कल्पना कीजिए… एक ऐसी सुबह जब कोई खबर अखबार में नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी और सपनों के आसमान में उड़ती दिखाई दे। एक ऐसा इंसान, जिसने खाना पहुंचाने वाली एक कंपनी खड़ी की, अब देश को हवा में उड़ाने की तैयारी में जुट गया है। ज़ोमैटो के संस्थापक दीपिंदर गोयल अब जेट इंजनों की दुनिया में कदम रख चुके हैं। और यह कोई मज़ाक नहीं, बल्कि एक ऐसा कदम है जो भारत की एविएशन टेक्नोलॉजी को पूरी तरह बदल सकता है। Zomato से LAT Aerospace तक—यह केवल नामों का बदलाव नहीं है, बल्कि सोच की ऊंचाई का प्रतीक है। और इस बार मंज़िल ज़मीन नहीं, आसमान है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
दीपिंदर गोयल ने जोमैटो की पूर्व सीओओ सुरोभि दास के साथ मिलकर LAT Aerospace नाम का एक एयरोस्पेस स्टार्टअप शुरू किया है। यह नाम सुनते ही शायद आप सोचें—खाना डिलीवरी से जेट इंजन तक? लेकिन यही तो इस कहानी की खास बात है। दीपिंदर केवल एक फूडटेक एंटरप्रेन्योर नहीं रहे, अब वह भारत में एडवांस्ड एविएशन टेक्नोलॉजी की नींव रखने वाले इनोवेटर बन चुके हैं। उन्होंने साफ कहा—LAT Aerospace बेंगलुरु में एक ऐसी रिसर्च टीम बना रहा है, जिसका मिशन है हल्के, कुशल और पूरी तरह स्वदेशी गैस टर्बाइन इंजन तैयार करना।
इंजीनियर्स की हायरिंग शुरू हो चुकी है। सोशल मीडिया पर पोस्ट के ज़रिए उन्होंने साफ कहा—“यहां इंजीनियर्स को सोचने, बनाने, तोड़ने और फिर से बेहतर बनाने की पूरी आज़ादी होगी।” ऐसा बयान केवल आत्मविश्वास नहीं, उस जुनून की पहचान है जो किसी भी देश को टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बना सकता है। सोचिए, अगर भारत खुद अपना जेट इंजन बनाना सीख जाए, तो देश की सुरक्षा, सिविल एविएशन और एयरोस्पेस में क्या क्रांति आ सकती है?
लेकिन सवाल ये उठता है—यह जेट इंजन होता क्या है, जो इतनी बड़ी बात बन गया? दरअसल, जेट इंजन या गैस टर्बाइन इंजन एक ऐसा propulsion सिस्टम है, जो आधुनिक विमानों की रफ्तार की जान है। यह इंजन हवा को अंदर खींचता है, उसे compress करता है, फिर उसमें ईंधन मिलाकर उसे जलाता है। उस जलने से बनने वाली हॉट गैसें इतनी तेज़ी से बाहर निकलती हैं कि विमान को ज़बरदस्त thrust मिलता है। यही ताक़त एक लोहे की ट्यूब को हवा में 800 किलोमीटर प्रति घंटे से भी तेज़ उड़ने लायक बनाती है।
गैस टर्बाइन इंजनों की खासियत यह है कि ये बाकी इंजनों की तुलना में हल्के होते हैं, ज़्यादा पावरफुल होते हैं, और हाई-स्पीड पर भी ज्यादा स्मूद रहते हैं। चाहे सिविल एयरक्राफ्ट हो या मिलिट्री जेट, आज पूरी दुनिया में उड़ने वाले 95% से ज़्यादा विमानों में यही इंजन लगे होते हैं। और ये तकनीक अब तक भारत को विदेशों से लेनी पड़ती थी—कभी रूस से, कभी फ्रांस से, तो कभी अमेरिका से। लेकिन अब कहानी बदलने वाली है।
LAT Aerospace की योजना सिर्फ इंजन तक सीमित नहीं है। दीपिंदर गोयल का लक्ष्य है—भारत में ऐसे छोटे एयरक्राफ्ट तैयार करना जो Short Take-Off and Landing Aircraft यानी STOL aircraft कहलाते हैं। ये विमान छोटी जगह से उड़ान भर सकते हैं, और 20 से 24 यात्रियों को लेकर उड़ सकते हैं। सोचिए, अगर देश में ऐसी दर्जनों-हज़ारों उड़ानें छोटे शहरों को जोड़ने लगें तो क्या होगा? गांव-शहरों के बीच यात्रा के मायने ही बदल जाएंगे।
इस तरह के विमान कम रनवे की ज़रूरत वाले होंगे, और घाटी, पहाड़ी क्षेत्र या सीमावर्ती इलाकों में भी उड़ान भर सकेंगे। इससे न केवल कनेक्टिविटी बढ़ेगी, बल्कि एयरोस्पेस इंडस्ट्री में भारत की आत्मनिर्भरता का सपना भी साकार होगा। यह योजना सिर्फ़ Civil Aviation के लिए नहीं, बल्कि रक्षा जरूरतों के लिए भी बेहद अहम मानी जा रही है।
अब ज़रा उस सफर की बात करते हैं, जिसने एक फूडटेक स्टार्टअप फाउंडर को एयरोस्पेस में पहुंचा दिया। दीपिंदर गोयल ने 2008 में जोमैटो की शुरुआत की थी, और देखते ही देखते वो एक यूनिकॉर्न कंपनी बन गई। लेकिन जो बात उन्हें सबसे अलग बनाती है, वह है उनकी ‘problem solving instinct’। जब उन्होंने देखा कि भारत में जेट इंजन का कोई स्वदेशी विकल्प नहीं है, तो उन्होंने सिर्फ़ सवाल नहीं पूछा—उन्होंने एक समाधान की नींव रख दी।
