर्म और उपदेशों तक सीमित थी, या उनके पास भी वह सब कुछ था जो आमतौर पर ताकतवर लोगों के पास होता है—जायदाद, गाड़ियां, संपत्ति? इस कहानी की परतें खोलने चलिए उस इंसान की ज़िंदगी में, जो सादगी में शिखर पर था।

88 साल की उम्र में Pope Francis ने इस दुनिया को अलविदा कहा। कुछ दिनों से वे बीमार चल रहे थे। इलाज चल रहा था, लेकिन नियति ने जैसे उन्हें बुला लिया था। हाल ही में उन्होंने अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस से मुलाकात की थी—एक मुलाकात जो अब अंतिम बन गई। जब वेटिकन सिटी की ओर से उनके निधन की पुष्टि हुई, तो न सिर्फ ईसाई दुनिया बल्कि तमाम धर्मों के लोग उस इंसान के लिए शोक में डूब गए, जिसने अपनी ज़िंदगी को पूरी तरह मानवता के लिए समर्पित कर दिया था।

कई लोगों के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक था—एक पोप की सैलरी कितनी होती है? आखिर दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक संस्थाओं में से एक के सर्वोच्च पद पर बैठने वाले व्यक्ति की वित्तीय स्थिति कैसी होती है? मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो Pope Francis ने 2013 में जब अपना कार्यभार संभाला था, तब उन्होंने एक चौंकाने वाला फैसला लिया—उन्होंने पोप पद के लिए मिलने वाली सैलरी लेने से इनकार कर दिया। जी हां, जहां आमतौर पर पोप को 32,000 डॉलर यानी करीब 26 लाख रुपए प्रति माह का वेतन मिलता है, वहीं Pope Francis ने पूरी तरह से इस राशि को लेने से मना कर दिया।

उन्होंने अपने इस फैसले को धर्म के नाम पर नहीं, बल्कि सिद्धांत के नाम पर लिया। उनका कहना था कि सेवा और नेतृत्व धन से नहीं, बल्कि त्याग से परिभाषित होते हैं। वो ये पैसे चर्च को दान करते थे, सामाजिक कार्यों में लगाते थे या फिर ट्रस्ट्स के ज़रिए ज़रूरतमंदों तक पहुंचाते थे। उनकी यह सोच ही उन्हें बाकी नेताओं और धार्मिक प्रमुखों से अलग बनाती है।

लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनके पास कुछ नहीं था। पद से जुड़े कुछ लाभ स्वाभाविक रूप से उनके पास थे। उनकी अनुमानित संपत्ति लगभग 16 मिलियन डॉलर यानी करीब 137 करोड़ रुपये आंकी गई है। इस संपत्ति में उनके पास पांच कारें थीं—हालांकि वे आमतौर पर पब्लिक ट्रांसपोर्ट या सामान्य वाहनों से ही चलते थे। यह संपत्ति भी उनके नाम कम और उनके पद के कारण ज़्यादा थी।

Pope Francis का जन्म अर्जेंटीना में हुआ था। उनका असली नाम था—जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो। उन्होंने पोप बेनेडिक्ट सोलहवें के इस्तीफे के बाद 2013 में पोप का पद ग्रहण किया और इतिहास में पहले लैटिन अमेरिकी पोप बन गए। उन्होंने शुरुआत से ही एक संदेश देना शुरू किया था—कि सच्चे धर्म में दिखावा नहीं, सादगी होती है। यही वजह थी कि उन्होंने वेटिकन के भव्य अपार्टमेंट्स को छोड़कर एक साधारण गेस्टहाउस में रहना चुना। जहां आम पोप्स आलीशान जीवन जीते थे, वहीं पोप फ्रांसिस आम जन के बीच रहने को प्राथमिकता देते थे।

उनकी गाड़ियों की संख्या भले ही पांच हो, लेकिन उन्होंने कभी भी बड़ी-बड़ी बुलेटप्रूफ लिमोज़ीन की तरफ नहीं देखा। जब उन्हें चर्च की ओर से महंगी कार दी गई, तो उन्होंने उसे त्याग दिया और एक सामान्य फिएट का चुनाव किया। ये छोटे-छोटे निर्णय उनकी मानसिकता को दर्शाते थे—कि दिखावे की ज़रूरत नहीं, अगर सच्चा नेतृत्व चाहिए।

