Inspiring: Lord Swraj Paul जालंधर से हाउस ऑफ लॉर्ड्स तक, प्रेरणा और सफलता की अमर विरासत! 2025

ज़रा कल्पना कीजिए… एक साधारण-सा लड़का, जो जालंधर की धूल भरी गलियों में खेलता था, जिसके पिता का कारोबार बाल्टियाँ और खेती के औजार बनाने तक सीमित था, वही लड़का एक दिन इंग्लैंड के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में बैठकर ब्रिटेन की राजनीति और समाज की दिशा तय करने लगेगा। एक ऐसा इंसान, जिसे दुनिया अरबों डॉलर की संपत्ति वाले उद्योगपति के रूप में जानती है, लेकिन जिसकी असली पहचान उसके परोपकार और समाजसेवा से बनती है।

यह कहानी है Lord Swraj Paul की, जिन्होंने अपने जीवन में जितनी ऊँचाइयाँ देखीं, उतनी ही गहरी व्यक्तिगत त्रासदियाँ भी झेलीं। उनकी यात्रा हमें यह सिखाती है कि इंसान की असली पहचान उसकी संपत्ति नहीं, बल्कि उसकी सोच और विरासत होती है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

Lord Swraj Paul का जन्म 18 फरवरी 1931 को पंजाब के जालंधर में हुआ। उस समय भारत ब्रिटिश राज के अधीन था। छोटे कस्बे, तंग गलियाँ, मिट्टी की महक और संघर्षों से भरा माहौल—यही उनका बचपन था। उनके पिता प्यारे लाल का एक छोटा सा ढलाईखाना था, जहाँ लोहे की बाल्टियाँ और खेती-बाड़ी के औजार बनाए जाते थे।

घर का वातावरण मेहनत, सादगी और संघर्ष से भरा हुआ था। स्वराज बचपन से ही अपने पिता की फैक्ट्री जाते और देखते कि किस तरह कड़ी मेहनत से लोहे को पिघलाकर उससे औज़ार बनाए जाते हैं। शायद वहीं से उन्होंने सीखा कि धैर्य, तप और मेहनत से ही किसी धातु—और इंसान—को असली आकार दिया जाता है।

बचपन से ही स्वराज पढ़ाई में तेज़ थे। उनकी आँखों में बड़ा सपना था—कुछ ऐसा करने का, जो उन्हें भीड़ से अलग बनाए। 1949 में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से विज्ञान में Graduate की डिग्री हासिल की। लेकिन उनका मन यहीं नहीं ठहरा। वे समझ चुके थे कि अगर दुनिया में आगे बढ़ना है, तो शिक्षा ही सबसे बड़ा हथियार है। इसी सोच के साथ उन्होंने अमेरिका का रुख किया।

अमेरिका पहुँचना उस समय किसी भारतीय युवक के लिए आसान नहीं था। लेकिन स्वराज में जुनून था। उन्होंने मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) में दाखिला लिया। यहाँ उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीएससी और एमएससी की डिग्रियाँ हासिल कीं। एमआईटी का माहौल अंतरराष्ट्रीय था—वहाँ की प्रयोगशालाएँ, वहाँ का अनुशासन और विश्वस्तरीय सोच ने उनके जीवन की दिशा तय कर दी।

पढ़ाई पूरी कर स्वराज पॉल भारत लौट आए। उन्होंने अपने परिवार के एपीजे सुरेंद्र ग्रुप में हाथ बँटाना शुरू किया। लेकिन किस्मत ने उन्हें एक ऐसी चोट दी, जिसने उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया। साल 1966 में उनकी चार साल की बेटी अंबिका ल्यूकेमिया से पीड़ित हो गई। इलाज के लिए वे ब्रिटेन गए, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद अंबिका का निधन हो गया।

यह घटना उनके जीवन का सबसे बड़ा झटका थी। एक पिता के लिए अपनी मासूम बेटी को खो देना ऐसा घाव है, जो कभी भर नहीं सकता। लेकिन स्वराज ने इस दर्द को अपनी ताक़त बना लिया। उन्होंने अपनी बेटी की याद में अंबिका पॉल फाउंडेशन की स्थापना की। यही फाउंडेशन आगे चलकर दुनिया भर में बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाला एक बड़ा नाम बना।

ब्रिटेन में बसने के बाद स्वराज पॉल ने 1968 में कपारो ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज की नींव रखी। शुरुआत बेहद छोटी थी—नेचुरल गैस ट्यूब्स के उत्पादन से। लेकिन उनकी मेहनत, दूरदर्शिता और कारोबारी समझ ने इस छोटे से बिज़नेस को धीरे-धीरे एक साम्राज्य में बदल दिया। कपारो ग्रुप ब्रिटेन के सबसे बड़े स्टील रूपांतरण और वितरण व्यवसायों में शामिल हो गया। यह कंपनी यूरोप, अमेरिका, भारत और मध्य पूर्व तक फैली और 10,000 से अधिक लोगों को रोजगार देने लगी। सोचिए, एक ऐसा शख़्स जो जालंधर की तंग गलियों से निकला था, उसने हजारों परिवारों की रोज़ी-रोटी का सहारा बना दिया। यह सिर्फ कारोबार नहीं था, यह उनके विज़न और संघर्ष का परिणाम था।

