एक ऐसा व्यक्ति जो भारत के सबसे बड़े उद्योगपतियों में गिना जाता है—जिसके नाम से शेयर बाजार में हलचल मच जाती है, जिसकी कंपनियों की पहचान हर भारतीय घर में है, जो एयरलाइंस से लेकर बिस्किट तक हर सेक्टर में मौजूद है। लेकिन जब आप उसके पारिवारिक इतिहास को जानेंगे, तो चौंक जाएंगे। क्योंकि ये शख्स कोई और नहीं, बल्कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का नाती है। नाम है—Nusli Wadia। वो नाम, जो भारत में टाटा और अंबानी जैसे दिग्गजों के साथ खड़ा है, लेकिन जिसकी पारिवारिक जड़ें उस इंसान से जुड़ी हैं जिसने भारत का बंटवारा कराया। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव और पहलगाम आतंकी हमले के बाद जब जिन्ना का नाम फिर चर्चा में आया, तब एक तथ्य ने सबको चौंका दिया—कि पाकिस्तान का संस्थापक, जिसकी वजह से दो देश बने, उसका नाती आज भारत में बिजनेस सम्राट बना बैठा है। और उसने न केवल भारत में रहना चुना, बल्कि भारत के संविधान, संस्कृति और कारोबारी आत्मनिर्भरता में विश्वास रखते हुए देश के सबसे पुराने कारोबारी घरानों में से एक को संभाला और ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
Nusli Wadia की कहानी सिर्फ बिजनेस की नहीं, बल्कि इतिहास, संघर्ष और पारिवारिक टकराव की भी है। उनकी मां दीना वाडिया, मोहम्मद अली जिन्ना की इकलौती संतान थीं। दीना का जन्म 15 अगस्त 1919 को लंदन में हुआ था—हां, वही तारीख जो बाद में भारत की आज़ादी की तारीख बनी। एक पारसी परिवार से आने वाली रतनबाई पेटिट यानी रुटी जिन्ना से जिन्ना ने शादी की थी। हालांकि ये शादी भी कम विवादित नहीं थी, क्योंकि रुटी को इसके लिए इस्लाम कबूल करना पड़ा था। यही वजह थी कि जब दीना ने एक पारसी कारोबारी नेविल वाडिया से शादी की, तो जिन्ना को यह नागवार गुज़रा।
दीना ने जिन्ना से साफ कहा था, “पिताजी, आपने भी तो एक पारसी महिला से शादी की थी।” लेकिन जिन्ना ने तर्क दिया, “वो मुस्लिम बन गई थीं।” इस जवाब ने दीना और जिन्ना के बीच रिश्तों में एक दरार पैदा कर दी। इसके बाद दोनों के बीच संबंध औपचारिक से रह गए। साल 1947 में जब पाकिस्तान का गठन हुआ, तब दीना ने वहां जाने के बजाय भारत में रहना चुना। वे जिन्ना से केवल एक बार मिलने पाकिस्तान गईं—उनकी मृत्यु से पहले।
और इसी भारत में, दीना और नेविल वाडिया के बेटे के रूप में जन्म हुआ—Nusli Wadia का। 15 फरवरी 1944 को बॉम्बे में जन्मे Nusli Wadia ने कभी भी अपने नाना की राजनीतिक विचारधारा या विरासत को आगे नहीं बढ़ाया। उन्होंने वाडिया परिवार की कारोबारी विरासत को अपनाया और उसे आधुनिक भारत के सबसे प्रभावशाली कॉर्पोरेट ब्रांड्स में बदल दिया। वे वाडिया ग्रुप के चेयरमैन हैं, जिसके अंतर्गत बॉम्बे डाइंग, ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज और गोएयर जैसी दिग्गज कंपनियां आती हैं।
लेकिन वाडिया साम्राज्य को संभालना नुस्ली के लिए आसान नहीं था। उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे। एक समय था जब Nusli Wadia ग्रुप को बेचने की चर्चा चल रही थी। लेकिन नुस्ली ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी मां दीना, अपनी बहन, दोस्तों और खासतौर से जेआरडी टाटा की मदद से कंपनी में 11% हिस्सेदारी हासिल की। उन्होंने कर्मचारियों को प्रेरित किया कि वे अपनी बचत से कंपनी के शेयर खरीदें ताकि इसे बिकने से बचाया जा सके। उस समय उनकी रणनीति और नेतृत्व ने न केवल कंपनी को संभाला, बल्कि नुस्ली को उद्योग जगत में एक नई पहचान भी दिलाई।
