Pakistan और ट्रंप का तेल का खेल: झूठे सपनों और भारत से खीझ की चौंकाने वाली कहानी! 2025

कल्पना कीजिए… एक ऐसी घड़ी जब दुनिया की सबसे बड़ी ताक़त का नेता एक थके हुए, कर्ज़ में डूबे देश से कहता है—“तुम भारत को तेल बेच सकते हो।” सुनने में अच्छा लगता है, गर्व भी होता है, लेकिन ज़रा सोचिए… अगर ये सपना ही झूठा हो? अगर ये भरोसा सिर्फ एक राजनीतिक चाल हो?

और अगर ये ‘ऊर्जा साझेदारी’ महज़ भारत पर कटाक्ष और Pakistan को झूठी दिलासा देने का ज़रिया हो, तो? डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में ठीक ऐसा ही किया—भारत पर 25% टैरिफ लगाकर Pakistan को ‘तेल Exporter देश’ बना देने का ऐलान कर दिया। लेकिन इस ऐलान के पीछे जो सच्चाई छुपी है, वो कड़वी है, भ्रमित करने वाली है और जिसे समझना बेहद जरूरी है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

भारत से नाराज़ ट्रंप को जब ये अहसास हुआ कि बार-बार धमकाने के बावजूद भारत रूस से तेल खरीदना नहीं छोड़ रहा, तो उन्होंने अपने पिटारे से एक और चाल निकाली—उन्होंने Pakistan को सामने कर दिया। उन्होंने कहा, “हम पाकिस्तान के साथ तेल साझेदारी कर रहे हैं और हो सकता है एक दिन वे भारत को भी तेल बेचें।” पहली बार सुनने में ये बात पाकिस्तान के लिए गर्व की तरह लगी होगी। लेकिन असल सवाल ये है कि क्या पाकिस्तान वाकई ऐसा करने की स्थिति में है?

जवाब—सीधा और साफ़ है—नहीं। और इसकी पुष्टि खुद आंकड़े करते हैं। US Energy Information Administration के मुताबिक, 2016 तक Pakistan के पास केवल 35 करोड़ बैरल का तेल भंडार था। इस आंकड़े के हिसाब से पाकिस्तान दुनिया में 52वें नंबर पर आता है। और अगर हम इसकी तुलना उस देश से करें जो वाकई भारत को तेल बेच रहा है—यानि रूस—तो पाकिस्तान कहीं भी खड़ा नहीं होता। और ये तो 2016 के आंकड़े हैं। तब से अब तक न कोई खोज हुई, न कोई प्रमाणिक भंडार बढ़ा।

अब बात करते हैं Pakistan की अपनी जरूरतों की। हर दिन Pakistan करीब 5,50,000 बैरल तेल की खपत करता है। जबकि उसका खुद का उत्पादन है—सिर्फ 88,000 बैरल प्रतिदिन। यानी बाकी का सारा तेल Pakistan को बाहर से खरीदना पड़ता है। मतलब यह हुआ कि जिस देश को अपनी जरूरत भर का भी तेल खुद नहीं मिल रहा, उसे अमेरिका भारत को तेल बेचने का सपना दिखा रहा है। इसे ही कहते हैं चने के झाड़ पर चढ़ाना।

लेकिन ट्रंप का बयान सिर्फ़ ऊर्जा साझेदारी का प्रस्ताव नहीं था, यह भारत पर एक ताना भी था। भारत इन दिनों रूस से सस्ते तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है। और अमेरिका, खासतौर पर ट्रंप, भारत की इस ‘आर्थिक स्वतंत्रता’ से काफी परेशान हैं। वो चाहते थे कि भारत अमेरिका से तेल खरीदे, उनके शर्तों पर खेले। लेकिन जब भारत ने साफ कह दिया कि वो राष्ट्रीय हितों के आधार पर फैसला करेगा, तो ट्रंप को न गुस्सा आया, न हैरानी—बल्कि उन्होंने एक नया मोहरा तलाश लिया। और वो था—Pakistan।

पर असली साज़िश तब सामने आई जब ट्रंप ने कहा कि एक अमेरिकी तेल कंपनी Pakistan के साथ काम करने वाली है, और वह भारत को तेल बेच सकती है। उन्होंने ये भी कहा कि “हम अभी उस कंपनी को चुनने की प्रक्रिया में हैं।” लेकिन सवाल ये है—क्या कोई भी व्यावसायिक कंपनी इतने कम प्रमाणित भंडार वाले देश में अरबों डॉलर Investment करना चाहेगी?