जहां दुनिया की बड़ी हस्तियां अपनी संपत्ति बचाने और बढ़ाने में जुटी होती हैं, वहीं Pope Francis ने अपने जीवन में संपत्ति को सिर्फ सेवा का माध्यम बनाया। उन्होंने चर्च की संपत्ति और वेटिकन की वित्तीय स्थिति में पारदर्शिता लाने के लिए कई साहसिक कदम उठाए। यह आसान नहीं था। वेटिकन लंबे समय से आलोचनाओं का शिकार होता रहा है—नैतिकता, फंड मैनेजमेंट और Investment को लेकर। लेकिन Pope Francis ने इसे गंभीरता से लिया।

उन्होंने वेटिकन की लगभग 10 से 15 अरब डॉलर की संपत्ति को एक केंद्रीकृत और पारदर्शी प्रणाली में लाने की प्रक्रिया शुरू की। उन्होंने चर्च के फंड्स को गैर-नैतिक Investments से हटाने का भी फैसला लिया। चर्च के कई अधिकारी उनके इस कदम से असहमत थे, लेकिन उन्होंने पीछे हटने से इनकार कर दिया। उनके लिए नेतृत्व का अर्थ ही था—सच्चाई के साथ खड़ा होना।

Pope Francis ने शरणार्थियों, बेघरों, महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की ज़ोरदार वकालत की। उन्होंने चर्च के फंड्स का इस्तेमाल इन वर्गों की सहायता में किया। उन्होंने खासतौर पर लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के देशों में सामाजिक न्याय, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के प्रोजेक्ट्स को प्राथमिकता दी। उनका मानना था कि चर्च की दौलत का असली उद्देश्य यही होना चाहिए।

Pope Francis का जीवन हमें यह भी सिखाता है कि जब किसी व्यक्ति को अपार शक्ति मिलती है, तो वह उसे कैसे उपयोग करता है—यही उसके चरित्र की असली पहचान होती है। उन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में यह कभी महसूस नहीं होने दिया कि वह दुनिया के सबसे शक्तिशाली धार्मिक नेता हैं। उनके व्यवहार में विनम्रता, बातों में करुणा और निर्णयों में सादगी थी।

उनका मानना था कि जो लोग धर्म की सेवा में हैं, उन्हें आम जनता से अलग नहीं, बल्कि उनके बीच में रहना चाहिए। इसी विचारधारा के कारण उन्होंने चर्च के आंतरिक ढांचे में भी कई बदलाव किए। उन्होंने चर्च की कार्यप्रणाली को अधिक पारदर्शी, अधिक समावेशी और अधिक लोकतांत्रिक बनाने का प्रयास किया।

उनकी सैलरी भले ही उन्होंने न ली हो, लेकिन उनका हर फैसला करोड़ों लोगों के जीवन को छू गया। उन्होंने चर्च को सिर्फ एक धार्मिक संस्था नहीं, बल्कि एक सामाजिक संस्था की तरह पेश किया। और जब कोई संस्था समाज के दुख-दर्द को समझती है, तभी वह लोगों के दिलों में जगह बना पाती है।

उनकी मृत्यु के बाद चर्च की दीवारें भले ही खाली लग रही हों, लेकिन उनकी नीतियां और उनकी विचारधारा हर कोने में जीवित हैं। उनका छोड़ गया 16 मिलियन डॉलर का आंकड़ा लोगों के लिए आश्चर्य का विषय हो सकता है, लेकिन असल में वह दौलत नहीं थी—वह तो उनके पद से जुड़ी जिम्मेदारियां और संसाधन थे। असली संपत्ति तो उनकी वो सोच थी, जिसने दुनिया को यह दिखाया कि नेतृत्व का असली मतलब क्या होता है।

आज जब हम Pope Francis को याद करते हैं, तो उनकी संपत्ति की चर्चा ज़रूरी नहीं, बल्कि उनकी सोच को याद रखना ज़रूरी है। उन्होंने यह दिखा दिया कि सबसे ऊंचे सिंहासन पर बैठकर भी कोई व्यक्ति धरती पर रह सकता है। उनकी विरासत सिर्फ चर्च तक सीमित नहीं रहेगी—वह हर उस व्यक्ति तक पहुंचेगी जो सेवा, सादगी और संकल्प को जीवन का उद्देश्य मानता है।

Conclusion

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