इस घटनाक्रम के बाद नुस्ली लंदन पहुंचे, जहां उनके पिता नेविल वाडिया एक डील पर काम कर रहे थे। नुस्ली ने उन्हें समझाया कि कंपनी को न बेचा जाए और वे खुद आगे आकर इसकी बागडोर संभालें। 1977 में वे वाडिया ग्रुप के चेयरमैन बने। उस समय से लेकर अब तक, नुस्ली ने जिस तरह से Nusli Wadia समूह को पुनर्जीवित किया है, वह किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं लगता।
नुस्ली की निजी ज़िंदगी भी काफी दिलचस्प है। उन्होंने मॉरीन वाडिया से शादी की, जो पहले एयर होस्टेस थीं। बाद में वे ग्लैडरैग्स पत्रिका की प्रमुख बनीं और मिस इंडिया व मिसेज इंडिया जैसी प्रतिष्ठित ब्यूटी प्रतियोगिताओं की आयोजक भी रहीं। नुस्ली और मॉरीन के दो बेटे हैं—नेस वाडिया और जहांगीर वाडिया। नेस वाडिया को आज खेल और उद्योग दोनों क्षेत्रों में जाना जाता है। वे आईपीएल टीम पंजाब किंग्स के को-ऑनर हैं और मीडिया में अक्सर सुर्खियों में रहते हैं।
जहांगीर वाडिया यानी जी वाडिया भी एक प्रमुख उद्योगपति हैं, जिन्होंने एविएशन सेक्टर में गो फर्स्ट को एक किफायती एयरलाइन के रूप में खड़ा किया। आज Nusli Wadia की रियल टाइम नेटवर्थ 5.6 बिलियन डॉलर यानी लगभग 47,837 करोड़ रुपये है। ये संपत्ति केवल दौलत का नहीं, बल्कि उनके परिश्रम, रणनीति और नेतृत्व का प्रतीक है।
भारत में आज जब हम कारोबार की बात करते हैं, तो टाटा, अंबानी, बिरला और बजाज जैसे नाम गूंजते हैं। लेकिन इन नामों के बीच वाडिया ग्रुप भी उसी सम्मान और स्थान का हकदार है। एक कंपनी जो भारत की स्वतंत्रता से भी पहले से मौजूद है, आज भी लाखों लोगों को रोजगार देती है और करोड़ों ग्राहकों तक अपने उत्पाद पहुंचाती है।
लेकिन जिस बात ने Nusli Wadia को अलग खड़ा किया, वो है उनका स्पष्ट दृष्टिकोण और आत्मसम्मान। चाहे वह राजनैतिक दवाब हो या प्रतिस्पर्धी कंपनियों से टकराव, नुस्ली ने हमेशा निडरता से निर्णय लिए हैं। एक वक्त पर उन्होंने रिलायंस ग्रुप के खिलाफ कानूनी लड़ाई भी लड़ी, जब वे कंपनी के संचालन में पारदर्शिता और नैतिकता की मांग कर रहे थे।
नुस्ली का जीवन इस बात का उदाहरण है कि पारिवारिक विरासत चाहे जितनी भी ऐतिहासिक हो, असली पहचान आपके अपने फैसलों और मेहनत से बनती है। उन्होंने न कभी अपने नाना मोहम्मद अली जिन्ना की विरासत को भुनाया, न ही उससे दूरी बनाकर अपना प्रचार किया। वे सिर्फ अपने काम और योगदान के दम पर भारत के सबसे सफल उद्योगपतियों में गिने जाते हैं।
आज जब भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में तल्खी है, जब जिन्ना का नाम भारतीय राजनीति में विवाद का केंद्र बना हुआ है, ऐसे समय में Nusli Wadia जैसे व्यक्ति की कहानी एक सशक्त संदेश देती है। यह बताती है कि रिश्तों से ज्यादा मायने रखते हैं—आपके मूल्य, आपका चरित्र और आपकी देशभक्ति। Nusli Wadia का भारत में रहना, काम करना, रोज़गार पैदा करना और भारत की विकास यात्रा में योगदान देना इस बात का सबूत है कि उनका दिल और कर्मभूमि हमेशा भारत रही है।
और यही है इस कहानी का सार—एक व्यक्ति जिसकी पारिवारिक जड़ें पाकिस्तान के संस्थापक से जुड़ी हैं, लेकिन जिसकी सोच, मेहनत और दृष्टिकोण ने भारत को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। ये कहानी है Nusli Wadia की—जिन्होंने ‘विरासत’ को ‘विकास’ में बदला और दिखा दिया कि असली पहचान खून से नहीं, कर्म से बनती है।
Conclusion
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