Nadia Chauhan: 17 साल की उम्र में संभाला कंपनी का जिम्मा, आज खड़ी की 8,000 करोड़ की Frooti और Appy Fizz की ताकत!

एक बच्ची जो कैलिफोर्निया की रंगीन गलियों में खेलती थी, क्या कोई सोच सकता था कि एक दिन वह भारत के करोड़ों दिलों की धड़कन बन जाएगी? वह भी सिर्फ इसलिए नहीं कि उसने कोई फिल्म की, या गाने गाए, बल्कि इसलिए कि उसने एक ऐसी ड्रिंक को नया जीवन दिया, जिसे हम सब बचपन से जानते हैं—फ्रूटी। एक ऐसी कहानी, जहां एक लड़की ने अपने सपनों और रणनीति के दम पर न केवल एक ब्रांड को बचाया, बल्कि उसे फिर से जन्म दिया। आज हम बात कर रहे हैं उस चेहरे की, जिसने फ्रूटी और ऐपि फिज को करोड़ों का ब्रांड बनाया—Nadia Chauhan।

जब गर्मी का मौसम आता है, तो सड़कों पर, बस स्टॉप पर, कॉलेज कैंपस में, ऑफिस के बाहर—हर जगह कुछ ठंडा, कुछ ताजगी भरा पीने की चाहत बढ़ जाती है। लेकिन सोचिए, फ्रूटी की मांग ऐसी है कि मौसम की कोई सीमा नहीं। सर्दी हो या गर्मी, स्कूल के टिफिन बॉक्स से लेकर ऑफिस ब्रेक टाइम तक, फ्रूटी हर जगह मौजूद रहता है। यह कोई संयोग नहीं है। इसके पीछे है दशकों की मेहनत, सही मार्केटिंग और एक विजन जो पारंपरिक सोच से बिल्कुल अलग था।

पारले एग्रो, जो भारत की प्रमुख एफएमसीजी कंपनियों में से एक है, ने फ्रूटी को बनाया। लेकिन समय के साथ बदलती पीढ़ियों की पसंद को पकड़ना कोई आसान काम नहीं था। युवाओं की रुचि तेजी से बदलती है, और अगर ब्रांड उनके साथ कदम से कदम नहीं मिला सका, तो वह पीछे छूट जाता है। यहीं से इस कहानी में आती हैं Nadia Chauhan। एक ऐसा नाम, जिसने पारले एग्रो को नए युग में ले जाने की ठान ली थी।

Nadia Chauhan ने बहुत कम उम्र में कारोबार की बागडोर थामी। महज 17 साल की उम्र में, 2003 में, उन्होंने पारले एग्रो जॉइन किया था। उस वक्त कंपनी का आकार सिर्फ 300 करोड़ रुपये का था। उनके पिता, प्रकाश जयंतीलाल चौहान ने उन्हें सिखाया था कि बिजनेस सिर्फ मुनाफे का खेल नहीं है, बल्कि विजन, Innovation और उपभोक्ता के साथ जुड़ाव का भी नाम है।

कैलिफोर्निया में जन्मीं Nadia Chauhan, मुंबई में पली-बढ़ीं। पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने यह महसूस कर लिया था कि मार्केटिंग और ब्रांडिंग में उनकी गहरी रुचि है। एचआर कॉलेज ऑफ कॉमर्स से पढ़ाई करते हुए उन्होंने बिजनेस की बारीकियों को समझा। लेकिन असली सीख तो उन्हें अपने परिवार के बिजनेस के बीच आकर मिली।

फ्रूटी उस समय एक पॉपुलर ब्रांड जरूर था, लेकिन उसमें एक ठहराव आ गया था। वह अब भी बच्चों का ड्रिंक समझा जाता था, जबकि युवा वर्ग कुछ नया, कुछ कूल तलाश रहा था। Nadia Chauhan ने यहां एक बड़ा रिस्क उठाया। उन्होंने तय किया कि फ्रूटी को केवल बच्चों के बीच सीमित नहीं रहने दिया जाएगा, बल्कि उसे एक ट्रेंडी, यंगस्टर फ्रेंडली ब्रांड बनाया जाएगा।

2005 में उन्होंने फ्रूटी की पैकेजिंग में ऐतिहासिक बदलाव किया। उस समय तक फ्रूटी एक टेट्रा पैक में आता था, जो देखने में साधारण लगता था। Nadia Chauhan ने इसे एक नई पहचान दी—पेपरबोट स्टाइल की स्टाइलिश पैकिंग। इस बदलाव ने फ्रूटी को एक नए रूप में पेश किया, और देखते ही देखते इसकी बिक्री में भारी उछाल आया।

लेकिन Nadia Chauhan यहीं नहीं रुकीं। 2010 में उन्होंने भारतीय बाजार में एक नया सेगमेंट पेश किया—कार्बोनेटेड फ्रूट-ड्रिंक। ऐपि फिज का जन्म हुआ। एक बोल्ड और फ्रेश ड्रिंक, जो पारंपरिक कोल्ड ड्रिंक्स से हटकर था। युवाओं के बीच ऐपि फिज ने इतनी तेज़ी से पकड़ बनाई कि यह खुद एक स्टैंडअलोन ब्रांड बन गया।