2025 तक आते-आते लॉर्ड स्वराज पॉल की संपत्ति लगभग 2.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर आँकी गई। वे ब्रिटेन की संडे टाइम्स रिच लिस्ट में 81वें स्थान पर थे। लंदन के पोर्टलैंड प्लेस पर उनके आलीशान अपार्टमेंट्स और बकिंघमशायर में उनका भव्य कंट्री एस्टेट ‘द ग्रेंज’ उनकी सफलता की गवाही देते थे। लेकिन यह सिर्फ भौतिक संपत्ति थी। असली संपत्ति तो उनका परोपकार था।

स्वराज पॉल ने हमेशा माना कि पैसा तभी सार्थक है जब उससे समाज को कुछ लौटाया जाए। उन्होंने अंबिका पॉल फाउंडेशन और बाद में अरुणा एंड अंबिका पॉल फाउंडेशन के ज़रिए लाखों डॉलर शिक्षा और स्वास्थ्य परियोजनाओं पर दान किए। लंदन चिड़ियाघर का बच्चों का सेक्शन उनकी बेटी की स्मृति में बना और आज भी बच्चों की सबसे पसंदीदा जगहों में से एक है। वॉल्वरहैम्प्टन विश्वविद्यालय को उन्होंने 1.1 मिलियन डॉलर का दान दिया और वहाँ 26 साल तक कुलाधिपति के पद पर रहे। इतना ही नहीं, अपने पुराने संस्थान MIT को भी उन्होंने 5 मिलियन डॉलर दान किए। यही वजह थी कि ब्रिटेन और भारत दोनों में उन्हें हमेशा एक उदार परोपकारी के रूप में सम्मान मिला।

1996 में उन्हें ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में लाइफ पीयर बनाया गया और उन्हें ‘बैरन पॉल ऑफ मैरीलेबोन’ की उपाधि मिली। लेबर पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में वे संसद में सक्रिय रहे। उन्होंने भारतीय प्रवासियों की समस्याओं और शिक्षा के मुद्दों पर कई बार आवाज़ उठाई। 2009 में वे हाउस ऑफ लॉर्ड्स के उपाध्यक्ष भी बने। एक भारतीय मूल के प्रवासी के लिए यह किसी सपने के सच होने जैसा था।

लेकिन जितनी ऊँचाई उन्होंने अपने करियर और समाजसेवा में पाई, उतने ही गहरे दुख उन्हें निजी जीवन में मिले। बेटी अंबिका की मौत तो जैसे उनकी आत्मा पर स्थायी घाव बन गई थी। इसके बाद 2015 में बेटे अंगद पॉल की असमय मृत्यु ने उन्हें हिला दिया। फिर 2022 में उनकी पत्नी अरुणा का निधन हो गया। बार-बार आए इन व्यक्तिगत दुखों ने उन्हें भीतर से तोड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने हमेशा अपने दर्द को ताक़त में बदला और समाजसेवा की राह पर चलते रहे।

भारत में भी वे कई बार सुर्खियों में आए। 1980 के दशक में जब उन्होंने एस्कॉर्ट्स ग्रुप और डीसीएम ग्रुप पर कब्ज़ा करने की कोशिश की, तो भारतीय कॉरपोरेट जगत में हलचल मच गई। यह सौदा भले ही पूरा न हो सका, लेकिन इसने उन्हें एक साहसी Investor और दूरदर्शी कारोबारी के रूप में स्थापित कर दिया।

21 अगस्त 2025 को, 94 वर्ष की आयु में, लंदन में परिवार की मौजूदगी में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर से भारत और ब्रिटेन दोनों में शोक की लहर दौड़ गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर ब्रिटेन की कई बड़ी राजनीतिक हस्तियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। उनके सहयोगी लॉर्ड रामी रेंजर ने कहा—“हम दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। ईश्वर उन्हें मोक्ष प्रदान करे।”

लॉर्ड स्वराज पॉल की कहानी हमें यह सिखाती है कि इंसान का असली मापदंड उसकी गाड़ियाँ, उसके महल या उसकी दौलत नहीं होती, बल्कि वह विरासत होती है जो वह समाज के लिए छोड़कर जाता है। उन्होंने हमें दिखाया कि कठिनाइयाँ कितनी भी हों, अगर इंसान अपने संकल्प पर अडिग रहे, तो वह न केवल व्यावसायिक सफलता पा सकता है, बल्कि समाज के लिए भी अमर धरोहर छोड़ सकता है।

जालंधर की गलियों से शुरू हुआ उनका सफ़र लंदन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स तक पहुँचा, और अरबों डॉलर की संपत्ति के साथ-साथ उन्होंने अपने परोपकार और समाजसेवा से करोड़ों लोगों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी। यही कारण है कि लॉर्ड स्वराज पॉल का नाम आने वाली पीढ़ियों तक सिर्फ़ एक उद्योगपति के रूप में नहीं, बल्कि एक सच्चे परोपकारी, समाजसेवी और भारतीय मूल्यों के दूत के रूप में याद किया जाएगा।

Conclusion

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