एक ऐसा फैसला… जो ना सिर्फ सरहद के उस पार हलचल मचा रहा है, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में आर्थिक रिश्तों के नए मायने गढ़ रहा है। कोई बम नहीं फटा, कोई टैंक नहीं चला, फिर भी पाकिस्तान हिल गया। भारत ने ऐसा झटका दिया है कि अब पाकिस्तान से एक भी सामान इस देश में दाखिल नहीं हो सकेगा — न सीधा, न घुमा-फिराकर। और यह सब ऐसे वक्त में हो रहा है जब दोनों देशों के बीच का व्यापार पहले ही वेंटिलेटर पर था। अब सवाल उठता है — क्या यह आखिरी कील है उस व्यापारिक ताबूत में, जिसमें पहले ही दरारें थीं? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
भारत सरकार ने 2 मई को एक बेहद अहम अधिसूचना जारी की, जिसमें विदेश व्यापार नीति 2023 के तहत पाकिस्तान से आने वाले किसी भी सामान पर, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर Import पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई। इस फैसले का आधार बताया गया — राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक हित। इसके पीछे वो गुस्सा है, जो पिछले महीने पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद उफान पर पहुंच गया था। इस हमले में 26 निर्दोष सैलानियों की जान गई, और देश एक बार फिर पाकिस्तान के रवैये से आहत हुआ।
इस प्रतिबंध के साथ ही भारत ने एक और बड़ा कदम उठाया — अब पाकिस्तान के झंडे वाले किसी भी जहाज को भारत के किसी बंदरगाह पर लंगर डालने की इजाजत नहीं होगी। और भारतीय झंडे वाले जहाज भी अब पाकिस्तान की सीमा में नहीं जाएंगे। यानी समुद्री व्यापार के रास्ते भी पूरी तरह बंद कर दिए गए हैं। इसके अलावा अटारी लैंड-ट्रांजिट पोस्ट को भी तत्काल बंद कर दिया गया — जो अब तक दोनों देशों के बीच सीमित व्यापार का अहम जरिया था।
अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत-पाकिस्तान व्यापार पहले ही लगभग नगण्य हो चुका था। अप्रैल 2024 से जनवरी 2025 के बीच भारत ने पाकिस्तान को करीब 448 मिलियन डॉलर का Export किया, जबकि Import केवल 0.42 मिलियन डॉलर का हुआ। और इस छोटे से Import में भी जो मुख्य वस्तुएं थीं — जैसे फल, मेवे, तिलहन और कुछ औषधीय पौधे — वे अब पूरी तरह बंद हो चुकी हैं। मतलब, जो थोड़ा-बहुत व्यापार बचा था, उस पर भी अब ताला लग गया।
भारत के इस प्रतिबंध का एक और अहम हिस्सा था — पाकिस्तान दूतावास में तैनात सेना से जुड़े लोगों को देश से निष्कासित करना और सिंधु जल संधि को निलंबित करने की घोषणा। ये कदम केवल व्यापार तक सीमित नहीं हैं, ये उस व्यापक रणनीति का हिस्सा हैं जो भारत ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग करने के लिए अपनाई है। भारत अब हर मोर्चे पर पाकिस्तान को जवाब दे रहा है — पानी, व्यापार और कूटनीति, हर तरफ से घेरा जा रहा है।
लेकिन क्या यह पहली बार है जब ऐसा कदम उठाया गया है? बिल्कुल नहीं। साल 2019 की याद ताजा हो जाती है, जब पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से आने वाले सभी Products पर 200 प्रतिशत Import duty लगा दिया था। उस समय पाकिस्तान से आने वाले ताजे फल, सीमेंट और पेट्रोलियम Products पर सीधा असर पड़ा था। इतना ही नहीं, भारत ने पाकिस्तान से एमएफएन (मोस्ट फेवर्ड नेशन) का दर्जा भी वापस ले लिया था — जो डब्ल्यूटीओ के नियमों के तहत आपसी व्यापार को बढ़ावा देने के लिए जरूरी माना जाता है।
भारत ने यह कदम डब्ल्यूटीओ के सुरक्षा अपवाद प्रावधानों का उपयोग करके उठाया, यानी जब राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में हो, तब कोई भी देश व्यापारिक छूट को वापस ले सकता है। वैसे तो भारत ने 1996 में ही पाकिस्तान को एमएफएन का दर्जा दे दिया था, लेकिन पाकिस्तान ने कभी इसके जवाब में भारत को वही दर्जा नहीं दिया। बल्कि जब 2012 में पाकिस्तान ने वादा किया कि वह भारत को एनडीएमए (गैर-भेदभावपूर्ण बाजार पहुंच) देगा, तो घरेलू दबाव में वह उससे भी पीछे हट गया।