Nadia Chauhan की सोच स्पष्ट थी—ब्रांड को जीवित रखना है तो उसे उपभोक्ता के दिल से जोड़ना होगा। उन्होंने विज्ञापनों में भी बड़ा बदलाव किया। पारंपरिक किडी इमेज को हटाकर उन्होंने फ्रूटी को कूल और स्मार्ट दिखाया। फ्रूटी के नए विज्ञापन कैंपेन युवाओं के स्टाइल और उनके वाइब को बखूबी दर्शाते थे।

उनकी मार्केटिंग रणनीति बोल्ड और क्रिएटिव थी। चाहे वह टीवी कमर्शियल्स हों, सोशल मीडिया कैंपेन हो या आउटडोर एडवरटाइजिंग, Nadia Chauhan ने हर जगह कुछ ऐसा किया जो लोगों को फ्रूटी की ओर खींचता रहा। उन्होंने उपभोक्ताओं को यह एहसास दिलाया कि फ्रूटी सिर्फ एक ड्रिंक नहीं, बल्कि एक स्टाइल स्टेटमेंट है।

आज पारले एग्रो 8,000 करोड़ रुपये की कंपनी है। और इस शानदार सफलता के पीछे सबसे बड़ा योगदान Nadia Chauhan का है। उन्होंने न सिर्फ पुराने ब्रांड्स को रिवाइव किया बल्कि नए प्रोडक्ट्स भी लॉन्च किए जो मार्केट में धूम मचाने लगे। Nadia Chauhan के नेतृत्व में पारले एग्रो ने भारत से बाहर भी अपने पैर फैलाए। उन्होंने इंटरनेशनल मार्केट में भी अपने प्रोडक्ट्स को उतारा, और ब्रांड को एक वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में लगातार काम किया। उन्होंने भारतीय स्वाद को एक ग्लोबल अपील दी।

उनकी इस अनथक मेहनत को दुनिया ने भी सराहा। 2019 में उन्हें फॉर्च्यून इंडिया की 40 अंडर 40 लिस्ट में शामिल किया गया। यह सम्मान नादिया के उस जज्बे का प्रमाण था, जिसने पारंपरिक सीमाओं को तोड़कर नया मुकाम बनाया। आज Nadia Chauhan चौहान पारले एग्रो को 2030 तक 20,000 करोड़ रुपये का ब्रांड बनाने का सपना देख रही हैं। यह सपना महज एक संख्या नहीं है, बल्कि एक दृष्टि है—भारत के अंदरूनी स्वाद को आधुनिक दुनिया तक पहुंचाने की।

पारले एग्रो की यह कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। इसकी शुरुआत 1929 में मोहनलाल चौहान ने कन्फेक्शनरी बिजनेस से की थी। बाद में 1959 में उन्होंने बेवरेज सेक्टर में कदम रखा, और लिम्का, माजा, गोल्ड स्पॉट और थम्स अप जैसे आइकॉनिक ब्रांड्स बनाए। हालांकि बाद में इन ब्रांड्स को कोका कोला ने खरीद लिया, लेकिन पारले एग्रो ने फ्रूटी के जरिए अपना अलग मुकाम फिर से तैयार किया।

पारले ग्रुप का विभाजन भी एक दिलचस्प मोड़ था। 1984 में कंपनी दो हिस्सों में बंट गई—पारले प्रोडक्ट्स और पारले एग्रो। पारले एग्रो को जयंतीलाल चौहान ने संभाला और फिर उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया Nadia Chauhan ने।

बिजनेस के इस सफर में Nadia Chauhan को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। FMCG सेक्टर में प्रतियोगिता बेहद कड़ी है। खासकर बेवरेज सेगमेंट में तो बड़े-बड़े इंटरनेशनल ब्रांड्स का वर्चस्व था। लेकिन नादिया ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने बाजार की नब्ज को समझा और उपभोक्ता की बदलती जरूरतों के मुताबिक अपने प्रोडक्ट्स को ढाला।

Nadia Chauhan मानती हैं कि ब्रांडिंग केवल प्रचार नहीं है, यह एक अनुभव है जो उपभोक्ता के साथ जुड़ता है। इसी सोच के साथ उन्होंने पारले एग्रो के हर प्रोडक्ट को एक स्टोरी दी, एक पहचान दी। उनकी रणनीति में एक और दिलचस्प बात थी—भारत के युवाओं को केंद्र में रखना। उन्होंने महसूस किया कि भारत एक युवा देश है, और अगर ब्रांड को लंबे समय तक टिकाना है तो युवाओं को साथ जोड़ना जरूरी है। इसलिए चाहे फ्रूटी हो या ऐपि फिज, हर कैंपेन युवाओं की उम्मीदों और उनकी जीवनशैली को दर्शाता है।

इतना ही नहीं, Nadia Chauhan ने प्रोडक्ट इनोवेशन पर भी जोर दिया। उन्होंने केवल पारंपरिक फ्लेवर्स पर निर्भर नहीं रहकर नए-नए फ्लेवर एक्सपेरिमेंट किए। इसका नतीजा यह हुआ कि उपभोक्ता को हमेशा कुछ नया अनुभव करने को मिला, और ब्रांड के प्रति उनकी रुचि बनी रही। आज पारले एग्रो के पोर्टफोलियो में फ्रूटी, ऐपि फिज, बेली, स्मूड, फ्रूटी फिज जैसे कई ब्रांड्स शामिल हैं। और हर ब्रांड की अपनी एक खास पहचान है, जो उसे प्रतिस्पर्धा में अलग बनाती है।

Conclusion

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