LAT Aerospace की सोच ‘open engineering innovation’ की है। यानी इंजीनियर्स को ये आज़ादी दी जाएगी कि वो डिज़ाइन को बदलें, उसे तोड़ें, फिर नए तरीके से बनाएं—और यह सब बिना किसी नौकरशाही रुकावट के। इस सोच के पीछे सिर्फ़ टेक्नोलॉजी नहीं, बल्कि उस बदलाव की भूख है जो भारत को ‘मेड इन इंडिया’ से ‘डिज़ाइन्ड एंड इनोवेटेड इन इंडिया’ तक ले जाए।
अब आइए, ज़रा तकनीक की गहराई में उतरते हैं। जेट इंजन में तीन मुख्य हिस्से होते हैं—compressor, combustion chamber, और turbine। हवा सबसे पहले compressor में जाती है, जहां उसे high pressure पर कंप्रेस किया जाता है। फिर यह हवा combustion chamber में जाती है, जहां उसमें ईंधन मिलाया जाता है—अक्सर केरोसीन। जैसे ही ईंधन जलता है, गर्म गैसें turbine की ओर जाती हैं। और वहां से निकली ऊर्जा विमान को आगे की दिशा में thrust देती है।
जेट इंजन एक closed-loop system की तरह होता है, जहां प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है—हवा खिंचती है, दबाव बढ़ता है, ईंधन जलता है, गैसें फैलती हैं, और thrust मिलता है। इस पूरी प्रक्रिया को axial-flow और centrifugal compressor से बेहतर बनाया जाता है। यही वजह है कि जेट इंजन आधुनिक युग की सबसे भरोसेमंद propulsion तकनीक मानी जाती है।
LAT Aerospace का लक्ष्य है ऐसा इंजन बनाना जो न सिर्फ भारत में बना हो, बल्कि भारतीय ज़रूरतों के हिसाब से design और customize किया गया हो। क्योंकि भारत का मौसम, उंचाई, ईंधन की उपलब्धता और लॉजिस्टिक व्यवस्था—सब अलग है। यही वजह है कि विदेशी इंजनों की तुलना में एक स्वदेशी इंजन हमारे लिए ज़्यादा कारगर हो सकता है।
लेकिन रास्ता आसान नहीं है। एक जेट इंजन बनाना, उसे certify कराना, और फिर उसे mass production तक लाना—यह एक लंबा, तकनीकी और regulatory सफर है। इस रास्ते पर अब तक सिर्फ़ कुछ ही देशों ने सफलता पाई है—जैसे अमेरिका, फ्रांस, रूस, और हाल ही में चीन। लेकिन अगर कोई भारतीय स्टार्टअप इस दिशा में कामयाब होता है, तो वह न सिर्फ़ भारत को आत्मनिर्भर बनाएगा, बल्कि पूरे विश्व में ‘Indian Aero-Tech’ की एक नई पहचान बनाएगा।
भारत सरकार भी इस तरह की पहलों को प्रोत्साहित कर रही है। DRDO, HAL और NAL जैसे संस्थानों ने भी स्वदेशी इंजनों पर काम किया है, लेकिन स्टार्टअप क्षेत्र से इस तरह की पहल नई और ताज़गी से भरी है। खास बात यह है कि जहां सरकारी संस्थान अक्सर slow-moving होते हैं, वहीं स्टार्टअप agile, focused और mission-driven होते हैं। यही LAT Aerospace की सबसे बड़ी ताकत बन सकती है।
इस पूरी कहानी में सबसे ज़रूरी है—लोगों का विश्वास और इंजीनियर्स की काबिलियत। दीपिंदर गोयल ने जिस तरह से सोशल मीडिया पर public hiring की घोषणा की, वह दर्शाता है कि वह एक collaborative ecosystem बनाना चाहते हैं। जहां युवा भारतीय इंजीनियर्स अपनी रचनात्मकता को इस्तेमाल करके, देश को ऊंचाई पर ले जा सकें। जहां aerospace अब सिर्फ़ ISRO या HAL की monopoly न रह जाए, बल्कि आम नागरिक भी उसका हिस्सा बन सकें।
इस स्टार्टअप के सफल होने पर भारत न सिर्फ़ छोटे विमानों में आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि दुनिया के कई विकासशील देशों को सस्ते और कुशल जेट इंजन उपलब्ध करवा सकता है। यानी LAT Aerospace भविष्य में एक global supplier भी बन सकता है। सोचिए, जिस देश ने दशकों तक Boeing और Airbus पर निर्भरता दिखाई, वहीं अब अपना खुद का propulsion system बनाकर उन्हें टक्कर देने की तैयारी में है।
यही भारत की कहानी है—जहां एक फूड डिलीवरी स्टार्टअप फाउंडर भी Aerospace में भारत की अस्मिता और आत्मनिर्भरता की नींव रख सकता है। और यही वो भारत है, जो सिर्फ़ सपने नहीं देखता, उन्हें पूरा करने की हिम्मत भी रखता है। दीपिंदर गोयल की ये पहल उस आत्मविश्वास का प्रतीक है, जो कहता है—अब हम किसी से पीछे नहीं।
Conclusion
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