वहीं पाकिस्तान की तरफ से भारत को लेकर हमेशा दोहरा रवैया रहा है। एक तरफ दिखावे के लिए शांति की बातें, दूसरी तरफ सीमा पार से आतंक की आपूर्ति। जब-जब भारत ने व्यापार के दरवाज़े खोले, पाकिस्तान ने उन्हें खून से रंगने की कोशिश की। पुलवामा के बाद 2019 में पाकिस्तान ने खुद ही भारत से सभी तरह का व्यापारिक रिश्ता स्थगित कर दिया था। और अब जब भारत ने भी पूरी तरह से Import पर रोक लगा दी है, तो यह एक तरह से उस पुराने फैसले की ही औपचारिक पुष्टि बन गया है।
इन हालातों में जानकारों की राय भी साफ है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अजय श्रीवास्तव कहते हैं कि पाकिस्तान से पहले ही Negligible imports होता था, और अब यह पूरी तरह शून्य हो जाएगा। भारत को इससे कोई आर्थिक नुकसान नहीं होगा, क्योंकि हम पाकिस्तानी Products पर निर्भर नहीं हैं। केवल सेंधा नमक जैसे कुछ Products का थोड़ा असर हो सकता है, लेकिन वह भी नगण्य होगा।
अगर बात करें भारत के पाकिस्तान को किए गए Export की, तो उसमें जैविक रसायन और दवाएं प्रमुख थीं। अप्रैल 2024 से जनवरी 2025 के बीच organic chemicals का Export 129 मिलियन डॉलर और दवाओं का 110 मिलियन डॉलर था। इसके अलावा भारत ने पाकिस्तान को चीनी, सब्जियां, मसाले, अनाज, पेट्रोलियम उत्पाद, उर्वरक, प्लास्टिक, रबर और ऑटो पार्ट्स का भी Export किया। यानी पाकिस्तान भारतीय Products पर अधिक निर्भर था, और भारत पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ने वाला।
अब एक नजर डालते हैं कि पाकिस्तान से भारत को Imported products क्या थे। इसमें मुख्य रूप से फल, मेवे, तांबा, प्लास्टिक उत्पाद, खाल, ऊन और हिमालयन नमक शामिल थे। इन Products पर प्रतिबंध का असर भारत पर नहीं, बल्कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। क्योंकि भारत इन सभी वस्तुओं के लिए या तो आत्मनिर्भर है, या फिर उन्हें अन्य देशों से Import कर सकता है।
अगर लंबे समय की बात करें, तो भारत-पाकिस्तान का द्विपक्षीय व्यापार पहले ही ढलान पर था। 2018 में यह व्यापार 2.41 बिलियन डॉलर था, जो 2019 में पुलवामा के बाद लगभग खत्म हो गया। पाकिस्तान ने 2019 में भारत से व्यापार स्थगित कर दिया, लेकिन 2022 और 2023 में भारत ने कुछ सीमित Export जारी रखा। यह उस परिपाटी का हिस्सा था, जिसमें भारत पाकिस्तान के नागरिकों की ज़रूरतों को देखते हुए मानवीय दृष्टिकोण से व्यापार को चालू रखता रहा।
लेकिन अब जब पाकिस्तान की आतंकवाद को लेकर नीति और हालिया पहलगाम हमले जैसे जघन्य कृत्य सामने आए हैं, भारत ने स्पष्ट संकेत दिया है कि व्यापार और आतंक एक साथ नहीं चल सकते। और शायद यही सबसे सही वक्त था इस ‘ट्रैक टू ट्रेड’ को स्थायी विराम देने का। यह केवल आर्थिक फैसला नहीं है — यह एक नैतिक, कूटनीतिक और रणनीतिक संदेश है।
भविष्य की बात करें तो अब पाकिस्तान को भारतीय Products की पूर्ति के लिए दूसरे देशों का रुख करना होगा। जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान अब तीसरे देशों के जरिए भारत से सामान प्राप्त करने की कोशिश कर सकता है, लेकिन यह तरीका महंगा और अस्थिर होगा। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का पक्ष और मजबूत होगा कि वह केवल आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कदम उठा रहा है, ना कि आम पाकिस्तानियों के खिलाफ।
यह भी साफ है कि भारत सरकार ने इस निर्णय को केवल एक जवाबी कार्रवाई के रूप में नहीं लिया है, बल्कि इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा सकता है। यह उन तमाम देशों के लिए एक चेतावनी भी है, जो दोहरी नीति अपनाते हैं — एक तरफ शांति की बात और दूसरी ओर छुपा हुआ युद्ध।
तो क्या अब भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापार की कोई गुंजाइश बची है? मौजूदा हालात में तो नहीं। और शायद यही सही भी है। जब तक विश्वास बहाल नहीं होता, जब तक सीमा पार से बंदूकें और बारूद की जगह दोस्ती और भरोसे की हवा नहीं बहती, तब तक कारोबार की बात करना बेमानी है। भारत ने अपना पक्ष साफ कर दिया है — अब न कोई समझौता, न कोई छूट।
Conclusion
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