इस सवाल का जवाब हमें Pakistan की भूगर्भीय हकीकत से मिलता है। ट्रंप ने Pakistan के सिंधु बेसिन में किए गए हालिया भूकंपीय सर्वेक्षण का ज़िक्र किया। इन सर्वे में कुछ संभावित हाइड्रोकार्बन संरचनाएं मिली हैं। लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि जब तक किसी संरचना से ड्रिलिंग करके प्रमाणित उत्पादन नहीं होता, तब तक उसे ‘भंडार’ नहीं कहा जा सकता। इसका कोई कारोबारी मूल्य नहीं होता। और Pakistan में अब तक ऐसा कुछ नहीं हुआ।

दरअसल, किसी भी तेल संसाधन को व्यावसायिक भंडार में तब बदला जा सकता है जब वो तीन शर्तें पूरी करे—पहली, उसका आकार और गुणवत्ता स्पष्ट हो। दूसरी, वो आर्थिक रूप से व्यावहारिक हो। और तीसरी, उसके लिए एक परिभाषित विकास योजना मौजूद हो। Pakistan के पास इन तीनों में से कुछ भी नहीं है। वहां न तो तकनीक है, न पैसा, न ही राजनीतिक स्थिरता, जो किसी Foreign investors को आश्वस्त कर सके।

अब आइए बात करते हैं खर्चे की। अगर मान भी लें कि Pakistan में कहीं पर कोई अच्छा तेल भंडार मिल जाए, तो उसे व्यावसायिक स्तर पर विकसित करने के लिए कम से कम 5 अरब डॉलर और 4 से 5 साल की आवश्यकता होगी। इसके अलावा, रिफाइनरी, पाइपलाइन, Export टर्मिनल—इन सभी चीज़ों पर अलग से Investment करना होगा। और इस समय पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इतनी जर्जर स्थिति में है कि वो IMF से कर्ज मांगने के लिए भी घुटनों पर बैठ चुका है। ऐसे में खुद को ‘तेल Exporter’ घोषित कर देना, एक मज़ाक से कम नहीं लगता।

लेकिन ट्रंप के इस बयान का एक और राजनीतिक पहलू है—चीन। CPEC (चीन-Pakistan आर्थिक गलियारा) के तहत चीन पहले से ही बलूचिस्तान में भारी Investment कर चुका है। वहां का तेल और गैस इंफ्रास्ट्रक्चर चीन की निगरानी में है। ऐसे में अगर अमेरिका किसी अमेरिकी कंपनी को भेजता है तो वह चीन के हितों से सीधे टकराएगा। और चीन ये कतई नहीं चाहेगा। तो फिर ट्रंप का यह प्रस्ताव व्यावहारिक रूप से तो असंभव है ही, भू-राजनीतिक रूप से भी बेहद संवेदनशील और टकरावपूर्ण है।

असल में ट्रंप ये सब इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वो एक साथ दो निशाने साधना चाहते हैं—भारत पर दबाव और Pakistan को लालच। Pakistan को ऐसा महसूस कराना कि वह अमेरिका का नया दोस्त है, ताकि वो चीन से कुछ हद तक दूरी बनाए। लेकिन ये सब कूटनीति की शतरंज है, जहां ट्रंप को मोहरे तो चाहिए, लेकिन मोहरों को सच्चाई नहीं बताई जाती। पाकिस्तान के साथ यही हो रहा है।

ट्रंप का यह रवैया हमें 20वीं सदी की उस ‘कॉलर डिप्लोमेसी’ की याद दिलाता है, जहां ताक़तवर देश कमज़ोर देशों को गले लगाकर अपने हित साधते थे, और जब काम निकल जाए तो उन्हें वहीं छोड़ देते थे। पाकिस्तान को यह समझने की ज़रूरत है कि आज जो ट्रंप उसे भारत को तेल बेचने का सपना दिखा रहे हैं, वही कल उसे IMF के सामने फिर लाइन में खड़ा कर सकते हैं।

भारत के लिए ये घटनाक्रम एक चेतावनी भी है और अवसर भी। चेतावनी इसलिए कि अमेरिका अब भारत पर अप्रत्यक्ष दबाव बनाने के लिए पाकिस्तान जैसे मोहरों का उपयोग कर रहा है। और अवसर इसलिए कि भारत को यह एहसास हो रहा है कि उसकी ऊर्जा स्वतंत्रता ही उसकी सबसे बड़ी कूटनीतिक ताक़त है। रूस से तेल खरीदने का फ़ैसला, भारत की आर्थिक और रणनीतिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।

आख़िर में सवाल ये नहीं है कि क्या पाकिस्तान भारत को तेल बेच पाएगा। असली सवाल ये है—क्या पाकिस्तान इस झूठे भरोसे की सच्चाई समझ पाएगा? क्या वो ट्रंप के शब्दों की सच्चाई को परखेगा? या फिर एक बार फिर अमेरिका की “हां में हां” मिलाकर अपने भविष्य को अंधेरे में धकेल देगा?

इस पूरी कहानी से एक बात बहुत साफ है—अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भावनाएं नहीं, हित चलते हैं। ट्रंप का पाकिस्तान प्रेम अचानक नहीं जागा। ये एक रणनीति है—भारत को सॉफ्ट टारगेट बनाने की। लेकिन भारत अब वो नहीं रहा जो दशकों पहले था। अब भारत आंकड़ों से जवाब देता है, कूटनीति से मोर्चा लेता है, और रणनीति से मुकाबला करता है। और जब एक तरफ आंकड़े हों, आत्मनिर्भरता हो, रणनीति हो—तो दूसरी तरफ भले ही कोई झूठा सपना हो या चने के झाड़, भारत अब किसी के बहकावे में आने वाला नहीं है।

Conclusion

अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।

अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business Youtube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”

Spread the love

Leave a Comment